सोमवार, 9 अप्रैल 2012

दस साल की बच्ची से सरकार मुश्किल में


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

दस साल की बच्ची से सरकार मुश्किल में
लखनऊ की रहने वाली 10 साल की एक लड़की की आरटीआई से जानकारी मांगने के लिए दाखिल अर्जी ने सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) का इस्तेमाल करते हुए उसने पूछा था कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिताकी उपाधि कब और किस आदेश के तहत दी गई थी? छठी क्लास में पढ़ने वाली स्टूडेंट ऐश्वर्या पराशर ने 13 फरवरी को प्रधानमंत्री कार्यालय के जनसूचना अधिकारी को भेजी गई अर्जी में उस आदेश की फोटोकॉपी मांगी थी, जिसके आधार पर महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्ज दिया गया है। अब सरकार बगलें झांकते हुए रूटीन की तरह उसके आवेदन को इधर उधर भेज रही है। पीएमओ ने होम फिर नेशनल आर्काईव्स के पास भेज दिया। अंततः भारत गणराज्य के लापरवाह नौकरशाहों और जनसेवकों की बदोलत देश के पिता होने का गौरव पाने वाले बापू को राष्ट्रपिता का दर्जा देने वाले कागजात नहीं मिल सके। बताते हैं, महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि सर्वप्रथम नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 6 जुलाई, 1944 को सिंगापुर रेडियो पर अपने सम्बोधन में दी थी। इसके बाद 28 अप्रैल, 1947 को सरोजिनी नायडू ने एक सम्मेलन में उन्हें यही उपाधि दी।

मनमोहन का मकान किराए से चाहते हैं पंवार
गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में जनाधार खोने के बाद अब कांग्रेस के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं। इन परिस्थितियों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पंवार ने क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने का अभियान आरंभ कर दिया है। अगर वे अपने इस प्रयोग में कामयाब रहे तो 2014 के आम चुनावों में देश के वज़ीरे आज़म पद पर मराठा क्षत्रप शरद पंवार की ताजपोशी कोई रोक नहीं सकता है। सियासी हल्कों में चल रही सुगबुगाहट के मुताबिक समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव, त्रणमूल कांग्रेस की निजाम ममता बनर्जी और राकांपा के सुप्रीमो शरद पंवार इसी दिशा में काम कर रहे हैं। मुलायम और ममता इन दिनों कांग्रेस से ज्यादा शरद पंवार के करीब जाने को व्याकुल नजर आ रहे हैं। सियासी हल्कों में अब इस बात को चटखारे लेकर कहा जा रहा है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री आवास को मराठा क्षत्रप पंवार किराए पर लेना चाह रहे हैं।

नाथ के आगे बौने भूरिया
भले ही कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के भरोसे देश के हृदय प्रदेश में दस सालों के बाद राज वापस लाने के दिवा स्वप्न देख रहा हो किन्तु जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के रबर स्टेंप का ठप्पा लगे भूरिया का साहस इतना भी नहीं था कि वे केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र वाले छिंदवाड़ा के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की घोषणा एक साल में कर सकें। बताते हैं कि भूरिया ने अपने नाम की घोषणा के ठीक एक साल बाद 7 अप्रेल को तीन अध्यक्षों की घोषणा अंततः कर ही दी। कांग्रेस के जानकार इस बात पर हैरान थे कि कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा आखिर गंगा प्रसाद तिवारी की नियुक्ति तीसरी मर्तबा कैसे कर दी गई! कांग्रेस के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति दो बार से ज्यादा जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नहीं रह सकता है। तीसरी बार उसकी ताजपोशी के लिए नेशनल प्रेजीडेंट की विशेष अनुमति की जरूरत होती है।

यूपी से गायब हो गए दिग्गज!
उत्तर प्रदेश के चुनावों में पिता (मुलायम सिंह यादव) और पुत्र (अखिलेश) की जोड़ी ने धमाल मचाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के परिदृश्य से सियासी जादूगरों का पलायन हो गया। चुनाव के दौरान बड़ी बड़ी बातें करने वाले नेताओं को मानो सांप सूंघ गया है। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का तो अता पता ही नहीं है। कोई कह रहा है कि वे अपने गुरू पेजावर स्वामी की शरण में हैं। उमा के करीबी रहे लोगों का कहना है कि विधायक बनकर उमा भारती संतुष्ट नहीं हैं। वे मामूली विधायक रहकर अपने आप को असहज ही महसूस कर रहीं हैं। कल्याण सिंह की भी बोलती बंद हो गई है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की लोकप्रियता का उसी सूबे में आलम यह है कि वे अपने बेटे और बहू को भी नहीं जिता पाए। मुलायम से टूटकर अलग हुए अमर सिंह अपनी नाक नहीं बचा पाए और उन्होंने उत्तर प्रदेश के बजाए दिल्ली की राह पकड़ना ही मुनासिब समझा है।

युवराज ने संभाली यूपी की कमान
कांग्रेस की नजरों में भविष्य के वजीरे आजम और महासचिव राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में औंधे मुंह गिरे हैं। अब उनकी कमर सीधी होने में लंबा वक्त लगने वाला है। यूपी चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन से आहत युवराज राहुल गांधी परिणामों की घोषणा के दो दिनों बाद ही विदेश उड़ लिए थे। देश की गरीब जनता को भले ही दो वक्त की रोटी नसीब नही हो पर युवराज राहुल गांधी फिलीपिंस में जाकर छुट्टियां मनाकर देश वापस आ गए हैं। अब एक बार फिर से राहुल ने उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाल ली है। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि उनके सलाहकारों ने मशविरा दिया है कि उत्तर प्रदेश में वे अपनी सक्रियता बढा लें वरना विरोधी उन्हें रणछोड़दास कहने से नहीं चूकेंगे। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश का प्रभार दिग्विजय सिंह के कांधों से उतारकर राजा को एमपी तो राहुल खुद यूपी की कमना संभालने वाले हैं।

लाल किले पर तिरंगा फहराने की ख्वाहिश में नेताजी
कहा जा रहा है कि समाजवादी क्षत्रप मुलायम सिंह यादव की एक ही ख्वाहिश शेष बची है, और वह है कि वे स्वाधीनता दिवस पर लाल किले पर झंडा फहराएं। दरअसल, उनकी ढलती उम्र उनके लिए अब रोड़ा बनकर उभर रही है। यही कारण है कि बंधु बांधवों के भारी विरोध के बावजूद भी मुलायम सिंह ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की सूबाई राजनीति में महिमा मण्डित कर स्थापित करने का जतन किया है। उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव की ढलती उम्र उनके स्वास्थ्य के लिए खतरा बनती जा रही है। सूत्रों के अनुसार मुलायम गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह यादव को ढलती उम्र के कारण अब भूलने की बीमारी भी हो चुकी है। उनकी याददाश्त बेहद कमजोर हो गई है पर इस बीमारी को उन्होंने बखूबी छिपाकर रखा है।

कुलबुलाने लगा है जनरल का सियासी कीड़ा
भारत गणराज्य की सेना के ईमानदार किन्तु विवादित सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह सेवानिवृति के उपरांत सियासी अखाड़े में दो दो हाथ करने आतुर नजर आ रहे हैं। आर्मी चीफ विजय कुमार सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि जनरल के मन में राजनैतिक महात्वाकाक्षांओं ने उबाल मारना आरंभ कर दिया है। पूर्व में राजपूत वजीरे आज़म विश्वनाथ प्रताप सिंह के नक्शे कदम पर चलते हुए जनरल सिंह भी अपने होम स्टेट यानी हरियाणा से चुनाव मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। सूत्रों ने संकेत दिए कि वे भिवानी से मैदान में उतर सकते हैं। किस दल से उतरेंगे यह बात अभी भविष्य के गर्भ में ही है। उधर, देश भर के राजपूत सांसद भी जनरल सिंह के पक्ष में लामबंद होते दिख रहे हैं। कमोबेश सभी का मानना है कि वे ईमानदार जनरल वी.के.सिंह की अगुवाई में आदर्श भारत के गठन के मार्ग प्रशस्त करने को तैयार हैं।

रोहाणीएक गरीब राजनेता
तीन दशक से राजनैतिक बियावान का विचरण करने वाले मध्य प्रदेश विधानसभाध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी इन दिनों मीडिया के निशाने पर हैं। कुख्यात जरायमपेशा रज़्ज़ाक पहलवान के साथ संबंधों के कारण चर्चा में आए रोहाणी के शपथ पत्रों के हिसाब से वे अब तक के सबसे गरीब राजनेता हैं। एक तरफ घर बनाने उन्होंने बेटे से 6 लाख 46 हजार 607 रूपए उधार लिए तो अपनी कमाई में से एक लाख 44 हजार रूपए परिवार को उधार दिए। घर ही घर में लेन देन को लेकर भाजपा के नेशनल आफिस में भी चर्चाओं का ना थमने वाला दौर चल पड़ा है। रज़्ज़ाक के कारण रोहाणी की टीआरपी गिरी, जिसका सीधा लाभ उनके प्रतिद्वंदी अजय बिश्नोई ने उठाया। कल तक हाशिए में चल रहे बिश्नोई अब फुल फार्म में हैं और वे महाकौशल पर कब्जा करने की चहत में तूफानी दौरे कर रहे हैं। सियासत में कभी नाव नदी में तो कभी नदी नाव में होती है।

घपले घोटालों की तरफ से हटाया ध्यान
प्रधानमंत्री के नए मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी की इन दिनों बल्ले बल्ले है। पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पीएमओ के सबसे ताकतवर अधिकारी पुलक चटर्जी इन दिनों पचौरी से खासे खुश नजर आ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है इन दिनों मीडिया से घपले घोटालों का गायब होना है। पचौरी की रणनीति के कारण देश का मीडिया भ्रष्टाचार से फोकस हटा चुका है। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि पचौरी की नौकरी पक्की मानी जा रही है, इसका कारण यह है कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, युवराज राहुल गांधी, पर्दे के पीछे के सलाहकार प्रियंका और राबर्ट वढ़ेरा, पीएम सहित सभी इस बात से खुश हैं कि भ्रष्टाचार फिलहाल मुद्दा नहीं रह गया है। पीएमओ और दस जनपथ में पिछले एक पखवाड़े से पंकज पचौरी की पीठ ही ठोंकी जा रही है।

. . . मतलब एमपी से हो गया क्षत्रपों का मोह भंग
मध्य प्रदेश में कांग्रेस आईसीसीयू में पड़ी कराह रही है और कांग्रेस के नाम पर प्रदेश और देश में रसूख बनाने वाले नेताओं को मलाई खाने से फुर्सत ही नहीं है। समय समय पर हाल चाल लेने आने वाले कांग्रेस के प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद भी कांग्रेस आलाकमान को एमपी कांग्रेस के हालातों के बारे में सही सही बताने से कतरा रहे हैं। एमपी कोटे से केंद्र में वर्तमान में कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्री हैं। इसके पहले कांति लाल भूरिया और अरूण यादव को लाल बत्ती मिली थी। इन चारों को एमपी में कांग्रेस को जिलाने की फुर्सत नहीं मिली। सूबाई राजनीति करने वाले क्षत्रप भी अपने आप में व्यसत हैं। आज कांग्रेस का कार्यकर्ता मायूस है। कांग्रेस में चर्चा चल पड़ी है कि एमपी से यहीं के क्षत्रपों का मोह भंग हो चुका है।

जाग रहा है ममता का अहम्!
सत्ता का नशा त्रणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के सर चढ़कर बोल रहा है। 1984 में पहली बार सांसद बनी ममता के खासुलखास रहे रतन मुखर्जी उस दर्मयान ममता के सारथी (चालक), राजनैतिक सहयोगी, सचिव हर भूमिका में थे। ममता रेल मंत्री बनीं तो मुखर्जी एपीएस बने। ममता के सीएम बनने के बाद मुखर्जी को पूरी तवज्जो मिली और लेखक भवन में एक कमरा भी दे दिया गया। किन्तु अब मुखर्जी ने ममता का दामन छोड़ दिया है। कहा जा रहा है कि ममता ने सत्ता के मद में मुखर्जी के बजाए नए एपीएस अशोक सुब्रहम्यण को ज्यादा तवज्जो देना आरंभ कर दिया। पिछले दिनों जब मुखर्जी एक सूची लेकर ममता के पास गए तो ममता ने सूची देख अपने सहयोगी गौतम सन्याल को बुलाकर सूची दिखाकर मुखर्जी को व्यक्तिगत तौर पर काफी भला बुरा कह दिया। फिर क्या था मुखर्जी ने त्यागपत्र लिखा ममता को दिया और अपने परिवार के साथ पुरी कूच कर गए। रामधारी सिंह दिनकर ने सही लिखा है -‘‘जब नास मनुस का छाता है! तब विवेक मर जाता है!!‘‘

पुच्छल तारा
देश भर में बहस चल रही है कि भारतीय सेना ने विद्रोह कर दिया था। 16 जनवरी को वह दिल्ली की ओर बढ़ गई थी। नेता इसे कोरी बकवास करार दे रहे हैं। अगर एसा है तो फिर इसे रूटीन अभ्यास क्यों कहा जा रहा है। क्या सेना के आने जाने के बारे में खुफिया एजेंसियों ने भी आंख बंद कर रखी थी। शक की सुई एक केंद्रीय मंत्री पर जाकर टिक रही है। इससे जुड़ी किन्तु मजेदार अलग बात से युक्त ईमेल भेजा है नागपुर से उत्कर्षा घ्यार ने। उत्कर्षा लिखती हैं कि सेना दिल्ली की ओर बढ़ी। इस बारे में जब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को बताया गया तो क्या बताया गया। अरे यही कि जी मदाम सेना तो दिल्ली की ओर बढ़ी थी नहीं बढ़ रही है, पर वह भारतीय सेना नहीं मुलायम सिंह यादव की सेना है।