बुधवार, 29 मई 2013

गौशाला में पानी के अभाव में तड़प रही गौमाताएं!

गौशाला में पानी के अभाव में तड़प रही गौमाताएं!

(शरद खरे)

सिवनी (साई)। सिवनी में गौशाल में पानी के अभाव में गौमाताएं बुरी तरह तड़प रही हैं। यह बात मातृशक्ति संगठन के गौशालाओं के निरीक्षण के दौरान सामने आई है।
मातृशक्ति संगठन के सदस्य नगर से कुछ दूरी पर स्थित गौशाला के भ्रमण पर पिछले एक माह से जा रहे है। संगठन को यकीन ही नही हो पा रहा था कि कत्ल खाने ले जाने वाली इन गायों को छुडवाकर गौशाला मे जीवन देने के लिए लाया जाता है या तड़पा तड़पा कर मारने के लिए ?
प्राप्त जानकारी के अनुसार सभी जानकारियों को पुख्ता कर लेने के बाद संगठन ने गौशाला समिति के साथ एक मीटिंग रखने का और उन्हें कुछ सुझाव देने का निश्चय किया, ताकि हम सब मिलकर इन मूक जानवरो के हित मे कुछ कर पाऐं। किन्तु अत्यंत दुख की बात है कि गौशाला समिति ने मिटिंग मे उपस्थित होने से साफ इंकार कर दिया। नगर के कुछ जागरूक प्रबुद्धजनो ने मीटिंग मे अपनी उपस्थिती दी और गौशाला की बदहाली पर दुख भी प्रकट किया। कुछ ठोस कदम उठाने की अपील भी की।
संगठन द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि भीषण गर्मी मे गर्म फर्श पर खुले मे पड़ी हुई तड़पती हुई गायें संगठन ने अपनी ऑखो से देखा। हृदय बिदारक इस दृश्य को देखकर संगठन के कुछ सदस्य तो बाहर निकल गए, कुछ ने हिम्मत की और कर्मचारीयों से बात की। कर्मचारियों ने संगठन की महिलाओं से बदशलूकी भी की और गलत जबाव भी दिए।
कर्मचारियों का कहना था कि ये सब गायें अंतिम सांसे ले रही है हम कुछ नही कर सकते। पर संगठन ने दौड़ दौड़ कर गायों को पानी पिलाया और वे सभी गाये उठकर खड़ी हो गई। तब संगठन एवं कर्मचारियों के बीच माहोल और भी गरमाया। क्या इन्हे पानी पिलाने वाला भी कोई नही ? गौशाला के सभी कर्मचारी गौशाला ट्रस्ट के पदाधिकारियों के घरो मे काम करते है। गौशाला मे कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति की उपस्थित होती ही नही।
डॉ. ज्योति बाला जैन जिनकी हफ्ते मे दो बार गौशाला जाने की ड्यूटी है वो वहॉ जाती ही नही। दूसरे डॉ. चौकसे जो अपनी ड्यूटी के वक्त वहॉ जाते तो है पर गौशाला मे कोई कर्मचारी नही होने से इलाज किन गायो का होना है डॉ। को पता ही नही चलता। खून से लथपथ गायो के संबंध में जब संगठन ने डॉ। से बात की तो उन्होने बताया कि डॉक्टर को इस विषय मे किसी ने खबर नही दी, अन्ततः वो गाये मर गई। धूप मे तड़पती बीमार गायो को शेड मे रखने के लिए आज तक किसी ने कहा ही नही ऐसा गौशाला के कर्मचारी खुद कहते है।
संगठन ने खुद वहॉ खड़े रहकर बीमार गायो को शेड मे रखवाया है। बिजली खराब होने की स्थिति में जानवर दो दिन तक प्यासे रहे, समिति के सदस्यगण वहॉ देखने जाते ही नही। वो अपने आपको व्यवसाय मे व्यस्त बताते है। उनकी व्यस्तता का परिणाम है कि आज से तीन साल पहले की स्वर्ग के समान गौशाला आज नरक मे बदल गई है।

संगठन ने गौशाला परिसर में वहॉ के कर्मचारियों को अनैतिक और अमर्यादित क्रिया कलापों मे लिप्त भी देखा है जो इस पावन स्थल पर अत्यंत निदंनीय है। संगठन इस रिपोर्ट को माननीय मुख्य मंत्री शिवराज सिंह जी चौहान और श्रीमति मेनका गांधी जो कि पशु सुरक्षा हेतु कटिबद्ध है, को सौपने जा रहा है। मूक पशुओ की करूणामयी ऑखे न्याय की प्रतिक्षा मे है, निरीह गायों को तत्काल न्याय मिले, हम सभी सिवनी के भावुक हृदय प्रबुद्ध नागरिकों से सहयोग की अपेक्षा करते है।  

हरवंश के जाते ही कांग्रेस के क्षत्रपों ने मोड़ा सिवनी से मुंह!

हरवंश के जाते ही कांग्रेस के क्षत्रपों ने मोड़ा सिवनी से मुंह!

(सोनल सूर्यवंशी)

भोपाल (साई)। कांग्रेस के क्षत्रप और मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर के अवसान के साथ ही अब कांग्रेस में सिवनी जिले में एक शून्यता आ गई है जिसका सीधा प्रभाव हाल ही में प्रदेश कांग्रेस कमेटी में किए गए फेरबदल में देखने को मिला। इस फेरबदल में सिवनी को अछूता ही रखा गया है।
पीसीसी के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की सहमति से राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने मप्र कांग्रेस कमेटी की प्रदेश कार्यकारिणी, मीडिया विभाग एवं अल्पसंख्यक विभाग का पुर्नगठन कर दिया है।
नवीन कार्यकारिणी में मीडिया विभाग का अध्यक्ष, प्रभारी के पद को समाप्त कर दिया है। उपाध्यक्ष के पद 11 से बढ़ाकर 25 कर दिए हैं। महामंत्री के पद 26 कर दिए हैं, जो पहले 16 थे। पीसीसी के कोषाध्यक्ष पद से गोविंद गोयल की छुट्टी कर उन्हें महामंत्री बनाया गया है। जबकि कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी पूर्व विधायक नरेश जैन को दी गई है। वहीं मो सलीम को अल्पसंख्यक विभाग का अध्यक्ष बनाया है।
0 उपाध्यक्ष
रामेश्वर नीखरा नरसिंहपुर, बिसाहुलाल सिंह अनुपपुर, महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा रतलाम, सज्जन वर्मा देवास, प्रेमचंद्र गुड्डू उज्जैन, इंद्रजीत पटेल सिंगरौली, लक्ष्मीण सिंह राजगढ़, गोविंद राजपूत सागर, राजेन्द्र भारती उज्जैन, अरुणोदय चौबे सागर, लखन घनघोरिया जबलपुर, श्रीमती पुष्पा बिसने वालाघाट, मानक अग्रवाल भोपाल, आरिफ अकील भोपाल, गोविदं सिंह भिण्ड, सुंदरलाल तिवारी रीवा, खुर्शीद अनवर रतलाम, विजय दुबे होशंगाबाद, राजीव सिंह भोपाल, श्रीमती आभा सिंह भोपाल, हुकुम सिंह कराड़ा शाजापुर, रामेश्वर पटेल इंदौर, मो अबरार छिंदवाड़ा, तुलसी सिलावट इंदौर और प्रताप भानु शर्मा विदिशा को अध्यक्ष बनाया गया है।
0 महामंत्री
बाला बच्चन बड़वानी, सुखदेव पांसे बैतूल, संजय पाठक कटनी, अशोक सिंह ग्वालियर, राजेन्द्र मिश्रा रीवा, शांतिलाल पडिय़ार झाबुआ, महेन्द्र सिंह चौहान भोपाल, सुनील सूद भोपाल, साजिद अली भोपाल, चंद्रभान लोधी दमोह, गोविंद गोयल भोपाल, शशि कथूरिया सागर, बैजनाथ सिंह यादव शिवपुरी, संजय ठाकुर उज्जैन, मनोज राजानी देवास, वीरेन्द्र खोंगल बालाघाट, नरेश सर्राफ जबलपुर, देवेन्द्र टेकाम मंडला, बटनलाल साहू छिंदवाड़ा, तनिमा दत्ता भोपाल, कल्याणी पांडे जबलपुर, सुनील जायसवाल नरसिंहपुर, मुजीब कुरैशी धार, रवि जोशी खरगोन, रमेश अग्रवाल ग्वालियर, रघुवीर सिंह सूर्यवंशी विदिशा को महामंत्री की जिम्मेदारी दी है।
0 प्रवक्ता
मुकेश नायक दमोह, प्रमोद गुगालिया रतलाम, जेपी धनोपिया भोपाल, नरेन्द्र सलूजा इंदौर, नूरी खान उज्जैन, अभय दुबे इंदौर, लक्ष्मण ढोली इंदौर, रवि सक्सेना भोपाल, विनीत गोधी भोपाल, चंद्रशेखर रायकवार इंदौर को प्रवक्ता बनाया है।
0 इनकी छुट्टी
पीसीसी के पुनर्गठन में घनश्याम पाटीदार, विश्वनाथ दुबे, चंद्रभान किराड़े को उपाध्यक्ष पद से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। जबकि 17 नए पदाधिकारयों को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह प्रभूराम चौधरी, निशिथ पटेल, सत्यदेव कटारे, शशि राजपूत, पीडी अग्रवाल, मनीष गुप्ता, जेएम राइन, गीता सिंह की महामंत्री पद से छुट्टी कर दी गई है। प्रवक्ताओं में पांच नए लोगों को शामिल किया है। रवि सक्सेना को सचिव से प्रवक्ता बनाया है
केवलारी विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के अवसान के उपरांत कांग्रेस के खेमे में यह चर्चा तेज हो गई है कि सिवनी में कांग्रेस में अब कद्दावर नेता का टोटा हो गया है। अब सिवनी जिला मण्डला, डिंडोरी जैसे जिलों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है जहां के नेता दूसरे जिलों के क्षत्रपों पर ही निर्भर हैं।
यहां उल्लेखनीय होगा कि कांग्रेस को संबल देने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा अब सक्रिय राजनीति से किनारा कर चुकी हैं। उनके उपरांत हरवंश सिंह ने सिवनी कांग्रेस को दिशा प्रदान की थी। हरवंश के अवसान के उपरांत कांग्रेस में एक वेक्यूम महसूस किया जा रहा है।
इसके साथ ही साथ इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि सिवनी लोकसभा सीट का अवसान भी बिना प्रस्ताव के हो गया है, जिससे अब सिवनी की बात केंद्र में रखने वाला भी कोई नहीं बचा है।

सिपाही सिपाही में अंतर!

सिपाही सिपाही में अंतर!

(लिमटी खरे)

छत्तीसगढ़ की हरकत से देश दहला हुआ है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे की जघन्य हत्या के अलावा बड़े नेताओं की माओवादियों, नक्सलवादियों ने हत्या की हो यह उदहारण देखने को नहीं मिलता। अब लगता है पानी सर के उपर से गुजरने लगा है। वैसे तो सहनशीलता का तकाजा है कि जब तक पानी नाक तक पहुंचे वैसे ही कार्यवाही करना आरंभ कर देना चाहिए, पर देश और छत्तीसगढ़ की नपुंसक सरकार द्वारा पानी सर के उपर आ जाने के बाद भी अब तक नहीं जागना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा।
इस हमले में चूंकि कांग्रेस के सिपाही मारे गए हैं इसलिए प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी सहित ना जाने कितने नेता छत्तीगढ़ पहुंचे और अपनी संवेदनाएं प्रकट की हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने बंद का आव्हान किया। देशवासी यह शायद ही भूले हों कि तीन साल पहले छत्तीगढ़ में ही वामपंथी नक्सलवादियों ने अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ के सत्तर सिपाहियों को शहीद किया था।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस क्या सिपाही सिपाही में अंतर करने लगी है। देश की रक्षा के कुर्बान होने वाले सिपाही क्या कांग्रेस के सिपाहियों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं? देश के सिपाहियों के मारे जाने पर ना तो सोनिया ना ही मनमोहन सिंह छत्तीगढ़ पहुंचे! आखिर क्यों? क्या कांग्रेस के सिपाही का मारा जाना देश के सिपाही के मारे जाने से ज्यादा वजनदारी रख रहा है मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के लिए।
हमारे कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि कांग्रेस के नेताओं के इस तरह निधन होने पर देश को शोक नहीं मनाना चाहिए, अथवा रोष प्रकट नहीं करना चाहिए। हम महज यह कहना चाह रहे हैं कि कांग्रेस को सिपाही सिपाही मेें भेद करना छोड़ना ही होगा। देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने वाले सिपाही के लिए हर देश वासी दिल से सैल्यूट करता है इस बात में संदेह नहीं है।
एक बात समझ से परे है कि अगर कांग्रेस के नेता पर हमला हो तो वह लोकतंत्र पर हमला कहलाता है और देश की रक्षा में जुटे जवान पर हमला हो तो वह लोकतंत्र पर हमला नहीं है। साफ है कि वह आम बात है हमारे हुक्मरानों के लिए।
बहरहाल, माओवादी, नक्सलवादियों द्वारा भारत की संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती दी है, जिसे अगर केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार और छत्तीगढ़ की भाजपा सरकार ने बर्दाश्त किया तो उन्हें आने वाली पीढ़ी शायद ही कभी माफ कर पाए। नक्सलवादियों ने हैवानियत की सारी हदें लांघ दी हैं। सियासी दल के नेता रायपुर पहुुंचकर अब घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।
इसके बाद आरंभ होगा आरोप प्रत्यारोप का कभी ना रूकने वाला सिलसिला। भाजपा प्रदेश पर काबिज है वह केंद्र सरकार पर तोहमत लगाएगी, तो कांग्रेस जो केंद्र में सत्तारूढ़ है वह भाजपा को आड़े हाथों लेगी। सवाल यही है कि जब भाजपा की रमन सरकार नक्सलवाद प्रभावित इलाकों पर हुकूमत कायम करने का दावा करती है तो आखिर यह घटना किस तरह अंजाम तक पहुंच सकी? रमन सरकार का यह दावा भारत विशेषकर छत्तीगढ़ के लोगों के लिए छल प्रपंच और धोखे से कम नहीं है। वहीं मानवाधिकार का शोर मचाने वाले भी अभी बनते बिगड़ते समीकरण देख ही रहे हैं। वे भी दो एक दिन में तवा गर्म होने पर अपने गुंथे आटे से रोटियां सेंकते नजर आएंगे।
नक्सलवादी जो कुछ कर रहे हैं उसे निश्चित तौर पर भारत के संविधान में किसी भी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। नक्सलवादी आतंक बरपाने का काम सिर्फ और सिर्फ दहशत फैलाने की गरज से कर रहे हैं। आतंक का कोई मजहब नहीं होता है। आतंक की हर चुनौतियों से निपटने का दावा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर रटे रटाए जवाब की तरह दिया जाता है।
आतंक से निपटने के लिए उन्हें उन्हीं की जुबान में उत्तर देना आवश्यक है। भारत की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार और जवाबदार फौज को तत्काल आदेश दिया जाए और इनके सफाए की माकूल व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। आज सियासी बियावान में नैतिकता पूरी तरह मर चुकी है। वरना क्या कारण है कि आज के कांग्रेस भाजपा के आलंबरदार पश्चिम बंगाल के नक्सलवाद का सफाया करने वाले तत्कालीन कांग्रेस के निजाम सिद्धार्थ शंकर रे को भूलते जा रहे हैं।
प्रौढ़ हो रही पीढ़ी के दिमाग से यह बात कतई विस्मृत नहीं हुई होगी कि स्व.सिद्धार्थ शंकर रे ने भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं की मर्यादा में रहते हुए सत्ता की ताकत का सही दिशा में प्रयोग किया। इसका नतीजा यह हुआ कि नक्सलवादी निहत्थे हो गए और निहत्थे नक्सलवादियों के सामने भारत के संविधान के प्रति आस्था प्रकट करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा।
आज देश भर में कांग्रेस के नेताओं का गुस्सा पूरे उबाल पर है। कांग्रेस के नेताओं को अपनों को खोने का जबर्दस्त गम है। अगर नेता इसी बात को समझते और देश के हर नागरिक को अपना मानते तो आज हालात कुछ और होते। नेता चाहे कांग्रेस का हो भाजपा का अथवा अन्य किसी सियासी दल का उसे अपना पराया का भेद छोड़ना ही होगा।
कितनी अजीब बात है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में वहां के निजाम राज्य की कानून व्यवस्था उसका विशेषाधिकार है को लेकर केंद्र सरकार के साथ सदा ही बैर रखता आया हो, और उसी सूबे में नक्सलवादी, माओवादी जब चाहे तब शासन प्रशासन की कालर पकड़कर झंझकोर रहे हों।
वस्तुतः भारत की संवैधानिक व्यवस्थाओं की मंशा के अनुसार किसी राज्य में निजाम का कर्तव्य और दायित्व यह है कि वह अपने सूबे में संविधान का पालन सुनिश्चित करवाए। संविधान के पालन के लिए परिस्थितियां पैदा करे। संविधान का अनादर करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए वह यह संदेश देने का प्रयास करे कि भारत के संविधान का उल्लंघन चाहे बंदूक के दम पर हो या किसी और जरिए से, उसे बर्दाश्त कतई नहींे किया जा सकता है।
यहां एक बात और स्पष्ट है कि आतंकवादियों का कोई सियासी मंसूबा नहीं होता है, वे राजनैतिक रूप से विचार शून्य ही होते हैं, पर जहां तक माओवाद और नक्सलवाद की बात है तो माओवाद और नक्सलवाद में सियासी पुट होता है। इनका उद्देश्य अपने अधिकार और प्रभाव क्षेत्र में समानांतर सत्ता चलाने का होता है।
आज भी देश में कई हिस्सों में भारत का संविधान कराह रहा है। जगह जगह इंसाफ के लिए इनकी अलग कचहरियां हैं। इनकी बात ना मानने पर ये वहशीपन पर उतर आते हैं। इतना खौफ पैदा कर देते हैं कि क्षेत्र के लोग संविधान के बजाए इनकी सत्ता को मानने पर मजबूर हो जाते हैं।
जब भी बगावत होती है तब इसके शमन के लिए शासकों को ताकत का इस्तेमाल करना ही होता है। भारत का इतिहास इस बात का गवाह है कि गदर को रोकने हुकूमत ने कड़ा रवैया अपनाया है। देश भर में आज अराजकता की स्थिति है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश में हुक्मरानों की अस्पष्ट नीतियों से जंगल राज स्थापित हो चुका है।
क्या भारत गणराज्य में जंगलराज की स्थापना की आजादी है। यह बताएं कि आखिर इन आताताईयों के पास असलहा कहां से आता है। कौन हैं जो इनकी मदद कर रहे हैं। इनके पास से चीन और पाकिस्तान की मुहर लगे हथियार मिलते हैं ये क्या साबित करते हैं?
मध्य प्रदेश में भी नक्सलवाद की आहट कम नहीं है। बालाघाट, मण्डला, डिंडोरी जिलों में इनकी पदचाप सुनी जा सकती है। प्रदेश के तत्कालीन परिवहन मंत्री को नक्सलवादियों द्वारा ही उनके बालाघाट जिले के गृह ग्राम गला रेतकर मार डाला था। सिवनी जिले में नब्बे के दशक के आरंभ में नक्सलवाद की पदचाप सुनाई दे गई थी।
पिछले दिनों नक्सल प्रभावित जिलों की फेहरिस्त में सिवनी को शामिल किया गया है। सिवनी में नक्सलवाद से निपटने अर्धसैनिक बल का एक दस्ता आकर सर्वेक्षण कर चला गया है। नक्सलवाद से निपटने के लिए लाखों रूपयों के आवंटन के आने की भी खबर है। सिवनी का केवलारी से बरघाट की ओर का इलाका इसकी जद में बताया जाता है।

1992 में कफर््यू के दरम्यान तत्कालीन जिलाधिकारी पंडित जयनारायण शर्मा का कथन याद आता है। वे सदा ही कहा करते थे कि प्रीकाशन इज बेटर देन क्योर! अर्थात अगर सावधानी बरत ली जाए तो बाद में उपचार की आवश्यक्ता नहीं होती है। छत्तीसगढ़ की घटना से जिला प्रशासन सिवनी को भी सबक लेना चाहिए और सिवनी जिले में नक्सलवादी गतिविधि ना पनपें इसका पुख्ता इंतजाम करना चाहिए।