सोमवार, 5 नवंबर 2012

फेरबदल से क्या साफ हो पाएगी अलीबाबा की छवि!

फेरबदल से क्या साफ हो पाएगी अलीबाबा की छवि!

(लिमटी खरे)

सवा सौ साल पुरानी और भारत गणराज्य की स्थापना के उपरांत आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार द्वारा 2004 के बाद जो किया है उससे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अली बाबा और उनकी टोली को चालीस चोर की संज्ञा दी जाने लगी है। मनमोहन सिंह की निर्लज्जता के चलते देश को उनके चालीस चोरों ने दिल खोलकर लूटा। अब 2014 के आम चुनावों के पहले मंत्रीमण्डल में फेरबदल कर मनमोहन सिंह ने कांग्रेस और केंद्र सरकार की छवि को सुधारने का असफल प्रयास किया है।
एक समय था जब केंद्र अथवा प्रदेश सरकार में फेरबदल की सुगबुगाहट के साथ ही लोग कानों में ट्रांजिस्टर लगा लिया करते थे। लोग फेरबदल या विस्तार का बेसब्री से इंतजार किया करते थे। इसमें जिन्हें लिया जाता उन्हें वाकई योग्य और जिन्हें निकाला जाता उनका परफार्मेंस बेहद खराब समझा जाता था। अब तो संचार माध्यम इतने जबर्दस्त हो गए हैं कि चौबीसों घंटे सब कुछ बस एक क्लिक पर झटके से सामने हाजिर हो जाता है।
मनमोहनी फेरबदल आया और चला गया पर किसी को कोई प्रतिक्रिया ना आना वाकई अपने आप में अनोखा है। कहते हैं धीरे धीरे जिस माहौल में आप ढलते जाते हैं आपका मन भी उसी को अंगीकार करने पर मजबूर हो जाता है। भ्रष्टाचार के साथ भी कमोबेश यही हुआ। याद पड़ता है कि अस्सी के दशक में जब कार्यालयों में रिश्वत लेने और देने दोनों को अपराध माना जाने वाला जुमला चस्पा होता था अब वह कहीं दिखाई नहीं पड़ता।
भ्रष्टाचार इस चरम पर पहुंच चुका है कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी या नेता के पास पच्चीस पचास लाख की संपत्ति मिलती है तो लोग कहते हैं उंह क्या भ्रष्टाचार किया कुछ भी तो नहीं।‘‘ मध्य प्रदेश के मुख्ममंत्री शिवराज सिंह चौहान के चार डंपर का मामला उछला। लोगों का कहना था, ‘अरे कुछ भी आरोप लगाते हैं भला मुख्यमंत्री चार डंपर के लिए गफलत करेगा। अरे जब आरटीओ आफिस में लकड़ी (भ्रष्टाचार का मूल भाग) कटकर सीधे सीएम को जाता है और बुरादा (भ्रष्टाचार में मिलने वाली दलाली) बटोरने वाले आरटीओ के चपरासी करोड़पति हैं तो सीएम क्या एकाध करोड के लिए अपनी नियत खराब करेंगे।‘‘
कहने का तत्पर्य महज इतना है कि अब भ्रष्टाचार के मायने बदल गए हैं। वे दिन अब लद गए जब कहा जाता था कि चोर दो रूपए की हो या दो लाख की चोरी ही होती है। अब तो अघोषित तौर पर मान लिया गया है कि चोरी अगर करोड़ से कम की है तो वह चोरी नहीं है। मीडिया को प्रजातंत्र का चौथ स्तंभ माना जाता है। माना जाता है कि मीडिया ही प्रजातंत्र के बाकी स्तंभों को सही काम करने के लिए पाबंद होता है।
हाल ही में देश के हृदय प्रदेश के जनसंपर्क विभाग के आला अधिकारियों ने काफी नीचे टीआरपी वाली एक वेब साईट को सरकारी विज्ञापन जारी किया वह भी 15 लाख रूपए का। वेब साईट को किस दर पर विज्ञापन जारी हुआ?, यह दर कहां से अनुमोदित या स्वीकृत थी?, क्या प्रदेश में इससे अधिक टीआरपी वाली वेब साईट नहीं हैं? आदि प्रश्नों के उत्तर आज भी अनुत्तरित ही हैं। इसका भुगतान भी आनन फानन ही कर दिया गया।
जब मीडिया में ही दलाल नुमा ठेकेदार और पूंजीपतियों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया हो तो देश का गर्त में जाना स्वाभाविक ही है। मीडिया मुगलों ने अपने आप को अखबारों या चेनल्स का प्रधान संपादक बना रखा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि देश के मीडिया संस्थानों में ऐसे प्रधान संपादक उंगलियों में गिन जाएंगे जो रोजाना, पखवाड़े, मासिक, त्रैमासिक तौर पर लिखते हों। अधिकतर तो अपनी घिसी पिटी संपादकीय को 15 अगस्त या 26 जनवरी पर ही प्रकाशित करवा देते हैं।
बहरहाल, इस बार जो फेरबदल हुआ उसकी चर्चा हाट बाजारों या गांव की चौपालों में भी नहीं हुई। इससे साफ है कि आम जनता भी केंद्र सरकार के इस रवैए से पूरी तरह आजिज ही आ चुकी है। सारे देश में सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, उनके मंत्रियों, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी सहित समूचे राजनेताओं को जिस कदर कोस रही है, उस मुहिम को जनसेवक खाल बचाने के लिए प्रायोजित करार अवश्य दे सकते हैं पर असल में एसा है नहीं।
दरअसल, विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुकी केंद्र सरकार और जनसेवक अपनी साख लौटाने के लिए अब नए नए प्रयोग कर रहे हैं। कांग्रेस और उसके रीढ़विहीन वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह केंद्रीय मंत्रीमण्डल में फेरबदल कर जनता का विश्वास जीतने का असफल प्रयास ही कर रहे हैं। मनमोहन सिंह की चौकड़ी में आज भी दागी मंत्रियों का समावेश है। जब भी किसी मंत्री पर आरोपों की बौछार होती है वह इसे विपक्षी साजिश करार दे देता है। रही सही कसर, बिके हुए मीडिया के दलाल पूरी कर देते हैं।
समाज सेवी अण्णा हजारे ने जिस तरह हुंकार भरी थी, उस वक्त देश का माहौल देखने लायक था। सड़कों पर युवाओं और बच्चों की टोलियां देखकर उमर दराज हो चुकी पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम की यादें ताजा हो गई होंगी। प्रोढ़ हो रही पीढ़ी जिसने आजादी के उपरांत अस्सी के दशक तक देशप्रेम से ओतप्रोत चलचित्र और गीत संगीत के बीच अपने आप को पाया, वह यह सोचने पर अवश्य ही विवश हुई कि क्या वाकई पचास सालों में हम गोरे ब्रितानियों के बजाए काले देशद्रोही हिन्दुस्तानियों के गुलाम हो गए हैं?
देश की इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि देश के सबसे ताकतवर संवैधानिक पद पर बैठे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को जनता के नाम अलग से संदेश देना पड़ा, और अपनी सफाई पेश करनी पड़ी। मनमोहन सिंह ने 15 अगस्त के अलावा कभी भी देश की जनता के नाम संदेश नहीं दिया। एसी कौन सी आफत आन पड़ी कि प्रधानमंत्री को यह कदम उठाना पड़ा? कांग्रेक के टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया ने मनमोहन सिंह के इस संदेश को खूब स्थान देकर सराहा। एक समय था जब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बिना किसी सुरक्षा गार्ड के हजारों लाखों की भीड़ से रूबरू होते थे। आज देश के शासकों यहां तक कि सांसद विधायकों को ही अपनी ही रियाया से खतरा है।
देखा जाए तो आम आदमी पर इस फेरबदल का कोई खास असर नहीं पड़ा है। आम जनता ने अब केंद्र की ओर से अपना ध्यान हटा लिया है। जनता की याददाश्त वाकई कमजोर होती हैै? जनता इस तरह से देश को खोखला करने के लिए किए गए राजनैतिक भ्रष्टाचार को तो शायद माफ कर दे, पर विपक्ष की नकारात्मक भूमिका और सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई को जनता शायद ही भूल पाए। कुल मिलाकर इस फेरबदल से जनता की नजरों में अलीबाबा और उनके चालीस चोरों का ना तो चेहरा बदलेगा, ना मोहरा और ना ही चोगा!!
(क्रमशः जारी)

दो दिन में गैस नहीं तो नपेगा डीलर!


दो दिन में गैस नहीं तो नपेगा डीलर!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। रसोई गैस के मामले में अब रिटेल डीलर की मुगलई पर जल्द ही लगाम लगने वाली है। गैस का नंबर लागाकर हफ्ते, पखवाड़े या एक माह इंतजार करवाने वाले रसोई गैस के डीलर्स पर जल्द ही सरकार ने लगाम कसने का मन बना लिया है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि लोगों का ध्यान मंहगाई से हटाने के लिए अब केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम मंत्रालय को भी पाबंद किया गया है। मंत्रालय को मिली शिकायतों में ज्यादातर शिकायतें रसोई गैस की बुकिंग के उपरांत डिलेवरी के लिए लंबे इंतजार से संबंधित थीं।
नो यूअर कस्टमर्सअर्थात केवायसी की अनिवार्यता से आम उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानी की शिकायतें भी बहुतायत में मंत्रालय को मिली हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि मंत्रालय इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है कि अगर रसाई गैस की बुकिंग से दो दिन अर्थात 48 घंटे के अंदर डीलर ने गैस घर पर डिलीवर नहीं की तो डीलर के उपर मुकदमा हो सकता है।

भारी वर्षा से अलग थलग पड़ा आंध्र का तटीय इलाका

भारी वर्षा से अलग थलग पड़ा आंध्र का तटीय इलाका

(प्रति सक्सेना)

हैरदाबाद (साई)। तटीय आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में वर्षा के कारण स्थिति और बिगड़ गई है। पिछले पांच दिनों से लगातार हो रही भारी वर्षा के कारण सैंकड़ों गांवों का राज्य के अन्य हिस्सों से संपर्क टूट गया है। तूफान नीलम अब कमजोर पड़ गया है और हवा के कम दबाव के क्षेत्र में बदल गया है। हमारी संवाददाता ने बताया है कि जि$ला प्रशासन ने ८६ स्थानों में राहत शिविर खोले हैं।
आंध्र प्रदेश में बर्षा से प्रभावित श्रीकाकुलम, विशाखापत्तनम, पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी तथा कृष्णा जिलों में राहत और बचाव कार्य जारी है। वर्षा से प्रभावित इन निचले इलाकों से हजारों लोगों को राहत कैंपों में भेजा जा रहा है। रेल और परिवहन अधिकारियों ने अनेक रेल और बस सेवाएं या तो रद्द कर दी है या कुछ के मार्गों में परिवर्तन किया गया है।
नौ सेना के दो हैलीकॉप्टर श्रीकाकुलम जिले में सहायता कार्य में जुुटे हुए हैं। सत्यवरम में अपने घर की छत पर खड़े ७० लोगों और धर्मावरम में दो बसों में फंसे यात्रियों को बचा लिया गया है। लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसलें जलमग्न हो गई हैं। इस बीच मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी  आज वर्षा से प्रभावित जिलों का दौरा कर बचाव कार्यों का जायजा लेंगे।

सरकारी विज्ञापन में मची है लूट


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ----- 5

सरकारी विज्ञापन में मची है लूट

(विस्फोट डॉट काम)

भोपाल (साई)। सरकारी विज्ञापनों को एक ‘‘काले धंधे‘‘ में परिवर्तित करने में लाजपत आहूजा का बड़ा योगदान रहा है। सरकारी विज्ञापन के बल पर कई ‘‘नाकुछ‘‘ तथाकथित बैठकबाज पत्रकारों को करोड़पति बनाने का श्रेय इसी अधिकारी को है। भाजपा को यह अधिकारी इतना रास आ गया है कि जनसंपर्क विभाग चाहे किसी भी मंत्री के पास क्यों न रहा हो, ढे़र सारी शिकायतों के बाद भी कोई उसके अंगदी पैर को विज्ञापन शाखा से एक इंच भी हिला नहीं पाया। पत्रिका अथवा अखबार की १०० प्रतियां छपवाकर २५ से लेकर ५० हजार तक का सरकारी विज्ञापन झटक लेने का गोरखधंधा आहूजा के कार्यकाल में ही पनपा है और अब तो वह पूरे शबाब पर है। लोग आहूजा को जनसंपर्क विभाग में ‘‘लॉ और आर्डर‘‘ का जनक भी कहते हैं। अब तो हजारों तथाकथित पत्रकार आहूजा की कृपा की ही रोटी खा-पचा रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लाजपत आहूजा को विज्ञापन और समाचार शाखा का एक साथ प्रभार भाजपा के मुख्यालय में बनी गुप्त रणनीति के तहत सौंपा गया है। समाचार शाखा के प्रभारी अपर संचालक के रूप में आहूजा अब हर दिन निगरानी रखेगा कि किस अखबार ने भाजपा और उसकी सरकार के बारे में क्या तथा कैसा छापा है। यह निश्चित है कि जो अखबार नकारात्मक समाचारों और टिप्पणियों के द्वारा भाजपा सरकार की विफलताओं को जनता के सामने लाने का दुस्साहस करेंगे, उन्हें आहूजा की विज्ञापनी कृपा के लिए निश्चित ही तरसना पड़ेगा। अब आहूजा के जरिये राज्य सरकार का एक ही सूत्र काम करेगा-च्च्भाजपा और उसकी सरकार के भले की बात छापो, अन्यथा रस्ता नापो।च्च् भविष्य में रात को दिन और स्याह को सफेद बताने वाले अखबारों को ही सरकारी विज्ञापन मिलेंगे, जनसंपर्क विभाग की इस नई प्रशासनिक व्यवस्था ने बड़ी बेशर्मी के साथ यह तय कर दिया है। कांग्रेस इसको भाजपा सरकार द्वारा लादी गई च्च्अघोषित सेंसरशिपज्ज् मानती है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा है कि जनसंपर्क विभाग के बजट में विज्ञापन मद में हर साल जो अरबों का प्रावधान किया जाता है, वह सरकार की योजनाओं और सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए है। जनसंपर्क विभाग इस बजट से यह बुनियादी काम न करते हुए भारतीय जनता पार्टी को चुनावी लाभ पहुंचाने वाले विज्ञापन जारी करके शासकीय धन का आपराधिक दुरूपयोग कर रहा है। दरअसल यह बजट जनसंपर्क विभाग का खुद का न होकर विभिन्न विकास विभागों के प्रचार मद को काटकर जनसंपर्क विभाग को स्व. अर्जुनसिंह के मुख्य मंत्री काल में सौंपा गया बजट है। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य यह था कि जनसंपर्क विभाग योजना मूलक प्रचार करेगा, किंतु विज्ञापनों के जरिए ऐसे प्रचार की बजाय अधिकांश बजट मुख्य मंत्री और मंत्रियों तथा भाजपा की छवि सुधारने पर खर्च हो रहा है।

सरकारी विज्ञापन में मची है लूट


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ----- 5

सरकारी विज्ञापन में मची है लूट

(विस्फोट डॉट काम)

भोपाल (साई)। सरकारी विज्ञापनों को एक ‘‘काले धंधे‘‘ में परिवर्तित करने में लाजपत आहूजा का बड़ा योगदान रहा है। सरकारी विज्ञापन के बल पर कई ‘‘नाकुछ‘‘ तथाकथित बैठकबाज पत्रकारों को करोड़पति बनाने का श्रेय इसी अधिकारी को है। भाजपा को यह अधिकारी इतना रास आ गया है कि जनसंपर्क विभाग चाहे किसी भी मंत्री के पास क्यों न रहा हो, ढे़र सारी शिकायतों के बाद भी कोई उसके अंगदी पैर को विज्ञापन शाखा से एक इंच भी हिला नहीं पाया। पत्रिका अथवा अखबार की १०० प्रतियां छपवाकर २५ से लेकर ५० हजार तक का सरकारी विज्ञापन झटक लेने का गोरखधंधा आहूजा के कार्यकाल में ही पनपा है और अब तो वह पूरे शबाब पर है। लोग आहूजा को जनसंपर्क विभाग में ‘‘लॉ और आर्डर‘‘ का जनक भी कहते हैं। अब तो हजारों तथाकथित पत्रकार आहूजा की कृपा की ही रोटी खा-पचा रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लाजपत आहूजा को विज्ञापन और समाचार शाखा का एक साथ प्रभार भाजपा के मुख्यालय में बनी गुप्त रणनीति के तहत सौंपा गया है। समाचार शाखा के प्रभारी अपर संचालक के रूप में आहूजा अब हर दिन निगरानी रखेगा कि किस अखबार ने भाजपा और उसकी सरकार के बारे में क्या तथा कैसा छापा है। यह निश्चित है कि जो अखबार नकारात्मक समाचारों और टिप्पणियों के द्वारा भाजपा सरकार की विफलताओं को जनता के सामने लाने का दुस्साहस करेंगे, उन्हें आहूजा की विज्ञापनी कृपा के लिए निश्चित ही तरसना पड़ेगा। अब आहूजा के जरिये राज्य सरकार का एक ही सूत्र काम करेगा-च्च्भाजपा और उसकी सरकार के भले की बात छापो, अन्यथा रस्ता नापो।च्च् भविष्य में रात को दिन और स्याह को सफेद बताने वाले अखबारों को ही सरकारी विज्ञापन मिलेंगे, जनसंपर्क विभाग की इस नई प्रशासनिक व्यवस्था ने बड़ी बेशर्मी के साथ यह तय कर दिया है। कांग्रेस इसको भाजपा सरकार द्वारा लादी गई च्च्अघोषित सेंसरशिपज्ज् मानती है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा है कि जनसंपर्क विभाग के बजट में विज्ञापन मद में हर साल जो अरबों का प्रावधान किया जाता है, वह सरकार की योजनाओं और सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए है। जनसंपर्क विभाग इस बजट से यह बुनियादी काम न करते हुए भारतीय जनता पार्टी को चुनावी लाभ पहुंचाने वाले विज्ञापन जारी करके शासकीय धन का आपराधिक दुरूपयोग कर रहा है। दरअसल यह बजट जनसंपर्क विभाग का खुद का न होकर विभिन्न विकास विभागों के प्रचार मद को काटकर जनसंपर्क विभाग को स्व. अर्जुनसिंह के मुख्य मंत्री काल में सौंपा गया बजट है। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य यह था कि जनसंपर्क विभाग योजना मूलक प्रचार करेगा, किंतु विज्ञापनों के जरिए ऐसे प्रचार की बजाय अधिकांश बजट मुख्य मंत्री और मंत्रियों तथा भाजपा की छवि सुधारने पर खर्च हो रहा है।