सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

केंद्र के पास लंबित एमपी की अनेक योजनाएं


केंद्र के पास लंबित एमपी की अनेक योजनाएं

बाईस सालों से झूला झूल रही कोलार परियोजना

ग्यारह सालों से लंबित है पेंच परियोजना

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में किसी की भी सरकार रहे और केंद्र में चाहे जिस दल की देश के हृदय प्रदेश के वासियों के खाते में बस रोना ही लिखा हुआ है। राजनेता चुनावों के दौरान बड़े बड़े वायदे कर लोगों को लुभा लेते हैं फिर उन वादों को अमली जामा पहनाने से वे हिचकते ही हैं। पराजित उम्मीदवार भी विजयश्री का वरण करने वाले के चुनावी वायदों का ध्यान नहीं दिलाना चाहते हैं। इसी तारतम्य में मध्य प्रदेश की दस वृहद सिंचाई परियोजनाएं आज भी केंद्र सरकार के पास लंबित ही पड़ी हुई हैं।

केंद्रीय जल संसाधन विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मण्डला जिले की ए श्रेणी की हेलोन सिंचाई परियोजना केंद्र सरकार के पास जनवरी 2000 में आई थी। इस योजना से 11 हजार 736 हेक्टेयर रकबा लाभांवित होने की उम्मीद थी। 249.90 लाख रूपए लागत की यह परियोजना नर्मदा हेलोन बेसिन पर प्रस्तावित है। इसी तरह मण्डला एवं शहडोल जिले की उपरी नर्मदा परियोजना सितम्बर 1996 में केंद्र को सौंपी गई थी। इससे लाभांवित रकबा 18.61 हजार हेक्टेयर है। नर्मदा नदी पर गोई बेसिन की यह परियोजना 381 करोड़ 71 लाख रूपए की है।

बड़वानी जिले की निचली गोई परियोजना जो नर्मदा नदी पर बनना है केंद्र को जुलाई 2003 में सौंपी गई थी। 13.76 हजार हेक्टैयर सिंचाई वाली यह परियोजना 189.56 लाख रूपए की थी। इसके साथ ही मंदसौर जिले की भानपुरा नहर स्कीम जो चंबल नदी पर बनना प्रस्तावित थी वह दिसंबर 2002 में 9.2 हजार हे. के लिए 59.49 करोड़ रूपए की थी। जुलाई 2004 में केंद्र को सौंपी गई मध्य प्रदेश जल पुनसंरचना परियोजना जो चंबल, बेतवा, सिन्ध, केन नदी पर थी जिससे 495 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित होनी थी एवं जिसका प्राक्कलन 1919 करोड़ रूपए था भी ए श्रेणी की ही परियोजना थी।

बी श्रेणी की जिन परियोजनाओं को केंद्र को भेजा गया था उनमें जुलाई 2000 में सिवनी एवं छिंदवाड़ा जिले की महात्वाकांक्षी पेंच डायवर्शन जिसमें 96.52 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित होती एवं यह 641.35 करोड़ रूपए की थी शामिल थी। इसके अलावा 139.14 करोड़ रूपयों की लागत वाली सीहोर जिले की कोलार परियोजना जो नर्मदा नदी पर प्रस्तवित थी सितम्बर 1991 में केंद्र को सौंपी गई थी।

बी श्रेणी की अन्य तीन परियोजनाओं में मण्डला की थनवर टैंक जो कि 18.21 हेक्टेयर एवं 24.38 करोड़ रूपए की, दतिया, भिण्ड, ग्वालियर, गुना, शिवपुरी और टीकमगढ़ जिलों के लिए राजघाट परियोजना जो यमुना नदी पर प्रस्तावित थी को फरवरी 1990 में केंद्र को सौंपा गया था। इसकी लागत 309.21 करोड़ रूपए थी एवं इससे 121.45 हजार हेक्टेयर सिंचाई प्रस्तावित थी। अंत में खण्डवा जिले की नर्मदा नदी पर बनने वाली नुनासा लिफ्ट सिंचाई परियोजना जो 185.03 लाख रूपए की थी एवं इससे 36.758 हेक्टेयर रकबा सिंचित होता को मार्च 2003 में केंद्र को सौंपा गया था।

एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया

आईडिया कंपनी ने ध्वस्त किए सारे रिकार्ड

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। आज देश भर में बैनर पोस्टर्स, विज्ञापनों में आईडिया की धूम मची हुई है। जूनियर बी यानी अभिषेक बच्चन के विज्ञापनों में आईडिया चार चांद लगा रहा है। इन विज्ञापनों से आकर्षित होकर कमोबेश दस में से हर चौथे हाथ में आईडिया का मोबाईल मिल जाता है।

मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में पहले आरपीजी मोबाईल सेवा प्रदाता के नाम से जाना जाता था आईडिया को। बाद में बिरला, एटी एण्ड टी और अन्य कंपनियों ने मिलकर आईडिया की स्थाना कर दी। इस वक्त इसे कर्मचारियों द्वारा बटाटा के नाम से ज्यादा जाना जाता था।

मध्य प्रदेश में उस वक्त आईडिया का इकलौता प्रतिद्वंदी हुआ करता था रिलायंस। आईडिया कंपनी ने अपने विज्ञापनों में जिन शहरों में इसका कव्हरेज होने की दावा किया जाता था अपने विज्ञापनों में उन शहरों के बजाए समूचे जिले में ही इसका कव्हरेज होने का दावा कर दिया जाता था। यही कारण था कि इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही आईडिया को कंज्यूमर फोरम की अनेकों मर्तबा लताड़ भी सहनी पड़ी।

वर्तमान में आईडिया कंपनी के मोबाईल उपभोक्ता देश भर में इतने अधिक हो चुके हैं कि ये सारे रिकार्ड ही ध्वस्त कर रहे हैं। मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया के इतने उपभोक्ता आखिर कैसे बने इस बारे में अन्य मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां शोध ही कर रही हैं, कि आखिर आईडिया द्वारा बिजनिस प्रमोशन के लिए कौन सी तकनीक अपनाई गई है कि उसके ग्राहकों की तादाद दिनों दिन विस्फोटक तरीके से बढ़ती ही जा रही है।
(क्रमशः जारी)

अंबानी ब्रदर्स की आग में झुलसे शीर्ष मंत्री


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अंबानी ब्रदर्स की आग में झुलसे शीर्ष मंत्री
अनिल और मुकेश अंबानी के व्यवसायिक हितों के संवाहक बने देश के आला नेता उनकी ही मार से त्रस्त नजर आ रहे हैं। अनिल अंबानी ने गृहमंत्री पी.चिदम्बरम, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, शहरी विकास मंत्री कमल नाथ को साधा है तो मुकेश ने ब्रम्हास्त्र चलाकर सीधे ही प्रणव मुखर्जी को संभाल रखा है। मुकेश और अनिल की लड़ाई इन मंत्रियों के आचार विचार में दिख रही है। कहीं न कहीं एसा लगने लगा है कि प्रणव मुखर्जी और पलनिअप्पम चिदम्बरम भी अंबानीज़ के स्टूमेंट के मानिंद काम कर रहे हैं। केजी बेसिन के मामले में दोनों ही भाईयों में छिड़ी रार तेज हो गई। फिर क्या था सियासत में भूचाल आ गया। मामला सोनिया के दरबार तक पहुंचा। प्रणव दा ने तो राजमाता से साफ साफ चिदम्बरम के अनिल के इशारों पर काम करने की बात कह डाली। 10, जनपथ के सूत्र कहते हैं कि वैसे भी सोनिया गांधी एक तरह से प्रणव मुखर्जी को ढो ही रही हैं, क्योंकि उनके पति पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ प्रणव ने मोर्चा भी तो खोला था।

अब कहां गया सादगी का संदेश!
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी द्वारा कांग्रेसियों को सादगी बरतने की नसीहत दी गई थी। सोनिया गांधी ने इसे अपनाते हुए दिल्ली से मुंबई तक की हवाई यात्रा इकानामी क्लास में बीस सीट खाली कराकर (सुरक्षा का हवाला देकर) और राहुल गांधी ने दिल्ली से चंडीगढ़ तक शताब्दी रेल में एक पूरी की पूरी बोगी बुक कराकर (सुरक्षा कारणों के चलते) सादगी का अद्भुत परिचय दिया था। हाल ही में अमेरिका में इलाज कराकर लौंटी सोनिया के बारे में जो जानकारियां सामने आईं हैं वे चौकाने वाली ही हैं। टीम सोनिया की तीमारदारी जिस अपार्टमेंट में हुई उसका किराया ज्यादा नहीं बस चालीस हजार डालर रोज अर्थात अठ्ठारह लाख रूपए प्रतिदिन था। अब 26 रूपए रोज गांव में तो 32 रूपए रोज शहरों में कमाने वाले देशी गरीब राजमाता के इलाज पर हुए इस खर्च का इसका भोगमान करो के माध्यम से तो भोग ही सकते हैं।

चिदम्बरम पर भारी जितेंद्र सिंह
केंद्र सरकार में जो हो रहा है वह पहले शायद ही कभी हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री के अधीन काम करने वाले राज्य मंत्रियों के हौसले कभी बुलंद नहीं रहे। पहली मर्तबा हो रहा है कि पलनिअप्पम चिदम्बरम के गृह मंत्री रहते हुए उनके राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह उन्हें सुपरसीट करने की कोशिश में दिख रहे हैं। वैसे अघोषित तौर पर यह माना जाता रहा है कि कैबनेट मंत्री के अधीन ही राज्यमंत्री अपने सीमित दायरे में काम करेगा। इसके लिए कोई लिखित विधान नहीं है। गृह राज्य मंत्री के मौज हैं वे जो चाहे वक्तव्य दें जो चाहे काम करें, उन्हें रोकने टोकने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता है। इसके पहले अजय माकन का कार्यकाल भी दायरे में ही बीता। राजनेतिक विश्लेषकों ने जब इसकी पतासाजी की तब जाकर ज्ञात हुआ कि जितेंद्र सिंह का लट्टू भला चिदंबरम से ज्यादा प्रकाशवान भला क्यों न हो। आखिर वे टीम राहुल के सदस्य जो ठहरे।

डांवाडोल ही है मनमोहन की नैना
प्रधानमंत्री की कुर्सी के चारों पाए खिसकाने में लग चुके हैं मनमोहन विरोधी। राहुल जुंडाली कांग्रेस के आला नेताओं पर दबाव बना रही है कि जल्द ही अगर राहुल बाबा को प्रधानमंत्री न बनाया गया तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं। यूपीए पार्ट टू की सरकार ने जो गुल खिलाए हैं उससे अब देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति आक्रोश दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस के कुछ चेहरे एसे हैं जिन्हें टीवी पर देखते ही लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर आ पहुंचता है। जब वे मुस्कुराकर अपनी बात कहते हैं तो लोग मन ही मन कांग्रेस को लाखों गालियां देने से नहीं चूक रहे हैं। कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की भ्रष्टाचार पर चुप्पी आश्चर्यजनक ही है। सबसे दुखद बात तो यह उभरकर सामने आ रही है कि कांग्रेस की कर्णधार सोनिया गांधी, राहुल गांधी दोनों ही इस मामले में मीडिया से बचने का पूरा जतन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उनके तलुए चाटने वाला मीडिया भी उनसे इस बारे में पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

कहां पढ़ेंगे धक धक गर्ल के वारिसान!
धक धक गर्ल यानी माधुरी दीक्षित भारत लौट आईं हैं। उनके तलाक की अफवाहों से बाजार पट पड़ा था। अब पता चला है कि वे अपने शोहर के साथ ही वापस आ गई हैं। उनके सामने अब समस्या यह है कि उनके बेटे आरिन और रेयान का दाखिला वे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के किस स्कूल में कराएं। दरसअल कोई भी अच्छा स्कूल मिड सेशन में दाखिले को तैयार नहीं है। माधुरी खुद मुंबई में पली बढ़ीं है तो वे सारे स्कूल के बारे में माहिती रखती हैं। माधुरी के पसंदीदा तीन स्कूलों में दाखिला करवाने में नाकामयाब ही रही हैं। अंबानीज के एक नामी स्कूल में भी माधुरी ने हाथ पैर मारे पर वे सफल नहीं हो पाईं। अब कुहास इस सप्ताह साफ हो जाएगा कि उनकी प्राथमिकता सूची की चौथी और पांचवीं पायदान वाले स्कूल में उनके बेटों को दाखिला मिल पाएगा या नहीं। इसी बीच खबर मिली है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के एक बड़े स्कूल के प्रबंधकों ने माधुरी को पेशकश भेजी है कि वे अपने बोर्डिंग स्कूल में माधुरी के बेटों को दाखिला देने को तैयार हैं।

कार्यकर्ताओं से ज्यादा तादाद है पीएम की भाजपा में
भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री की कतार में लगने वाले नेताओं की संख्या कार्यकताओं से भी ज्यादा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने कुछ इसी तरह के संकेत दिए हैं। उनका कहना है कि उनके सहित पार्टी में अनेकों लोग एसे हैं जो वजीरे आजम का पद संभालने में पूरी तरह सक्षम हैं। गौरतलब है कि आड़वाणी द्वारा खुद को पीएम इन वेटिंग पद से हटा लिए जाने के बाद भाजपा के बाउल में रखी बासी कढ़ी में उबाल आ गया था। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने खुद को मीडिया में इस तरह प्रोजेक्ट किया कि लोगों को लगने लगा था कि वे ही अगले पीएम इन वेटिंग होंगे। मोदी नहीं जानते कि जब उनका नाम सामने आएगा तो संघ और भाजपा का एक धड़ा शिवराज सिंह चौहान, सुषमा स्वराज, रमन सिंह जैसे नेताओं के नाम सामने कर देगा जिनका राजनैतिक कैरियर बेदाग ही रहा है।

पत्रकारों का तबादला!
मीडिया पर्सन अगर किसी घरानेके लिए काम कर रहे हों तो उनका तबादला होने की बात सुनी है। हाल ही में एक एसा मामला सामने आया है जिसे सुनकर लगने लगा है कि प्रजातंत्र का अघोषित चौथा स्तंभ वाकई खतरे में आ चुका है। तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जब ग्रामीण विकास मंत्री बने तो उन्होंने अपने पर्सनल स्टाफ को वहां से नए मंत्रालय में पहुंचा दिया। आश्चर्य तो तब हुआ जब वन एवं पर्यावरण की बीट को कव्हर करने वाले पत्रकार भी जयराम रमेश के पर्सटन स्टाफ की तरह ही उस बीट से हटकर ग्रामीण विकास मंत्रालय में जा पहुंचे। उनकी नए मंत्रालय में आमद से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सूना हो गया। नई वन मंत्री जयंती नटराजन हैरान थीं कि से अपनी बात जनता तक पहुंचाएं तो भला किसके माध्यम से। जयंती खुद मीडिया के इतने करीब रही हैं फिर भी उनका असहज होना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

और थोप दिए गए सल्लू मियां
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के लिए नए चेहरे की खोज लगभग पूरी हो गई है। यह चेहरा आम चुनावों में युवाओं को लुभाने के लिए काम में आने वाला है। युवाओं के चहेते वालीवुड स्टार सलमान खान पर कांग्रेस की राल टपक रही है। सलमान का यूथ में बढ़ता क्रेज देखकर कांग्रेस ने इसे भुनाने का उपक्रम आरंभ कर दिया है वह भी सरकारी खर्चे पर। जी हां सलमान को यूपीए टू का ब्रांड एम्बेसेडर बनाया जा रहा है। अब जबकि चुनावों में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है तब यूपीए टू के सारे विज्ञापनों में सलमान का चेहरा लगाने की कवायद की जा रही है। सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार करते नजर आएंगे सलमान। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने एक तीर से ही कई शिकार कर मारे हैं। सलमान के चेहरे का उपयोग भी हो जाएगा और कांग्रेस की अंटी से कुछ जाएगा भी नहीं। जो भोगमान भोगेगा वह होगी केंद्र सरकार जो जनता के करों से संग्रहित राजस्व लुटाएगी सलमान पर। फिर चुनाव आते ही सलमान को यूपीए टू के बजाए कांग्रेस के विज्ञापनों में शिफ्ट कर दिया जाएगा, है न बढिया स्कीम।

कम नहीं हुईं जोगी की मुश्किलें
परेशानियों और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का चोली दामन का साथ है। जब से वे मुख्यमंत्री पद से अलग हुए हैं एक के बाद एक मुश्किलें उनके पीछे ही पड़ी हैं। हाल ही में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से कुछ राहत मिली है। दरअसल भारतीय प्रशासनिक सेवा के मध्य प्रदेश काडर के अधिकारी रहे अजीत जागी ने रायगढ़ और शहडोल आरक्षित लोकसभा सीट से चुनाव लड़त वक्त खुद को कंवर बिरादरी का आदिवासी कहा था। उनके विरोधियों ने आवाज उठाई थी कि अगर वे आदिवासी थे तो उन्होंने आईएएस की नौकरी जनरल कैटेगरी में क्यों ली। बाद में यह बात भी सामने आई कि वे सतनामी बिरादरी के अनुसूचित जाति के सदस्य हैं जनजाति के नहीं। एससी बिरादरी के होते ही उन्होंने मसीही धर्म को अपनाया और नियमों के अनुसार वे सामान्य श्रेणी में आ गए। अब छत्तीस गढ़ सरकार के आदिवासी विकास विभाग को तय करना है कि वे किस समुदाय के हैं।

जब बुरी तरह झल्लाए युवराज
अमूमन कांग्रेस के युवराज शांत और सोम्य ही नजर आते हैं। पिछले दिनों वे अपने कार्यालय में बुरी तरह झल्लाए नजर आते तो सभी की घिघ्घी ही बंध गई। दरअसल अति उत्तसाह में बिना किसी को सूचित किए ही राजस्थान के गोपालगढ़ गांव का दौरा करने पहुंचे कांग्रस के युवराज राहुल गांधी विवादों में फंस चुके हैं। वे राजस्थान सरकार और संगठन दोनों ही को विश्वास में लिए बिना ही वहां चले गए थे। उनके नए राजनैतिक गुरूओं ने उन्हें एसा कर पब्लिसिटी बटोरने का मंत्र दिया था। वे गए पर उल्टे बांस बरेली के की तर्ज पर आफत उनके गले पड़ गई। वे जिस मोटर सायकल पर बैठकर गए थे, उसका चालक एक अपराधी था। यह बात सुनकर उनके होश फाख्ता हो गए। वे बिना हेलमिट सायकल पर सवार थे यह भी विवाद ही है। उन्होंने नियम तोड़ा तो राजस्थान सरकार को फुटेज देखकर उनका चालान करना चाहिए। बहरहाल राहुल ने अपने खासुलखास जितेंद्र सिंह और कनिष्क सिंह को ताकीद किया है कि उनके दौरों में उनके साथ रहने वालों का चारित्रिक सत्यापन पहले ही करवा लिया जाए।

यूपी गुजरात की राह पर एमपी सीजी
उत्तर प्रदेश और गुजरात में क्या समानता है? दोनों ही सूबों में कांग्रेस का नामलेवा नहीं बचा है। उत्तर प्रदेश वह सूबा है जहां से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुने जाते हैं। गुजरात वह धरा है जहां से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल आते हैं। इन दोनों ही राज्यों में संगठन जर जर हालत में है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में संगठन की कमर टूट चुकी है। देश में अब गिनती के ही सूबे बचे हैं जहां कांग्रेस का झंडा उठाने वाले बचे हैं। कांग्रेस मुख्यालय में इन दिनों यह चर्चा जोर शोर से पर दबी जुबान से ही चल रही है कि आखिर सोनिया गांधी क्या चाह रहीं हैं। क्या वे देश में कांग्रेस संगठन को ध्वस्त करना चाह रहीं हैं? मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ कोटे से केंद्र में मंत्रियों ने रेवड़ी भी नहीं बांटी कि उनके अपने ही प्रसन्न हो जाते। सूबों में संगठन में गलाकाट मारकाट मची हुई है। हालात देखकर कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस शासित राज्यों की तादाद और भी कम हो सकती है।

आड़वाणी की हवाई रथ यात्रा!
देश की राजनैतिक राजधानी में इन दिनों एक चर्चा आम है कि क्या राजग के पीएम इन वेटिंग से खुद को हटा चुके एल.के.आड़वाणी आदि अनादिकाल के पुष्पक विमान से देश में जनजाग्रति फैलाने निकले हैं? दरअसल मध्य प्रदेश की खस्ताहाल सड़कों पर आड़वाणी को तकलीफ न हो इसलिए सूबे में उनकी रथ यात्रा को पुष्पक विमान के माध्यम से करवाने का निर्णय लिया है। भाजपा के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि आड़वाणी की यात्रा को सफल न होने देने का एक हथकंडा है यह। मध्य प्रदेश में सतना में उनकी यात्रा के दौरान पत्रकारों को पाजिटिव कव्हरेज के लिए नोट भरे लिफाफे सौंप दिए गए। बाद में भोपाल से छिंदवाड़ा तक उनकी यात्रा को हवा हवाई बना दिया गया। यह सब इसलिए कि उनकी यात्रा विवादों में फंस जाए। इसका लाभ अभी और भविष्य में किसे होगा यह तो समय ही बताएगा पर मध्य प्रदेश सरकार और संगठन की इस तरह की कार्य प्रणाली से प्रश्न चिन्ह जरूर खड़ा हो रहा है।

मूर्ति भी बनाना चाहते हैं रायसीना हिल्स को आशियाना
देश की सबसे सफल आई टी कंपनियों की सिरमोर इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति की भी तमन्ना है कि वे भी अपना अगला आशियाना रायसीन हिल्स स्थित महामहिम राष्ट्रपति के आवास को बनाएं। एक निजी टीवी चेनल को दिए साक्षात्कार में इशारों ही इशारों में उन्होनें अपनी दबी इच्छा जाहिर कर ही दी। गौरतलब है कि 20 अगस्त 46 को जन्मे मूर्ति ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में स्नातक उपाधि लेने के बाद आईआईटी कानपुर से स्नातकोत्तर किया। 1981 में महज दस हजार रूपए से इंफोसिस की स्थापना कर इसे बुलंदियों तक पहुंचाने के बाद 2002 में सीईओ पद नंदन नीलेकणि को सौंपा था। अगस्त 2011 में सेवानिवृत हुए नारायण मूर्ति का नाम इस पद के लिए आने से अब सियासी हल्कों में हलचल मचना स्वाभाविक ही है।

दम तोड़ दिया लो फ्लोर बस ने
कामन वेल्थ गेम्स के लिए आईं फ्लोर बस की कलई भी अब खुलने लगी है। अभी इसके सड़कों पर आए एक साल भी पूरा नहीं हुआ कि इनके ऑफ रोड़ होने के साथ ही साथ नीलामी भी आरंभ हो गई है। जब तब सड़कों पर पसरने वाली ये फ्लोर बस पचास लाख रूपए कीमत से अधिक की है। करोड़ों अरबों रूपयों की खरीदी गईं इन बसों में भारी कमीशन खाए जाने की शिकायतें आम हैं। जब तब ये बस सड़कों पर पसर जाती हैं। कहीं किसी बस का एयर कंडीशनर काम नहीं करता तो कभी फ्लाई ओवर पर ये लोड नहीं लेती। बावजूद इसके न तो भाजपा ही इसे मुद्दा बना पाई है और न ही आला नेता या अधिकारियों की नजरें ही इस पर पड़ पाई हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश के एक जिला मुख्यालय में जेएनयूआरएम की ये फ्लोर बस बस देखते ही लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी यह बस नीलामी में ही खरीकर लाई गई है।

पुच्छल तारा
घपले दर घले, घोटाले दर घोटाले, भ्रष्टाचार दर भ्रष्टाचार क्या हो गया है इस देश को। आधी सदी से ज्यादा इस देश में शासन करने वाली कांग्रेस और सालों साल से विपक्ष में ही बैठने वाली भाजपा आखिर अपनी रियाया के साथ क्या न्याय कर पा रही है। मध्य प्रदेश से आदिश सेठ ने ईमेल भेजा है। आदिश लिखते हैं कि क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश का सबसे बड़ा टूजी घोटाला एक लाख 76 हजार करोड़ रूपयों का है और हमारे देश की आबादी 121 करोड़ है। जरा सोचिए एक आम भारतीय के हिस्से में कितना आएगा। क्या आप उत्तर देख सकते हैं। उत्तर है 1454 रूपए 54 पैसे। अद्भुत, जिस देश में जनता भूख से मर रही हो, उस देश के हर एक इंसान का इतना पैसा ये राजनेता खा जा रहे हों। ये सोचने का नहीं कुछ करने का समय है।