गुरुवार, 12 सितंबर 2013

कब होगा एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान का लोकार्पण

कब होगा एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान का लोकार्पण

ब्वायज क्लब ने की एस्ट्रोटफ के उदघाटन की मांग

(पीयूष भार्गव)

सिवनी (साई)। सिवनी के लिए एस्ट्रोटर्फ हाकी मैदान सौगात के बजाए अभिशाप बनता जा रहा है। एक साल से भी अधिक समय से तैयार इस मैदान का उद्घाटन महज इसलिए नहीं कराया जा रहा है क्योंकि इसके उद्घाटन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास समय नहीं है।
लगभग एक साल पहले बस स्टेंड के पीछे तैयार इस मैदान के बारे में बचाव पक्ष अक्सर दलील दे रहा है कि इसके आरंभ होने के उपरांत इसकी गारंटी वारंटी महज सात साल की होगी, इसलिए जितने दिनों बाद इसका उद्घाटन किया जाएगा यह उतने अधिक समय तक चल पाएगा।
वहीं दूसरी ओर हाकी जगत के लोगों का कहना है कि इस मैदान को अगर 2030 में उद्घाटित किया जाए तो यह 2037 तक चलेगा! यक्ष प्रश्न तो यह आन खड़ा हुआ है कि आखिर दो तीन सालों तक इस मैदान का लोकार्पण न कराकर सिवनी के उदीयमान हाकी खिलाड़ियों को इससे रूबरू होने से वंचित रखा जाना क्या न्यायसंगत है!
वहीं दूसरी ओर कुछ हाकी खिलाड़ियों का मानना है कि जब वे बाहर जाकर एस्ट्रोटर्फ पर खेलते हैं तो प्रेक्टिस न होने की वजह से उनके अंदर हीन भावना समा जाती है। खेल जगत में एक बात तेजी से उभर रही है कि आखिर खिलाड़ियों को दो तीन साल पीछे ढकेलने के पीछे नेताओं की मंशा क्या है?
वहीं, हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले सिवनी में अब एस्ट्रोटर्फ का उद्घाटन कराए जाने की मांग उठने लगी है। आज ब्वायज स्पोर्टस क्लब के खिलाड़ियों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए जिला कलेक्टर एवं खेल अधिकारी से आग्रह किया है कि शीघ्र ही उक्त मैदान का उदघाटन कर दिया जाए क्योंकि आचार संहिता लागू होने के बाद उदघाटन होना संभव नहीं है।

एस्ट्रोटर्फ के उदघाटन किए जाने की मांग करते हुए असद खान, शहनवाज कुरैशी, आदिल बेग, तनवीर खान, सलमान खान, शाकिब खान, रिजवान खान, जैद सानी, मुन्ना दादा, सलाम जावेद, आसिफ खान, वाहिद खान, पिंटू खान, जीशान खान, शहबाज खान, फैसल खान, मो. अली, माजिद खान ने कहा है कि शीघ्र एस्ट्रोटर्फ का उदघाटन होने पर उसमें खेलकर नगर के खिलाड़ी अपनी छिपी प्रतिभा को निकाल सकेंगे और नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे। 

नये विदर्भ राज्य के साथ जाने में नहीं किसी को कोई आपत्ति

प्रस्तावित संभाग में है सकारात्मक सोच

नये विदर्भ राज्य के साथ जाने में नहीं किसी को कोई आपत्ति

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। जिले एवं पड़ोसी जिलों के राजनेता वर्ग भले ही अपने दायित्वों को पहचान कर उसका निर्वहन उचित ढंग से न कर पाते हों किंतु प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ ने हमेशा अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी सजगता और ईमानदारी से किया है। यह सर्वविदित है कि सिवनी को संभाग का दर्जा देने का सुझाव भी सबसे पहले मीडिया के माध्यम से ही सामने आया था जिसे जिले के राजनेताओं ने अपना स्वर देकर उसे बल पंहुचाया था।
पांच सालों तक प्रदेश सरकार से संभाग के मामलेे में निराशा झेलने के बाद अब प्रस्तावित संभाग के लोगों का हित संभावित रूप से अस्तित्व में आ सकने वाले नये राज्य के साथ समाहित होने में देखते हुए मीडिया ने प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट को नये प्रदेश के साथ जोड़ने की मुहिम का आगाज किया है। सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के इस फास्ट जमाने में भी नई मुहिम के लिये यह एक शुभ समाचार ही है कि अभी तक प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों में से किसी भी जिले से ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीे आई जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि इस अंचल में उस मुहिम के प्रति कोई नकारात्मक सोच सामने आती हो।
इसका आशय यह हुआ कि प्रदेश के मुखिया द्वारा स्वयं इस अंचल के तीनों जिलों को मिलाकर नया संभाग बनाने की बात करने और उस वचन को न निभाने से स्वयं को छला सा महसूस करने वाले इस अंचल के लोगों में उस वचनभंग के प्रति काफी आक्रोश व्याप्त है और मीडिया की मुहिम के प्रति मौन समर्थन व्यक्त कर इस अंचल की जनता ने अपने आक्रोश को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
स्थानीय मीडिया के इस सकारात्मक प्रयास को नेशनल मीडिया ने स्थान देकर अपने उत्कृष्ठ दायित्व का निर्वहन कर स्थानीय मुहिम को व्यापक स्वरूप प्रदान कर दिया है जिसका लाभ निश्चित रूप से इस पिछड़े और उपेक्षित अंचल को भविष्य में अवश्य प्राप्त हो सकेगा। यह बात सर्वविदित है कि मीडिया अपनी मुहिम केवल कलम के माध्यम से ही चला सकती हैं उसे जनआंदोलन का स्वरूप देने का दायित्व राजनैतिक और सामाजिक संगठनों को निभाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि प्रस्तावित संभाग का यह अंचल सामाजिक और राजनैतिक आंदालनों से महरूम हो।

समय समय पर इस अंचल के लोगों ने अपने अपने स्तर पर अपने अधिकारों के लिये सड़को पर उतर कर अनेक आंदोलन किये हैं और अनेक ऐसे गैर राजनैतिक संगठन मौजूद हैं जो इस उपेक्षित अंचल को उसका वाजिब हक दिलाने के लिये अहिंसात्मक जन आंदोलन का रास्ता अपनाकर राजनेताओं और सरकारों का ध्यान अपनी मुहिम की ओर खींच सकने में सक्षम है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि उस जनआंदोलन को व्यापक एवं संगठित स्वरूप प्रदान कर आम नागरिकों को उस के संभावित लाभ से अवगत कराकर उन्हें इस मुहिम के साथ मानसिक रूप से आबद्ध होने के लिये तैयार किया जाए।

समतल हो जाएगा बरगी बांध!

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 14

समतल हो जाएगा बरगी बांध!

25 लाख टन राख जाएगी बरगी बांध के पानी में!

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में केंद्र की छठवीं अनुसूची में शामिल आदिवासी विकासखण्ड घंसौर के ग्राम बरेला में डाले जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के कहर से अभी क्षेत्रीय नागरिक अनजान ही नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को अपने इशारों पर नचाने वाले संयंत्र प्रबंधन द्वारा नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ ही साथ पर्यावरण का जबर्दस्त नुकसान किए जाने की आशंकाएं जताई जा रही हैं।
देश की नामी गिरामी कंपनियों में अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज 100 किलोमीटर दूर आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में स्थापित किए जाने वाले पावर प्लांट से नर्मदा नदी पर बने रानी अवन्ती बाई सागर परियोजना (बरगी बांध) पर पानी के जबर्दस्त प्रदूषण का खतरा मण्डराने लगा है। गौरतलब है कि बरगी बांध में अथाह जलराशि समाहित है, जिससे जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, भोपाल, खण्डवा आदि जिलों के किसान न केवल खेती करते हैं वरन् मध्य प्रदेश की इस जीवन रेखा से अपनी प्यास भी बुझाते हैं।
कहा जा रहा है कि अगर इस संयंत्र ने काम आरंभ कर दिया तो इस प्लांट से उड़ने वाली राख से बरगी बांध की तलहटी में कुछ माहों के अन्दर ही ढेर सारी सिल्ट जमा हो जाएगी और पानी प्रदूषित होने की संभावना बलवती हो जाएगी। इससे आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के निवासियों को श्वास की समस्याओं से दो चार भी होना पड़ सकता है। महज चंद सालों में ही इस संयंत्र से उड़ने वाली राख से बरगी बांध समतल मैदान में तब्दील हो जाएगा। इस पावर प्लांट के लिए आवश्यक जलापूर्ति बरगी बांध के सिवनी जिले के जल भराव क्षेत्र गड़ाघाट और पायली से की जाएगी।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के दिल्ली ब्यूरो से मणिका सोनल ने केंद्रीय उर्जा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा कि प्रस्तावित संयन्त्र के दो चरणों में लगने वाले प्लांट द्वारा प्रतिदिन 1706 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजना 6832 टन राख उड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उड़ने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयन्त्र से उस ओर बरगी बांध है।
जानकारों का कहना है कि 6832 टन राख प्रतिदिन उडे़गी जो साल भर में 24 लाख 93 हजार 680 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उड़ने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।

इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 1706 टन राख जो प्रतिमाह में बढ़कर 52 हजार 886 टन और साल भर में 6 लाख 23 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है। अगर राख को संयंत्र के आसपास ही डम्प कर रखा जाएगा तो वहां के खेतों की उर्वरक क्षमता प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी और अगर परिवहन किया जाता है तो घंसौर क्षेत्र की सड़कों के धुर्रे उड़ना स्वाभाविक ही है।

नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर बन रहा जिला कांग्रेस का भवन!

नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर बन रहा जिला कांग्रेस का भवन!

अंर्तकलह में उलझी डीसीसी को परवाह नहीं कमल नाथ की साख की!

(महेश रावलानी)

सिवनंी (साई)। महाकौशल के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री कमल नाथ की साख की जिला कांग्रेस कमेटी को कितनी परवाह है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग तीन माह बीत जाने के बाद भी जिला कांग्रेस कमेटी के भवन का निर्माण आरंभ नहीं हो सका है, जबकि कमल नाथ ने 13 जून को सिवनी दौरे के दरम्यान नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इमरान पटेल की गुजारिश पर सिवनी में डीसीसी भवन का काम एक माह के अंदर ही आरंभ करवाने की घोषणा की थी।
गौरतलब है कि सिवनी जिला कांग्रेस कमेटी के लिए भवन हेतु भूखण्ड काफी पहले जिला पंचायत अध्यक्ष के जबलपुर रोड स्थित आवास के सामने आरक्षित कर दिया गया था। इस आरक्षित स्थल पर भवन का निर्माण आरंभ नहीं हो सका। बताया जाता है कि उस वक्त कांग्रेस के क्षत्रप हरवंश सिंह द्वारा जिला कांग्रेस भवन बनवाने में दिलचस्पी नहीं ली गई, जबकि प्रदेश में अनेक कांग्रेस भवनों के लिए हरवंश सिंह द्वारा ही आर्थिक इमदाद उपलब्ध करवाई बताई जाती है।
स्व.हरवंश सिंह ने जिला कांग्रेस के पदाधिकारियों को एक छत के नीचे संभवतः कभी लाए जाने की कवायद नहीं की, वरना क्या कारण रहा कि आर्थिक, राजनैतिक तौर पर सक्षम हरवंश सिंह द्वारा लगभग ढाई दशकों तक प्रदेश में विभिन्न पदों पर रहने और जिले में अपने हिसाब से कांग्रेस को हांकने के बाद भी जिले में डीसीसी भवन का निर्माण नहीं करवाया गया, वह भी तब जबकि इसके लिए भूखण्ड आरक्षित किया जा चुका था।

कैसे दे दें इमरान को श्रेय!
जिला कांग्रेस कमेटी के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो वहां इस बात पर घमासान मचा हुआ है कि अगर यह भवन बन गया तो इसका सारा का सारा श्रेय नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इमरान पटेल को चला जाएगा। दशकों से कांग्रेस की धुरी बने हुए कांग्रेस के सरमायादारों को यह बात हजम नहीं हो पा रही है कि आखिर युवा नेता इमरान पटेल को इसका श्रेय कैसे ले लेने दिया जाए।

इमरान ने लूट लिया था मंच
13 जून को केंद्रीय मंत्री कमल नाथ का सिवनी आगमन हुआ। कमल नाथ की सियासी तरबियत से सिवनी के कांग्रेसी नेता शायद वाकिफ नहीं हैं। जाने अनजाने जैसे ही इमरान पटेल को संबोधन का अवसर मिला, उन्होंने ‘‘मिले मौका, मारो चौका‘‘ की तर्ज पर सिवनी में कांग्रेस भवन की मांग रख दी। इमरान पटेल की इस मांग को रखते ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हाथों के तोते उड़ गए। फिर उन्हें लगा कि केंद्रीय मंत्री कमल नाथ इमरान पटेल की इस मांग को अनसुना कर देंगे।
कहा जाता है कि कमल नाथ बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं। उन्होने इमरान पटेल की मांग को अनसुना नहीं किया। इमरान पटेल की मांग पर कमल नाथ ने मंच से ही घोषणा कर दी कि जिला कांग्रेस भवन का काम एक माह के अंदर आरंभ हो जाएगा। फिर क्या था, दशकों से कांग्रेस को अपने हिसाब से हांकने वाले नेताओं की आशाओं पर तुषारापात हो गया।

डीसीसी की लेट लतीफी
बताया जाता है कि इसके उपरांत जिला कांग्रेस कमेटी को आदेशित किया गया कि इसके निर्माण के पहले एक ट्रस्ट के गठन का प्रस्ताव पारित किया जाए। जिला कांग्रेस कमेटी ने प्रस्ताव बनाने में हीला हवाला किया। बताते हैं कि दस जुलाई को लगभग एक माह बाद प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें बहुत ही सफाई से अपने आपको बचाते हुए जिला कांग्रेस कमेटी ने ट्रस्ट के गठन के लिए केंद्रीय मंत्री कमल नाथ को अधिकृत कर दिया।

अब आया नक्शा पास कराने का संकट!
इस कार्यवाही के उपरांत जिला कांग्रेस कमेटी भवन के नक्शे की बारी आई। बताया जाता है कि समय सीमा में काम निपटाने के आदी केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने तत्काल ही एक आर्किटेक्ट के माध्यम से नक्शा बनवा दिया। इस नक्शे को नगर पालिका परिषद सिवनी से पास करवाना अहम था।

उपेक्षित महसूस कर रहे कांग्रेस के पार्षद!
बताया जाता है कि इसके नक्शे को पास करवाने के लिए नगर पालिका में पार्षद दल के नेता शफीक, नगर पालिका उपाध्यक्ष राजिक अकील सहित अन्य पार्षदों को विश्वास में नहीं लिया गया है। कांग्रेस के एक पार्षद ने नाम उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि नगर पालिका में कांग्रेस के पार्षद वस्तुतः जिला कांग्रेस कमेटी के निष्ठावान सिपाही हैं। होना यह चाहिए था कि, इन पार्षदों को जिला कांग्रेस कमेटी में बुलवाकर नक्शा दे दिया जाता और उसे पारित करवाने की जवाबदेही सौंप दी जाती। पर पता नहीं क्यों डीसीसी को अपने ही पार्षदों पर ऐतबार नहीं रहा कि उन्होंने पार्षदों को इस काम के लिए पाबंद नहीं किया।

ईई ने बताए नियम कायदे!
नगर पालिका परिषद में जैसे ही डीसीसी भवन का नक्शा पहुंचा, नगर पालिका के कार्यपालन यंत्री ने कांग्रेस भवन का नक्शा देखते ही नियम कायदों की फेहरिस्त बनाना आरंभ कर दिया। बताया जाता है कि इसी बीच इसकी जानकारी कांग्रेस के पार्षदों को लगी तो वे भी मौके पर पहुंचे। कमरे में अचानक क्या बात हुई यह तो पता नहीं चल सका पर कांग्रेस के अधिकांश पार्षद वहां से भुनभुनाते हुए निकलकर बाहर आ गए।

नहीं परवाह कमल नाथ की छवि की
कांग्रेस के अंदर चल रही चर्चाओं के अनुसार जिला कांग्रेस कमेटी को महाकौशल के क्षत्रप और केंद्रीय मंत्री कमल नाथ की छवि की कतई चिंता नहीं है। कमल नाथ के द्वारा 13 जून को घोषणा कर कहा गया था कि एक माह में जिला कांग्रेस कमेटी भवन के निर्माण का काम आरंभ हो जाएगा, पर तीन माह बीतने के बाद भी कम मंथर गति से चल रहा है। आज आलम यह है कि इस भवन के नक्शे को नगर पालिका से अनुमति भी नहीं मिल सकी है।

डंप हो रही रेत गिट्टी
जिला कांग्रेस कमेटी भवन के लिए आरक्षित भूखण्ड पर सालों से रेत और गिट्टी तथा बिल्डिंग मैटेरियल डंप हो रहा था। अचानक ही एक दिन भूमि पूजन (जो संभवतः सालों पहले भी हो चुका है) के लिए जेसीवी लगाकर इसे खाली करवाया गया। उसके बाद इस भूखण्ड पर एक बार फिर बिल्डिंग मेटेरियल डंप होना आंरभ हो गया है।

मौन हैं प्रवक्ता

जिला कांग्रेस कमेटी के भवन के निर्माण या उसकी प्रक्रिया के बारे में बात बात पर जिले की समस्याओं, जिले में भाजपा के नगर पालिका प्रशासन, विधायक और सांसदों को छोड़कर, प्रदेश के प्रवक्ताओं की भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता भी मौन ही साधे हुए हैं, इससे मीडिया में भी भ्रम बना हुआ है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ की घोषणा पर जिला कांग्रेस कमेटी क्या संज्ञान ले रही है?

नराधम पिता की करतूत

नराधम पिता की करतूत

(शरद खरे)

केवलारी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम तुरर्गा में गत दिवस जो कुछ हुआ वह दिल दहलाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। एक पिता आखिर हैवान कैसे बन सकता है? कैसे वह अपनी ही छः साल की मासूम का सिर कुल्हाड़ी से अलग करने की बात सपने में भी सोच सकता है? अगर ऐसा हुआ है तो निश्चित रूप से यह मानवता को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है। चुनाव सर पर हैं चुनाव के दौर में प्रत्याशी अपनी अपनी टिकिट पक्की कराने और मिलने के बाद चुनाव जीतने के लिए वे तरह तरह के टोने टोटके आजामाने से नहीं चूकेंगे। विधानसभा चुनावों तक आने वाले तीन माहों में पीर फकीरों की मौजां ही मौजां रहने वाली है।
कमोबेश हर बार चुनाव में टिकिट दिलवाने या टिकिट मिलने के उपरांत जीत का आश्वासन देकर यज्ञ अनुष्ठान करने बाबाओं ने सदा ही सिवनी में आमद दी है। पिछले चुनावों में भी टिकिट वितरण के पहले एक बाबा आए और सिवनी से लगभग दस से बीस लाख रूपए की रकम बटोकर चले गए। जिनसे उन्होंने राशि ली थी, वे इस बात को बेहतर जानते हैं कि बाबा उन्हें मामाबना गया था, क्योंकि उन्हें टिकिट मिली ही नहीं।
चुनाव के पहले जिले की फिजां में तरह तरह की बातें तैरने लगती हैं। लोग चर्चाओं के माध्यम से माहौल बनाने से नहीं चूकते हैं। कोई कहता मुर्गा लाओ कोई बकरा तो कोई शराब की बोतल से टोना टोटके की बात कहता है। कहीं शराब के नशे में कोई बिरयानी की मांग करता है तो कोई कुछ और। महत्वाकांक्षा मन में पालने वाले लोग इन कथित बाबाओं की सेवा टहल में कोई कमी नहीं रख छोड़ते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि मोबाईल, इंटरनेट के जमाने में जब दुनिया चांद सितारे पर कदम रखना तो छोड़िए इंसान बसने की बात कर रहा है उस दौर में भी चौदहवीं पंद्रहवीं सदी के टोने टोटकों पर दुनिया विश्वास कर रही है। आज न जाने कितनी जगह पीर फकीरों के मंदिर, दरगाह बन गए हैं, जिनमें बड़ी तादाद में आ रहे चंदे से उसकी देखरेख करने वाले ऐश कर रहे हैं। आज के युग में किसी बच्चे, जवान से अगर पूछा जाए तो वह टोना टोटका पर विश्वास शायद ही करता होगा।
याद पड़ता है कि अस्सी के दशक के आरंभ तक भैरोगंज में दलसागर तालाब के मुहाने पर महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल के सामने वाला इमली का पेड़, मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला के पीछे का इमली का पेड़, दीवान महल से कटंगी नाका मार्ग पर वर्तमान में बने सामुदायिक भवन के सामने के इमली के पेड़ आदि के बारे में किवदंतियां थीं, कि इन पर चुडैल रहा करती है। उस समय शाम ढलने के बाद लोग अकेले इन निर्जन स्थानों से गुजरने से कतराते थे। कालांतर में लोगों को समझ में आया कि वह डर महज वहम ही था।
आज की पीढ़ी को भूत प्रेत, चुडैल, चांडाल आदि पर शायद ही यकीन हो। बावजूद इसके अगर केवलारी में गत दिवस एक पिता ने अपनी पुत्री का सिर धड़ से अलग कर दिया और पूजन पाठ करने लगा तो यह वाकई बहुत अच्छा संकेत कतई नहीं माना जा सकता है। अब तो टीवी चेनल्स पर भी लोग भूत प्रेत की कथाओं वाले सीरियल देखना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि यह पीढ़ी इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी है। इस पीढ़ी को पता चल चुका है कि भूत प्रेत के सीरियल दिखाकर लोग उनका समय खराब कर रहे हैं। कल तक लोग इससे डरा करते थे, पर जागरूकता के कारण उनका डर काफूर हो चुका है।
हैवान पिता मानसिक विक्षिप्त है या नहीं यह बात तो जांच के बाद ही सामने आएगी, किन्तु अगर उसने अपनी पुत्री का गला रेतकर उसकी इहलीला समाप्त की और पूजन पाठ करने का जतन किया तो यह हमारे समाज के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं हैै। हमें यह सोचना होगा कि वह विक्षिप्त या ठीक जो भी है उसके दिमाग में अपनी पुत्री को मौत के घाट उतारकर पूजा करने की क्या सूझी? आखिर उसके दिमाग में यह बात कहां से घर कर गई? आखिर वह पूजा पाठ या कथित अनुष्ठान कर रहा था तो उसका उद्देश्य क्या था? पुलिस को चाहिए कि वह यह भी पता लगाए कि आखिर इंसानियत को बलाए ताक पर रखने वाला पिता पिछले कुछ दिनों से किनके संपर्क में था? अगर वह मानसिक विक्षिप्त था तो उसके परिजन खासकर उसकी पत्नि को तो इस बात का इल्म रहा ही होगा? क्या उसकी विक्षिप्तता का ईलाज करवाया जा रहा था?

जो भी हो, पर अब हमें इस बात का चिंतन अवश्य ही करना होगा कि आखिर हम अपने निहित स्वार्थों के चलते खुद तो पैसा बनाकर आराम का जीवन जीना चाह रहे हैं पर हम अपनी आने वाली पीढ़ी और समाज को क्या दिशा दे रहे हैं? भारत गणराज्य को आजाद हुए साढ़े छः से ज्यादा दशक बीत चुके हैं। क्या हमारे सांसद विधायक अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कह पाएंगे कि गांव गांव में जागरूकता आ चुकी है? जाहिर है नहीं, अगर आ गई होती तो जिले भर में कुकुरमुत्ते के मानिंद झोला छाप डॉक्टर्स का नेटवर्क नहीं होता। ओझा, लोगों का ईलाज नहीं कर रहे होते? लोग ईलाज के अभाव में भभूति खाकर दम नहीं तोड़ते!