शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

शिव की नगरी में रात रूकेंगे शिवराज

शिव की नगरी में रात रूकेंगे शिवराज

असंतुष्ट पड़ सकते हैं सत्तारूढ़ भाजपा के कारिंदों पर भारी

(नन्द किशोर/पीयूष भार्गव)

भोपाल/सिवनी (साई)। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को अंततः सिवनी की सुध आ ही गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार शिवराज सिंह चौहान रविवार को दिन भर जिले के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में भ्रमण के उपरांत रात सिवनी शहर में बिताएंगे। शिवराज सिंह चौहान का रात्रि विश्राम लंबे समय बाद हो रहा है, और उनकी नींद में खलल डालने के लिए नीता नरेश हटाओमुहिम एक बार फिर तेज हो सकती है।
मुख्य्ामंत्री शिवराज सिंह चौहान २९ सितंबर को ११.४५ बजे नरसिंहपुर के मुंगवानी से हेलीकॉप्टर द्वारा प्रस्थान कर १२.0५ बजे लखनादौन आदेगांव आय्ोंगे एवं स्थानीय्ा कायर््ाक्रम में शामिल होंगे। १.0५ बजे आदेगांव से हेलीकॉप्टर द्वारा प्रस्थान कर १.३0 बजे केवलारी पहुंचेंगे एवं आमसभा में सम्मिलित होंगे। केवलारी से २.३0 बजे जनआशीर्वाद रथ य्ाात्रा कान्हीवाड़ा होते हुए बरघाट पहुंचेगी। जहां मुख्य्ामंत्री आमसभा में शामिल होंगे। बरघाट से रथय्ाात्रा डूंडासिवनी पहुंचेगी एवं मुख्य्ामंत्री य्ाहां आमसभा में शामिल होंगे। डूंडासिवनी से रथय्ाात्रा सिवनी पहुंचेगी। य्ाहां पहुंचकर मुख्य्ामंत्री आमसभा में शामिल होंगे। रात्रि ११ बजे सिवनी में विश्राम करेंगे। मुख्य्ामंत्री चौहान ३0 सितंबर को ८.३0 बजे सिवनी से हेलीकॉप्टर द्वारा प्रस्थान कर ९.३0 बजे भोपाल पहुंचेंगे।

कार्यकर्ताओं में है जमकर आक्रोश!
सिवनी में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों एवं अन्य जनसेवकों सहित संगठन की कार्यप्रणाली से कार्यकर्ता एक लंबे समय से असंतुष्ट हैं। कार्यकर्ताओं के आरोप हैं कि विधायक और अन्य चुने हुए भाजपाईयों द्वारा उनके सम्मान को बुरी तरह कुचला जा रहा है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित ही महसूस करता आया है। कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि मनराखनलाल बनने के चक्कर में विधायक एवं अन्य चुने हुए प्रतिनिधियों सहित संगठन ने भी भाजपा से ज्यादा तवज्जो कांग्रेस के लोगों को दी है।

नेताओं के आने पर हुआ आसमान गुंजायमान
विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही सिवनी में जब भी बड़े नेताओं का आगमन हुआ, उस वक्त कार्यक्रम स्थल पर नरेश नीता हटाओ, भाजपा बचाओके नारों से आसमान गूंज उठा। भोपाल में भी प्रदेश कार्यालय में इस तरह के नारे जमकर लगे। इसके उपरांत असंतुष्ट गुट को शांत करने, पूर्व सांसद प्रहलाद सिंह पटेल सिवनी आए और श्रीवनी में उन्होंने असंतुष्ट नेताओं को समझाईश दी। यद्यपि श्रीवनी में न तो भाजपाध्यक्ष नरेश दिवाकर पहुंचे और न ही विधायक श्रीमती नीता पटेरिया, पर भाजपा के अंदर यह संदेश अवश्य ही प्रसारित हुआ कि प्रहलाद सिंह पटेल को चाहिए था कि वे जिला भाजपा कार्यालय में आकर कार्यकर्ताओं को अन्य पदाधिकारी और विधायकों की उपस्थिति में समझाईश देते।

शिवराज के सामने हो सकता है विरोध प्रदर्शन
माना जा रहा है कि असंतुष्ट नेताओं के मन से अभी विरोध का गुबार शांत नहीं हुआ है। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि असंतुष्ट गुट, शिवराज सिंह चौहान या प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र तोमर के सिवनी आगमन की रास्ता ही देख रहा है। लखनादौन में भाजपा के कार्यकर्ताओं के सम्मान को जिस तरह कुचला गया, और जिला संगठन द्वारा इस संबंध में ठोस कार्यवाही न किए जाने से भी भाजपा का आम कार्यकर्ता का मनोबल बुरी तरह टूटा हुआ ही लग रहा है। हो सकता है यह मामला भी मुख्यमंत्री के सिवनी आगमन पर उछले।

भाजपा की बैठक आज
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 29 सितम्बर को जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान सिवनी आगमन को देखते हुए जिला भाजपा की एक आवश्यक बैठक शुक्रवार 27 सितम्बर को प्रातः 11 बजे भाजपा कार्यालय में आयोजित की जा रही है। पार्टी जिलाध्यक्ष श्री नरेश दिवाकर द्वारा इस बैठक में जिला भाजपा के पदाधिकारियों, सभी मंडलों के अध्यक्षों, प्रबंध समिति के सदस्यों, विधायकगण, सांसद, पूर्व जिलाध्यक्षों एवं सभी विधानसभा के प्रभारियों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में संगठन मंत्री श्री अविनाश राणे भी उपस्थित रहेंगें। भाजपा मीडिया प्रभारी श्रीकांत अग्रवाल ने बताया कि मुख्यमंत्री की इस जन आशीर्वाद यात्रा को सफल एवं सुव्यवस्थित बनाने के साथ ही इसके व्यापक प्रचार प्रसार हेतु बैठक में चर्चा की जावेगी।

पैंशनर्स को मशविरा: निःशुल्क दवा चाहिए तो शिकायत कीजिए!

पैंशनर्स को मशविरा: निःशुल्क दवा चाहिए तो शिकायत कीजिए!

(पीयूष भार्गव)

सिवनंी (साई)। अगर आप मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार में पैंशनभोगी हैं, और आपको सरकारी अस्पताल से अपने रोग के लिए दवा चाहिए, आपको देने में चिकित्सालय प्रशासन आनाकानी कर रहा है तो बस उठाईए कलम और कर दीजिए संवेदनशील जिला कलेक्टर को एक शिकायत। आपको सौ दो सौ नहीं चार पांच हजार रूपए प्रतिमाह तक की दवाएं भी चिकित्सालय प्रशासन खरीदकर देगा।
जी हां, यह सच है। गौरतलब है कि लगभग दो सालों से सिवनी जिले में पैंशनर्स दवाओं के लिए यत्र तत्र भटक रहे हैं। जिला चिकित्सालय के स्टोर में दवाओं का बजट समाप्त हो गया है, का बोर्ड भी महीनों से दिखाई नहीं दे रहा है। जिला चिकित्सालय में दवाओं की खरीद में कमीशनबाजी चरम पर है। वरना क्या कारण है कि जनरल पूल में खरीदी जाने वाली मल्टी विटामिन और एसिडिटी की दवाएं भी पैंशनर्स की मद में आई राशि से खरीदी जा रही हैं।

जबरन छकाया जा रहा है पैंशनर्स को
पिछले दिनों जिला पैंशनर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य डी.बी.नायर जब जिला चिकित्सालय पहुंचे थे (वर्तमान में उनके पैर में फेक्चर है और वे अपने निवास पर ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं), जहां चिकित्सकों ने उन्हें चिकित्सालय में उपलब्ध दवाओं मेें से ही दवाएं देने की बात कही। इस पर उन्होंने चिकित्सकों से कहा कि जो दवाएं उन्हें जरूरी हैं अगर वे दवाएं स्टोर में नहीं हैं तो वे क्या करेंगे?

दरबार का शौक है सीएस को
बताया जाता है कि इस पर ओपीडी में मौजूद चिकित्सक ने साफ तौर पर कह दिया गया था कि अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ.सत्य नारायण सोनी के मौखिक निर्देश हैं कि बाहर की दवाएं बिल्कुल न लिखी जाएं। जब इस संबंध में डॉ.सत्यनारायण सोनी से उनका पक्ष जानना चाहा तो वे सिविल सर्जन कक्ष में चार पांच चिकित्सकों का दरबार लगाए (जबकि चिकित्सालय के समय में चिकित्सकों को दरबार के बजाए ओपीडी में जाने की नसीहत दी जानी चाहिए) हंसी ठठ्ठा में व्यस्त थे।

कलेक्टर से की शिकायत
बताया जाता है कि इस संबंध में पैंशनर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य डी.बी.नायर द्वारा संवेदनशील जिला कलेक्टर से शिकायत की गई। जिला कलेक्टर ने पैंशनर्स की इस समस्या पर संजीदगी दिखाते हुए स्वास्थ्य विभाग को तत्काल निर्देश जारी कर कहा कि पैंशनर्स को दवाओं के मामले में परेशानी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए। इसके बाद ही उन्हें व उनकी पैंशनर पत्नि को बाजार से दवाएं खरीदकर अस्पताल प्रशासन द्वारा दी गई।

कहां जाएं पेंशनर्स
एक वयोवृद्ध पेंशनर ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अस्पताल के स्टोर में उपलब्ध दवाओं के भरोसे तो पेंशनर नहीं रह सकता। बावजूद इसके अस्पताल में दवा वितरण केंद्र में पेंशनर्स के लिए बनाई गई एक प्रथक खिड़की में न तो कोई कर्मचारी दवा वितरण के लिए मौजूद रहता है न ही पेंशनर्स की कोई सुनता है। बताया जाता है कि पिछले दिनों दवा वितरण केंद्र में पदस्थ श्री अंसारी द्वारा सिविल सर्जन डॉ.सत्य नारायण सोनी को ही दो टूक शब्दों में यह कहकर कि वे लिखापढ़ी में व्यस्त हैं, किसी ओर को काउंटर में बिठाओ लताड़ दिया था। उस वक्त वहां मीडिया के कुछ कर्मी भी मौजूद थे। अपने अधीनस्थ एक अदने से कर्मचारी की लताड़ सुनकर भी डॉ.सत्यनारायण सोनी उसे प्रसाद समझकर पी गए और मुस्कुराते हुए वहां से रूखसत हो गए, यह है डॉ.सत्यनारायण सोनी की प्रशासनिक कुशलता।

दवा चाहिए तो करें शिकायत
जिला चिकित्सालय में पदस्थ एक पॅरामेडीकल स्टाफ ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सिविल सर्जन डॉ.सत्यनारायण सोनी पर शल्य क्रिया के पूर्व बेहोश करने के लिए मरीज के परिजनों से रिश्वत लेने के संगीन आरोप हैं। कई बार तो पैसा नहीं मिलने पर मारपीट तक की नौबत आ चुकी है। डॉ.सत्यनारायण सोनी सिवनी में अस्सी के दशक से पदस्थ हैं, जबकि सरकारी अधिकारियों का तबादला तीन साल में हो जाना चाहिए, वहीं डॉ.सत्य नारायण सोनी तीन साल क्या तीन दशक पूरे करने वाले हैं। उक्त कर्मचारी का कहना था कि डॉ.सत्य नारायण सोनी ने साफ तौर पर किन्तु अघोषित तौर पर चिकित्सकों सहित स्टोर के कर्मचारियों को निर्देश दिए हैं कि पेंशनर्स में से दवाएं उन्हें ही खरीदकर दी जाएं जिनकी सिफारिश जिला कलेक्टर द्वारा की जाए। उक्त कर्मचारी का कहना है कि अगर किसी पेंशनर को अपने मौलिक अधिकारवाली निःशुल्क दवा चाहिए तो वह चिकित्सालय जाकर चप्पलें घिसने के बजाए जिला कलेक्टर के पास जाए। पता नहीं डॉ.सत्यनारायण सोनी अपने कर्तव्यों का सीधा सीधा निर्वहन करने के बजाए संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव का सरदर्द क्यों बढ़ाने पर तुले हुए हैं।

जनरल पूल की दवाएं पेंशनर्स कोटे में
जिला चिकित्सालय के स्टोर के सूत्रों का कहना है कि डॉ.सत्यनारायण सोनी चमड़े के सिक्के चलाने पर आमदा नजर आ रहे हैं। पेंशनर्स कोटे के आवंटन की मद में जनरल पूल की दवाएं खरीदकर इस मद की राशि को हवा में उड़ाया जा रहा है। इतना ही नहीं रक्तचाप के लिए लगभग डेढ़ सैकड़ा दवाएं चलन मेें होने के बाद भी एटेन और लोसार नामक दवाएं ही पैंशनर्स मद की राशि से खरीदी जा रही हैं। यही आलम मल्टी विटामिन और एसीडिटी आदि की दवाओं का है।

कहां गई दो साल की राशि?
पेंशनर्स एसोसिएशन के एक सदस्य ने बताया कि पेंशनर्स को दवाएं देने की मद में आई राशि का पिछले दो सालों में क्या हुआ इसकी तो सीबीआई जांच होनी चाहिए। पिछले दो सालों से पेंशनर्स को उनकी जरूरत के मुताबिक बाहर से दवाएं खरीदकर नहीं दी जा रही हैं। आखिर पैंशनर्स की मद में आने वाली बड़ी राशि का स्वास्थ्य विभाग प्रशासन द्वारा क्या उपयोग किया गया है इसकी जांच की जानी चाहिए।

मजे में हैं अवैध बसाहट के जिम्मेदार!

मजे में हैं अवैध बसाहट के जिम्मेदार!

(शरद खरे)

अवैध कॉलोनी या बसाहट मानवता के प्रति एक जुर्म से कम नहीं है। अवैध कॉलोनी बसाकर कॉलोनाईजर्स मोटा माल कमाते हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता हैै। लोगों को तरह तरह के प्रलोभन देकर आकर्षित करने से नहीं चूकते हैं कॉलोनाईजर्स, जब लोग इनके जाल में फंस जाते हैं तब ये अपना असली चेहरा दिखाकर लोगों को बेवकूफ बना देते हैं। लाखों रूपए फंसाने के बाद लुटा पिटा उपभोक्ता कहीं जाकर शिकायत करने की स्थिति में भी नहीं होता है। वह मजबूरी में उस अवैध कॉलोनी या बसाहट में मकान बनाकर रहना आरंभ कर देता है। गर्मी और सर्दी का मौसम तो जैसे तैसे निकल जाता है पर बारिश में जब पहुंच मार्ग ही नहीं होता है तब वह हैरान परेशान हो उठता है। गंदे पानी की निकासी के लिए नाली न होने से उसके घर के आसपास ही गंदगी बजबजाती रहती है। पानी के पोखरों में तब्दील यह गंदगी शहर में घूम रहे आवारा सुअरों के स्वीमिंग पूल के रूप मेें प्रयोग में आता है।
सिवनी शहर में ही दर्जनों कॉलोनियां अवैध रूप से अस्तित्व में हैं। खुद नगर पालिका परिषद् इस बात को स्वीकार कर चुकी है। आखिर क्या कारण है कि अवैध कॉलोनियां एक एक कर अस्तित्व में आती जा रही हैं। क्या इसके लिए किसी की जवाबदेही नहीं है? क्या जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार सरकारी नुर्माइंंदे हाथ पर हाथ रखे गलत काम होता देख रहे हैं? अगर सिवनी के किसी वार्ड में अवैध निर्माण हो रहे हैं तो उस वार्ड का पार्षद, नगर पालिका की निर्माण शाखा और शहर के पटवारी क्या मदकके नशे में चूर थे? क्या कारण है कि अब तक जिला प्रशासन ने इस संबंध में दिशा निर्देश जारी कर स्थानीय निकाय के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद, पंच सरपंच सहित स्थानीय निकाय के जिम्मेदार अधिकारियों, राजस्व विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की अवैध निर्माण के प्रति जवाबदेही निर्धारित नहीं की है?
छपारा शहर में प्रस्तावित गोविंद धामके कॉलोनाईजर्स ने तो सारी हदें ही पार कर ली हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान पिछली मर्तबा कॉलोनाईजर के गुर्गे ने साफ कहा था के जिला प्रशासन चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है क्योंकि उसके संचालकों की सियासी पहुंच बहुत उपर तक है। यही कारण है कि मीडिया के कुछ लोगों को साथ लेकर उनके संचालकों द्वारा तहसीलदार को भी साध लिया गया है। जिसे गोविंद धामके बारे मेें जो छापना हो छाप ले। जिला प्रशासन भी उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पाएगा! वस्तुतः कॉलोनाईजर के गुर्गे की बात में दम दिख रहा है। लगभग तीन माह पहले समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा गोविंद धामके कॉलोनाईजर के द्वारा जरूरी अनुमतियों के बिना ही प्लाट बेचे जाने की खबरें प्रसारित की थीं, पर इस संबंध में जिला प्रशासन या एसडीओ राजस्व, तहसीलदार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
किसी भी कॉलोनाईजर द्वारा जब कॉलोनी काटी जाती है तो अमूमन ग्रीन बेल्ट पर ही कुछ पत्थर गाड़कर उन्हें चूने से रंगकर प्लाट की स्थिति, मनगढंत, पार्क, पानी की टंकी, सड़क, वृक्षारोपण, खेल का मैदान, धर्मस्थल, ड्रेनेज आदि को नक्शे पर इस तरह उकेरा जाता है मानो देखने वाला परीलोक में आ गया हो। प्लाट के मानचित्र (कागजों पर) में पहले से ही कुछ प्लाट पर लाल स्याही से चिन्हित कर दिया जाता है, जब खरीददार द्वारा उसके बारे में पूछा जाता है तो कॉलोनाईजर्स द्वारा बहुत ही करीने से उन प्लाट्स को बिका हुआ दर्शा दिया जाता है। साल छः माह में जितने प्लाट बुक होते हैं उन प्लाट्स के हिसाब से नए नक्शे में लाल रंग के बिके हुए प्लाट्स की स्थिति बदल दी जाती है। अर्थात शुरूआत में बिके हुए प्लाट्स अब नई कीमतों पर (कॉलोनी में कुछ प्लाट बिकने पर दाम बढ़ना स्वाभाविक ही है) बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं। मजे की बात तो यह है कि इस समय तक भी आधे से ज्यादा कॉलोनियों के पास जरूरी सरकारी अनुमति ही नहीं होती है।
प्लाट की बुकिंग राशि, पहली, दूसरी किश्त लेकर कॉलोनाईजर्स द्वारा जरूरी सरकारी अनुमति लेने का काम किया जाता है। कहा जाता है तब तक भी वह भूखण्ड जो ग्रीन बेल्ट का है, का डायवर्शन तक नहीं हो पाता है और वह कॉलोनाईजर के नाम पर भी नहीं चढ़ पाता है। अगर सारी अनुमति मिल गई तो ठीक वरना उसी स्थिति में ही कॉलोनाईजर द्वारा भूखण्ड के असली मालिक को बुलवाकर खरीददार के पक्ष में रजिस्ट्री करवा दी जाती है। रजिस्ट्री होते ही खरीददार द्वारा अपने स्वामित्व वाले भूखण्ड पर मकान निर्माण का नक्शा तैयार करवाया जाता है। तब तक कॉलोनी के लगभग सारे प्लाट बिक चुके होते हैं। जैसे ही खरीददार स्थानीय निकाय में नक्शा पास करवाने जाता है उसे पता चलता है कि कॉलोनी तो अवैध है। तब उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है। उस वक्त तक वह बड़ी राशि खर्च कर चुका होता है। इसके बाद वह ले देकर काम करवाकर मकान का निर्माण कर लेता है। चूंकि कॉलोनी वैध ही नहीं है इसलिए वहां नाली सड़क, सफाई, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं होती हैं। मजबूरी में वह नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हो जाता है।

सवाल यह उठता है कि जब कॉलोनी काटने के विज्ञापन जारी होते हैं, रजिस्ट्री होती है, मकान बन रहा होता है तब स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि और जिम्मेदार सरकारी अधिकारी कहां होते हैं? बिना बुनियादी सुविधाओं के कॉलोनी काटना क्या उचित है? यह मानवता के प्रति अपराध से कम नहीं है! कुल मिलाकर जन प्रतिनिधियों, सरकारी अधिकारियों और कॉलोनाईजर्स के त्रिफला ने आम उपभोक्ता जो प्लाट खरीदता है की सेहत बुरी तरह बिगाड़ रखी है। संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव से ही आम जनता को अब उम्मीदें बचीं हैं।