गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

इतिहास लिखने की तैयारी में गुजरात


इतिहास लिखने की तैयारी में गुजरात
(लिमटी खरे)

मामला चाहे हिन्दुत्व का हो या शराबबंदी का, हर पहलू पर गौर फरमाने के बाद गुजरात के सूबेदार नरेंद्र मोदी ने अलग कदम ही उठाए हैं। जिसके कारण वे सदा ही चर्चाओं में रहे हैं। अब गुजरात में वोट डालना अनिवार्य करने की कवायद की जा रही है, विधानसभा में अगर विधेयक पारित हो गया तो देश के इतिहास में गुजरात देश का पहला राज्य होगा जहां मतदान न करने पर सजा का प्रावधान किया जा रहा हो।
वैसे दुनिया के अनेक देश एसे हैं जहां जनसेवक चुनने के लिए मतदाताओं को जनादेश देना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए भले ही वह मतदान न करे पर मतदान केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना होता है। कुछ देशों में नकारात्मक मतदान की व्यवस्था भी है, जिसके मुताबिक मतदाता को किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने का विकल्प भी दिया जाता है। मतदान न करने या मतदान केंद्र में उपस्थित न होने के लिए मतदाता को पर्याप्त कारण देना होता है। अगर संतोषजनक कारण न प्रस्तुत किया जाए तो मतदाता को जुर्माना या कम्युनिटी सर्विस (सामुदायिक सेवा) करनी होती है। जुर्माना अथवा कम्युनिटी सर्विस न करने की दशा में मतदाता को सजा का प्रावधान भी है।
दक्षिण आफ्रीका, अर्जेंटीना, स्विटजरलेंड, इटली, यूनान, आस्ट्रिया, ब्राजील, कांगो, फिजी, मेिक्सको, बेिल्जयम, तुकीZ आदि देशों में मतदान को अनिवार्य किया गया है। मिस्त्र में मतदान अनिवार्य है, किन्तु यह अनिवार्यता केवल पुरूषों के लिए ही सीमित है। आस्ट्रिया में मतदान करें या न करें पर मतदान स्थल पर हाजिरी अनिवार्य है। यहां 20 से 50 डालर का जुर्माना देना पडता है अगर मतदाता मतदान केंद्र न पहुंचे तब।

यूनान में मतदान न करने पर चालक अनुज्ञा और पासपोर्ट नहीं बनाया जाता है। इतना ही नहीं बेिल्जयम में चार चुनाव लगातार वोट न देने पर 10 साल के लिए मताधिकार से वंचित रहना पडता है। बोलविया में मतदान करने पर एक कार्ड प्रदान किया जाता है। चुनाव के तीन माह बीतने की अवधि तक अगर मतदाता उक्त कार्ड नहीं दिखाता है तो उसके बैंक से सारे ट्रजेक्शन्स रोक दिए जाते हैं।
गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान को अनिवार्य बनाने का अनुकरणीय फैसला किया है। इसके लिए आहूत विधानसभा सत्र में गुजरात सत्तामण्डल संशोधन विधेयक 2009 लाया जा रहा है। यदि विधेयक पारित हो गया तो सूबे के 3 करोड 64 लाख से अधिक मतदाताअों को स्थानीय निकाय चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही होगा।
मोदी सरकार ने वोट न देने की स्थिति में मतदाता को डिफाल्टर घोषित कर दिया जाएगा, और इस तरह का मतदाता सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रखा जाएगा। मतदान न करने वाले मतदाता से 30 दिनों के अंदर जवाब मांगा जाएगा। जवाब संतोषजनक न होने की स्थिति में मतदाता को डिफाल्टर घोषित कर दिया जाएगा। इस विधेयक में नेगेटिव वोटिंग अर्थात किसी भी प्रत्याशी को मत नहीं देने का विकल्प भी रख गया है।
गौरतलब होगा कि इसी साल अप्रेल में देश के सर्वोच्च न्यायलय ने महाराष्ट्र सूबे के अतुल सरोदे द्वारा मतदान अनिवार्य करने संबंधी याचिका को सिरे से खारिज कर दिया गया था। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि कानून के सहारे मतदाता को मतदान केंद्र तक नहीं ले जाया जा सकता। मतदान मतदाता का स्वविवेक का अधिकार है। सरकार को चाहिए कि मतदान के प्रति जागरूकता पैदा करे। इसे कानून की बंदिश में नहीं बांधा जा सकता है।

वैसे देखा जाए तो देश में अमूमन पचास से साठ फीसदी लोग ही मतदान का प्रयोग करते हैं। आम तौर पर पढे लिखे शहरी मतदाताओं का मतदान के प्रति कम ही रूझान देखने को मिलता है। इसका कारण राजनैतिक तौर पर व्याप्त गंदगी ही है। आम शहरी मतदाता भ्रष्टाचार और नैतिक पतन के साथ मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों से आजिज आ चुका है। यही कारण है कि वह मतदान के प्रति अरूचि ही दर्शाता है।
वहीं दूसरी ओर शहरों के इर्द गिर्द बसे मजरे टोले और ग्रामीण अंचलों में मतदान के प्रति काफी अधिक रूझान देखा जाता है। एक अनुमान के अनुसार मतदाताओं को प्रलोभित करने के लिए बांटे जाने वाले कंबल, साईकिल, शराब और नकद राशि के बोझ में दबकर इस वर्ग के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में संपन्न विधानसभा चुनावों में तो पांच पांच सौ के नकली नोटों की रिश्वत देकर असली वोट लेने का मामला भी प्रकाश में आया है।
यह बात सच है कि मतदान के जरिए ही मतदाता अपनी किस्मत लिखता है और भविष्य की बागडोर ``जनसेवक`` के हाथों में सौंपता है। जनसेवक अगर ठीक नहीं है तो क्षेत्र के विकास पर ग्रहण लगना सुनिश्चित ही है। केंद्र सरकार को चाहिए कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर अनिवार्य मतदान के लिए देशव्यापी बहस चलाकर लोगों का मत जाने, और अगर इसके सकारात्मक परिणाम सामने दिखाई दें तो मतदान को अनिवार्य बनाने की दिशा में प्रभावी पहल करे।
हमारा मानना है कि अगर मतदान को अनिवार्य कर दिया गया तो मतदाता को प्रलोभन देने के मामलों में गिरावट सुनिश्चित है, क्योंकि तब उम्मीदवार को इस बात का खतरा अधिक रहेगा कि सौ फीसदी लोग तो उसके प्रलोभन में नहीं आ सकते। वर्तमान में साठ फीसदी मतदान होने के अनुमान पर पच्चीस फीसदी लोगों को ही साधकर उम्मीदवार अपने विजय के मार्ग प्रशस्त कर लेता है।
यह बात भी सच है कि मतदान को अनिवार्य करने के मार्ग में व्यवहारिक कठिनाईयां बहुत ज्यादा हैं। इसके लिए जुर्माना वसूलने या सजा देने के काम के लिए एक अलग अमले को तैनात करना होगा। देखा जाए तो भारत देश के नागरिक के लिए मतदान ``कर्तव्य`` के बजाए ``अधिकार`` के रूप में अधिक देखा जाता है।