बुधवार, 31 मार्च 2010

भाई बहन में झगडा कैसा!

भाई बहन में झगडा कैसा! 
कांग्रेसी ही बढा रहे गांधी बच्चन परिवार में दूरियां
अहम में से `अ` को अलग करें सोनिया
(लिमटी खरे)

पिछली शताब्दी में रूपहले पर्दे के महानायक रहे बच्चन  और राजनीति के सिरमौर रहे नेहरू गांधी परिवार के बीच खटास गहराती ही जा रही है। एक समय एक दूसरे के पूरक समझे जाने वाले दोनों ही परिवार इक्कसवीं सदी में एक दूसरे के खून के प्यासे ही दिख रहे हैं, भले ही अन्दर से दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्यार बना हो पर परिदृश्य में उकरे चित्रों को देखकर यह माना जा सकता है कि दोनों एक दूसरे को पसन्द तो कतई नहीं कर रहे हैं।
बच्चन परिवार की बहू और गुजरे जमाने की मशहूर अभिनेत्री जया बच्चन जब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को कोसती नज़र आतीं हैं, और मीडिया जब इस बात को तूल देता है तब अमिताभ आगे आकर दोनों ही परिवारों के पुराने संबन्द्धों के चलते इस विवाद का शमन करते नज़र आते हैं। अमिताभ अपनी अर्धांग्नी जया के बारे में यह कह देते हैं कि जया को नहीं पता कि बच्चन और गांधी परिवार की नजदीकियां कितनी हैं, जया नासमझ हैं।
बच्चन और गांधी परिवार की नजदीकियों को समझने के लिए कुछ पन्ने पलटाने ही पडेंगे। पूर्व प्रधानमन्त्री प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इन्दिरा गांधी के नौरत्नों में से एक रत्न हरिवंश राय बच्चन भी हुआ करते थे। इसके बाद अगली पीढी में अमिताभ बच्चन और स्व.राजीव गांधी गलबहियां कितनी सशक्त थीं यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।
दोनों ही परिवार कितने करीब थे इसका प्रमाण इटली मूल की सोनिया एन्टोनिया माईनो (सोनिया गांधी का असली नाम) का राजीव गांधी की अर्धांग्नी बनने का किस्सा ही है। जब सोनिया और राजीव गांधी के विवाह की बारी आई तब राजीव गांधी बरात लेकर अमिताभ बच्चन के घर ही गए थे। सोनिया का कन्यादान भी तेजी बच्चन के हाथों हुआ था। तेजी बच्चन भले ही सोनिया के लिए देवकी (पाउलो अर्थात सोनिया की असली माता) न हों पर यशोदा की भूमिका में तो नज़र आईं। इस लिहाज से अमिताभ बच्चन और सोनिया गांधी भाई बहन ही हुए।
9 दिसम्बर 1946 को इटली के ओवासांजो में जन्मी स्टीफनो मानियो और पाउलो की पुत्री सोनिया को भारतीय संस्कारों के बारे में जो जानकारी मिली वह उनके विवाह के उपरान्त ही मिली। भारत में भगवान कृष्ण के लालन पालन और संस्कारित करने के लिए हर पल यशोदा का नाम ही सामने आता है। उन्हें जन्म देने वाली माता देवकी को लोग गाहे बेगाही ही याद करते होंगे। इसी तरह पाउलो के बजाए सोनिया के लिए तेजी बच्चन और उनके परिवार का सम्मान ज्यादा जरूरी होना चाहिए। अमिताभ उनके भाई हुए, राजनीति में भाई भाई का नहीं होता है, यह कहावत यहां चरितार्थ होती दिख ही रही है।
एक समय अपने बाल सखा और सोनिया के पति राजीव गांधी को स्पष्ट बहुमत दिलाने के लिए अमिताभ भी राजनीति के कीचड में उतरे थे। वे इलहाबाद से संसद सदस्य बने, पर जब उन्हें लगा कि इस तरह की राजनीति से उनकी एंग्री यंग मेन और सुपर स्टार वाली छवि मटियामेट हो सकती है, उन्होंने तत्काल इस तरह की राजनीति से तौबा कर ली। इसके बाद एबीसीएल नामक कंपनी के गर्त में जाने के बाद अमिताभ टूट से गए थे। इस समय उनके लिए तारणहार बनकर आए थे, अमर सिंह। कहते हैं कि अमर सिंह ने सुब्रत राय सहारा आदि के माध्यम से अमिताभ को आर्थिक इमदाद मुहैया करवाई थी, जिससे अमिताभ फिर से सामान्य हो सके। यही कारण है कि अमिताभ ने बरास्ता अमर सिंह, मुलायम और समाजवादी पार्टी के प्लेटफार्म पर अपनी रेल लगा दी थी।
राजनीति के शातिर किन्तु छिछोरे खिलाडी अमर सिंह ने अपनी दोधारी चालों से बच्चन और गांधी परिवार के बीच पक रही सुगंधित खीर में निब्बू निचोडना आरम्भ कर दिया। नीबू की बून्दो से खीर का दूध फट गया और कालान्तर में केसर और अन्य मावों की सुगंध धीरे धीरे दुर्गन्ध में तब्दील हो गई। हद तो तब हो गई जब देश की व्यवसायिक राजधानी मुम्बई में बान्द्रा सीलिंक के दूसरे चरण के उद्घाटन मेें सदी के महानायक की उपस्थिति को लेकर बवाल कटा।
कांग्रेस के सिपाहसलार इस मामले में अपना दामन पाक साफ बताने के लिए तरह तरह के जतन करने लगे। यहां तक कि मुख्यमन्त्री अशोक चव्हाण ने बयान दे दिया कि यदि उन्हें अमिताभ की मौजूदगी पूर्व जानकारी होती तो वे वहां नहीं जाते। कांग्रेस के आलाकमान को चाहिए कि चव्हाण के इस बयान पर ही उनसे त्यागपत्र मांग लें। मामला अमिताभ की मौजूदगी का नहीं मामला चव्हाण की बयानबाजी का है। क्या एक सूबे के निजाम को यह पता नहीं होता कि जिस प्रोग्राम में वह शिरकत करने जा रहा है वहां कौन कौन से अतिथि आमन्त्रित होंगे। अगर एसा है तो एसे मिट्टी के माधव के हाथों देश के इतने बडे सूबे की कमान किस योग्यता के आधार पर अब तक सौंपी हुई है।
अमिताभ की मौजूदगी को लेकर जिन कांग्रेसियों के पेट में मरोड हो रही है, वे सभी अब मुम्बई के प्रोग्राम के बजाए अमिताब के द्वारा गुजरात के ब्राण्ड एम्बेसेडर होने पर आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। सदी का महानायक अगर किसी प्रोग्राम में शिरकत करने पहुंच भी गया तो क्या सूबेे निजाम अशोक चव्हाण में इतनी नैतिकता भी नहीं बची कि वह राष्ट्रनायक की मौजूदगी को तर्क या कुर्तक के जरिए सही साबित कर आलोचकों के मुंह पर अलीगढ के ताले जड दे।
यह भी तय है कि सोनिया एन्टोनिया माईनो एवं गांधी परिवार के अन्य सदस्यों को अमिताभ की वहां उपस्थिति से कोई अन्तर नहीं पडा होगा। सोनिया और राहुल गांधी के अब तक के कदमताल से साफ हो जाता है कि वे दोनों कभी भी अमिताभ बच्चन या उनके परिवार को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तरीके से अपमानित करने का विचार भी मन में नहीं ला सकते हैं। फिर कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनू सिंघवी भी कह रहे हैं कि आलाकमान अर्थात कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने कभी भी अमिताभ बच्चन से दूरी बनाने के कोई निर्देश नहीं दिए हैं।
इसके बाद अर्थ अवर के दौरान दिल्ली में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाया जाना भी चर्चाओं का हिस्सा बन गया। चव्हाण के राग मल्हार को आगे बढाते हुए दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित ने भी अपने हाथ झाडते हुए यह कह दिया कि उन्हें भी अभिषेक के एम्बेसेडर होने की जानकारी कतई नहीं है। सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के दो मुख्यमन्त्री इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे हों और आलाकमान धृतराष्ट्र तो विपक्ष दल चीर हरण के दौरान गुरू द्रोणाचार्य की भूमिका में हों तब बेचारी द्रोपदी (देश की निरीह जनता) की लाज बचाने भगवान कन्हैया कहां से आ पाएंगे।
बहरहाल तेजी बच्चन की मानस बेटी बन चुकीं सोनिया गांधी 28 फरवरी 1968 को हरिवंश राय बच्चन के घर में ही राजीव गांधी की हुईं थीं। अमिताभ बच्चन उनके सगे भाई तो नहीं पर अग्रज से बढकर हैं। राजीव गांधी और अमिताभ के दोस्ती के किस्से मशहूर हैं। आज राजीव गांधी नहीं हैं, तो इन दोनों ही परिवारों के बीच घुलती खटास को समाप्त करने की जवाबदारी सोनिया की ही है। विडम्बना है कि सोनिया ने भारत की इस संस्कृति को समझ ही पाया है कि अहम में से अगर `अ` निकाल दिया जाए तो वह हम में तब्दील हो जाता है। हमारी निजी राय में सोनिया को आगे आना चाहिए और उनके भाई अमिताभ पर हो रहे इस तरह के हमलों को रोकने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को निर्देश देना होगा। दलगत राजनीति अपनी जगह है, पर सत्ता पाने और खबरों में बने रहने के लिए पारिवारिक विघटन होगा और नैतिकता का क्षरण होने लगा तो आने वाले समय में भारत का राजनैतिक परिदृश्य सुनहरा के बजाए बदबू मारते कीचड से सना ही नज़र आएगा।

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

इसी का नाम राजनिती है…………………॥यहाँ एक पल मे रिश्ते बनते और बिगडते हैं