गुरुवार, 28 मई 2009

सेन की जमानत : स्वागतयोग्य फैसला
(लिमटी खरे)
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के देश के उपाध्यक्ष डॉ.विनायक सेन को जमानत पर रिहा कर देने के आदेश दे दिए हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। डॉ.विनायक सेन पिछले दो सालों से रायुपर की जेल में बंद हैं।राज्य की रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने डॉ.विनायक सेन पर नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप लगाए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि डॉ.विनायक सेन जेल में बंद एक कथित माओवादी के लिए संदेश वाहक का काम करने के साथ ही साथ सूबे में नक्सलवाद को बढावा दे रहे थे। यद्यपि डॉ.विनायक सेन आरंभ से ही सरकार के इन आरोपों का खण्डन करते आ रहे हैं किन्तु उनकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है। न्यायालय ने उन्हें निचली अदालत में मुचलका भरने के उपरांत जमानत देने के आदेश दिए हैं।सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन बैंच में न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और दीपक वर्मा ने छत्तीसगढ सरकार के वकील के तर्क को सुनने से साफ इंकार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी है। कोर्ट के इस वक्तव्य से साफ हो जाता है कि उसे छत्तीगढ सरकार के तर्क से कोई सरोकार नहीं है, और वह सरकार के रवैए से संतुष्ट नहीं है।दरअसल डॉ.विनायक सेन ने दिल की बीमारी का इलाज वेल्लूर में कराने के लिए जमानत की अर्जी दी थी, जिस पर राज्य सरकार द्वारा आपत्ति लगा दी थी। राज्य सरकार अगर चाहती तो डॉ.विनायक सेन की सेवाओं को देखते हुए उनकी जमानत की अर्जी का विरोध नहीं करती। वस्तुत: एसा हुआ नहीं।उधर जमानत मिलने के उपरांत डॉ.विनायक सेन ने आशंका जाहिर की है कि उन्हें सरकार से खतरा है। उनका कहना है कि राज्य सरकार कानून का जिस तरह बेजा इस्तेमाल कर रही है, उससे कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है। सच ही कहा गया है ``समरथ को नहीं दोष गोसाईं।``रमन सरकार ने डॉ.विनायक सेन पर जिस तरह नक्सलियों से मिले होने के आरोप लगाए हैं, उससे सभी का चकित होना स्वाभाविक है। हम यह नहीं कहते कि सरकार के आरोप निराधार होंगे, सच्चाई क्या है, यह तो प्रकरण की समाप्ति पर ही सामने आ सकेगी, किन्तु सरकार क्या यह नहीं जानती कि परोक्ष रूप से तो नक्सल प्रभावित इलाकों में पदस्थ सरकारी मुलाजिम भी उनसे मिले हुए रहते हैं।एक वाक्या याद आ रहा है। बालाघाट में नक्सली हिंसा जोरों पर थी। नक्सलियों ने बालाघाट में बिठली के समीप उप निरीक्षक प्रकाश कतलम सहित 16 लोगों की जीप को एम्बु्रश लगाकर उडा दिया था। इसके बाद पुलिस की घेराबंदी में पांच नक्सली मारे गए थे।उस दौरान रिपोटि्रZंग के लिए हम भी मौके पर गए। तत्कालीन जिलाधिकारी एन.बेजेंद्र कुमार और पुलिस कप्तान मुकेश गुप्ता के साथ मौका ए वारदात पर पहुंचे। भारी संख्या में मौजूद सुरक्षा बल के बीच मारे गए नक्सलियों की तलाशी में पुलिस को एक डायरी भी मिली।बताते हैं उस डायरी में चौथ वसूली वालों की लिस्ट थी। इस फेहरिस्त में वहां पदस्थ पुलिस सहित अनेक सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के नाम थे। बहरहाल सच्चाई चाहे जो भी हो पर उस डायरी का खुलासा उसके बाद नहीं हो सका था। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में पदस्थ सरकारी कर्मचारियों को भी आतंक का भय सताता है, इसलिए दबे छुपे तौर पर ही सही वे नक्सलियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग करते हैें। वरना क्या कारण है कि विपुल धनराशि व्यय करने और इतने बडे बडे और फूल प्रूफ आपरेशन्स के बाद भी नक्सली समस्या जड से नहीं उखड पा रही है।डॉ.विनायक सेन कोई एरी गेरी नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त शिख्सयत है। उन्होंने छत्तीगढ राज्य में स्वास्थ्य सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। डॉ.सेन के सुझाव पर ही सरकार द्वारा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए ``मितानिन`` योजना आरंभ की थी।छत्तीसगढ सरकार को चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए डॉ.विनायक सेन को इलाज हेतु वेल्लूर जाने में मदद करे, एवं अगर वह किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो उसे तजकर अपनी दिशा तय करे, और अगर वाकई डॉ.विनायक सेन ने नक्सलवादियों से संबंध रखकर नक्सलवाद को हवा दी है, तो निश्चित तौर पर उन्हें सजा मिलनी चाहिए।

कमल नाथ को मिल सकता है ग्रामीण विकास!
वाणिज्य मंत्रालय नहीं रही उनकी पसंद
मानव संसाधन के लिए भी उछला नाम
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले को विश्व के मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले केंद्रीय कबीना मंत्री कमल नाथ को ग्रामीण विकास अथवा मानव संसाधन विभाग की जवाबदारी साैंपी जा सकती है। कांग्रेस का एक खेमा उन्हें वापस वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय दिलाने पर आमदा दिखाई पड रहा है।केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अब वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय छोडना चाह रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि उनकी पहली प्रथमिकता विदेश मंत्रालय थी, जो कृष्णा को मिल गया है। इसके उपरांत उनकी पसंद वन एवं पर्यावरण, शहरी विकास अथवा उर्जा मंत्रालय थी। उधर कांग्रेस की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय कमल नाथ को देने पर विचार हुआ था, किन्तु राजस्थान के सी.पी.जोशी भी इस मंत्रालय में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अपने एजेंडे और घोषणा पत्र के हिसाब से महत्वपूर्ण मंत्रालयों को बडे ही सोचविचार के उपरांत बांटने का उपक्रम करेगी। अजुZन सिंह को मंत्री न बनाए जाने के बाद रिक्त हुआ महत्वपूर्ण मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय भी कमल नाथ के खाते में जा सकता है।सूत्रों ने यह भी संकेत दिए कि कमल नाथ के लंबे संसदीय अनुभव एवं उनकी कुशल कार्यप्रणाली का पूरा पूरा दोहन पार्टी करना चाह रही है, यही कारण है कि उन्हें कोई एसा मंत्रालय सौंपा जाएगा जिसमें वे कुछ करिश्मा कर सकें। गौरतलब होगा कि सबसे पहले उन्हें 1991 में नरसिंहराव सरकार में वन एवं पर्यावरण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसका निर्वहन उन्होंने बेहतरीन तरीके से किया।इसके उपरांत वस्त्र मंत्री के रूप में भी उनका कार्यकाल स्विर्णम ही कहा जा सकता है। पिछले पांच सालों में वे देश के वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहे। इन पांच सालों में समूचे विश्व में भारत का जिस तरह डंका बजा उसके लिए काफी हद तक कमल नाथ की कार्य प्रणाली को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।ज्ञातव्य है कि कमल नाथ ने संजय गांधी की यूथ ब्रिगेड से अपरा राजनीतिक केरियर आरंभ किया और 1980 में मध्य प्रदेश की छिंदवाडा संसदीय सीट से उन्होंने अपना पहला चुनाव लडा। 14 करोड 17 लाख की घोषित संपत्ति के मालिक कमल नाथ अब तक छिंदवाडा से आठ चुनाव जीत चुके हैं। 2004 से 2009 तक के कार्यकाल में उनकी गिनती सर्वश्रेष्ठ आला मंत्रियों में की जाती थी।

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