शनिवार, 30 मई 2009

साप्ताहिक डायरी .................

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

लोग इंतजार में हैं कब निकालेंगे अजुZन तरकश से नया तीर
भले ही कांग्रेस के मैनेजरों ने कुंवर अजुZन सिंह को हाशिए में लाने के लिए एडी चोटी एक कर दी हो पर आज भी उनका भय सभी को बना हुआ है। पत्र और किताबों के माध्यम से तीर चलाने में निपुण अजुZन सिंह की दो किताबों ने सियासत में तूफान ला दिया था। समय समय पर उनके पत्र मीडिया की सुिर्खयां बने और राजनेताओं को कांग्रेस के इस चाणक्य से हार माननी पडी। अब लोगों को इंतजार है अजुZन सिंह की अगली किताब का, जिसके आने के बाद अनेक क्षत्रप नप सकते हैं। सियासी गलियारां में चल रही चर्चाओं के अनुसार अजुZन सिंह माकूल वक्त का इंतेजार कर रहे हैं। समय आने पर उनकी नई किताब या पत्र के चुनिंदा अंश मीडिया में ऑफ द रिकार्ड रिलीज कर दिए जाएंगे। फिर आएगा मजा खेल का। मौन साधे अजुZन सिंह शायद यही कह रहे होंगे - ``खेल तमाशा अभी खत्म बाकी है मेरे दोस्त।``

विभाग और रूतबे से असंतुष्ट लग रहे हैं महराज
मनमोहन सिंह मंत्रीमण्डल में दूसरी बार बतौर राज्यमंत्री शामिल हुए सिंघिया घराने के युवा महराज राज्य मंत्री बनाए जाने पर कुछ ज्यादा प्रसन्न नहीं दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी कमल नाथ के पास रहा वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय उन्हें दिया गया है। अपनी पीडा का इजहार तो वे नहीं कर सकते किन्तु उन्होंने इशारों ही इशारों में जता दिया कि उन्हें स्टेयरिंग वाली गाडी अथाZत केबनेट मंत्री का पद चाहिए था। शपथ ग्रहण समारोह के उपरांत उन्होंने कहा कि पद मायने नहीं रखता, काम बडा होता है। राजनैतिक गलियारों में ज्योतिरादित्य के इस वक्तव्य के मायने खोजे जा रहे हैं। वैसे पिछले बार महज दस माह के कार्यकाल में उन्होंने अपनी छवि काफी हद तक बनाने में सफलता हासिल की थी। इस बार उन्हें केबनेट नहीं तो राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार की उम्मीद थी।

पुनर्वास के लिए बेचेन भाजपाई
आम चुनावों में युवाओं के हाथों मुंह की खाने के बाद अब मध्य प्रदेश के कुछ भाजपा नेता पुनर्वास की तैयारी में जुट गए हैं, इसके लिए उन्होंने अपने अपने आकाओं को साधना भी आरंभ कर दिया है। वे देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली और महाराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर (संघ मुख्यालय) के सतत संपर्क में हैं। वरिष्ठ नेताओं के राज्य सभा के रास्ते जाने के मार्ग प्रशस्त होते देख अब हिम्मत कोठारी और गौरीशंकर शेजवार ने लाल बत्ती हथियाने जुगत लगानी आरंभ कर दी है। एकाध माह में मध्य प्रदेश में निगम मण्डलों के अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, सो इस पर काबिज होकर सुविधा के आदी हो चुके नेता अपने अपने पुनर्वास के मार्ग प्रशस्त करने में जुट गए हैं।

पिता के नक्शे कदम पर अरूण यादव
दििग्वजय सिंह मंत्रीमण्डल में उपमुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव के पुत्र अरूण यादव अपने पिता के ही नक्शे कदम पर चलते दिख रहे हैं। 36 वषीZय यादव दूसरी मर्तबा सांसद चुने गए हैं। राज्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा कि वे गुटबाजी नहीं वरन काम पर ध्यान देंगे। सियासी गलियारों में इस बात की खासी चर्चा है। कहा जा रहा है कि दूसरी बार सांसद बने अरूण यादव का राजनैतिक जीवन अभी काफी कम है, फिर वे किस बिना पर गुटबाजी की बात कर रहे हैं। कहीं अपने पिता के गुट को प्रश्रय देकर वे गुटबाजी को बढावा तो नहीं देंगे। वैसे भी युवा सांसद अरूण यादव का अभी गुट तैयार ही नहीं हुआ तो गुटबाजी का प्रश्न ही कहां से पैदा होता है। गौरतलब होगा कि उनके पिता सुभाष यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे थे, एवं आलाकमान ने आनन फानन उन्हें चलता कर केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को उनके स्थान पर बिठा दिया था।

इस तरह चलता किए गए हंसराज
मध्य प्रदेश से राज्यसभा संसद रहे हंसराज भारद्वाज केंद्र में कानून मंत्री जैसे महात्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे। यह अलहदा बात है कि 2003 में उमाश्री भारती के नेतृत्व में थंपिंग मेजारटी में आई भाजपा के उपरांत उन्होंने बरास्ता हरियाणा राज्यसभा से आमद दी। हंसराज की मिनिस्ट्री उनके बडबोलेपन के चलते ही गई। सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि सीबीआई द्वारा क्वोत्रोिच्च को क्लीन चिट देने वाली खबर को दस जनपथ ने चुनाव तक दबाए रखने के साफ निर्देश दिए थे। यह खबर पंख लगाकर हंसराज भारद्वाज के घर से फिजां में तैरने लगी थी, जिसके चलते कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पडा। हर मामले में आक्रमक रही कांग्रेस को इस मामले में रक्षात्मक मुद्रा अपनाना पडा। सूत्र यह भी कहते हैं कि इस नुकसान को कांग्रेस के एक घडे ने बडा चढा कर कांग्रेस की राजमाता के समक्ष पेश किया था, फिर क्या था, नप गए भारद्वाज।

राजा ने बचाई आदिवासियों की लाज
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह की हठधर्मिता की वजह से मध्य प्रदेश में आदिवासियों की लाज बच गई। मध्य प्रदेश कोटे से बतौर केबनेट मंत्री सरकार में शामिल हुए कांतिलाल भूरिया का नाम अंतिम समय में राजा की जिद की वजह से जोडा गया। बताते हैं कि प्रदेश के क्षत्रपों ने अपने अपने प्यादों को लाल बत्ती से नवाजने की गरज से भूरिया को सुपरसीट करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। वैसे प्रदेश से सज्जन सिंह वर्मा, प्रेम चंद गुड्डू, मीनाक्षी नटराजन जैसे नवोदित सांसदों के नाम लाल बत्ती के लिए सामने आए थे, किन्तु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सबसे ताकतवर महासचिव दििग्वजय सिंह के वीटो के चलते अंतिम समय में भूरिया को स्टेयरिंग वाली गाडी नसीब हो गई।

रमन मुख्यमंत्री होंगे या सीईओ
विधानसभा मेें दुबारा परचम लहराने और लोकसभा में सूबे में आशातीत सफलता दिलाने के बाद अब रमन सिंह कुछ बदले स्वरूप में नजर आने वाले हैं। अब वे कार्पोरेट सेक्टर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) की भूमिका में नजर आएंगे। इसकी बाकायदा तैयारियां भी उन्होंने कर ली हैं। कहते हैं आने वाले समय में वे बिना किसी मध्यस्थ (मंत्री) के विभागीय प्रमुख सचिवों और सचिवों से रू ब रू होंगे। मंत्रियों की परवाह किए बिना ही अचानक ताकतवर होकर उभरे रमन सिंह पिछले पांच सालों का विजन एवं आने वाले समय में विभाग की कार्यप्रणाली की रूपरेखा की जानकारी लेने वाले हैं। मंत्रियों की परवाह वे करें भी क्यों, आखिर उन्होंने अपनी रणनीति के हिसाब से अपने आका भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह को गाजियाबाद से चुनाव जिताने सारी ताकत जो झोंक दी थी।

मिल ही गया पीएम को सुरक्षित आशियाना आखिर
अब तक एक भी चुनाव नहीं जीते नेहरू गांधी परिवार से इतर दूसरी बार प्रधानमंत्री बने डॉ.मनमोहन सिंह को सुरक्षित आशियाना मिल ही गया। राज्य सभा के रास्ते प्रधानमंत्री बनने का कलंक छुटाने के लिए कांग्रेस द्वारा एम.एम.सिंह के लिए उपयुक्त लोकसभा सीट की तलाश की जा रही थी। कहते हैं अब वे हरियाणा से अपना भाग्य आजमाएंगे। रोहतक सीट से साढे चार लाख वोटों से ज्यादा से जीते हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए यह सीट खाली कर सकते हैं।

अभिमन्यू चक्रव्यूह में!
राजनैतिक तोर पर अस्ताचल की ओर अग्रसर कुंवर अजुZन सिंह का साथ अब उनके पुराने विश्वस्तों ने छोडना आरंभ कर दिया है। महाभारत काल में अर्जन पुत्र अभिमन्यू चक्रव्यूह में फंसे थे। हाल ही में उनके पुत्र एवं मध्य प्रदेश के पूर्व केबनेट मंत्री अजय सिंह राहुल ने भी कमल नाथ के दरबार में अपने अस्तित्व की संभावनाएं तलाशना आरंभ कर दिया है। कहा जा रहा है कि पूर्व में मध्य प्रदेश की राजनीति की दो धुरी बन चुके कमल नाथ और अजुZन सिंह के बीच शीतयुद्ध के जनक राहुल सिंह ही थे, जो अब अपने उपर वरद हस्त की संभावनाएं टटोल रहे हैं। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष रहे अजय सिंह ने कमल नाथ से चर्चा हेतु समय चाहा है। राजनैतिक गलियारों में इस बात की प्रतिक्षा हो रही है कि क्या कमल नाथ उन्हें समय देते हैं? और अगर देते हैं तो कितना?

मीनाक्षी की प्राथमिकता
मध्य प्रदेश से चुने गए 29 सांसदों ने अपनी प्राथमिकताएं तय की हों या नहीं, किन्तु मंदसौर से चुनी गईं राहुल ब्रिगेड की सदस्य और एआईसीसी सेक्रेटरी मीनाक्षी नटराजन ने अपनी प्रीयारिटी फिक्स कर ली है। इंदौर की देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एमएससी (बायोकेमिस्ट्री) गोल्ड मेडलिस्ट, एवं विधि स्नातक मीनाक्षी की पहली प्रथमिकता उनके संसदीय क्षेत्र में जल संकट दूर करना है। मीनाक्षी के करीबी सूत्रों का कहना है कि जल संरक्षण की दिशा में काम करने वाले लोगों से मिलकर मीनाक्षी अपने संसदीय क्षेत्र में इसका प्रयोग अवश्य करना चाहेंगी। इसके अलावा मंदसौर और नीमच को रेल से जोडना तथा यहां का औद्योगिक विकास उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। कहते हैं, पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड जाते हैं। सांसद बनते ही मीनाक्षी ने जिस संजीदगी के साथ प्राथमिकताएं निर्धारित की हैं, उसे देखकर लगता है अब उनके संसदीय क्षेत्र में सुराज आने वाला है।

राज्यसभा से जाने वाले पलटकर नहीं आते
मध्य प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस राज्य से अगर किसी बाहरी नेता को बरास्ता राज्यसभा संसदीय सौंध तक पहुंचाया जाता है तो वह पलटकर प्रदेश की तरफ नहीं देखता। इसके जीते जागते उदहारण हंसराज भारद्वाज और अबू आजमी हैं। दोनों के संसद में जाने की सीढी बना था मध्य प्रदेश और दोनों ही नेताओं ने कार्यकाल के दौरान अथवा पूरा होने के उपरांत मध्य प्रदेश की ओर रूख करना मुनासिब नहीं समझा। सियासी गलियारों में जो सूबा दाना पानी दे उसे सहेजकर रखने की परंपरा बहुत पुरानी है, किन्तु मध्य प्रदेश के बाहर के नेता के राज्य सभा से जाने के मसले में यह टूटी ही है। विदिशा से लोकसभा में पहुंची सुषमा स्वराज भी मध्य प्रदेश के रास्ते राज्यसभा में पहुंची थीं। अब देखना यह है कि वे अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा और मध्य प्रदेश को कितना पोस पातीं हैं।

पुच्छल तारा
कमल नाथ को इस बार वाणिज्य और उद्योग के बजाए भूतल परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है। नरसिंहराव सरकार में जब वे वन एवं पर्यावरण मंत्री थे, तब प्रदेश को उन्होंने काफी कुछ दिया था। कपडा मंत्री बनने के बाद उन्होंने छिंदवाडा के बुनकरों के लिए उन्नति के मार्ग प्रशस्त किए थे। पिछली बार वाणिज्य उद्योग मंत्री रहते वे प्रदेश को कुछ नहीं दे पाए। कहा जा रहा है कि अब भूतल परिवहन मंत्री के रूप में प्रदेश को कुछ मिले न मिले पर उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा की खस्ताहाल सडकें जरूर सुधर जाएंगी।

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