शुक्रवार, 29 मई 2009

.... मतलब मध्य प्रदेश में चलेगा विकास रथ!
(लिमटी खरे)

कांग्रेस सुप्रीमो ने पत्ते फेंटे और ताश की गड्डी डॉ.एम.एम.सिंह को दे दी। मनमोहन ने अपने मनमोहक अंदाज में बिसात बिछाई और अपनी सेना खडी कर दी। इसमें मध्य प्रदेश में पहले के मानिंद ही दो कबीना तो दो राज्य मंत्री शामिल किए गए। इनमें से दो युवा हैं। विभागों के बटवारे में प्रदेश के खाते में कुछ खास नहीं आ सका है।
पिछले पांच सालों से केंद्र और राज्य में सामंजस्य के अभाव के चलते मध्य प्रदेश का विकास रथ एक इंच भी सरक नहीं सका है। दो परस्पर विरोधी दलों की सरकार होने के कारण प्रदेश और केंद्र के बीच आरोप प्रत्यारोपों का कभी न थमने वाला सिलसिला आज भी अनवरत जारी है।
एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के साथ जनप्रतिनिधि यह भूल जाते हैं कि जिस जनता ने उन पर विश्वास कर उन्हें जनादेश दिया है, वे उसे ही मुगालते में रख रहे हैं। केंद्र की किसी योजना के लिए क्या प्रदेश ने इंकार किया है? और क्या प्रदेश की किसी वाजिब मांग को केंद्र ने ठुकराया है? अगर एसा है तो जनप्रतिनिधियों में इतना माद्दा होना चाहिए कि वे उसे जनता के सामने लाएं।
वैसे तो मध्य प्रदेश ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने के लिए भोपाल का लाल स्व.शंकर दयाल शर्मा दिया है। इतना ही नहीं तीन बार प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी भले ही लखनउ से लोकसभा जीतकर प्रधानमंत्री बने हों, पर उनकी कर्मभूमि मध्य प्रदेश की ग्वालियर चंबल भूमि ही रही है।
पिछली सरकार में शामिल विन्ध्य के क्षत्रप कुंवर अजुZन सिंह का सूरज अब अस्ताचल की ओर जाता दिखाई दे रहा है। लंबे समय से प्रदेश से दूरी बनाने के कारण उनके समर्थकों में भी कमी आई है। उनके समर्थकों ने या तो पाला बदल लिया है या फिर अपनी निष्ठा का इजहार अन्य उर्जावान नेताओं के प्रति कर दिया है। अजुZन पुत्र राहुल सिंह भी कुछ करामात नहीं दिखा सके, जिसके चलते सिंह खेमे में अब गिनती के ही लोग बचे हैं। पुत्री मोह एवं अन्य कारणों के चलते उन्हें सरकार में शामिल नहीं किया गया है। अगर उन्हें स्थान दिया जाता तो निश्चित तौर पर उन्हें भारी भरकम विभाग ही मिलता।
पहले गठन में स्थान पाने वाले सतपुडा के क्षत्रप कमल नाथ को पिछली बार की अपेक्षा कुछ कमजोर मंत्रालय सौंपा गया है। सबसे पहले उन्हें वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया था, इसके बार नरसिंहराव से बिगडे रिश्तों के चलते उन्हें बाद में कपडा मंत्रालय दे दिया गया था। पिछली मर्तबा वे वाणिज्य और उद्योग महत्वपूर्ण मंत्रालय में काबिज थे।
वैसे कमल नाथ को मिला भूतल परिवहन मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण भी है, यद्यपि इससे जहाजरानी मंत्रालय को प्रथक कर दिया गया है फिर भी अनेक मायनों में यह महत्वूपर्ण कहा जा सकता है। एनडीए के शासनकाल में आरंभ की गई स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण एवं पूर्व पश्चिम गलियारे का काम अभी बाकी है। कमल नाथ की पहली प्राथमिकता निश्चित रूप से मध्य प्रदेश होनी चाहिए, एवं सडकों के विकास की दिशा में उनके पास कर दिखाने को बहुत कुछ है। वैसे पिछली बार वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए उन्होंने प्रदेश को कुछ खास उपलब्धि नहीं दी है। माना जा रहा था कि कमल नाथ जैसे आठ बार चुनाव जीतने वाले संसद सदस्य को भारी भरकम विभाग दिया जाएगा, वस्तुत: एसा हुआ नहीं।
रतलाम झाबुआ से पांचवी बार विजयश्री का परचम लहराने वाले आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को अंतिम समय में मंत्रीमण्डल में स्थान मिल सका। उन्हें आदिवासी मामलों का मंत्री बनाया गया है। उम्मीद तो यह की जा रही थी कि खालिस आदिवासी नेता को अच्छा विभाग मिलेगा। पर उन्हें केबनेट मंत्री बनाकर ही लालीपाप पकडा दिया गया है।
सिंधिया घराने के चिराग ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग इस वक्त युवाओं में सबसे ज्यादा है। आज उनका युवाओं के बीच क्रेज वही है जो अस्सी के दशक में कुंवर अजुZन सिंह और नब्बे के दशक में कमल नाथ का हुआ करता था। पिछली बार दूरसंचार राज्यमंत्री रहे ज्योतिरादित्य को इस बार वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया है। तीसरा लोकसभा चुनाव जीतने वाले ज्योतिरादित्य के बारे में कहा जा रहा था कि इस बार उन्हें स्टयरिंग वाली कार (केबनेट मंत्री,, क्योंकि राज्य मंत्री वैसे भी केबनेट मंत्री के अधीन ही काम करता है) मिलेगी। इसके अलावा पूर्व प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुभाष यादव के पुत्र अरूण यादव को युवा मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया है।
आजादी से अब तक विकास के पथ खोजने वाले मध्य प्रदेश के विकसित होने के मार्ग प्रशस्त नहीं हो सके हैं। विपुल वन एवं खनिज संपदा होने के बावजूद भी मध्य प्रदेश जहां का तहां खडा हुआ है। मण्डला, डिंडोरी, छिंदवाडा, झाबुआ, धार आदि आदिवासी बाहुल्य इलाकों में आदिवासियों की हालत आज भी दयनीय ही है।
कांग्रेस नीत केंद्र सरकार में प्रदेश कोटे से बने मंत्रियों और सूबे में काबिज भाजपा की सरकार को चाहिए कि आपस के राजनैतिक अखाडे की नूरा कुश्ती बंद कर अपनी समस्त उर्जा प्रदेश के विकास में लगाएं, अन्यथा भविष्य में युवा होने वाली पीढी शायद ही इन राजनेताओं को माफ कर पाए।





भाजपा नेताओं पर से उठा भरोसा संघ का!
भाजपा को सीधे नियंत्रण में लेने की तैयारी
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। संक्रमण काल से गुजर रही भाजपा की राजनीतिक स्वतंत्रता खतरे में पडती दिखाई दे रही है। पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में आम चुनावों में औंघे मुंह गिरी भाजपा पर अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगाम कसने की तैयारी कर रहा है।
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि वह अपने इस आनुषांगिक संगठन को सीधे अपने नियंत्रण में लेने पर मंथन कर रहा है। गौरतलब होगा कि वर्तमान में भाजपा को छोड़ कर संघ के बाकी सभी आनुषांगिक संगठनों पर संघ का सीधा नियंत्रण है। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेतृत्व अपने तमाम फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है, जिनकी जानकारी पार्टी में संघ के प्रतिनिधि के रूप में तैनात महासचिव (संगठन) के जरिए संघ पदाधिकारियों को दी जाती है।
संघ के नियंत्रण में होगें भाजपाध्यक्ष
सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष के ऊपर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होशबोले को तैनात करने की तैयारी चल रही है। इसके पीछे मकसद यह है कि भाजपा में संघ पृष्ठभूमि से इतर लोगों की तैनाती न हो सके। साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच होने वाले झगड़ों और विवादों का निपटारा सख्ती से किया जा सके। प्राप्त जानकारी के मुताबिक मई और जून में हर वर्ष देश भर में संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन होता है जिनमें संघ के तमाम वरिष्ठ पदाधिकारी स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देते हैं।
कडा हुआ संघ का रूख
लेकिन भाजपा की हार की वजह से इस बार संघ के ज्यादातर वरिष्ठ पदाधिकारी अपना अधिकतर समय दिल्ली में मंथन में बिता रहे हैं। अगस्त में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक होनी है जिसमें पूरे साल की कार्ययोजना तैयार की जाएगी। कार्यकारिणी की बैठक में ही भाजपा पर सीधे नियंत्रण का फैसला भी हो सकता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस बात की जानकारी है, लिहाजा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पूरी तरह से चुुप्पी साध ली है। माना जा रहा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा नेतृत्व को दो-टूक कहा है कि अगले फैसले तक वे सिर्फ पार्टी के रुटीन कामकाज से जुड़े फैसले ही करें। कोई भी बड़ा फैसला संघ की हरी झंडी मिलने अथाZत अगस्त के बाद ही लें।



लोकसभा उपाध्यक्ष पद जाएगा मध्य प्रदेश के खाते में
भाजपा के अंदरखाने में तूफान के पहले की खामोशी!
नेता प्रतिपक्ष, लोस में उपनेता, रास ने विपक्ष के नेता के लिए मचा घमासान
वर्चस्व के लिए मची गलाकाट स्पर्धा
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। हार के कारणों की समीक्षा कर रही भाजपा भले ही उपर से शांत नजर आ रही हो पर अंदर ही अंदर खिचडी जबर्दस्त तरीके से खदबदाने लगी है। भाजपा में अब नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा मे उपनेता और राज्य सभा में विपक्ष के नेता के लिए अब शह और मात का खेल आरंभ हो चुका है।
लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर भाजपा के अंदर खाने में उबल रहा लावा किसी भी क्षण फट सकता है। हार के सदमें में भाजपा के दिग्गज नेता वैसे तो सीधी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं किन्तु अंदर ही अंदर उनके मन में पसरा असंतोष अब साफ दिखने लगा है।
इस पद के लिए राजग की ओर से भाजपा की पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के अलावा मध्य प्रदेश में विदिशा से जीतीं सुषमा स्वराज, इंदौर की सुमित्रा महाजन और भागलपुर के सांसद शहनवाज हुसैन के नामों की चर्चा हो रही है। पार्टी के अंदर ही अंदर राजनाथ के बजाए सुषमा स्वाराज को इस पद के लिए ज्यादा काबिल माना जा रहा है, क्योंकि वे अपेक्षाकृत ज्यादा युवा और पिछली बार राज्यसभा में उपनेता का दायित्व बखूबी निभा चुकी हैं।
इस पद के लिए मारामारी इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस बार लोकसभा में भाजपा के अनेक दिग्गज जसवंत सिंह, मुरलीमनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह आदि राज्य सभा के बजाए लोकसभा सदस्य हैं, और एक साथ ये सारे दिग्गज एक ही बैंच पर बैठे नजर आएंगे।
उधर राज्यसभा में भी पार्टी को अपना नेता चुनना है। इस बार राज्य सभा में दिग्गजों का टोटा साफ दिख रहा है। पिछली बार रास में नेता जसवंत सिंह और उपनेता सुषमा स्वराज अब अगले रास्ते यानी लोकसभा से संसद में पहुंच चुके हैं। राज्यसभा में वेंकैया नायडू, शांता कुमार, अरूण जेतली, नजमा हेपतुल्ला, अहलूवालिया, अरूण शोरी ही वरिष्ठ बचे हैं। इसलिए पार्टी के पास विकल्प भी कम ही हैं।
पार्टी का एक घडा चाहता है कि अरूण जेतली यह पद संभालें, किन्तु अरूण जेतली इसके लिए तैयार नहीं बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे अपनी जमी जमाई वकालत छोडने को तैयार नहीं हैं। लाभ के पद के चलते उन्हें वकालात को तिलांजली देनी होगी। माना जा रहा है कि रास में विपक्ष के नेता के रूप में वेंकैया नायडू के नाम पर अंतिम मुहर लगाई जा सकती है। इसके अलावा उपनेता के लिए एस.एस.अहलूवालिया का नाम फायनल किया जा सकता
है।

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