सोमवार, 25 मई 2009

क्यों खौफजदा हैं जनता के चुने गए नुमाईंदे

(लिमटी खरे)

जनता के द्वारा, जनता के लिए, आम जनता की सरकार के जनादेश प्राप्त नुमाईंदे जब भी उसी जनता के बीच जाते हैं तो भारी भरकम सुरक्षा घेरे में! आखिर यह कहां का न्याय हुआ। जनता ने जिन्हें मत देकर अपने सर माथे पर बिठाया, अपने भविष्य के लिए उन्हें चुना, और वे ही चुने हुए जनप्रतिनिधि जनता से ही खौफ खा रहे हैं।हाल ही में गृह मंत्रालय के आला अधिकारियों ने कथित तौर पर व्हीव्हीआईपी और व्हीआईपी लोगों की सुरक्षा में कटौती की सिफारिश की है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। अमूमन देखा गया है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी सुरक्षा को प्रतिष्ठा का प्रतीक बना लिया है। ब्लेक केट, वाय एवं जेड श्रेणी की सुरक्षा का लाभ चाहे जो उठा रहा है। जिन सूबों के निजामों को यह मुहैया नहीं, वहां की सरकारों ने काले कपडों में राज्य पुलिस के अमले को ही अपनी सुरक्षा में लगा रखा है। कुछ नेताओं ने तो निजी सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से कथित तौर पर ``ब्लेक केट`` सुरक्षा अपना रखी है।कितने आश्चर्य की बात है कि देश पर आतंकवादी, अलगाववादी, नक्सलवादी हमलों पर हमले करते जा रहे हैं, और जनता के चुने हुए नुमाईंदे रियाया की हिफ़ाजत करने के बजाए अपनी सुरक्षा को चाक चौबंद करने पर आमदा हैं। नेताओं को एक्स, वाय, जे़ड और जे़ड प्लस श्रेणी की सुविधाओं की दरकार आखिर क्यों है? क्या वे अपने लोगों से इस कदर खौफ़जदा हैं कि उन्हें सुरक्षा की जरूरत है? या फिर स्टेटस सिंबाल बन चुकी सुरक्षा की श्रेणियों को अपनाकर नेता अपना रूआब गांठना चाहते हैं।आकडों पर अगर नजर डाली जाए तो हम भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे। देश में जहां एक ओर भुखमरी, गरीबी, कमर तोड मंहगाई बेरोजगारी अपना नंगा नाच दिखा रही है, वहीं दूसरी ओर हम अपने अतिविशिष्ट (व्हीव्हीआईपी) और विशिष्ट (व्हीआईपी) लोगों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों फूंक देते हैं। शायद ही दुनिया का कोई अमीर या गरीब देश एसा हो जो सत्ताधारियों को इतनी भारी भरकम सुरक्षा प्रदान करता हो। हिन्दुस्तान ही शायद इकलौता देश होगा जहां सत्ताधारियों के बच्चों और नाती पोतों तक को जेड प्लस केटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई हो।क्या आम जनता की गाढ़ी कमाई (टेक्स) से वसूली रकम का यह आपराधिक दुरूपयोग नहीं है। जब इस तरह के जेड प्लस सुरक्षा कवच में कोई बच्चा नर्सरी स्कूल जाएगा तो उसकी सुरक्षा में आठ कारों का काफिला और भारी संख्या में सुरक्षा बल का मौजूद रहना, सुरक्षा तंत्र का भद्दा मजाक नहीं है?दिल्ली उच्च न्यायालय में जमा किए गए आंकड़ों से साफ हो जाता है कि भारत में व्हीआईपी सुरक्षा पर कुल 250 करोड़ रूपए सालाना की लागत आती है, वहीं बाकी बची 125 करोड़ की जनता की जान माल के लिए महज 200 करोड़ रूपए ही मुहैया हो पाते हैं। यह कहां का न्याय कहा जाएगा?देश में जेड़ सुरक्षा श्रेणी के 70, वाई के 245 एवं एक्स के 85 नेता हैं। आंकड़े चौकाने वाले अवश्य हैं किन्तु इनमें सत्यता है कि देश के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और नेहरू गांधी परिवार की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से गठित की गई एसपीजी का चालू माली साल का बजट 180 करोड़ रूपए है। इसके अलावा एनएसजी का सालाना बजट 160 करोड़ रूपए सालाना है।वहीं खुफिया एजेंसियों की अगर मानी जाए तो देश के 400 मेें से 125 नेताओं को सुरक्षा की आवश्यक्ता नहीं है, तथा 135 नेताओं की मौजूदा श्रेणी को कम किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार एक नेता को मुहैया सुरक्षा में औसतन तीस हजार रूपए मासिक का खर्च आता है।पूरे परिदृश्य पर अगर नज़र डाली जाए तो देश के लगभग 13 हजार से ज्यादा व्हीआईपी की सुरक्षा में तैनात 46 हजार सुरक्षाकर्मियों में कमी कर राज्य स्तर पर एनएसजी कमांडो तैनात किए जा सकते हैं, जो मुंबई हमले जैसी घटनाअों में त्वरित कदम उठा सकते हैं।सुरक्षा पाने वालों की फेहरिस्त में केंद्रीय मंत्रियों के अलावा, सांसद, पत्रकार, सेवा निवृत प्रशासनिक अधिकारी भी आते हैं, साफ है कि रसूख वाला ही भयाक्रांत है। क्या यह समय नहीं है जब विशिष्ट अथवा असुरक्षित व्यक्ति को नए सिरे से परिभाषित किया जाए। अगर रसूख वालों को ही जान माल का खतरा है, तो देश के बाकी 125 करोड़ लोगों में शामिल गरीब, मजदूर, किसान आखिर किसकी जमानत पर अपनी जान माल सुरक्षित मानें?दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुरक्षा संबंधी सवालों पर दो टूक टिप्पणी करते हुए कहा था कि नेता कोई राष्ट्रीय संपत्ति नहीं हैं, जो कि उन्हें संरक्षित किया जाए। वहीं सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं के अलावा संरक्षित ``राष्ट्र रत्नों`` में कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी एवं उनका पूरा परिवार (पुत्री प्रियंका के विवाह के बाद उनके परिवार को भी), राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी, प्रकाश सिंह बादल एवं उनका पूरा परिवार, अमर सिंह, राम विलास पासवान, मायावती, नरेंद्र मोदी, जय ललिता, ई.अहमद, शरद यादव, एच.डी.देवगोड़ा, मुरली मनोहर जोशी, रामेश्वर ठाकुर, सज्जन कुमार, वृजभूषण शरण, आर.एल.भाटिया, प्रमोद तिवारी, बी.एल.जोशी आदि शामिल हैं। पूव लोकसभाध्यक्ष शिवराज पाटिल और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह भी इसी फेहरिस्त का ही एक अंग है, जिन पर गाज गिरने की संभावना है।स्टेटस सिंबाल बन चुकी सुरक्षा श्रेणियों में वरिष्ठ को तजकर पिछली मर्तबा गृहमंत्री बने चिदम्बरम ने एक नज़ीर पेश की थी। चिदम्बरम को प्राप्त वाई के स्थान पर जेड़ श्रेणी की सुरक्षा की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बेनर्जी, सीपीआई के ए.बी.वर्धन, सीपीएम के प्रकाश करात आदि ने भी सुरक्षा को स्टेटस सिंबाल नहीं बनाया है।पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने तो मानो हदें पार ही कर दी हैं। पंजाब की ढाई करोड़ की जनता की सुरक्षा में कुल 90 हजार जवान तैनात हैं, जबकि सूबे के निजाम और उनके परिवार की रखवाली के लिए 963 जवानों को पाबंद किया गया है। उधर प्रधानमंत्री की कुर्सी को मछली की आंख की तरह देखने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री जेड प्लस और एनएसजी से संतुष्ट नहीं हैं, वे अपने लिए एसपीजी की सुरक्षा मुहैया कराने की मांग कर रही हैं।देश के इन नेताओं को पश्चिम बंगाल के नेताओं से वाकई सबक लेने की जरूरत है। यहां मुख्यंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, विधानसभा अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हमीद और वित्त मंत्री अमीम दासगुप्ता के अलावा किसी अन्य मंत्री को कार केट अथाZत पायलट एवं टेल कार उपलब्ध नहीं है। यहां मंत्रियों के साथ महज एक सुरक्षा कर्मी ही चलता है। पश्चिम बंगाल में विधायक हो या सांसद सभी लोकल ट्रेन या बस में सफर करते दिख ही जाते हैं।देर से ही सही केंद्रीय गृह मंत्रालय के आला अधिकारियों की नींद खुली है। देखना यह है कि इन सिफारिशों पर अमली जामा पहनाया जाता है या फिर स्टेटस सिंबाल को बरकरार रखते हुए इन्हें ठंडे बस्ते के हवाले कर एक बार फिर आम भारतीय को असुरक्षित होने का एहसास दुबारा करवाया जाता है।
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केवल दो ही मंत्री होंगे मध्य प्रदेश से
छत्तीसगढ़ के साथ नहीं हो सकेगा इंसाफ
चार जीते तब छ: मंत्री, बारह में केवल दो!
क्षेत्रीय संतुलन नहीं बना पाएंगे मनमोहन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। 29 में से चार से बढ़कर बारह का आंकड़ा छूने के बाद भी मध्य प्रदेश को महज दो ही मंत्रियों से संतोष करना होगा। मंगलवार को होने वाले विस्तार में कमलनाथ के अलावा युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया को शामिल किया जा रहा है।गौरतलब होगा कि वर्ष 2004 में जब प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक था, उस समय महज चार सांसद ही लोकसभा की दहलीज पर पहुंचे थे तब कमल नाथ एवं कांतिलाल भूरिया को लोकसभा सदस्य तथा हंसराज भारद्वाज, अजुZन सिंह एवं सुरेश पचौरी को राज्य सभा के चलते मंत्री बनाया गया था। इसके उपरांत ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लाल बत्ती से नवाजा गया था।आश्चर्य की ही बात है कि हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में जबकि कांग्रेस ने पिछली बार की तुलना में तीन गुना ज्यादा सीटें लाईं गईं हैं, तब सरकार के गठन के दौरान महत कमल नाथ को ही मंत्री बनाया गया है। पहले विस्तार में मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही मंत्रीपद से नवाजा जा सकता है।उधर दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ का खाता इस बार भी खुलता नहीं दिख रहा है। पिछली मर्तबा अजीत जोगी छग के अकेले कांग्रेस सांसद थे जो बरास्ता लोकसभा गए थे, इस बार चरण दास महंत इकलौते सांसद हैं। कांग्रेस की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अजीत जोगी की हट के चलते इस बार चरण दास महंत को लाल बत्ती मिलना मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है।पिछली बार सरकार में शामिल कुंवर अजुZन सिंह को अस्वस्थ्यता के चलते सरकार में शामिल नहीं किया गया है। सूत्र बताते हैं कि अजुZन सिंह के बहाने कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने अनेक संदेश दे दिए हैं। इसके अलावा आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया का नंबर भी पहले विस्तार में नहीं लग सकेगा।कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज पहले मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद थे, जो बाद में हरियाणा से राज्य सभा में गए। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी की राज्यसभा की सदस्यता पिछले साल ही समाप्त हो गई थी, एवं इस बार उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लडा। माना जा रहा है कि सुरेश पचौरी आने वाले समय में किसी अन्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बनने के उपरांत इसके बाद होने वाले विस्तार में मंत्री पद प्राप्त करेंगे।

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