रविवार, 24 मई 2009

0 आलेख 24 मई 2009
कटीली राह है मन मोहन की

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बोथरे आरोपों प्रत्यारोपों, पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी की अदूरदर्शिता के चलते एक बार फिर डॉक्टर मनमोहन सिंह के रूप में नए वजीरे आजम ने पदभार ग्रहण कर लिया है। अगर देखा जाए तो यह कांग्रेस की जीत नहीं वरन भाजपा और एल.के.आडवाणी की हार है।मनमोहन सिंह सरकार में नए मंत्रियों का चयन बडी ही बारीकी से किया गया है। सरकार को अब देश चलाना बहुत ज्यादा आसान नहीं होगा। आने वाले समय में मनमोहन सरकार के सामने शूल ही शूल नजर आ रहे हैं। इन चुनौतियों से कांग्रेस कैसे निपटेगी यह यक्ष प्रश्न आज भी निरूत्तर ही है।मनमोहन सिंह ने 77 वषीZय एस.एम.कृष्णा को विदेश मंत्रालय की महती जवाबदारी सौंपी है। विदेशों में पढे कृष्णा के सामने चुनौतियों का सागर खड़ा हुआ है। उनके सामने सबसे पहली चुनौती श्रीलंका में विस्थापितों के लिए राहत पहुंचाना होगा। इसके लिए उन्हें कूटनीतिक तरीके से दबाव बनाना होगा। इसके अलावा पाकिस्तान, बंग्ला देश के रास्ते आने वाले आंतकवाद को रोकने विश्वभर में भारत के पक्ष में माहौल तैयार करना होगा। नेपाल भी कृष्णा के लिए चुनौति से कम नहीं है। नेपाल में स्थायित्व लाने उन्हें कमर कसनी होगी। साथ ही दुनिया के चौधरी अमेरिका और दूसरी महाशक्ति बन चुके चीन के साथ भी सामंजस्य स्थापित करना उनकी प्रथमिकता होनी चाहिए।दस से अधिक बार विभिन्न विभागों के मंत्री रह चुके 74 वषीZय प्रणव मुखर्जी को मनमोहन सिंह सरकार में वित्त मंत्रालय सौंपा गया है। वैश्विक अर्थिक मंदी से भारत अछूता नहीं है। इस नजरिए से प्रणव के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। मंदी की मार झेल रहे घरेलू बाजार और निर्यात को एक और अधिक बेहतर आर्थिक पैकेज की दरकार है। इसके अलावा बीमा बिल भी प्रणव के लिए गले की फांस बन सकता है।आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद आदि की जद में फंसे हिन्दुस्तान में पी.चिदंबरम के लिए गृह मंत्री का ताज निश्चित रूप से कांटों भरा ही कहा जा सकता है। इन सभी मोर्चों पर भारत को डटकर मुकाबला करने के लिए ठोस रणनीति की जरूरत है, जिसका अभाव पिछली मर्तबा साफ दिखा था, तभी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकी हमले को अंजाम दिया जा सका था। अगले साल होने वाले कामनवेल्थ गेम, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सुरक्षा को लेकर तालमेल चिदम्बरम के सामने सबसे बडी चुनौति प्रतीत हो रही है। 64 वषीZय चिदम्बरम को नेशनल इंटेलीजेंस गि्रड एवं इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी डाटाबेस की स्थापना को प्राथमिकता पर संपादित करना होगा। बंग्लादेशी घुसपेठियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में लगाई जा रही सेंध को रोकना भी उनके सामने एक चुनौती है।मंत्रीमण्डल में अपेक्षाकृत युवा मंत्री ममता बेनर्जी को रेल विभाग का दायित्व सौंपा गया है। स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव ने भले ही भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया हो पर उस जादू को बरकरार रखना आसान नहीं होगा। ममता के सामने जो चुनौतियां हैं उनमें प्रमुख रूप से काश्मीर योजना को लागू करना, डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर के अलावा यात्रियों के जानमाल की सुरक्षा प्रमुख हैं। आए दिन लुटने वाली भारतीय रेल को सुरक्षित बनाने उन्हें ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। इसके अलावा बदतर होती यात्री सुविधाओं और गुणवत्ता में सुधार लाना बहुत जरूरी प्रतीत हो रहा है।कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के सबसे प्रिय माने जाने वाले रक्षा मंत्री ए.के.अंटोनी के सामने असुरक्षित सीमाएं सबसे बडी चुनौती के रूप में दिख रही हैं। 69 वषीZय अंटोनी को डीआरडीओ का पुर्नगठन, सेनाओं में तालमेल, हथियार खरीदी में पारदर्शिता, के अलावा उत्तरी पर्वतीय और शेष समुद्री सीमाओं को सील करना प्राथमिकता होना चाहिए।कुल मिलाकर मन मोहन सिंह सरकार में जिन छ: मंत्रियोंें को विभाग सौंपे गए हैं वे सभी चुनौती भरे ही कहे जा सकते है। यही नहीं देश के हर विभाग के सामने एक न एक समस्या मुंह बाए खडी है। कमजोर पडती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर देश के अंतिम व्यक्ति को सुरक्षित, सक्षम और खुशहाल बनाने के लिए सरकार को कडी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा।

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