बुधवार, 25 मार्च 2009

राजनेता नहीं चाहते महिलाएं आगे आएं
(लिमटी खरे)



आजाद हिन्दुस्तान में देश की सबसे शक्तिशाली महिला होकर उभरने के बावजूद भी सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी चौदहवीं लोकसभा में महिला आरक्षण जैसे महात्वपूर्ण बिल को पास नहीं करवा सकीं। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने अवश्य कहा है कि सरकार में आने पर महिलाओं की तीस फीसदी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। पिछली मर्तबा संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही मौन साध रखा था।
अगर कांग्रेस के मनमोहनी घोषणापत्र को अमली जामा पहनाया गया तो निश्चित रूप से आने वाले आम चुनावों के बाद आजादी के छ: दशकों के उपरांत देश में महिलाओं की दशा में सुधार परिलक्षित हो सकता है, वस्तुत: एसा नहीं होगा नहीं, क्योंकि घोषणा पत्र को मतदाताओं को लुभाने के लिए ही किया जाता रहा है।
वैसे 2004 में जैसे ही कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई, और सरकार के अघोषित सबसे शक्तिशाली पद पर कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी बैठीं तभी लगने लगा था कि आने वाले समय में सरकार द्वारा महिलाओं के हितों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। पांच साल बीत गए पर महिलाओं की स्थिति में एक इंच भी सुधार नहीं हुआ है।
महिलाओं के फायदे वाले सारे विधेयक आज भी सरकार की अलमारियों में पड़े हुए धूल खा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई (33 फीसदी) भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी विधेयक अंतत: लोकसभा में पारित ही नहीं हो सका। राजनैतिक लाभ हानि के चक्कर में संप्रग सरकार ने इस विधेयक को हाथ लगाने से परहेज ही रखा।
महिलाओं की हालत क्या है यह बताता है देश को अनेक प्रधानमंत्री देने वाले सूबे उत्तर प्रदेश में किया गया एक सर्वेक्षण। सर्वे के अनुसार 1952 से 2002 के बीच हुए 14 विधानसभा चुनावों में प्रदेश में कुल 235 महिला विधायक ही चुनी गईं थीं। इनमें से सुचिता कृपलानी और मायावती ही एसी भाग्यशाली रहीं जिनके हाथों में सूबे की बागड़ोर रही।
देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओ की दुर्दशा देखते ही बनती है। कहने को तो सरकारों द्वारा बालिकाओं की पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। किन्तु ज़मीनी हकीकत इससे उलट है। गांव का आलम यह है कि स्कूलों में शौचालयों के अभाव के चलते देश की बेटियां पढ़ाई से वंचित हैं।
सदियों से यही माना जाता रहा है कि नारी घर की शोभा है। घर का कामकाज, पति, सास ससुर की सेवा, बच्चों की देखभाल उसके प्रमुख दायित्वों में शुमार माना जाता रहा है। अस्सी के दशक तक देश में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही रही है। 1982 में एशियाड के उपरांत टीवी की दस्तक से मानो सब कुछ बदल गया।
नब्बे के दशक के आरंभ में महानगरों में महिलाओं के प्रति समाज की सोच में खासा बदलाव देखा गया। इसके बाद तो मानो महिलाओं को प्रगति के पंख लग गए हों। आज देश में जिला मुख्यालयों में भी महिलाओं की सोच में बदलाव साफ देखा जा सकता है। कल तक चूल्हा चौका संभालने वाली महिला के हाथ आज कंप्यूटर पर जिस तेजी से थिरकते हैं, उसे देखकर प्रोढ़ हो रही पीढी आश्चर्य व्यक्त करती है।
कहने को तो आज महिलाएं हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं, पर सिर्फ बड़े, मझौले शहरों की। गांवों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है। देश की अर्थव्यवस्था गावों से ही संचालित होती है। देश को अन्न देने वाले अधिकांश किसानों की बेटियां आज भी अशिक्षित ही हैं।
आधुनिकीकरण की दौड़ में बड़े शहरों में महिलाओ ने पुरूषों के साथ बराबरी अवश्य कर ली हो पर परिवर्तन के इस युग का खामियाजा भी जवान होती पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। मेट्रो में सरेआम शराब गटकती और धुंए के छल्ले उड़ाती युवतियों को देखकर लगने लगता है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति कितने घिनौने स्वरूप को ओढ़ने जा रही है।
पिछले सालों के रिकार्ड पर अगर नज़र डाली जाए तो शराब पीकर वाहन चलाने, पुलिस से दुव्र्यवहार करने के मामले में दिल्ली की महिलाओं ने बाजी मारी है। टीवी पर गंदे अश्लील गाने, सरेआम काकटेल पार्टियां किसी को अकषिZत करतीं हो न करती हों पर महानगरों की महिलाएं धीरे धीरे इनसे आकषिZत होकर इसमें रच बस गईं हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महानगरों और गांव की संस्कृति के बीच खाई बहुत लंबी हो चुकी है, जिसे पाटना जरूरी है। अन्यथा एक ही देश में संस्कृति के दो चेहरे दिखाई देंगे।
बहरहाल सरकारों को चाहिए कि महिलाओं के हितों में बनाए गई योजनाओं को कानून में तब्दील करें, और इनके पालन में कड़ाई बरतें। वरना सरकारों की अच्छी सोच के बावजूद भी छोटे शहरों और गांव, मजरों टोलों की महिलाएं पिछड़ेपन को अंगीकार करने पर विवश होंगी।

दांव पर प्रतिष्ठा

(लिमटी खरे)


देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रमुखों की प्रतिष्ठा पूरी तरह दांव पर लगी हुई है। एक और सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान को निर्वतमान 25 में से ज्यादा से ज्यादा सीटें भाजपा की झोली में डालने की चिंता सता रही है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के मुखिया सुरेश पचौरी को अंतर्कलह में डूबी कांग्रेस का आंकड़ा 4 से बढ़ाने की जुगत लगानी पड़ रही है।
पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे मध्य प्रदेश से इस बार भी राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी को सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछली मर्तबा 29 में से 25 सीटों पर भाजपा ने बाजी मार ली थी।
पिछले विधानसभा चुनावों में भले ही कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन कुछ हद तक सुधारा हो, पर आज भी कांग्रेस अंतर्कलह और अतिआत्मविश्वास से उबर नहीं सकी है। अंचलों के क्षत्रपों में मची वर्चस्व की गलाकाट स्पर्धा के चलते प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार तेजी से घटा ही है।
पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कुल 48 फीसदी मतों को प्राप्त किया था, किन्तु इस बार विधानसभा में यह मत प्रतिशत 11 फीसदी गिरकर 37 पर आकर सिमट गया। भाजपा का प्रदेश में प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। शिवराज सिंह की पहली पारी में उन्हें दो मुख्यमंत्री विरासत में मिल चुके थे।
इसके साथ ही साथ शिवराज सिंह चौहान के दागी सहयोगियों ने पूरे तीन साल उनका जीना मुश्किल कर रखा था। अजय बिश्नोई जैसे सूबे के स्वास्थ्य मंत्री को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। शिवराज की दूसरी पारी में सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने मीडिया को उपहार बांटकर चुनाव आयोग की तिरछी नज़रों के शिकार हो चुके हैं।
भाजपा के चुनावी मैनेजरों ने भाजपा से पलायन कर चुकीं तेज तर्रार नेेत्री उमाश्री भारती की भरपाई के लिए सुषमा स्वराज को मैदान में उतार दिया है। सुषमा प्रदेश के मतदाताओं को कितना लुभा पाएंगी यह तो समय ही बताएगा, किन्तु जहां तक प्रदेश का सवाल है, उमा के मुकाबले सुषमा बौनी ही नजर आ रहीं हैं।
भाजपा के खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि यह कही जा सकती है, कि पहली बार पांच साल तक भाजपा ने सूबे पर राज किया है। भाजपा के पास बूथ स्तर पर मजबूत पकड़ है। वैसे शिवराज सिंह चौहान के पास नेतृत्व के सामने खुद को साबित करने का यह सुनहरा मौका है। वैसे परिसीमन के उपरांत नए क्षेत्रोें में भाजपा को अपना वर्चस्व बरकरार रखना अत्यावश्यक है।
उधर दूसरी ओर कांग्रेस में वर्चस्व की मची जंग के चलते कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीटें ही मिल सकीं थीं। आपातकाल के उपरांत 1977 के बाद कांग्रेस का यह सबसे निराशाजनक प्रदर्शन ही रहा है। वैसे कांग्रेस द्वारा राहुल और सोनिया की छवि को भुनाया जाए तो इससे कांग्रेस को काफी लाभ मिल सकता है।
भाजपा इस बार प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, लाल कृष्ण आड़वाणी, वैंकया नायडू के अलावा स्टार प्रचार नरेंद्र मोदी को भी चुनाव में झोंक सकती है। वहीं कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी और राहुल के रोड़ शो, के साथ ही साथ युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजुZन सिंह, दििग्वजय सिंह, कमल नाथ, सुरेश पचौरी जैसे नेताओं पर दांव लगाया जा सकता है।
आने वाले चुनावों में शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा इसलिए दांव पर है, क्योकि अगर सीटों में कमी होती है, तो शिवराज विरोधी उन्हेे मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारने पर आमदा हो जाएंगे, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के सूबे के प्रमुख सुरेश पचौरी जो अब तक चार बार राज्य सभा के दरवाजे संसदीय सौंध में पहुंचे हैं, उनके राजनैतिक भविष्य का आईना भी यह चुनाव ही नजर आ रहा है।

सोनिया पर निशाना साधा चाणक्य ने

- कुंवर अर्जुन सिंह की पित्न ने सीधे सोनिया पर चलाए तीर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 25 मार्च। कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले कुंवर अजुZन सिंह ने अब अपनी पित्न के माध्यम से कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी पर निशाने साधे हैं। अजुZन सिंह से संबंधित किताब में नेहरू गांधी परिवार का साथ देने के एवज में मिली उपेक्षा को विस्तार से चित्रित किया गया है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री,, पंजाब के पूर्व राज्यपाल एवं केंद्रीय मंत्री कुंवर अजुZन सिंह के जीवन और उनके राजनेतिक सफर पर आधारित पुस्तक का विमोचन यद्यपि रद्द कर दिया गया है, किन्तु राजनैतिक फिजां में अजुZन सिंह की उक्त किताब ने एक बार सियासी उफान ला दिया है।
सूत्रों की मानें तो रामशराण जोशी द्वारा लिखित इस पुस्तक के कुछ विवादित अंशों को लेकर इसका विमोचन समारोह रद्द किया गया है, यह अलहदा बात है कि विमोचन रद्द किए जाने के पीछे लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का अस्वस्थ्य होना बताया जा रहा है।
``अजुZन सिंह : एक सहयात्री का नाम`` नामक इस पुस्तक में अजुZन सिंह के सियासी सफर पर काफी गहराई से बखान किया गया है। इस किताब में उनकी पित्न श्रीमति सरोज सिंह के हवाले से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी पर करारी टिप्पणी भी की गई है।
राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर श्रीमति सिंह ने कहा है कि जो व्यक्ति (कुंवर अजुZन सिंह) इस (गांधी) परिवार को वर्षों से अपना सर्वस्व दे रहा है, उसे अगर राष्ट्रपति बना दिया जाता तो मेडम (सोनिया गांधी) का क्या बिगड़ जाता? वैसे इस किताब में राजीव गांधी हत्याकांड से लेकर बाबरी विध्वंस के बारे में की गई टिप्पणियों और बातों के अनेक राजनैतिक मतलब लगाए जा रहे हैं।
वैसे इस पुस्तक के अंशों को लेकर कांग्रेस में भी तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अजुZन सिंह जैसे सदाबहार नेता खुद को कांग्रेस के बजाए गांधी परिवार का पिछलग्गू बताकर आखिर किसे मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं, और किसका उपहास उड़ा रहे हैं!

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