शुक्रवार, 20 मार्च 2009

२० मार्च

आचार संहिता तोड़ने में शीर्ष नेता अव्वल

नहीं रहा चुनाव आयोग का खौफ

आयोग को सख्त रवैया अपनाना जरूरी

(लिमटी खरे)

कहा जाता है कि नियम कायदे बनते ही उन्हें तोड़ने के लिए हैं। यही आलम देश के आम चुनावों में आदर्श आचार संहित का है। आचार संहित लगते ही इसकी धज्जियां उड़ना चालू हो जाता है। देश के छोटे बड़े राजनैतिक दलों के आला नेताओं में वैसे तो राजनैतिक सूझबूझ और चाल चलन का बड़ा फर्क हो पर आचार संहिता तोड़ने के मसले में सभी एक ही दिखाई पड़ रहे हैं।
नवोदित राजनेताओं द्वारा आचार संहिता का पालन न कर पाना समझ में आता है कि उन्हें इस बात का इल्म न रहा हो आचार संहिता का पालन कैसे किया जाता है, किन्तु अगर घाघ राजनेता जिनकी रगों में राजनीति ही दौड़ रही हो वे अगर आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं तो यह बात आसानी से हजम नहीं की जा सकती है।
वैसे आचार संहिता के उल्लंघन के पीछे आला नेताओं के सामने शक्ति प्रदर्शन को ही प्रमुख कारण माना जा सकता है। बड़े नेताओं के समक्ष अपना कद बढ़ाने की नीयत से राजनेता अपने बड़े नेताओं को सारी वर्जनाएं तोड़ने पर मजबूर कर देते हैं। सामने भारी भीड़ का अभिवादन स्वीकारने के लालच में नेता भी आपा खोकर इन सीमाओं को लांघने से गुरेज नहीं करते हैं।
छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी ने कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी को सरकारी उड़न खटोले की सैर करवाकर बुरी तरह उलझा दिया था, चुनाव आयोग ने तो पार्टी की मान्यता रद्द करने का नोटिस तक दे डाला था। बावजूद इसके नेतागण की मोटी चबीZ पर कोई असर परिलक्षित नहीं होता है। वैसे भी सरकारी संसाधनों के दुरूपयोग के बाद उतनी राशि सरकारी खजाने में जमा कर राजनैतिक दल अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने से नहीं चूकते हैं।
वैसे टिकिट पाने के लिए आचार संहित के बावजूद भी शक्ति प्रदर्शन हर राजनैतिक दल के नेताओं का प्रिय शगल बनकर रह गया है। टिकिट मिलने के बाद अपना स्वागत करवाकर एक बार फिर विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास करवाया जाता है। रह जाती है बात नामांकन की, तो नामांकन दाखिल करते समय लाव लश्कर दिखाकर मीडिया का ध्यान केंद्रित करना हर प्रत्याशी के पहले कर्तव्य में शुमार होता है। इस मसले में प्रत्याशी को बहुत ज्यादा फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि राजनीति के सड़ांध मारते दलदल में कूदे इन प्रत्याशियों के साथ आए वाहनों का खर्च उम्मीदवार के खर्च में जोड़ने और इसकी निंदा से इतर चुनाव आयोग कुछ ज्याद नहीं करता है।
भाजपा के गांधी द्वारा पीलीभीत में भड़काउ भाषण, सभा में रूपए बांटने, मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन द्वारा सिवनी में मीडिया को घड़ियां बांटने के मामले आचार संहिता के उल्लंघन के ही माने जा सकते हैं। चुनाव आयोग द्वारा बिसेन की निंदा कर दी गई है, फिर भी उन्होंने रंग पंचमी के दिन बिना अनुमति डीजे बजाकर नोट लहराकर एक नए विवाद को जन्म दे ही दिया।
कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले कुंवर अजुZन सिंह जैसे उमर दराज राजनेता आईआईटी और आईआईएम में 49 फीसदी आरक्षण की घोषणा करते हैं, तो इसे किस श्रेणी में रखा जाए? सवा सौ साल के इतिहास वाली कांग्रेस पार्टी की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी जब गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी को ``मौत का सौदागर`` की उपमा देती हैं, तो इसे क्या समझा जाए?
आज चुनाव आयोग का खौफ मानो लोगों के दिल दिमाग से एकदम उतर गया है। उम्मीदवार और राजनैतिक दल आदर्श आचार संहिता का माखौल सरेआम उड़ाते नजर आते हैं, यह सब देखने सुनने के बाद भी चुनाव आयोग हाथ पर हाथ धरे ही बैठने पर मजबूर दिखाई पड़ता है।
वैसे भी अब तक के इतिहास में चुनाव आयोग द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। समाज को विभाजित करने वाली बयानबाजी पर चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे को अवश्य एक मर्तबा मताधिकार से वंचित कर दिया था। वैसे चुनाव आयोग को चाहिए कि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर वह सख्त रवैया अपनाए और भले ही कुछ निर्धारित समय के लिए ही सही इसे तोड़ने वाले राजनैतिक दल की सदस्यता समाप्त कर एक नज़ीर पेश करे।




तोमर ने किए प्रहलाद की वापसी के मार्ग प्रशस्त

- उत्तर प्रदेश में कल्याण का स्थान भरेंगी उमाश्री

- लोधी वोट बैंक पर नज़र है पीएम इन वेटिंग की

- चुनाव नहीं लड़वाएंगे प्रहलाद को

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 20 मार्च। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनशक्ति पार्टी के आधार स्तंभ माने जाने वाले युवा तुर्क प्रहलाद सिंह पटेल की भाजपा में घर वापसी के सारे मार्ग प्रशस्त हो चुके हैं। भाजपा के शीर्ष नेता एक दो दिन में इस बारे में निर्णय लेकर आधिकारिक घोषणा कर सकते हैं। उधर 7 रेसकोर्स (प्रधानमंत्री का अधिकृत आवास) पर पहुंचने का बेसब्री से इंतजार कर रहे राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी ने उमाश्री के सकारात्मक रूख के चलते उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार में झोंकने का मानस बना लिया है।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि प्रहलाद पटेल की घर वापसी में मध्य प्रदेश राज्य इकाई के भाजपाध्यक्ष नरेंद्र तोमर द्वारा लगाए जा रहा अडंगा अब समाप्त हो चुका है। गत दिवस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में प्रदेश भाजपाध्यक्ष के निवास पर प्रहलाद और तोमर की आधा घंटे हुई चर्चा के बाद अब तोमर के तेवर काफी हद तक नरम पड़ गए हैं।
मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल के कद्दावर नेता और जबलपुर संभाग की सिवनी और बालाघाट लोकसभा से निर्वाचित हुए सांसद पटेल ने पिछले लोकसभा चुनावों में महाकौशल के कांग्रेसी क्षत्रप एवं केंद्रीय मंत्री कमल नाथ को नाकों चने चबवा दिए थे। पटेल की घेराबंदी इतनी तगड़ी थी कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक कमल नाथ पूरे चुनाव के दौरान अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा जिले से एक दिन के लिए भी बाहर नहीं जा सके थे।
सूत्रों ने कहा कि यद्यपि प्रहलाद पटेल ने घर वापसी के साथ ही चुनाव लड़ने की शर्त नहीं रखी है, फिर भी पटेल के समर्थक उन्हें छिंदवाड़ा या खजुराहो से चुनाव लड़ने पर जोर दे रहे हैं। पार्टी का मानना है कि पटेल को चुनाव लड़वाने के बजाए उनकी क्षमताओं का उपयोग प्रचार के लिए किया जाए। बाद में अगर सुषमा स्वराज विदिशा से जीततीं हैं तो पटेल को उनके रिक्त होने वाले स्थान पर मध्य प्रदेश से ही राज्य सभा के रास्ते उन्हें संसदीय सौंध तक पहुंचाया जा सकता है।
गौरतलब होगा कि लगभग सवा तीन साल पहले उमाश्री भारती के साथ भाजपा छोड़कर भारतीय जनशक्ति पार्टी में एक पटेल ने कुछ समय बाद ही उमाश्री से दूरियां बना लीं थीं। प्रमुख राजनैतिक दलों में अपना आधार खोजने वाले पटेल की नजदीकियां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में देखी गईं थीं। इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में 11 जनवरी को अपने समर्थकों के साथ रायशुमारी के बाद यह नतीजा निकाला गया था कि उन्हें भाजपा में वापस लौट जाना चाहिए।
उधर कल तक लाल कृष्ण आड़वाणी को पानी पी पी कर कोसने वाली भाजश अध्यक्ष उमाश्री भारती ने यू टर्न लेते हुए आड़वाणी को अपने पिता तुल्य और राजनाथ को भाई कहकर अपने नरम तेवरों के संकेत दे दिए हैं। आड़वाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उमाश्री को भले ही भाजपा में प्रवेश न दिया जाए पर उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह से होने वाले नुकसान को रोकने उनकी मदद ली जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि उमा भारती को भाजपा के लिए चुनाव प्रचार हेतु उत्तर प्रदेश और बिहार में उतारा जा सकता है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो मध्य प्रदेश के आला नेताओं से रायशुमारी की औपचारिकता के उपरांत राजग के पीएम इन वेटिंग आड़वाणी द्वारा अगले गुरूवार तक उमाश्री भारती को उत्तर प्रदेश और बिहार में स्टार प्रचारक के तौर पर लांच किया जा सकता है। उमाश्री को पार्टी कल्याण की काट और हिन्दुत्व के पैरोकार के तौर पर दोहन करने से भी नहीं चूकेगी।

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