शनिवार, 7 मार्च 2009

न्यूज़ ७ मार्च

दिल्ली में सुनाई दी आचार संहिता टूटने की गूंज

- मध्य प्रदेश के मंत्री ने पत्रकारों को बांटी सौगात
- निजी समाचार चेनल ने दिखाई प्रमुखता से खबर
- बालाघाट से नीता पटेरिया का नाम फिर चर्चाओं में
- भाजपा मुख्यालय में चर्चाओं में रहा मामला


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन द्वारा जिला मुख्यालय में पत्रकारों को कलाई घड़ी बांटने की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी। आज भाजपा मुख्यालय में लोग चटखारे लेकर इसकी चर्चा करते देखे गए। चर्चाओं में स्थानीय विधायक श्रीमति नीता पटेरिया और नगर पालिका अध्यक्ष पार्वती जंघेला द्वारा किए गए कार्यक्रम के अघोषित बहिष्कार पर भी तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने शनिवार को सिवनी में स्थानीय मीडिया से चर्चा की और इसके साथ ही मीडिया को उन्होने उपहार स्वरूप रिस्ट वाच भेंट की। इस आशय की खबर एक निजी चेनल से प्रसारित होने के बाद जंगल में आग की तरह यह खबर देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली भी पहुंच गई।
आज इस मामले में भाजपा के अशोेक रोड़ स्थित राष्ट्रीय मुख्यालय में भी चर्चाओं का बजार गर्म रहा। चर्चाओं के अनुसार चुनाव की घोषणा के उपरांत प्रदेश सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री द्वारा मीडिया को भेंट देना आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आता है, क्योंकि मीडिया कर्मी भी बालाघाट संसदीय क्षेत्र के मतदाता हैं।
भले ही गौरी शंकर बिसेन को पार्टी ने अभी बालाघाट संसदीय क्षेत्र से अधिकृत नहीं किया हो, किन्तु वे प्रदेश शासन के केबनेट मंत्री के पद पर आसीन हैं, अत: इस तरह का कृत्य आपत्तिजनक माना जा सकता है। वहीं बिसेन के करीबी सूत्रोें का कहना है कि चूंकि आचार संहिता लग चुकी है, अत: सूबे से उन्हें प्राप्त सरकारी अमला अब उनकी यात्राओं में उनके साथ नहीं जा सकता है, अत: संभवत: बिसेन के किसी शुभचिंतक ने होली पर्व पर पत्रकारों के लिए उक्त भेंट की सलाह दी होगी।
बहरहाल बालाघाट संसदीय क्षेत्र के लिए गौरी शंकर बिसेन के अलावा अब परिसीमन के उपरांत विलोपित हुई सिवनी लोकसभा सीट की अंतिम सांसद एवं सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री डा.ढाल सिंह बिसेन, सिवनी के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर, नगर पलिका सिवनी की अध्यक्ष श्रीमति पार्वती जंघेला के नाम भी हवा में तैर गए हैं।

अब रूपए को मिलेगी नई पहचान

- प्रतीक चिन्ह के लिए खुली प्रतियोगिता आयोजित
- रूपए को पहचान दिलाने वालेको मिलेगा ढाई लाख रूपए का इनाम


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। अमरिकी डालर, पाउंड, येन, यूरो की भांति ही आने वाले समय में रूपए को भी नई पहचान मिलने वाली है। केंद्र सरकार द्वारा विश्व में भारतीय मुद्रा को पहचान दिलाने के लिए बाकायदा एक प्रतियोगिता का आयोजन करवाया जा रहा है, जिसमें विजेता को ढाई लाख डालर के पुरूकार से नवाजा जाएगा।
वित्त मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भारत सरकार यहां प्रचलित मुद्रा रूपए को पहचान दिलाने के लिए एक अलग प्रतीक बनाने जा रही है। इसमें सिर्फ भारत के ही नागरिक भाग ले सकते हैं एवं आवेदन की अंतिम तिथि 15 अप्रेल रखी गई है। सूत्रों ने बताया कि वर्तमान में इंडियन नेशनल रूपया या रूपया सांकेतिक शब्द है, जिसे विश्व में मान्यता नहीं मिल सकी है।
सूत्रों ने बताया कि इससे संबंधित विवरण भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की वेव साईट पर उपलब्ध है। इसके अलावा इस प्रतीक में भारतीय संस्कृति और इतिहास से जुड़ी बातें होना आवश्यक रखा गया है। प्रतियोगिता के लिए प्रवेश किसी भी भारतीय भाषा अथवा अंग्रेजी में दिया जा सकता है। इसके लिए इनाम की राशि 5 हजार डालर (ढाई लाख रूपए) रखी गई है।

अनेकता में एकता का उद्हारण देखने को मिलेगा लोस चुनावों में

- विवधता 15वीं लोकसभा के आम चुनावों में भी


(लिमटी खरे)


समूचे विश्व में हिन्दुस्तान को अनेकता को एक सूत्र में पिरोने की दृष्टि से देखा जाता है। अनेक भाषाएं, विभिन्न संस्कृति, धर्म के नाम पर न जाने कितने मजहब, फिर भी भारत आज तक एक ही है। माना जाता है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र मे आज भी लोगों का विश्वास कायम है तो सिर्फ हिन्दुस्तान में।
चुनाव और मतदान को तािर्कक बनाने की सोच के तहत ही पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस दफा मतदान केंद्रों की संख्या 8 लाख 28 हजार 804 हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में 6 लाख 87 हजार 402 मतदान केंद्र थे। अथाZत बढ़ी आबादी के हिसाब से इस बार एक लाख चालीस हजार मतदान केंद्रों की संख्या में इजाफा किया गया है।
आम चुनावों के लिए लगभग 11 लाख इलेक्ट्रनिक वोटिंग मशीन की आवश्कता है, किन्तु चुनाव अयोग द्वारा 13 लाख 68 हजार 430 वोटिंग मशीनें मुस्तैद कर रखीं हैं। पहली दफा संवेदनशील इलाकों के हिसाब से मैपिंग कर मतदान केंद्र बनाए गए हैं ताकि जहां नक्सली या अन्य आतंकी वारदात का डर रहता है, लोगों को घर से ज्यादा दूर वोट डालने न जाना पड़े।
देश की आबादी किस तेजी से बढ़ी है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में इस बार लगभग सवा चार करोड़ मतदाताओं की संख्या में इजाफा हुआ है। पिछले आम चुनावो के दौरान जहां मतदाताओं की संख्या 67 करोड़ 10 लाख थी, वह अब बढ़कर 71 करोड़ 40 लाख हो गई है।
इस बार नागालेंड, असम, जम्मू काश्मीर को छोड़कर 543 में से 522 सीटों पर मतदान वोटर आईडी कार्ड पर ही किया जाएगा। इतना ही नहीं इक्कीसवीं सदी के दूसरे लोकसभा चुनावों में पहली बार फोटोयुक्त वोटर लिस्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। फर्जी वोटिंग को रोकने की गरज से इस बार लगभग 82 फीसदी वोटर लिस्ट मतदाताओं की फोटो से युक्त होगी।
चुनावी प्रक्रिया को पारदशीZ बनाने के लिए आयोग द्वारा इस कार्य में देश के लगभग 40 लाख कर्मचारियों को इसमें झोंका जाएगा। इसके अलावा चुनावों के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति बनाने के लिए 21 लाख से अधिक अर्ध सैनिक बल, पुलिस बल, नगर सेना एवं अन्य बलों की तैनाती की जाएगी। इन चुनावों में 10 हजार करोड़ रूपए से अधिक का खर्च इन चुनावों में होने का अनुमान है।
परिसीमन के उपरांत बने परिदृश्य में सामान्य श्रेणी की 11 लोकसभा सीटों को आरक्षित कर दिया गया है। देश की 543 में से 84 सीटों को एससी तो 47 सीटों को एसटी के लिए आरक्षित किया गया है। 14वीं लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास न हो पाने से इस बार भी महिलाओं के लिए लोकसभा सीटों का आरक्षण नहीं किया गया है।
कितने आश्चर्य की बात है कि आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात के गिर वन क्षेत्र में एक मतदान बूथ ऐसा होगा जहां सिर्फ एक मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेगा। देश के हर मतदाता को उसके मताधिकार के प्रयोग करवाने के लिए कृतसंकल्पित सरकार द्वारा हर संभव व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जा रहीं हैं।
इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में एक मतदान केंद्र पर सिर्फ दो मतदाता होंगे, जबकि अरुणाचल प्रदेश के तीन मतदान बूथों पर महज तीन तीन मतदाता होंगे। हिन्दुस्तान में भौगोलिक असमानताओं के चलते कहीं कहीं आबादी बहुत ही ज्यादा घनी तो कहीं एकदम बिरली ही है।
वैसे तो आपराधिक छवि के उम्मीदवारों से बचने की सलाह कमोबेश हर राजनैतिक दलों द्वारा दी जाती है, किन्तु जब टिकिट बंटवारे की बारी आती है, तो इस तरह के बाहुबली और धनाड्य लोग हर बार ही बाजी मार ले जाते हैं। संभवत: समूचे विश्व में भारत का ही लोकतंत्र एसा कहा जा सकता है, जहां शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं।
देश की जनता इस बात का उत्तर आज भी खोजने पर मजबूर है कि राज्यों में एक दूसरे के मार्ग मे शूल बोने वाले राजनैतिक दल आखिर केंद्र में एक कैसे हो जाते हैं, और केंद्र में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने वाले दल राज्यों मेें साझा सरकार कैसे बना लेते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि सत्तालोलुप राजनेता एक दूसरे के कट्टर विरोधी होने के बावजूद भी विचारों और सिद्धांतों की तिलांजली देकर सत्ता का सुख भोगने के लिए अवसरवादी गठबंधन बनाने में भी हिचक नहीं रखते। इतना ही नहीं इस गठबंधन में अधिकतर दलों के आपस में न तो विचार और स्वभाव मिलता है और न ही प्राथमिकताएं और घोषणापत्र।इस समय देश के दो प्रमुख राजनैतिक गठबंधन में से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से प्रस्तावित प्रधानमंत्री (पीएमइन वेटिंग) लाल कृष्ण आड़वाणी जहां गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे, वहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ मन मोहन सिंह जो कि राज्य सभा सदस्य हैं, का चुनाव लड़ना सशंकित ही नजर आ रहा है। इस तरह इतनी सारी विविधताओं के बीच होने वाले आम चुनावों को देखकर यही कहा जा सकता है कि ``इट हेपन्स ओनली इन इंडिया

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