मंगलवार, 3 मार्च 2009

खबरें ३ march

आलेख 3 मार्च 2009 .........................
स्वास्थ्य सुविधाओं परमहामहिम चिंतित पर सरकारें मौन

- पांच माह में दो बार अपील कर चुकी हैं राष्ट्रपति

- चिकित्सकों पर जोर नहीं सरकार का!

- आजादी के छ: दशकों बाद भी नीम हकीमों के भरोसे बैठा है आम हिन्दुस्तानी

(लिमटी खरे)

देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की बारंबार की जाने वाली यह चिंता बेमानी नहीं है कि देश में चिकित्सकों की भारी कमी है। हाल ही में पश्चिमी दिल्ली मेंं भारतीय चिकित्सा परिषद की प्लैटिनम जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उनकी यह पीड़ा सामने उभरकर सामने आई। इससे पहले अक्टूबर में भी महामहिम ने असम के तेजपुर में आयुZविज्ञान संस्थान की आधारशिला रखते हुए इसी मसले पर अपनी चिंता जाहिर की थी। बकौल महामहिम देश के 271 मेडिकल कालेज से प्रतिवर्ष 31 हजार चिकित्सक उपाधि ग्रहण करते हैं। महामहिम ने आयुZविज्ञान संस्थानों से ग्रामीण समुदायों को समुचित चिकित्सा मुहैया कराने की दिशा में कदम बढ़ाने का आव्हान भी किया है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि इसके बावजूद भारत में आज भी छह लाख डाक्टरों व 10 लाख नसो± कÊ कमी है। राष्ट्रपति ने कहा कि वैसे तो ग्यारहवÈ पंचवषÊय योजना में डाक्टरों के अभाव वाले राज्यों में 60 मेडिकल कालेज व 225 नरिZ्सग कालेज खोलने का लक्ष्य है, लेकिन केवल संख्या बढ़ा देने से ही काम नहÈ चलेगा।सरकारी आंकड़े चाहे जो कहें पर ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। मजरे, टोले, गांव या छोटे शहरों में रहने वाला आम भारतीय आज भी झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे पर ही है। इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं सरकारें। कितने आश्चर्य की बात है कि आजादी के साठ साल बीत जाने के बाद भी सरकारों द्वारा चिकित्सकों को ग्रामों की ओर भेजने के मार्ग प्रशस्त नहीं किए जा सके हैं।अपने अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), उप स्वास्थ्य केंद्र या सिटी डिस्पेंसरी तो स्वीकृत करा लेते हैं किन्तु इन अस्पतालों में कितना अमला वास्तव में कार्यरत है, इस बारे में देखने सुनने की फरसत किसी को भी नहीं है। सत्ता के मद में चूर ये जनप्रतिनिधि चुनावो की घोषणा के साथ ही एक बार फिर सक्रिय हो मतदाताओं को लुभावने वादों से पाट देते हैं।नेशनल रूलर हेल्थ मिशन के प्रतिवेदन पर अगर नज़र डाली जाए तो देश की साठ फीसदी से अधिक पीएचसी में सर्जन नहीं हैं, इतना ही नहीं पचास फीसदी जगह महिला चिकित्सक गायब हैं, तो 55 फीसदी जगह बाल रोग विशेषज्ञ। क्या ये भयावह आंकड़े सरकार की तंत्रा तोड़ने के लिए नाकाफी नहीं हैं।दिया तले अंधेरा की कहावत देश की सबसे बड़ी पंचायत में साफ हो जाती है। यूं तो सभी दल आरक्षण का झुनझुना बजाकर वोट बैंक तगड़ा करने की फिराक में रहते हैं किन्तु सांसदों के इलाज के लिए तैनात चिकित्सा कर्मियों में महज 22 फीसदी चिकित्सक ही कोटे के हैं। हाल ही में सूचना के अधिकार में निकाली गई जानकारी से यह कड़वा सच सामने आया है। सांसदों के लिए तैनात 49 चिकित्सकों मेंसे नौ अनुसूचित जाति, एक एक अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं।कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के लिए क्या यह विचारणीय प्रश्न नहीं है कि महज पांच माहों में देश की महामहिम चिकित्सकों को गांव की ओर रूख करने और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की बात कह रहीं हैं। कांग्रेस की इस अनदेखी को उसकी निर्लज्जता से अधिक और कुछ नहीं कहा जा सकता है। देश के महामहिम की अपील को ही संप्रग सरकार ने एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया हो, तो फिर देश के आखिरी छोर के आदमी का तो भगवान ही मालिक है।बहरहाल प्रश्न यह उठता है कि आखिर चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे के माध्यम से जनसेवा को उतारू युवा गांव की ओर रूख क्यों नहीं करना चाहते? संभवत: विलासिता के आदी हो चुके युवाअों को गांव की धूल मिट्टी और अभाव का जीवन रास नहीं आता होगा इसी के चलते वे गांव नहीं जाना चाहते। इसके साथ ही साथ शहरों में सरकारी चिकित्सकों के आवासों पर लगने वाली मरीजों की भीड़ भी उन्हें आकिर्षत करती होगी। हर जिला मुख्यालय का नामी सरकारी डॉक्टर किसी न किसी अध्यनरत चिकित्सक का `पायोनियर` भी होता होगा।वैसे इस मामले में सरकार को दोष देना इसलिए उचित होगा क्योंकि सरकार द्वारा चिकित्सकों को गांव भेजने के लिए उपजाउ माहौल भी तैयार नहीं किया गया है। अस्सी के दशक में सुनील दत्त अभिनीत ``दर्द का रिश्ता`` चलचित्र का जिकर यहां लाजिमी होगा। उस चलचित्र में विदेश में अपनी सेवाएं दे रहे चिकित्सक का किरदार निभा रहे सुनील दत्त ने अपनी ही बेटी के इलाज के दौरान हुई तकलीफों से प्रेरणा लेकर हिन्दुस्तान में गांवों में जाकर सेवा करने का संकल्प लिया था।वह निश्चित रूप से चलचित्र था, पर उससे प्रेरणा लेकर न जाने कितने नौजवानों ने गांवों की ओर रूख किया था। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि सरकार को चाहिए कि फूहड़ और समाज को बरबादी के रास्ते पर ले जाने वाले चलचित्रों के स्थान र प्रेरणास्पद चलचित्रों के निर्माण को प्रोत्साहन देने की आज महती जरूरत है।कहने को तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक न जाने कितने नेताओं ने कहा है कि भारत का दिल गांव में बसता है। पर गांव की सुध लेने वाला आखिर है कौन? इस सबके आभाव में अप्रशिक्षित चिकित्सा कमीZ आज भारत के दिल के स्वास्थ्य के साथ सरेआम खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं।महामहिम ने अपनी पीड़ा कुछ इस शब्दों में भी बयां कर सरकारोंं को चेताने का काम किया है कि उनके पिता भी जनसेवा के लिए चिकित्सक बनना चाहतीं थीं, किन्तु जलगांव में आयुZविज्ञान कालेज के न होने से उनके पिता का सपना अधूरा ही रह गया।देश में गिरती स्वास्थ्य सुविधाअों के बारे में महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की बार बार की जा रही चिंता स्वागतयोग्य है। हो सकता है महामहिम की इस चिंता से केंद्र और राज्य सरकारें चेतें, और युवा चिकित्सकों के मानस पटल पर गांव के प्रति प्रेम जागृत कर सकें। अन्यथा गांव और छोटे शहरों में जीने वालों के स्वास्थ्य के साथ झोला छाप चिकित्सकों का खिलवाड़ बदस्तूर जारी रहेगा१


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आपाधापी में पावरिग्रड का उद्घाटन भूली कांग्रेस!- जून तक टल गया पावर िग्रड का उद्घाटन- लाईन चार्ज करने अनुमति लेना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है पावर िग्रड को- अगले माह तक आरंभ करने का लक्ष्य किन्तु एक लाईन का काम ही पूरा- देश का सबसे बड़ा पावर िग्रड पोजेक्ट बन रहा है सिवनी में- मंत्रालय में हिचकोले खा रही है सिवनी की पावरिग्रड परियोजना

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में निर्माणाधीन देश के सबसे बड़े पावर डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर में पहली लाईन के चार्ज किए जाने का प्रस्ताव केंद्रीय विद्युत मंत्रालय में पिछले लगभग दो साल से हिचकोले खा रहा है। पिछले साल फरवरी माह तक इस परियोजना का काम पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही थी, किन्तु कांग्रेसनीत संप्रग सरकार में बिजली मंत्री सुशील शिंदे के मंत्रालय में इसकी पहली लाईन को चार्ज किए जाने का प्रस्ताव ही दिल्ली के श्रम शक्ति भवन में पायदान चढ़ और उतर रही है।आलम यह है कि केंद्रीय उर्जा मंत्री शिंदे द्वारा पूर्व में लोकसभा में यह बयान दे दिया था कि सिवनी सीपत लाईन का काम पूरा हो गया है, किन्तु इसे चार्ज किए जाने के मसले पर मंत्रालय पूरी तरह ही मौन अिख्तयार किए हुए है। चुनाव, गठबंधन और टिकिट बंटावारे में उलझी कांग्रेस द्वारा इस महात्वाकांक्षी परियोजना को अब तक परवान नहंी चढ़ सकी है।ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदश के जिला मुख्यालय सिवनी से महज पांच किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में पावर िग्रड कार्पोरशन द्वारा ट्रांसमिशन और वितरण केंद्र की स्थापना करने का कार्य किया जा रहा है। इस केंद्र की क्षमता 765 केवीए होगी। यहां उल्लेखनीय बात यह है कि यह दश का सबसे बड़ा वितरण केंद्र बनने जा रहा है।गौरतलब होगा कि पिछले साल सितम्बर माह में ही पावर िग्रड के अधिकारी काम की गति को लेकर काफी उत्साहित थे। बिजली मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अतिउत्साह में इन अधिकारियों ने अपने आला अधिकारियों को आश्वासन दे दिया था कि इस परियोजना का काम फरवरी 2007 तक पूरा किया जा सकता है।इसी के मद्देनजर आला अधिकारियों ने फरवरी 2007 में इसके उद्यघाटन का मन बना लिया था, और प्रधानमंत्री डॉ।एम।एम.सिंह, बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे, वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमल नाथ, तत्कालीन कार्मिक मामलों के मंत्री सुरश पचौरी आदि केंद्रीय मंत्रियों के साथ ही साथ महामहिम राज्यपाल बलराम जाखड़ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुलाने की कवायद भी आरंभ कर दी थी।इस गुब्बारे की हवा तब निकली जब पिछले साल फरवरी माह बीतने के बाद भी इस परियोजना की महज एक ही लाईन पूरी हो सकी। इस लाईन के परीक्षण के लिए लाईन को चार्ज करना आवश्यक हो गया था। इसके लिए पावर िग्रड कार्पोरशन द्वारा केंद्रीय बिजली मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया।केंद्रीय बिजली मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार चूंकि प्रदश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और चुनाव में उस दौरान काफी समय था, अत: कांग्रेस के आकाओं की सलाह पर अभी तक लाईन चार्ज करने की अनुमति प्रदान नहीं की गई है। इस कार्य के लिए पावर िग्रड के पश्चिम क्षेत्र के कार्यपालक निदशक (ईडी) दत्ता एवं सिवनी पावर िग्रड प्रवारी आर.एस.गुप्ता लगातार दिल्ली के श्रम शक्ति भवन के चक्कर काटते रहे हैं।बहरहाल पावर िग्रड के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि वर्तमान में छत्तीसगढ के बिलासपुर जिले के सेपत से सिवनी की साढे चार हजार मेगावाट लाईन का काम पूरा किया जा चुका है, जिसे चार्ज करने की अनुमति अभी भी मंत्रालय के पास लंबित पड़ी है। सूत्रों ने आगे बताया कि सिवनी से खण्डवा लाईन का काम पूर्णता की ओर है।इसके अलावा मध्य प्रदश विद्युत वितरण कंपनी के सिवनी, छिंदवाड़ा, विदिशा, बीना आदि केंद्रों को 220 मेगावाट की लाईन जल्द ही डाल दी जाएंगी। सूत्रों ने यह भी बताया कि भिलाई से सारणी जाने वाली 400 मेगावाट की चालू लाईन को भी बीच में रोककर पावर िग्रड ने अपने कब्जे में लेकर यहां से ट्रांसमिशन आरंभ कर दिया है।सूत्रों ने कहा कि पावरिग्रड के उद्यघाटन को भी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने चुनावी लाभ के लिए लंबित कर रखा है। चुनाव की घोषणा के ठीक पहले इसका उद्यघाटन करा कांग्रेस इसका लाभ महाकौशल में लेने की इच्छुक दिखाई दे रही थी, किन्तु चुनाव, बजट और अन्य समस्याओं के चलते कांग्रेस का ध्यान इस पर से हट गया और महाकौशल में अब कांग्रेस पावरिग्रड जैसी महात्वाकांक्षी परियोजना के लाभ से पूरी तरह वंचित ही रहेगी।


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सपा, लोजपा नहीं शुमार राष्ट्रीय स्तर के मान्यता प्राप्त दलों में

- महज 7 ही हैं राष्ट्र के मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी और लोकजनशक्ति पार्टी जैसी धुरंधर पार्टियां अभी राज्यों तक ही सिमटी हुई हैं। देश के चुनाव आयोग ने सात राजनैतिक दलों को राष्ट्रीय तो लगभग 32 दलों को राज्य स्तर पर मान्यता दी गई है। इनमे मध्य प्रदेश सूबे में तेजी से उभरी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को शामिल नहीं किया गया है।गौरतलब होगा कि चुनाव आयोग द्वारा राजनैतिक दलों के पिछले प्रदर्शन के मद्देनजर उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दे रखी है। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का शुमार किया गया है।इसी तरह राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दलों में लोकशक्ति जनशक्ति पार्टी, समाजवादी पार्टी, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, बीजू जनता दल, आईयूएमएल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, सििक्कम डेमोक्रेटिक फ्रंट, शिरोमणि अकाली दल, भारतीय जनशक्ति पार्टी, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल सेक्यूलर, जनता दल यू, तेलगू देशम, राष्ट्रीय लोकदल, अन्नाद्रमुक, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक, असम यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, असम गण परिषद, द्रविण मुन्नेत्र कषगम, इंडियन नेशनल लोकदल, नेशनल कांफ्रेस, नेशनल पेंथर्स पार्टी, एमडीएमके, इमजो नेशनल फ्रंट, तेलंगाना राष्ट्र समिति, नागालेंड प्यूपिल्स फ्रंट, पीएमके, आरएसपी, से गोवा फ्रंट आदि शामिल हैं।

7 टिप्‍पणियां:

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