मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाते बंग्लादेशी घुसपेठिए

0 वोट की खातिर देश और जनता की सुरक्षा पर दांव खेल रहे राजनेता

(लिमटी खरे)

देश में आज आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, महंगाई और बेरोजगारी के समकक्ष अगर कोई मुद्दा खड़ा हुआ है तो वह है, बंग्लादेशी घुसपैठियों का। हमारी सरकारें ना मालूम क्यों इस ज्वलंत और बेहद संवेदनशील मुद्दे पर कोई ठोस पहल नहीं कर रही है।वैसे इसे कमोबेश निराशाजनक ही कहा जा सकता है कि देश के किसी भी राजनैतिक दल ने अब तक विधानसभा या लोकसभा चुनावों में बंग्लादेशी घुसपैठियों के मसले को छुआ तक नहीं है। मध्य प्रदेश में अलबत्ता सूबे के निजाम ने ज़रूर एक मर्तबा बंग्लादेशी घुसपैठियों को सूबे से बाहर निकालने की बात कही थी।कितने आश्चर्य की बात है कि देश में सभी राजनैतिक दल लोकसभा के चुनाव को भी स्थानीय निकायों के चुनाव की तरह ही स्थानीय मुद्दों पर लड़ रहे हैं। देश में फैली अराजकता, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि के मसले पर सभी राजनैतिक दल कमोबेश एक जैसा ही राग अलाप रहे हैं। अलापें भी क्यों न अखिर सियासत में तो सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की ही अगर बात की जाए तो यहां लगभग दस लाख से अधिक की तादाद में बंग्लादेशी निवास कर रहे हैं। बंग्लादेश से लुके छिपे सीमा पर कर भारत आए इन बंग्लादेशियों से जहां एक ओर आंतरिक सुरक्षा को खतरा है, वहीं दूसरी ओर ये स्थानीय संसाधनों और रोजगार पर भी कब्जा जमाते जा रहे हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि इनके द्वारा बड़ी ही आसानी से राशन कार्ड, ड्रायविंग लाईसेंस, मतदाता पहचान पत्र आदि बनवाकर हिन्दुस्तानियों के हितों पर सीधे सीधे डाका डाला जा रहा है।विडम्बना यह है कि इस मसलें में अनेक योजनाएं गढ़ीं गईं पर अमली जामा नहीं पहन सकीं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनवरी 2009 में यह व्यवस्था दी थी कि नागरिकों को पहचान पत्र जारी किया जाए। बिना पहचान पत्र के कोई भी काम संपादित न होने पाए। स्कूल अस्पताल यहां तक कि यात्रा के दौरान भी परिचय पत्र रखना अनिवार्य कर देना चाहिए।हमारी सरकार की नाकामी ही कही जाएगी कि लगभग दस साल पहले सरकार ने कहा था कि देश के हर नागरिक का लेखा जोखा उसके पास होगा। इससे आपराधिक चरित्र वाले लोगों को पकड़ने में आसानी हो सकेगी। चूंकि देश की सबसे बडी पंचायत में ही दागदार छवि वाले लोग हैं, तब इस तरह की योजना के परवान चढ़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।पिछले साल अगस्त में उच्च न्यायालय ने सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर बंग्लादेशी मतदाताओं की स्थिति स्पष्ट करने को कहा था, साथ ही साथ मतदाता सूचियों में से बंग्लादेशियों के नाम विलोपित करने को भी कहा था। मजे की बात तो यह है कि देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के लिए सीधे सीधे जिम्मेदार गृह मंत्रालय भी यह स्वीकार करता है कि दिल्ली में अवैध तरीके से रह रहे बंग्लादेशियों की तादाद दस लाख के करीब है। कुछ साल पहले तक तो मध्य प्रदेश के खुफिया विभाग के पास उपलब्ध आकड़ों में बंग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या महज ग्यारह ही दर्ज थी, जबकि उस वक्त वड़ी तादाद में ये मध्य प्रदेश में निवास कर रहे थे। आज देश में इनकी तादाद बढ़कर करोड़ों में पहुंच गई हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली सदा से ही आतंकवादियों के निशाने पर रही है, यही कारण है कि तमाम तरह की सावधानी बरतने के बावजूद भी आताताई अपने इरादों में कामयाब होकर वारदात कर निकल जाते हैं। इन परिस्थितियों में घुसपैठियों के पास राशन कार्ड और मतदाता परिचय पत्र होना संगीन बात मानी जा सकती है, क्योंकि देश में हुई अनेक गंभीर वारदातों में बंग्लादेशी आतंकी संगठन हूजी के हाथ होने के पुख्ता प्रमाण भी मिले हैंं। राजधानी दिल्ली की लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी में दस लाख बंग्लादेशियों का होना देश के सुरक्षा और खुफिया तंत्र में अनगिनत छेदों को रेखांकित करने के लिए काफी है।देश भर में बड़ी तादाद में सालों से रह रहे बंग्लादेशी घुसपैठियों के मतों की फिकर में कोई भी राजनेता इनके खिलाफ कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि वोट की लालच में इनके खिलाफ आवाज बुलंद न करना आखिर कहां तक उचित है? आतंकवाद की आग में झुलस रहे देश में आतंक की रटी रटाई जुबान बोलने वाले ये राजनेता क्या अपने वोट बैंक के स्वार्थ की आड़ में देश और देश की जनता की सुरक्षा को दांव पर नहीं लगा रहे हैं?

नेगेटिव वोटिंग का अनोखा तरीका इजाद किया म.प्र के मतदाताओं ने

1473 लोगों ने मतदान केंद्र पहुंचकर नहीं डाला वोट!

खजुराहो में सर्वाधिक 712 तो बिदिशा में 15 मतदाताओं ने किया कमाल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राजनैतिक दलों की आपसी लड़ाई से जनता को हो रहे नुकसान के खिलाफ उबल रहे असंतोष ने मध्य प्रदेश में नेगेटिव वोटिंग का अनोखा तरीका इजाद किया है। यद्यपि अभी राष्ट्रीय स्तर पर बहस ही चल रही है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में नन ऑफ एबव (इनमें से कोई नहीं) का आप्शन रखा जाए या नहीं इस बारे में बहस ही चल रही है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने अपनी भड़ास निकालने का अनोखा तरीका इजाद कर लिया है।प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के 1473 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया वह भी बड़े ही अनोखे तरीके से। बताया जाता है कि मतदाता मतदान केंद्र पहुंचे, अपना नाम पंजी मे दर्ज करवाया, उंगली पर स्याही लगवाई, मतदान अधिकारी से फार्म मांगकर उसे बाकायदा भरा, किन्तु मतदान किए बिना ही वे मतदान केंद्र से चले गए।चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश में खजुराहो में 712, भोपाल में 418, छिंदवाड़ा में 189, बैतूल में 41, सतना में 31, बालाघाट में 20, रीवा में 17 एवं विदिशा में 15 मतदाताअों ने इस तरह मतदान केंद्र में जाकर मत न डालकर अपने विरोध का प्रदर्शन किया।बताया जाता है कि चुनाव आयोग के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कुल पड़े मतों और कुल जारी फार्म के बीच 1473 के आंकड़े की गड़बडी के बाद चुनाव आयोग हरकत में आया और उसने वस्तुस्थिति पता करनी चाही, जिसके उपरांत यह बात सामने आई है कि मतदाता ने वोट डालने की सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी अपने मताधिकार का प्रयोग न कर अपने अपने विरोध को दर्ज कराया है।

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