सोमवार, 27 अप्रैल 2009

पार्टी के आगे छोटे पड़ते संवैधानिक पद!

(लिमटी खरे)

क्या लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष किसी दल विशेष के लिए चुनाव प्रचार कर सकते हैं? इस संबंध में कानूनविदों की विभिन्न प्रकार की राय सामने आ रही है। इन संस्थाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को वस्तुत: दल विशेष के लिए चुनाव प्रचार नहीं करना चाहिए।
जिस तरह भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति का चुनाव किसी राजनैतिक दल के सदस्य का ही किया जाता है, किन्तु जब वह शपथ ग्रहण करता है, उसके बाद वह किसी दल विशेष का सदस्य नहीं रह जाता है, फिर वह समूचे राष्ट्र का हो जाता है। ठीक इसी तरह विधानसभा या लोकसभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का चयन किसी दल से ही किया जाता है, पर शपथ ग्रहण के उपरांत वह सदन का नेता होता है।
लोकसभा या विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों ही पद संवैधानिक होते हैं, इस मान से इन पर आसीन नेताओं को किसी भी तरह के राजनैतिक कार्यक्रमों में शिरकत करने से अपने आप को बचाकर रखना चाहिए। संविधान के जानकारों का मानना है कि इस तरह के संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों को किसी दल या राजनीति से उपर ही माना जाता है। अमूमन माना जाता है कि इस तरह के संवैधानिक पदों पर बैठे नेताअों पर यह जवाबदारी स्वत: ही आ जाती है कि जब तक वे उस पद पर रहें तब तक वे किसी राजनैतिक पार्टी का चुनाव प्रचार न करें।
इस तरह कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों में दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष योगानंद शास्त्री ने पिछले दिनों कांग्रेस के पक्ष में खुलकर प्रचार किया। वहीं दूसरी ओर दिल्ली के ही विधानसभा उपाध्यक्ष अमरीश गौतम भी योगानंद शास्त्री के कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस के प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार में जुटे हुए हैं। जब देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा का यह आलम है तो अन्य प्रदेशों की स्थिति समझी जा सकती है।
वैसे तो नैतिकता यही कहती है कि महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, महामहिम राज्यपाल, लोकसभा एवं विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को राजनैतिक दलों के प्रचार प्रसार से अपने आप को दूर ही रखा जाना चाहिए। हाल ही में राजस्थान में चुरू विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी अरूण चतुर्वेदी ने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.बलराम जाखड़ के फोटो होने पर चुनाव आयोग के समक्ष आपत्ति दर्ज करवाई है।
सच ही है जब कोई राजनैतिक दल का नेता संवैधानिक पद पर विराजमान हो जाए तो उसे कम से कम उस पद की गरिमा का विशेष ख्याल रखना चाहिए। देश भर में अमूमन हर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के विधानसभाध्यक्ष अथवा उपाध्यक्षों के फोटो से चुनावी विज्ञापन अटे पड़े हैं। इस तरह संवैघानिक मर्यादाएं भी तार तार हुए बिना नहीं हैं।
दिल्ली में जब चरतीलाल गोयल विधानसभा के अध्यक्ष हुआ करते थे, उस दौरान उन्होंने पार्टी के प्रचार आदि कार्यों को तिलांजली देकर संवेधानिक पद की गरिमा बरकरार रखी थी। उसी दौरान विधानसभा उपाध्यक्ष आलोक कुमार को अपने पद से इसलिए त्यागपत्र देना पड़ा था, क्योंकि उपाध्यक्ष रहते हुए वे वकालत कर रहे थे।
कानूनविदों के अनुसार लोकसभा और विधानसभाओं के अध्यक्ष पद को संवैधानिक पद का दर्जा दिया गया है। उक्त दोनों ही पद दलगत राजनीति से उपर माने जाते हैं। इसलिए इन पदों पर आसीन व्यक्तियों को पार्टी के क्रियाकलापों और बैठकों से दूर रहना चाहिए।
जिस तरह राष्ट्रपति (किसी पार्टी के नेता को ही इस पद पर बैठाया जाता है, किन्तु निर्वाचन के उपरान्त वह समूचे देश का प्रमुख होता है) दलगत राजनीति से उपर हो जाता है, उसी तरह लोकसभा या विधानसभा के अध्यक्षों को दलगत राजनीति से उपर ही होना चाहिए। कानून के जानकार यह भी कहते हैं कि अगर पार्टी उन्हें कोई राजनैतिक जवाबदारी देती है, तो वे अपने विवेक के अनुसार पद या जवाबदारी में से एक चुनें, और अगर जवाबदारी चुनते हैं तो पहले पद से त्यागपत्र देकर उक्त कार्य निष्पादित करें।
केंद्र सरकार को एक कानून बनाना चाहिए जिसमें देश के संवैधानिक पदों की गरिमा अक्क्षुण रखने के लिए आदर्श आचरण संहिता को सार्वजनिक तौर पर हर विधानसभा या लोकसभा चुनाव के उपरांत मुनादी पिटवानी चाहिए, ताकि देशवासी भी संवैधानिक पदों पर बैठने वालों पर नियंत्रण रख सकें, और इसकी गरिमा बरकरार रह सके।



कौन सा जिन्न निकालेंगी इस बार सोनिया

मनमोहन की पारी पूरी, दूसरी बार नहीं बन पाएंगे पीएम
- प्रणब की बजाए एंटोनी हैं सोनिया की पहली पसंद
- खामोशी के साथ शिंदे भी हैं पीएम की दौड़ में


(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। अगर कांग्रेस जोड़ तोड़ कर केंद्र में काबिज होती है, तो 7 रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री आवास) किसको आवंटित होएगा? इसी गुणाभाग में कांग्रेस के मैनेजर एन चुनाव के चलते गुणा भाग लगाने में व्यस्त हो गए हैं। वाम दलों की बेरूखी के चलते डॉ.एम.एम.सिंह को प्रधानमंत्री निवास खाली करना पड़ सकता है।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों के मशविरे पर कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने अब माईनस मनमोहन के विकल्प पर भी विचार आरंभ कर दिया है। इसके लिए उन्हें जो नाम सुझाए जा रहे हैं, उनमें प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे, ए.के.एंटोनी प्रमुख हैं।
वामदलों का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है। माकपा सचिव प्रकाश करात वैसे भी कांग्रेस को समर्थन न देने की बात कह रहे हैं, साथ ही वे मनमोहन के नाम पर तो कुछ भी सुनने तैयार नहीं हैं। पिछली मर्तबा नरमपंथी माने जाने वाले सुरजीत सिंह ने कांग्रेस को समर्थन दिया था, पर अब उनके स्थान पर हार्डकोर प्रकाश करात विराजमान हैं, जो बाहर से नहीं वरन् सत्ता में भागीदारी के साथ सशर्त समर्थन की बात कह रहे हैं।
कांग्रेस की ओर से सामने आने वाले नामों में प्रणब मुखर्जी को सोनिया गांधी शायद ही देश की कमान सौंपें, क्योंकि इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत प्रणब मुखर्जी ने खुद प्रधानमंत्री बनने की सारी जुगल लड़ा दी थी और राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में शूल बो दिए थे।
जानकारों का कहना है कि जब सोनिया ने नरसिंहराव से उनके लिए लड़ने वाले कुंवर अजुZन सिंह को पीएम नहीं बनाया तो राजीव गांधी के पीएम बनने का विरोध करने वाले प्रणव को भला क्यों वे इस पद पर काबिज होने देंगी। वैसे भी पीएम के बायपास सर्जरी आपरेशन के दौरान 26 जनवरी की परेड़ की सलामी के लिए सोनिया गांधी ने प्रणव के स्थान पर एंटोनी को चुनकर साफ संकेत दे दिए थे कि वे पुरानी बातें अभी भूली नहीं हैं।
वैसे कछुए की मंथर गति और विवादों से दूर रहने वाले दलित राजनेता सुशील कुमार शिंदे की लाटरी लगने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय उर्जा मंत्री शिंदे ने पिछले कई दिनोें से अपने आप को शोर शराबे से एकदम दूर ही रख रखा है।
जानकारों का कहना है कि अगर जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने में कांग्रेस सफल हो जाती है तो कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में पहला नाम सुशील कुमार शिंदे का होगा एवं दूसरे नंबर पर ए.के.अंटोनी को रखा जा रहा है। वैसे भी वामपंथियों के रूख से कांग्रेस चिंतित है, वह हर हाल में सत्ता की मलाई, पीएम की कुर्सी और वजनदार मंत्रालय अपने हाथों से खिसकाने कतई तैयार नहीं दिख रही है।


सिंधिया के प्रचार के तरीके की चर्चा
0 काली पट्टी बांधकर कर रहे चुनाव प्रचार
0 फूलमालाओं से भी है गुरेज
0 भिंड विधायक की हत्या का विरोध जता रहे हैं युवा तुर्क

(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के युवा तुर्क और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव प्रचार के तरीके की सर्वत्र चर्चा हो रही है। सिंधिया घराने के चिराग ज्योतिरादित्य इन दिनों अपने बाजू पर काली पट्टी बांधकर चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। इतना ही नहीं वे कार्यकर्ताओं द्वारा दी जा रही फूलमालाएं भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
बताया जाता है कि कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों सफेद धवल कुर्ता पायजामा के साथ अपने बाजू पर काली पट्टी बांधकर क्षेत्र में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अमूमन काली पट्टी बांधना विरोध का सूचक माना जाता है। गुना संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे सिंधिया ने भिंड क्षेत्र में इसी माह कांग्रेस के दलित विधायक माखनलाल जाटव की हत्या के विरोध में यह तरीका अपनाया गया है।
क्षेत्र में उमड़ने वाली भीड़ और कार्यकर्ताओं से वे फूलमालाएं भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस द्वारा जाटव की हत्या का विरोध किस तरह किया जा रहा है यह तो वही जाने किन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस तरह के अभिनव विरोध के तरीके की चर्चाएं राजनैतिक राजधानी दिल्ली में जमकर हो रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: