शनिवार, 6 जून 2009

6 june 2009

कैसे लगे सांसदों के असंसदीय व्यवहार पर लगाम?


(लिमटी खरे)


देश की दिशा और दशा तय करने वाली देश की सबसे बड़ी पंचायत में संसद सदस्यों का आचरण अब तमाम वर्जनाओं को धूल धूसारित करता जा रहा है। सांसद नैतिकता खोने की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके हैं। जब से लोकसभा ने अपना टीवी चेनल आरंभ किया है तब से समूचा देश संसद में होने वाले नंगे नाच को आसानी से देख पा रहा है, पर देशवासी बेबस हैं।भारत गणराज्य के गठन के दौरान सांसदों के आचरण के लिए भी नियम कायदे निर्धारित किए गए थे। लोकसभा सचिवालय ने बाकायदा पुस्तिका जारी कर संसदीय नियम कायदों का ब्योरा इसमें दिया था। पहली बार चुने गए सांसद के लिए इनकी जानकारी महत्वपूर्ण है, किन्तु अनेक बार चुने गए सांसद ही जब इसका माखौल उड़ाएंगे तो नवागत सांसद क्या सीख लेंगे।इस पुस्तिका में साफ उल्लेखित है कि सदस्यों को किसी सदस्य के बोलने के दौरान व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं सदन में नारेबाजी, धरना, विरोध या कागजों को फाड़ने जैसे कदमों को नियम विरूद्ध बताया गया है। इस पुस्तिका में सदन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए सदन में प्रवेश से लेकर उठने बैठने और बाहर जाने तक के तौर तरीकों को रेखांकित किया गया है।सदन में अध्यक्ष का दर्जा सबसे उपर है यह अकाट् सत्य है। यही कारण है कि न्यायालयों की भांति ही सदन में प्रवेश और निर्गम के समय अध्यक्ष के आसन को सर नवाने की ताकीद दी गई है। अध्यक्ष के संबोधन के दौरान सदन से बाहर नहीं जाना चाहिए साथ ही साथ अगर अध्यक्ष आसन ग्रहण कर रहे हों तो प्रवेश करने वाले सदस्य उनके आसन ग्रहण करने के उपरांत ही सदन में प्रवेश करें यह व्यवस्था भी रखी गई है।पुस्तिका में यह व्यवस्था भी दी गई है कि जब अध्यक्ष अपनी बात कहने के लिए खड़े हों तो सदस्यों को तत्काल अपने स्थान पर बैठ जाना चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि शार्ट टेंपर्ड सांसद उत्तेजना में आपा खो देते हैं, तो उनसे संसदीय आचरा के पालन की उम्मीद की जाना बेमानी ही होगा। संसदीय आचरण की इस हेण्ड बुक में तो यहां तक कहा गया है कि रोजगार या व्यवसायिक संपर्क वाले लोगों के लिए सिफारिशी पत्र लिखना भी नियम विरूद्ध ही है।पिछले दो दशकों में संसद की गरिमा तार तार हुए बिना नहीं रही है। जनादेश प्राप्त जनप्रतिनिधि संसद में जिस तरह का अशोभनीय व्यवहार करते आए हैं, उसकी महज निंदा से काम नहीं चलने वाला। आखिर वे देश के नीति निर्धारक हैं। देशवासियों के लिए वे अगुआ (पायोनियर) से कम नहीं हैं।चौदहवीं लोकसभा ने देशवासियों का सर शर्म से झुकाया है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। पिछली मर्तबा लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को कई बार कोफ्त का सामना करते देखा गया। सांसदों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर सोमदा की टिप्पणी कि इन सांसदों न तो जनता का एक पैसा दिया जाना चाहिए और न ही इन्हें दुबारा चुनकर आना चाहिए, वास्तव में जनता के दर्द को पूरी तरह रेखांकित करने के लिए काफी कही जा सकती है। सोमदा की निष्पक्षता की कीमत उन्हें पार्टी की सदस्यता खोकर चुकानी पड़ी जो वाकई एक नज़ीर कही जा सकती है।सदन में पैसे के बदले सवाल पूछने पर हुआ स्टिंग आपरेशन हो या सदन में नोट लहराने का मामला, हर मसले में संसदीय परंपरा तार तार हुए बिना नहीं रही है। कबूतर बाजी में फंसे संसद बाबू भाई कटारा ने तो सारी हदों को पार कर दिया। पिछली लोकसभा में सदन की न्यूनतम 332 बैठकों में कार्यवाही 423 घंटे बाधित रही यह अपने आप में एक रिकार्ड ही कहा जा सकता है। पूरे घटनाक्रमों को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि संसद की गरिमा और मर्यादा काफी हद तक कम हुई है, इसके अलावा सांसदों में गंभीरता का साफ आभाव भी देखा गया। इन सारी बातों से साफ हो जाता है कि संसद अपनी महत्ता पूरी तरह खोती जा रही है, इन प्रतिकूल परिस्थितियों में लोकतंत्र के अक्षुण्ण रहने की उम्मीद करना बेमानी ही होगा।अब लोकसभाध्यक्ष के आसन पर भारतीय विदेश सेवा की पूर्व अधिकारी सुशिक्षित, सुसंस्कृत और मृदुभाषी मीरा कुमार आसीन हैं। उन्होंने सदन की गरिमा को बरकरार रखने का भरोसा दिलाया है, किन्तु पहले ही दिन सदन में यादवी संघर्ष की हल्की सी झलक दिखाई पड़ी। सदन के बाहर लोग कहने से नहीं चूके आगाज यह है तो अंजाम क्या होगा?हमारे अपने मतानुसार जिस तरह देश में कानून के पालन के लिए हर नागरिक को बाध्य किया जाता है उसी तरह संसद और विधानसभाओं में जनप्रतिनिधियों के लिए बने कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाया जाना चाहिए, ताकि जनप्रतिनिधि अपनी हदों को पहचानकर लक्ष्मण रेखा पार करने की गुस्ताखी न कर सकें। इसके लिए जनप्रतिनिधियों को ही आगे आना होगा, जिसमें संशय ही लगता है।


संघ के हाथ में होगी भाजपा की कमान!

संघ का ``पालक`` होगा भाजपा सुप्रीमो

अब फैसला लेकर नहीं, पहले बताना होगा संघ को

भाजपा से उमर दराज नेताओं की सेवानिवृति की तैयारी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं की झींगा मस्ती के दिन जल्द ही समाप्त होने वाले हैं। राजग के घोषित पीएम इन वेटिंग के चेहरे के सामने आम चुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा के पितृ संगठन ने अब भाजपा की कमान सीधे सीधे अपने हाथों में लेने का फैसला ले निया है।संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा को सीधे नियंत्रण में लेने की गरज से संघ ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है। इसके लिए ``पालक`` नामक पद का सृजन करने की संघ में सैद्धांतिक सहमति बन गई है। संघ की प्रतिनिधि सभा में सह सरकार्यवाहक स्तर के पदाधिकारी की इस पद पर नियुक्ति का प्रस्ताव पेश करने की तैयारी चल रही है।सूत्रों ने बताया कि भाजपा को किसी भी बड़े फैसले को लेने के पूर्व पालक की अनुमति की दरकार होगी। अगर पालक को भाजपा की बात जमी तभी भाजपा उसकी घोषणा करेगी, अन्यथा भाजपा को अपने निर्णय में संशोधन करना होगा या फिर मामला निरस्त कर दिया जाएगा। गौरतलब होगा कि वर्तमान में भाजपा द्वारा पार्टी स्तर पर कोई भी फैसला लिया जाकर बाद में उससे संघ को आवगत कराया जाता है।संघ के सूत्रों ने कहा कि संघ प्रमुख इस बात से आश्वस्त हैं कि इस नई व्यवस्था के लागू होने के उपरांत भाजपा में अंदर और सतही तौर पर फैली खेमेबाजी पर अंकुश लगने के साथ ही साथ भाजपा अनुशासन के दायरे में रहेगी। उल्लेखनीय होगा कि सबसे अनुशासित पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में वर्तमान में अनुशासन की सीमाएं टूटती नजर आ रही हैं।गौरतलब होगा कि भाजपा की करारी शिकस्त के उपरांत संघ प्रमुख ने भाजपा के कायाकल्प का जिम्मा खुद ही संभाला है। इसी गरज से वे पिछले दिनों राजधानी दिल्ली प्रवास पर भी थे, जहां झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय ``केशव कुंज`` में उन्होंने लाल कृष्ण आड़वाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज आदि से विस्तार से चर्चा भी की थी।उधर भाजपा में अंदर ही अंदर बुजुर्ग नेताओं की मुखालफत का काम आरंभ हो गया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा विधायकों की बैठक के दौरान यह मांग पुरजोर तरीके से उठी कि उमरदराज नेता केवल आशीZवाद और सलाह देने की भूमिका स्वीकार कर सक्रिय राजनीति से किनारा कर लें, यह समय की मांग भी है और पार्टी का उत्थान इसी से संभव है।


ग्रीन सिग्नल के लिए तैयार राहुल एक्सप्रेस

टेलेंट सर्च पार्ट टू किसी भी समय

एमपी, यूपी, टीएन, बिहार और राजस्थान होगा पड़ाव

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने प्रतिभाशाली युवाओं की तलाश का दूसरा एपीसोड आरंभ करने की तैयारियां कर ली हैं। इस बार राहुल गांधी के निशाने पर मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सूबे हैं।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि पिछली मर्तबा हुए टेलेंट सर्च और लोकसभा में युवाओं की बढ़ी भागीदारी से राहुल गांधी काफी आशिन्वत नजर आ रहे हैं। राहुल की टीम जल्द ही इन पांच राज्यों में प्रतिभाशाली युवा खोजने का अभियान आरंभ करने जा रही है।सूत्रों के अनुसार टेलेंट सर्च भाग दो का प्रसारण महज चार माह ही होगा अथाZत युवाओं की खोज का काम नवंबर तक ही चलेगा, इसके उपरांंत दिसंबर में युवक कांग्रेस के चुनाव में इन युवाओं को पदों से नवाजा जाएगा। एसा नहीं कि देश के अन्य सूबों में राहुल एक्सप्रेस नहीं जाएगी, किन्तु यह काम अगले साल से आरंभ होगा।सूत्रों ने संकेत दिए कि सूबों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले राहुल गांधी देश भर में अपनी टीम तैयार करना चाह रहे हैं। इसके उपरांत अगले आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा युवाओं के भरोसे राहुल गांधी कांग्रेस की सरकार बनाने का जतन करेंगे।

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