गुरुवार, 30 जुलाई 2009

राजनीति की जद में बुंदेलखण्ड

(लिमटी खरे)


मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग चार दर्जन जिलों को मिलाकर बनने वाले वर्तमान काल्पनिक और पूर्व के वास्तविक बुंदेलखण्ड क्षेत्र पिछले कुछ सालों से राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया है। पिछले एक दशक से कांग्रेस द्वारा बार बार बुंदेलखण्ड के सूखे को राजनैतिक रंग दिया जा रहा है।
पिछले लगभग पांच सालों से मानसून मानो बुंदेलखण्ड अंचल से रूठ सा गया है। पिछले साल तो बारिश के पूर्व इस समूचे क्षेत्र में स्थितियां नियंत्रण से बाहर थीं। उस दौरान कांग्रेस ने केंद्र सरकार से बुंदेलखण्ड के लिए विशेष पैकेज की मांग की थी। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपए के पैकेज के लिए सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी।
पिछले ही साल कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र पर विशेष नजर रखी थी। इस दौरान उन्होंने अनेक ग्रामों में जनसंपर्क कर रातें भी दलितों के घरों पर बिताईं थीं। विपक्षी दल इसे राजनैतिक स्टंट करार देने से नहीं चूके, किन्तु राहुल का यह क्रम इन आरोपों से डिगा नहीं और लगातार चालू रहा।
राहुल गांधी की पहल पर पिछले साल जब केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपयों के विशेष आर्थिक पैकेज के लिए हामी भरी थी, तब भले ही बुंदेलखण्ड वासी इससे खुश हुए हों अथवा नहीं पर यहां पदस्थ प्रशासकीय अमले के चेहरों पर रौनक आ गई थी। प्रशासनिक तंत्र में फंसकर यह पैकेज अंतत: केद्र सरकार जारी ही नहीं कर पाई कि जोरदार बारिश ने इस पैकेज के औचित्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए थे। इसके बाद विधान सभा और लोकसभा चुनाव निपट गए, एवं विशेष पैकेज एक बार फिर कपूर के मानिंद गायब हो गया।
एक बार फिर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग कर उस जिन्न को जगा दिया है, जो कुछ समय से सो रहा था। मध्य प्रदेश सूबे के निजाम भला चुप कैसे रहते। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक बयान जड़ दिया कि इस पैकेज की मांग उनके द्वारा काफी समय से की जा रही है। शिवराज जानते हैं कि राहुल गांधी ने अगर पैकेज मांगा है तो डॉ.मनमोहन सिंह को उसे स्वीकार करना आवश्यक मजबूरी ही होगी।
बहरहाल यह सच है कि देश के विकास की प्रक्रिया अनेक असंतुलनों का शिकार रही है। उदहारण के तौर पर सबसे ज्यादा आयकर देने वाली देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई को आधारभूत ढांचे के लिए दिल्ली से कई गुना कम राशि मिलती है। महाराष्ट्र में ही एक तरफ औद्योगिक और कृषि आधारित संपन्नता है, तो किसानोंं के द्वारा आत्महत्या करने का आंकड़ा भी इस सूबे में सबसे ज्यादा ही है।
वैसे यह संतोष की बात मानी जा सकती है कि बुंदेलखण्ड का पिछड़ापन राजनैतिक परिदृश्य में एक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने इस क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार से आठ हजार करोड़ रूपयों का विशेष पैकेज मांगा है।
नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी के पुत्र, कांग्रेस के युवा महासचिव होने के नाते उनकी बात को वजन देना केंद्र सरकार की मजबूरी है। किसी की क्या मजाल के राहुल गांधी की मंशा के खिलाफ काम कर जाए। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर को राहुल गांधी के कोप का भाजन बनकर यह मंत्रालय छोड़ना पड़ा था, यद्यपि सरकारी तौर पर इसकी न तो पुष्टि की गई और न ही खण्डन पर चर्चा इसी बात की रही।
राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दििग्वजय सिंह ने अपने पठ्ठे से इस तरह का तीर चलवाकर कई निशाने एक साथ साध लिए हैं। एक तरफ उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड तो शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश के बुंंदेलखण्ड में घेरने का उपक्रम किया है।
वैसे यह भी सच है कि अगर राहुल गांधी की अपील पर इस क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज स्वीकार कर लिया जाता है तो आने वाले दिनों में बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि भी विशेष पैकेज की मांग के लिए अड़ जाएंगे, तब इनसे निपटना केंद्र के लिए बहुत मुश्किल होगा। गौरतलब होगा कि हाल ही में नितिश कुमार द्वारा बिहार को विशेष पैकेज दिए जाने की मांग कई मर्तबा की जा चुकी है।
बताते हैं कि केंद्र में सत्तारूढ कांग्रेस चाहती है कि एक प्राधिकरण बनाया जाए जो केंद्र के अधीन काम करे और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करे। जाहिर है, इस तरह की बात न तो मध्य प्रदेश को ही रास आएगी न तो उत्तर प्रदेश सरकार को।
केंद्र सरकार को चाहिए कि अगर वह बुंदेलखण्ड के लिए ``विशेष पैकेज`` की घोषणा करने वाली है, तो जल्दी करे एवं इसके लिए आवंटित धन का एक एक पैसा जरूरतमंद तक पहुंचे इस बात को अवश्य सुनिश्चित करे, अन्यथा आठ हजार करोड़ रूपयों में से महज चंद रूपए ही जरूरत मंदों के पास पहुंचेंगे और शेष राशि उनके हाथों में होगी जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत नहीं है।

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फिर ताकतवर होकर उभरे हैं सुरेश सोनी
- अपने गुर्गों को दिलाया राज्य सभा में स्थान
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी एकाएक बहुत ताकतवर होकर उभरे हैं। मध्य प्रदेश से राज्य सभा की दो रिक्त हुई सीटोें पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों के नामों पर मुहर लगने से अब भाजपा में उनका दखल काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
संघ के सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा में चुने जाने से रिक्त हुई दो सीटों पर भाजपा में एक अनार सौ बीमार की स्थिति बन गई थी। अंत में अपने अपने नेता के लिए लाबिंग करने वालों के पैरों तले जमीन खिसक गई, जब कप्तान सिंह सोलंकी और अनिल माधव दुबे के नामों पर अंतिम मोहर लगा दी गई।
गौरतलब होगा कि पूर्व में चल रही चर्चाओं में मध्य प्रदेश के कोटे से सिने तारिका हेमा मालिनी या मुख्तान अब्बास नकवी अथवा भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने चहेते पीयूष गोयल को एक सीट देकर दूसरी सीट मध्य प्रदेश के नेताओं के लिए छोड़ देंगे। बाहरी उम्मीदवारों की खिलाफत होने पर मामला गड़बड़ा गया था।
एक तरफ शिवराज सिंह चौहान ने अपना कौल निभाते हुए अनिल माधव दुबे के लिए अपनी सिफारिश कर दी थी। ज्ञातव्य है कि लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से अनिल दवे ने अपनी दमदार दावेदारी प्रस्तुत की थी। इस सीट पर शिवराज सिंह चौहान की पसंद रामपाल सिंह थे। सूत्रों ने बताया कि उस समय चौहान ने दवे से वादा किया था कि राज्य सभा वाले मामले में वे दवे का साथ देंगे।
वैसे दवे के नाम पर भाजपा के संगठन मंत्री माखन सिंह कतई तैयार नहीं बताए जाते थे। माखन की पहली पसंद मेघराज जैन थी, मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का भी यही दावा है कि मेघराज जैन के लिए मुख्यमंत्री भी तैयार थे। अंत में मुख्यमंत्री ने अनिल दवे के साथ किया वादा निभाते हुए उनके नाम पर अंतिम मोहर लगवा ही दी।
सूत्रों के अनुसार उधर कप्तान सिंह सोलंकी के लिए भी माखन सिंह राजी नहीं थे। इसके साथ ही साथ नरेंद्र तोमर का वरद हस्त ब्रजेंद्र सिंह सिसोदिया के उपर था। भाजपा के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सुरेश सोनी के वीटो के बाद ही सोलंकी और दवे के राज्य सभा में जाने के मार्ग प्रशस्त हो सके हैं।

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