गुरुवार, 19 नवंबर 2009

असहनीय और अक्षम्य लापरवाही


असहनीय और अक्षम्य लापरवाही


(लिमटी खरे)



देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में बीते साल हुए देश के सबसे बडे आतंकी हमले की बरसी मनाने जा रहा है हिन्दुस्तान। ऐसे में आतंकियों की गोली के शिकार हुए शहीदों को भी नमन किया जाएगा। 26/11 के हमले में शहीद हुए थे, एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे। साल भर बाद भी करकरे की पित्न अपने पति के साथ क्या हुआ यह जानने के लिए दर दर भटक रही है, यह है भारत गणराज्य के नपुंसक ``जन सेवकों`` की सहृदयता।


हेमंत करकरे की बेवा कविता ने हमले के दौरान पुलिस के द्वारा उठाए गए कदमों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं। कविता का आरोप है कि हमले के दौरान उनके पति द्वारा जो बुलट प्रूफ जेकेट पहन रखी थी, वह अब कहां है। कविता के इस प्रश्न से पुलिस द्वारा संरक्षित किए गए साक्ष्य और कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।


लचर कानून व्यवस्था का यह आलम है कि जब करकरे का शव बरामद किया गया था, तब उनके तन पर बुलट प्रूफ जेकेट नहीं थी, न ही वह बाद में अस्पताल में ही मिली। सूचना के अधिकार में जब इस बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि वह बुलट प्रूफ जेकेट गायब है!


आश्चर्य तो तब होता है जब यह पता चलता है कि जब मुंबई के कामा अस्पताल के करीब घात लगाए बैठे आतंकियों ने हेमंत करकरे, अशोक काम्टे और विजय सालस्कर पर गोलियां चलाईं तब वे बुलट प्रूफ जेकेट पहने हुए थे। बावजूद इसके उनके सीने पर गोलियों के तीन गंभीर घाव थे। यह वाक्या ही बुलट प्रूफ जेकेट की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी माने जा सकते हैं। हो सकता है गुणवत्ता विहीन जेकेट को पोल खुलने के डर से अधिकारियों द्वारा ही गायब करवा दिया गया हो!


कविता का कहना है कि उन्हें अपने पति की मौत किस तरह हुई की जानकारी मीडिया से ही मिली है। समाचार चेनल्स में साफ दिखाया गया है कि जब करकरे सीएसटी पहुंचे तब वे जेकेट पहने हुए थे। वैसे भी 1982 के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी करकरे सुरक्षा के प्रति काफी सजग थे। जब एटीएस चीफ के साथ ही एसा हादसा हो सकता है, तब देश की सवा करोड से भी अधिक जनता की हिफाजत की बात किस मंह से कर रही है केंद्र सरकार!


सुरक्षा तंत्र पर भी कविता ने सवालिया निशान लगाए हैं। बकौल कविता जब उनके पति ने मदद की गुहार लगाई थी, तब भी चालीस मिनिट के बाद भी मदद के लिए पुलिस वहां नहीं पहुंची। ठाणे, वाशी, पनवेल में हुए सीरियल बम ब्लास्ट को सुलझाने और विस्फोट में कट्टरपंथी भगवा संगठनों का हाथ होने की बात प्रमाणित करने वाले करकरे चाहते तो अपने वातानुकूलित कक्ष में बैठकर अपने मातहतों को निर्देश दे सकते थे, किन्तु देशप्रेम का जज्वा अपने दिल में संजोने वाले जांबाज करकरे ने एसा किया नहीं, वे घटना स्थल पर जाकर आतंकियों से जूझे थे।


कविता की पीडा समझी जा सकती है। संवेदनहीन ``जनसेवक`` और प्रशासनिक तंत्र किस कदर निकम्मा हो चुका है कि किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने आज साल भर बाद भी कविता करकरे को यह बताने की जहमत नही उठाई कि आखिर उनके पति के साथ क्या हुआ था।


राजकीय सम्मान के साथ करकरे की अंत्येष्ठी कर सरकारी तंत्र ने रस्म अदायगी कर डाली है। इस तरह की लापरवाही को असहनीय और क्षमा योग्य नहीं माना जा सकता है। देश की सबसे बडी पंचायत ``संसद`` में भी इस आतंकी हमले को लेकर गर्मा गरम बहस हुई, पर करकरे के साथ हुए हादसे पर चर्चा करना किसी भी जनसेवक ने उचित नहीं समझा।


हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज के ``जन सेवक`` संसद या विधानसभा में महज उन्हीं प्रश्नों को उठाते है, जो उनके निहित स्वार्थों से जुडे होते हैं। आम जनता से जुडे प्रश्नों को उठाने की परंपरा तो मानो समाप्त ही हो गई है। गौरतलब होगा कि आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद की आग में झुलस रहे हिन्दुस्तान को आतंक के खौफ से बचाने के लिए एटीएस का गठन किया गया है।


विडम्बना ही कही जाएगी कि एटीएस का प्रमुख ही जब इससे सुरक्षित नहीं था तो आम भारतीय की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। ``जनसेवक`` अवश्य ही सुरक्षा गार्ड्स के घेरे में आपने आप को महफूज पाते होंगे, किन्तु आम हिन्दुस्तानी हर कदम पर डर और दशहत की सांस ले रहा है।


बहुत ही शर्म की बात है कि देश में आतंक निरोधी दस्ते के प्रमुख की बेवा एक साल से अपने पति के साथ हुए हादसे को लेकर उसके जेहन में उपजे सवालों के जवाब के लिए दर दर भटक रही है, और देश के जनसेवक ``नीरो`` के मानिंद चेन की बंसी बजा रहे हैं।



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