गुरुवार, 7 जनवरी 2010

आदिवासियों को पट्टे न मिलने से खफा है केंद्र

आदिवासियों को पट्टे न मिलने से खफा है केंद्र


छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश काफी पिछडे

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 05 जनवरी। आदिवासियों को वनभूमि के पट्टे देने की केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना में पलीता लगाने वाले राज्यों पर जल्द ही केंद्र सरकार की नजरें तिरछी हो सकतीं हैं। देश के लगभग डेढ दर्जन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग तीस लाख प्रकरण अभी भी अफरशाही और बाबूराज के चलते लंबित पडे हैं।


केद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सबों ने अब तक महज तीस हजार पट्टों के प्रकरणों का ही निष्पादन किया है। सूत्रों ने यह भी बताया कि गैर कांग्रेसी सरकारें जानबूझकर केंद्र सरकार की इस अभिनव योजना में दिलचस्पी नहीं ले रहीं हैं, ताकि कांग्रेस के परंपरागत आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके।

सूत्रों ने यह भी संकेत दिए हैं कि लगभग दो लाख प्रकरण अभी तैयार पडे हुए हैं किन्तु राज्य सरकारें अनावश्यक अडंगेबाजी कर विलंब करने पर आमदा हैं। राज्यों में अफसरशाही और बाबूराज के बेलगाम घोडे इस कदर दौड रहे हैं कि हर माह राज्य सरकारों को पट्टा बांटने के लिए भेजी जाने वाली सूचना का जवाब देना भी सूबों की सरकारें उचित नहीं समझतीं हैं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ में चार लाख, मध्य प्रदेश में पौने चार लाख, महाराष्ट्र में ढाई लाख, आंध्र प्रदेश में सवा तीन लाख, उडीसा में तीन लाख तो पश्चिम बंगाल में लगभग डेढ लाख प्रकरण अभी भी सरकारी मुहर की बाट ही जोह रहे हैं। बताया जाता है कि तमिलनाडू, केरल, बिहार, उडीसा, कर्नाटका, अरूणाचल प्रदेश आदि में तो अभी पट्टे बांटने के काम का श्रीगणेश भी नहीं किया जा सका है।

उधर सूबों की सरकारों की ओर से जो खबरें छन छन कर देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली पहुंच रहीं हैं, उनके मुताबिक सरकारी रिकार्ड में की गई जबर्दस्त हेरफेर के कारण इसमें विलंब हो रहा है। सूबों में अधिकारियों द्वारा आदिवासियों से आय प्रमाण पत्र के साथ ही साथ अन्य दस्तावेजों की मांग की जा रही है, जिसके चलते इस काम में विलंब हो रहा है।

गौरतलब होगा कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया स्वयं भाजपा शासित मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल से संसद सदस्य चुने गए हैं। उनके अपने सूबे में ही पौने चार लाख प्रकरणों का लंबित होना दर्शा रहा है कि वे केंद्र सरकार में अपनी जवाबदारी के निर्वहन के साथ अपने सूबे के आदिवासी भाईयों को कितना न्याय दिला पा रहे हैं।

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