मंगलवार, 5 जनवरी 2010

विद्यार्थी परिषद के नेताओं की होने वाली है बल्ले बल्ले

विद्यार्थी परिषद के नेताओं की होने वाली है बल्ले बल्ले


एबीवीपी के संस्कारों को आगे बढाने के हिमायती हैं गडकरी

धूमल को चलना होगा संभल संभल कर

यूपी को लेकर गडकरी की पेशानी पर छलक रहा है पसीना

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 05 जनवरी। महाराष्ट्र प्रदेश के क्षत्रप नितिन गडकरी के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेताओं की बांछे खिल गईं हैं। भारतीय जनता पार्टी में एबीवीपी काडर से आए नेताओं की खुशी का अब ठिकाना नहीं है। इसका कारण नितिन गडकरी भले ही आरएसएस के बटवृक्ष के तले पले बढे हों, पर वे आए तो एबीवीपी की शाख से ही हैं।


भाजपा का सिंहासन संभालने के बाद भरी हुंकार में गडकरी ने साफ कह दिया था कि वे एबीवीपी के संस्कारों को आगे बढाएंगे। गडकरी के इस वक्तव्य ने किसी को हिलाया हो या न हिलाया हो, पर हिमाचल के निजाम प्रेम कुमार धूमल के पांव के नीचे से जमीन खिसकती ही दिख रही है।

दरअसल धूमल की राज्य के एबीवीपी के नेताओं से जरा भी नही बनती है। बीते दिनों हिमाचल प्रदेश में मण्डी के डिप्टी कमिश्नर को हटाने के लिए सूबे की एबीवीपी इकाई ने मुहिम चलाई थी। धूमल भी अडे रहे बाद में जब आलाकमान ने हस्ताक्षेप किया तब जाकर कहीं मामला सुलटा। यह गडकरी की ताजपोशी के पहले की कहानी थी। वैसे भी राजनाथ सिंह के रहते धूमल ठाकुरवाद की छांव में चुपचाप सुस्ताते रहे। अब जमाना बदल गया है। गडकरी महराष्ट्रीयन ब्राम्हण हैं, देरसबेर उनका ब्राम्हण प्रेम छलकेगा और तब प्रेम कुमार की राह में शूल ही शूल नजर आने लगेंगे।

गडकरी के करीबी सूत्रों का कहना है कि गडकरी ब्राम्हणों के हिमायती रहे हैं, साथ ही वे विद्यार्थी परिषद में पले पुसे नेताओं को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में हैं। सूत्रों का कहना है कि गडकरी ने अब तक का सफर परिषद के बाद संघ के साथ बिताया है, इसलिए वे जानते हैं कि युवा मन में घुमडने वाली उद्दंडता अंत्तोगत्वा समय और उमर के साथ गंभीरता में तब्दील हो ही जाती है, और तब एबीवीपी के पढाए पाठ से राजनैतिक बिसात पर चलना आसान हो जाता है।

उधर उत्तर प्रदेश में भाजपा के रसातल में जाने से गडकरी बहुत परेशान नजर आ रहे हैं। भाजपा के शीर्ष पदों पर एक बार फिर ब्राम्हणों के बिठा दिए जाने से जातिवाद की राजनीति को अंगीकार कर चुका उत्तर प्रदेश पूरी तरह से भाजपा के हाथ से फिसल सकता है। भाजपा में अब पुराने चेहरों के बजाए नया नेतृत्व उभारकर ही उत्तर प्रदेश में वेतरणी पार की जा सकती है।

सूबे में भाजपा के वर्तमान में जनाधार का आलम यह है कि विधान परिषद की 36 सीटों पर होने वाले चुनावों में भाजपा ने महज 25 स्थानों पर ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं शेष 11 स्थानों पर भाजपा का नामलेवा भी नहीं बचा है। मजे की बात तो यह है कि बनारस जो मुरली मनोहर जोशी और गाजियाबाद जो निर्वतमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह का चुनाव क्षेत्र है, से भाजपा को उम्मीदवार ही नहीं मिल सके हैं।


कोई टिप्पणी नहीं: