सोमवार, 19 अप्रैल 2010

सिहांसन पर बोने ही नज़र आ रहे हैं गडकरी

सिहांसन पर बोने ही नज़र आ रहे हैं गडकरी

गद्दी सम्भालने में हो रही परेशानी
 
गुटबाजी आ रही काम में आडे
 21 की रेली बनी प्रतिष्ठा का प्रश्न
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 अप्रेल। सूबाई राजनीति से निकलकर एकाएक राष्ट्रीय परिदृश्य में बिठा दिए गए भाजपा के नए निजाम नितन गडकरी को अब गद्दी सम्भालना मुश्किल हो रहा है। सालों से केन्द्र की राजनीति में जमे जकडे नेताओं के काकस में वे धीरे धीरे घिरते नज़र आ रहे हैं। भाजपा में फैली गुटबाजी और सत्ता के लिए ललक के साथ ही महात्वाकांक्षी नेताओं ने गडकरी को बोना ही साबित करना आरम्भ कर दिया है। 21 अप्रेल को आहूत रेली की सफलता पर उनका आने वाला समय कैसा होगा यह काफी हद तक निर्भर करेगा।
 
भाजपा को घुन की तरह खाने वाले नेताओं के तेवरों को देखकर नितिन गडकरी को अपने अनेक फैसले खुद ही बदलने पड रहे हैं। भाजपा के नेताओं को अपने अपने क्षेत्रों में माह में कम से कम आठ दिन रहने के निर्देश के बाद उसे बदलकर आठ दिन करना गडकरी की मजबूरी हो गई थी। इसके अलावा 21 अप्रेल की रेली में दस लाख लोगों के जमावडे के लक्ष्य को भी घटाकर साढे तीन लाख पर लाकर खडा करना पडा। यह सब इन्ही घाघ नेताओं के कदम तालों के चलते हुआ है।
 
गौरतलब है कि गडकरी ने अध्यक्ष बनने के बाद यह कहा था कि वे अपनी टीम में उन्हीं लोगों को स्थान देंगे जो हर माह कम से कम दस दिन अपने क्षेत्र को समय देंगे। जब ``टीम गडकरी`` का गठन हुआ तो उसमें पुराने पदाधिकारियों को देखकर हर कोई इसे नई बोतल में पुरानी शराब की संज्ञा देने से नहीं चूका। टीम गडकरी के गठन के साथ ही साथ असन्तोष की खिचडी भी खदबदाने लगी है। लोग इसमें रूपहले पर्दे के अनुभवहीन अदाकारों को शोभा की सुपारी बनाए जाने से खासे खफा नज़र आ रहे हैं।
 
उधर नितिन गडकरी ने अब सूबों के अध्यक्षों की मश्कें कसना आरम्भ कर दिया है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि गडकरी ने एक फरमान जारी किया है जिसमें साफ कहा गया है कि पार्टी के कार्यकर्ता अपनी समस्या के लिए पार्टी अध्यक्ष के कार्यालय के बाहर कतई न जाएं। अपनी समस्याएं पार्टी अध्यक्ष को न बताकर उन्हें दल के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष रखने पर वे खासे नाराज नज़र आ रहे हैं।
 
नई व्यवस्था के तहत अब किसी भी मुद्दे को सिर्फ और सिर्फ पार्टी अध्यक्ष के दफ्तर में ही उठाया जा सकेगा, एवं पार्टी अध्यक्ष का कार्यालय ही उस पर कार्यवाही करेगा। शिकायतों को अब सीधे वरिष्ठ नेताओं तक ले जाने की मनाही है। सूत्रों ने साफ किया कि कार्यकर्ता चाहे तो वरिष्ठ नेता से मिल सकता है, किन्तु अपनी समस्या के बारे में वह नेता से चर्चा नहीं करेगा। गडकरी का यह कदम पार्टी को वरिष्ठ नेताओं के प्रभाव और गणेश परिक्रमा से मुक्त कराने के तौर पर देखा जा रहा है। संघ भी गडकरी की इस अभिनव पहल में उसके साथ ही खडा दिखाई दे रहा है।

1 टिप्पणी:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

संगठन में मुखिया तो किसी को भी बनाया जा सकता है लेकिन उसका आभा मण्‍डल भी बनाना आवश्‍यक होता है। जैसे कांग्रेस ने सोनिया का आभामण्‍डल इतना बड़ा कर दिया कि बाकि सारे ही लोग गौण हो गए। तभी संगठन चल पाते हैं। भाजपा में ऐसा होना नितान्‍त असम्‍भव लगता है इसलिए यहाँ ऐसे ही चलेगा।