बुधवार, 28 अप्रैल 2010

और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में


और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में
 
पीपीपी के तहत होगा क्रियान्वयन
 

सिब्बल का एक और महाप्रयोग
 

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 28 अप्रेल। केन्द्रीय विद्यालयों में अब पढाई से इतर कामों के लिए विद्यालय प्रशासन को भागदौड नहीं करनी होगी। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय एक एसी योजना पर विचार कर रहा है, जिससे समूचे देश में केन्द्रीय विद्यालयों को स्कूल के रखरखाव की समस्या से निजात मिलने की उम्मीद है। केन्द्रीय विद्यालय प्रबंधन अब अपना समूचा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढाई पर ही केन्द्रित करेगा, विद्यालय भवनों के रखरखाव की जवाबदारी अब निजी हाथों को दी जाने वाली है।
 
केन्द्रीय विद्यालय संगठन के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि जब भी कोई नया मानव संसाधन मन्त्री आकर जवाबदारी सम्भालता है, वह एक नया प्रयोग अवश्य ही करता है। कभी शिक्षा का भगवाकरण हो जाता है, तो कभी भारतवर्ष के इतिहास से ही छेडछाड होने लगती है। हाल ही में एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल द्वारा ग्रेडिंग सिस्टम को लागू करवाकर एक नया प्रयोग किया है, और अब विद्यालय भवनों के रखरखाव की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन के हाथ से लेकर निजी हाथों में देने पर विचार किया जा रहा है।

एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल के करीबी सूत्रों का कहना है कि सिब्बल का मानना है कि एसा करने से विद्यालय प्रशासन अपना पूरा ध्यान शैक्षणिक गतिविधियों पर केन्द्रित कर सकेंगे। वैसे इमारतों के रखरखाव आदि का काम पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत दिए जाने पर जोर शोर से विचार किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि सिब्बल मानते हैं कि इस अभिनव प्रयोग से शालाओं की दिशा और दशा दोनों ही में सुधार की उम्मीद है।

गौरतलब है कि वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय वैसे भी माडल स्कूल के तौर पर जाने जाते हैं। इन शालाओं में दाखिला आज भी प्रतिष्ठा का ही प्रश्न बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिए केटेगरी निर्धारित की गई है, जिसके चलते निजी या व्यवसाय में रत लोगों के बच्चे इसमें प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। माना जा रहा है कि पढाई से इतर अन्य प्रबंधन निजी हाथों में आ जाने से एक ओर जहां विद्यालय प्रशासन का ध्यान पढाई में ही केन्द्रित होगा जिससे पढाई का गिरता स्तर सुधरेगा, वहीं दूसरी ओर रखरखाव का काम भी योजनाबद्ध तरीके से समयसीमा में पूरा किया जा सकेगा।

1 टिप्पणी:

अजय कुमार झा ने कहा…

जी हां ये कदम सिर्फ़ तब तक स्वागतयोग्य होगा जब तक कि इन सबकी कीमत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों और उनके अभिभावकों से न वसूली जाए ॥