गुरुवार, 6 मई 2010

सांसदों की पांचों उंगलियां घी में

सांसदों की पांचों उंगलियां घी में

सांसद निधि को उचित ठहराया अदालत ने

वेतन को तीन गुना बढाने की तैयारी

असली मलाई काट रहे हैं जनसेवक

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 06 मई। देश के नीति निर्धारक जनसेवक अब आवाम की सेहत का ध्यान रखने के बजाए अपनी खुद की सेहत सुधारते ही नजर आ रहे हैं। आजादी के वक्त जनसेवकों के मन में जो देश सेवा का जो जुनून दिखाई पडता था, आज वो कहीं खो सा गया लगता है। आधी धोती पहनकर ब्रितानियों को देश से खदेडने वाले महात्मा गांधी के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले जनसेवकों केा अब जनता की कोई परवाह ही नहीं रह गई है।

एक तरफ देश के सत्तर फीसदी लोगों को दो समय पोष्टिक भोजन के लाले पडे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर देश की सबसे बडी पंचायत (संसद) के सदस्य अपना वेतन तीन गुना बढवाने की जुगत भिडा रहे हैं। गौरतलब है कि वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने भी कहा था कि अगर महिला आरक्षण विधेयक परवान चढ गया तो बडी मात्रा में पुरूष सांसदों को अनिवार्य सेवानिवृति लेने पर मजबूर होना पडेगा इसलिए सांसदों का वेतन अस्सी हजार और उनकी पेंशन एक लाख रूपए महीना कर दी जानी चाहिए।

संसद में लगातार हंगामे और गतिरोध के उपरांत इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि देश के ‘‘गरीब जनसेवक सांसदों‘‘ के वेतन और भत्तों में तीन गुना बढोत्तरी कर दी जाए। बजट सत्र के अंतिम दिन सांसदों को यह तोहफा देने की तैयारी की जा रही है। ध्यान रहे कि जनसेवकों का वेतन और एशो आराम की हर चीज देश की आवाम से वसूले कर से ही मुहैया करवाई जाती है।

संसद से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सांसदों के वेतन और भत्तों से संबंधित समिति ने सिफारिश भी दे दी है कि सांसदों का मूल वेतन मंत्रालयों के सचिवों से अधिक अर्थात अस्सी हजार रूपए महीना होना चाहिए। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों ने बताया कि इस प्रस्ताव को मंत्रिमण्डल (केबनेट) की अनुमति के बाद संसद में प्रस्ताव पारित करवा दिया जाएगा। इस मसले पर लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिह यादव ने वित्त मंत्री से तीन घंटे तक रायशुमारी भी की है।

सूत्रों ने कहा कि समिति के सदस्य एस.एस.अहलूवालिया ने कहा है कि चूंकि प्रोटोकाल के अनुसार भारत गणराज्य में सांसदों की औकात (स्थिति) भारत सरकार के सचिव से उपर ही होती है, अतः उनका वेतन भी सचिव से अधिक ही होना चाहिए। वर्तमान समय में सांसदों को 16 हजार रूपए महीना मूल वेतन और भत्ते आदि मिलाकर 40 हजार रूपए की राशि मिलती है। इसके अलावा आना निशुल्क, जाना निशुल्क, दिल्ली में रहना निशुल्क, बिजली निशुल्क, हवाई यात्राएं निशुल्क आदि न जाने कितनी सुविधाएं मिलती हैं। वहीं सचिवों का मूल वेतन 80 हजार है, इसमें 47 फीसदी मंहगाई भत्ता अगर जोड दिया जाए तो सचिव को प्रतिमाह एक लाख सत्रह हजार छः सौ रूपए तनख्वाह मिलती है। दोनों हाथों से देश की रियाया की गर्दन मरोडने वाले जनसेवकों ने सांसद निधि बढाने का जतन भी किया था, जिसे योजना आयोग ने सिरे से ही खारिज कर दिया था। अदालत ने सांसदों को दी जाने वाली वर्तमान निधि को उचित ठहराया है।

2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

शर्मनाक फैसला / गरीबों का खून चूसने वालों को खुली आजादी है इस देश में /

RAJ SINH ने कहा…

चलिए काले को सफ़ेद तो करेंगे .