सोमवार, 26 जुलाई 2010

सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (5)

पालक खुद सोच समझकर शाला में प्रवेश दिलाएं, किसी शाला के लिए हमारी कोई जवाबदेही नहीं: पटले

सिवनी। किस शाला में प्रवेश दिलाना है कौन सी शाला बच्चों के लिए अच्छा और स्वच्छ वातावरण देने में सक्षम है, कौन सी शाला सीबीएसई या मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मण्डल बोर्ड की मान्यता लिए है या लेने वाली है, या इसका प्रलोभन दे रही है?, इस बारे में हम क्या कर सकते हैं, यह सोचना पालकों का अपने विवेक का काम है. उक्ताशय के गैरजिम्मेदाराना कथन नवागत जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहे.
 
गौरतलब है कि पिछले दो तीन सालों से सिवनी जिले में कुकरमुत्ते की तरह चलने वाले निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मण्डल के स्थान पर केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) का प्रलोभन सरेआम दिया जा रहा है. चूंकि सीबीएसई बोर्ड की पढाई एमपी बोर्ड से लाख दर्जे उच्च स्तर की होती है, एवं इनके प्रोडक्टस को आगे आने वाले समय में उच्च शिक्षा में काफी हद तक लाभ मिल सकता है. इसी के चलते पालकों का आकर्षण सीबीएसई स्कूलों की तरफ होना स्वाभाविक ही है. नगर में संचालित होने वाली शालाओं में मुख्यत सेंट फ्रांसिस स्कूल, अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाटस), मार्डन नर्सरी, मिशन इंगलिश स्कूल आदि का प्रबंधन चाह रहा है कि उन्हें सीबीएसई की मान्यता मिल जाए.
 
इन शालाओं में से टाईनी टाटस स्कूल ने अपने विद्यार्थियों से केपीटेशन फीस (बिल्डिंग फंड, एवं अन्य मदों में ली जाने वाली राशि) के बलबूते बरघाट नाके पर अपना शाला भवन तैयार कर लिया, इसी तरह सेंट फ्रांसिस स्कूल ने जबलपुर रोड पर अपना शाला भवन बनाना आरंभ किया है. शहर में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार इन शालाओं में प्रवेश लेने के उपरांत जब पालकों को वास्तविकता का पता चला तो उनके पास पछताने के अलावा कुछ और नहीं बचा.
 
इस संबंध में जब जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से संपर्क साधा गया तो उन्होंने मोबाईल पर चर्चा के दौरान कहा कि नई नीति के अनुसार कोई भी शाला नवमी कक्षा में तब तक प्रवेश नहीं आरंभ करवा सकती है, जब तक कि उसे मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता न दी जाए. जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने आगे यह भी कहा कि किस शाल में प्रवेश दिलाना है किसमें नहीं यह फैसला नितांत तौर पर विद्यार्थी के पालक का ही होता है, किन्तु जब उनसे यह पूछा गया कि अगर सीबीएसई का दिखावा करने वाली शालाओं के पास सीबीएसई की मान्यता न हो तब पालकों को इस छल से बचाने की जवाबदेही किस पर आती है? इस प्रश्र के जवाब में जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने कहा कि इस मामले में  जिला शिक्षा अधिकारी भला क्या कर सकता? समूचा मामला पालक और शिक्षण संस्थाओं के संचालकों के बीच का है, इसमें हस्ताक्षेप करने वाला  जिला शिक्षा अधिकारी कौन होता है?
 
जहां तक रही शाला के द्वारा विद्यार्थियों को आवागमन के साधन, स्वच्छ हवादार वातावरण, खेल का अच्छा मैदान, भौतिक रसायन, रसायन शास्त्र, प्राणी विज्ञान की प्रयोगशालाओं, कम्पयूटर लेब, शौचालय, पुस्तकालय आदि की बात, तो इस मामले में  जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले का कहना है कि व्यक्ति को चुना जाएगा, फिर उसे लिखित में निरीक्षण करने का निर्देश जारी किया जाएगा, उसके उपरांत वह व्यक्ति जाकर इन शालाओं का निरीक्षण करने की तिथि निर्धारित करेगा, जब उसे समय मिलेगा तब वह जाकर उसका निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा. जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले के अनुसार कागजी कार्यवाही में समय लगता है, सो समय का इंतजार करने के अलावा और क्या किया जा सकता है.
 
मीडिया द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से जब यह जानना चाहा कि जब तक सीबीएसई बोर्ड द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है, तब तक के समय अर्थात ट्रांजिट टाईम में शाला किसके नियंत्रण में रहेगी? इस प्रश्र के जवाब में  जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले अपनी बात पर ही अडिग रहे कि नए नियमों के हिसाब से जब तक सीबीएसई बोर्ड की मान्यता नहीं मिल जाती है, तब तक वह शाला नवमीं या ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश नहीं दे सकती है.
 
शहर में सीबीएसई के लिए कतारबद्ध खडी शालाओं के प्रबंधन के सूत्रों का कहना है कि उन सिवनी में अभी तक किसी भी शाला को सीबीएसई से मान्यता नहीं मिली है. इस मामले में सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय अजमेर के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में किसी भी शाला को सीबीएसई ने अब तक मान्यता नहीं दी है. शाला प्रबंधन नवमी में विद्यार्थियों को अगर प्रवेश देने की प्रक्रिया कर रहा है, तो यह वह शाला अपनी जवाबदारी पर कर रही है. अगर मान्यता शैक्षणिक सत्र २०१० - २०११ में नहीं दी जाती है तो फिर इन बच्चों को सीबीएसई में एनरोल ही नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि सीबीएसई में नामांकन कक्षा नवमी में ही किया जाता है. बाद में बच्चे को कक्षा दसवीं में सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा देने की पात्रता होगी. अगर मान्यता का काम अधर में रोक दिया जाता है तो अगले साल दसवीं में प्रवेश पाने वाले बच्चों का भविष्य अंधकार में भी लटक सकता है.
(क्रमशः जारी)

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