सोमवार, 5 जुलाई 2010

सोनिया के इर्दगिर्द सिमटती कांग्रेस की धुरी


ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

कांग्रेस में कोई नहीं जो अध्यक्ष बन पाए!
सवा सौ साल पुरानी वह कांग्रेस जिसने भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज किया है, में इक्कीसवीं सदी में एक भी एसा कद्दावर नेता नहीं है, जो कांग्रेस का रहनुमा बन सके, यही कारण है कि 9 दिसंबर 1998 के बाद से कांग्रेस को राह दिखाने का काम नेहरू गांधी परिवार की इतालवी बहू सोनिया गांधी कर रही हैं। इस माह अगर एक बार फिर से सोनिया को पार्टी अध्यक्ष चुन लिया जाता है तो वे पंद्रह साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहकर पुराने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर देंगी। एक तरफ सोनिया गांधी निर्विरोध अध्यक्ष चुनी जाती रहीं हैं, पर दूसरी तरफ कांग्रेस के अंदर अंदर ही इस बात के लिए भी असंतोष पनपने लगा है कि क्या नेहरू गांधी परिवार से इतर किसी में इतना माद्दा नहीं है कि वह सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की बागडोर थाम सके? भले ही डॉ.मनमोहन सिंह को दूसरी मर्तबा प्रधानमंत्री बनाया गया हो पर उनका रिमोट तो सोनिया के हाथ में ही माना जाता है। कांग्रेसी विचलित हो रहे हैं कि आने वाले समय में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अपने राज्याभिषेक की तैयारियों में व्यस्त हैं, फिर सालों साल कांग्रेस का झंडा उठाने वाले आम कार्यकर्ताओं की क्या औकात बकत! कांग्रेस की दूसरी पंक्ति के अनेक नेता भी भयाक्रांत हैं, कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी ढलती उम्र के चलते उन्हें अनिवार्य सेवानिवृति न दिला दी जाए।
भागवत पुराण बिना जसवंत की वापसी से नाराज है संघ
अपनी किताब में पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की शान में कसीदे गढने वाले जसवंत सिंह की घर वापसी से संघ की भवें तन चुकी हैं। संघ के सूत्रों का कहना है कि जसवंत के प्रोग्राम में शामिल हुए राम जेठमलानी जो अटल बिहारी बाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड चुके हैं को राज्य सभा में भेजना पहले ही से संघ को नागवार गुजर रहा है। सूत्रों की मानें तो संघ ने अब सरकार के विरोध की अपनी लाईन तय कर ली है, संघ की इस लाईन को लेकर भाजपा में गहरा प्रतिरोध सामने आ रहा है। भाजपा प्रमुख नितिन गडकरी के छः माह के कार्यकाल में संघ को कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहा है। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी का वर्चस्व आज भी भाजपा पर वैसा ही है, जो पूर्व में राजनाथ सिंह के समय होता था। गडकरी की दब्बू कार्यशैली को देखकर संघ के अंदर अब सवाल खडे किए जाने लगे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत और भैया जी जोशी जल्द ही दिल्ली जाकर भाजपा के शीर्ष नेताओं को पाठ पढाने वाले हैं। इस तरह का संदेश भाजपा के आला नेताओं को भेजा भी जा चुका है, अब देखना है कि भाजपा में संघ की चलती है या आडवाणी की।
झा ही ला सकते हैं उमा के जीवन में प्रभात
तेज तर्रार साध्वी उमा भारती की भाजपा में घर वापसी की बातें एक बार फिर सियासी गलियारों में गर्माहट ला रही हैं। फायर ब्रांड नेत्री मानी जाने वाली उमा दो बार भाजपा को छोडकर जा चुकी हैं, दोनों ही बार उन्होंने पार्टी को चुपचाप नहीं वरन् आला नेताओं को लानत मलानत भेजकर पार्टी को तजा था। उमा के ब्रेन माने जाने वाले प्रहलाद सिंह पटेल जबसे उनसे प्रथक हुए हैं, तब से ही उमा मुख्यधारा में आने को छटपटा रही हैं। राजनैतिक समीकरणों के जानकार भी पूरे मामले को समझ ही नहीं पा रहे हैं कि कल तक पानी पी कर आडवाणी को कोसा था उमा ने और आज आडवाणी ही उमा की घर वापसी के लिए सबसे ज्यादा आतुर दिखाई दे रहे हैं। उमा वैसे मध्य प्रदेश सूबे से हैं, और भाजपा को त्यागने के उपरांत उमा ने मध्य प्रदेश में जो ताण्डव किया था, वह किसी से छिपा नहीं है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उमा की घरवापसी को गैर जरूरी बता रहे हैं, पर वे इसका विरोध नहीं कर रहे हैं। रही बात सूबे के भाजपा प्रमुख प्रभात झा की तो प्रभात झा की जमानत पर ही उमा भारती की भाजपा में वापसी संभव दिखाई दे रही है।
तेल की कीमतें और सांसदों का वेतन बढाना जरूरी था!
भारत गणराज्य में तेल की कीमतों में जब तब उछाल आ जात है। पेट्रोलियम पदार्थों की दरों में बेतहाशा बढोत्तरी का सीधा असर देश की जनता पर पडता है। जब भी कोई संवेदनशील मामला उछलता है सरकार झट से तेल की कीमतों में इजाफा कर अपनी खाल बचाने और लोगों का ध्यान उससे हटाने की कोशिश करती है। भाजपा का आरोप है कि सरकार ने छः सालों में 33 कार पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों में इजाफा किया है। तेल की कीमतों में बढोत्तरी पर भारत गणराज्य के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह का कहना है कि यह भारत की अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए जरूरी था। सांसदों ने बडी ही चतुराई से इसी शोर शराबे के बीच अपने वेतन भत्ते पांच गुना बढवाने की बात भी मनवा ली और किसी को पता ही नहीं चला। अरे मनमोहन सिंह जी, आप देश के प्रधानमंत्री हैं, अगर आप देश के सांसदों के वेतन को पांच गुना कम भी कर देते तो उनकी सेहत पर कोई असर नहीं होता, पर आप देश को यह भी तो बताईए कि सब कुछ निशुल्क होने के बाद भारी भरकम वेतन भत्ते और पेंशन का क्या ओचित्य है! आप तो एक रूपए वेतन लेते हैं, पर आपके मंत्रीमण्डल के सहयोगी देश की जनता के गाढे पसीने की कमाई को किस कदर उडा रही है इस बारे में भी तो गौर फरमाना जरूरी है, साथ ही अपने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को भी नसीहत दें कि वे सरेआम यह तो न कहें कि अभी तो ये अंगडाई है आगे और लडाई है अर्थात अभी मंहगाई और बढेगी, उसके लिए तैयार रहें।
सूदखोरी का नायब तरीका!
देश भर में सूदखोरी का व्यापार सरेआम चल रहा है। पुलिस सब कुछ जानती है, पर खामोश बैठी है। पांच प्रतिशत मासिक न्यूनतम दर अर्थात साठ फीसदी सालाना की ब्याज दर पर हो रहा है यह व्यापार। अगर आपने एक लाख रूपए सूद पर लिए हैं तो साल भर बाद आपको एक लाख साठ हजार रूपए की चपत तय समझो। जुंए, सट्टे, नशे की लत में फंसे युवाओं द्वारा अपना सब कुछ रहन रखकर ब्याज पर पैसे उठाए जा रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों को तो बिना गारंटी ही पैसा सूद पर दे दिया जाता है। सरकार कर्मचारियों की वेतन प्रणाली को अत्याधुनिक बनाकर सरकार ने उनके खाते में सीधे सीधे पैसा डाल दिया जाता है, ताकि वे एटीएम के माध्यम से जहां चाहे वहां पैसा निकाल सकें। सूदखोरों द्वारा ब्याजप पर पैसा देते वक्त एटीएम और पासवर्ड अपने पास रख लिया जाता है, फिर वेतन आते ही वे गट्ठा भर एटीएम ले जाकर राशि का आहरण कर अपने ब्याज की रकम काटकर बाकायदा सरकारी कर्मचारियों को वेतन बांटते नजर आते हैं। लोगों की पासबुक, चेकबुक, एटीएम कार्ड सब कुछ ब्याजखोरों के कब्जे में ही रहते हैं। बापू तेरा देश वाकई महान है. . .।
भाजपा भी बरी नहीं है गैस हादसे से
2 और 3 दिसंबर की दर्मयानी रात को भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई अब तक की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के स्याह छीटों से कांग्रेस का दामन तो पूरा काला हो चुका है, पर इससे भारतीय जनता पार्टी की छवि पर भी काले बदनुमा दाग उभरते दिखाई पड रहे हैं। इस त्रासदी के उपरांत मध्य प्रदेश में सुंदर लाल पटवा, उमा भारती, बाबू लाल गौर के अलावा वर्तमान निजाम शिवराज सिंह चौहान ने गैस पीडितों के हक के लिए कुछ नहीं किया। इतना ही नहीं केंद्र में भी अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई पर वहां भी कोई सुनवाई नहीं हो सकी। सीबीआई जो कि केंद्र सरकार की लौंडी मानी जाती है, ने अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में वर्ष 2002 में इस त्रासदी के लिए जवाबदार वारेन एण्डरसन को बचाने का प्रयास किया था। उस वक्त सीबीआई ने भोपाल के सीजेएम की अदालत में आवेदन दाखिल कर कहा था कि एण्डरसन के खिलाफ लापरवाही बरतने का आरोप लगाया जाए न कि हजारों लोगों की हत्या का। यद्यपि कोर्ट ने सीबीआई की दलील खारिज कर दी थी, किन्तु इस तरह के प्रयास से भाजपा की वर्तमान कथनी और उस वक्त की करनी में भेद साफ हो जाता है।
ग्लोबल मंदी का असर कांग्रेस पर!
वेश्विक आर्थिक मंदी की जद में है समूची दुनिया इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु भारत गणराज्य के मंत्री सांसद, विधायकों पर इसका कोई असर नहीं है, उनकी फिजूल खर्ची और अधिक गति से चल रही है। आर्थिक मंदी जब दूर होने की स्थिति में आ रही है, तब सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को होश आया है कि उसके कार्यालय के खर्चे बहुत अधिक हैं, सो अब द्वारा अपने कर्मचारियों को अनिवार्य तौर पर बलात सेवानिवृत करने की कार्ययोजना को अमली जामा पहनाने का प्रयास किया जा रहा है। 11 प्रदेशों और कंेद्र में बैठी कांग्रेस के राष्ट्रीय मुख्यालय में सवा सौ से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, इनमें से आधे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने वाला है। गौरतलब है कि इनमें से कई कर्मचारी तो कांग्रेस के न जाने कितने अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के हाथ रह चुके हैं। इन कर्मचारियों को सरकार की तर्ज पर वीआरएस दिया जाएगा या नहीं यह तय नहीं है, पर कांग्रेस मुख्यालय के कर्मचारी इन दिनों अपने अपने आकाओं को सिद्ध करने में लगे हैं कि उन पर कास्ट कटिंग की गाज न गिर जाए। वैसे एसा माना जाता है कि अगर कहीं भी कोई पार्टी सत्ता में हो तो फिर पार्टी के बढे हुए खर्चे भी मीट आउट करना आसान ही होता है। लगता है कांग्रेस के सूबाई निजामों द्वारा आला कमान को जजिया कर नहीं दिया जा रहा है, जिससे कांग्रेस के सालों साल वफादार रहे कर्मचारियोें को बाहर का रास्ता दिखाया जाने वाला है।
मिश्रा के इस्तीफे से घबराए हरवंश
एमपी में हत्या के मामले में फंसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के त्यागपत्र के बाद मध्यप्रदेश का सियासी अखाडा एक बार फिर भरता दिखाई दे रहा है। सत्ताधारी भाजपा के एक कद्दावर मंत्री के त्यागपत्र से अनेक विधायकों को मानो सांप सूंघ गया है। अनूप मिश्रा के उपरांत राज्य के आदिवासी कल्याण मंत्री विजय शाह की बारी है। इस फेहरिस्त में विधायक कमल पटेल, आशारानी सिंह के अलावा और भी हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस के विधायक और मध्य प्रदेश विधानसभा में उपाध्यक्ष जैसे संवैधनिक पद पर बैठे ठाकुर हरवंश सिंह पर लगभग डेढ साल पहले तत्कालीन सांसद एवं वर्तमान विधायक श्रीमति नीता पटेरिया पर जान लेवा हमला करवाने के आरोप में धारा 307 का प्रकरण पंजीबद्ध है, के उपरांत हाल ही में उन पर धोखाधडी की धारा 420 का प्रकरण पंजीबद्ध होने के बाद भी उन्हें संवेधानिक पद से हटाने की मांग भाजपा द्वारा प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर नहीं की गई है। पहला मामला आमानाला कांड के नाम से जाना जाता है तो दूसरा भी आमानाला में ही घटित हुआ, दोनें के बीच लगभग सौ किलोमीटर का अंतर है। इसे अब धूम वन, धूम टू की तर्ज पर आमानाला वन और आमानाला टू के नाम से जाना जाने लगा है। डेढ साल पहले हुए मामले में भी अब तक कोई कार्यवाही न होना भाजपा और कांग्रेस की नूरा कुश्ती का प्रमाण ही माना जा रहा है। लगता है अनूप मिश्रा के त्यागपत्र से ठाकुर हरवंश सिंह घबरा गए हैं, और उन्होंने आनन फानन एक पत्रकार वार्ता लेकर कुछ सच्चे झूठे कागज उसमें बटवाकर अपने आप को बेदाग बताने का प्रयास किया है। मीडिया के कुछ मित्रों ने हरवंश सिंह के उजले पक्ष को ही जनता के सामने लाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझा है, मीडिया का काम निष्पक्ष रहकर जनता के सामने हकीकत को लाना है, वस्तुतः इस मामले में एसा होता दिख नहीं रहा है।
फिर निकला राम मंदिर का जिन्न
1992 में विवादस्पद बाबरी ढांचा ढहाने के बाद भाजपा सत्ता की मलाई चख चुकी है। राम मंदिर विवाद को भाजपा ने गहन चिकित्सा इकाई अर्थात आईसीयू में डाल कर रखा है। इस मामले को बाकायदा आक्सीजन दी जा रही है ताकि यह जिन्दा रहे। लोगों की भावनाओं से जुडे इस मामले में भाजपा ने कभी भी कठोर कदम उठाने का साहस नहीं किया है। समय समय पर राम मंदिर के मामले को उछालकर भाजपा द्वारा भारत गणराज्य की जनता को बरगलाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी है। हाल ही में भाजपा के ही एक अंग समझे जाने वाले विश्व हिन्दु परिषद के नेता प्रवीण तोगडिया ने शांत पानी में यह कहकर कंकर मार दिया है कि राम मंदिर के निर्माण की कवायद 16 अगस्त से आरंभ कर दी जाएगी। चूंकि जनता अब भाजपा के इस स्टेंड को अच्छे से समझ चुकी है कि भाजपा के लिए राम मंदिर का मसला महज सत्ता प्राप्ति का साधन बनकर रह गया है, इसलिए अब भाजपा ने विहिप के माध्यम से इस संवेदनशील मामले में साधु संतों को एक छत के नीचे लाना आरंभ किया है।
प्रदूषण से बढते अस्थमा रोगी
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में लोगों को बारिश आते ही कम से कम एक चीज से तो निजात मिली, और वह है उडती हुई धूल। यद्यपि बारिश की फुहार ने मौसम में उमस तबियत से बढा दी है, पर लोग खुश हैं कि कम से कम उन्हें कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों के कारण चल रहे निर्माण कार्याें की धूल से तो मुक्ति मिली। दिल्ली में आलम यह है कि आप किसी भी क्षेत्र में चले जाएं वहां धूल धक्कड आपके स्वश्न तंत्र को प्रभावित किए बिना नहीं रहेगा। लंग फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात उभरकर सामने आई है कि जन्म के साथ ही दो तो पचास के पेटे वाले 12 फीसदी लोग आक्सीजन न मिल पाने के चलते अस्थमा की जद में चले जाते हैं। दिल्ली में सांसद विधायकों को इसका एहसास इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि वे तो बख्तरबंद एयर कंडीशन गाडियों में बैठे खुद ही धूल उडाते घूमते रहते हैं, मरण तो आम जनता की ही होती है, जो सडकों पर धक्के खाते चलती है।
. . . तो भगवान ही मालिक है हवाई अड्डों का
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और राकपां नेता प्रफुल्ल पटेल एक जमीन को धोखाधडी कर बेचने के आरोप में घिर गए हैं। मध्य प्रदेश के बेतूल की एक अदालत ने उनके स्वामित्व वाली फर्म में उनके साथ उनके नौ अन्य भागीदारों को 19 जुलाई को उपस्थित होने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि प्रफुल्ल पटेल की ‘‘छोटा भाई जेठा भाई‘‘ नामक एक फर्म है जिसने लगभग सात साल पहले मध्य प्रदेश के बेतूल में 17 हजार वर्ग फुट जमीन को दो अलग अलग लोगों को बेच दिया था। 19 मई 2003 को बैतूल जिले से गुजरने वाले नेशनल हाईवे नंबर 69 पर अवस्थित इस जमीन को नवनीत गर्ग नामक व्यक्ति को इनके द्वारा बेचा गया था। इसके एक माह बाद ही इसी जमीन को केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल और उनके भागीदारों ने 11 जून 2003 को अशोक दीक्षित नाम के एक अन्य व्यक्ति को बेच दिया गया। अगर यह मामला सत्य है तो भगवान ही मालिक है देश के हवाई अड्डों, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस का. . .।
पुच्छल तारा
भारत गणराज्य में पेट्रोलियम पदार्थों की बढी कीमतों पर भाजपा द्वारा सोमवार को भारत बंद का आव्हान किया गया है। एक कट्टर भाजपाई ने ईमेल पर तेल की कीमतों का जिकर किया है। वे लिखते हैं कि पेट्रोल की कीमतें पाकिस्तान में 26 रूपए, बांग्लादेश में 22 रूपए, नेपाल में 34, बर्मा में 30, अफगानिस्तान 36, कतर में 30, मगर भारत गणराज्य में 53 रूपए। दरअसल यह भारत में 16 रूपए पचास पैसे प्रति लिटर ही है। इसमें केंद्रीय कर 11 रूपए 80 पैसे, एक्साईज ड्यूटी नो रूपए पचहत्तर पैसे, स्टेट टेक्स 8 रूपए, वेट टेक्स चार रूपए इस तरह कुल मिलाकर इसकी कीमत हो जाती है पचार रूपए पांच पैसे फिर तीन रूपए किस बात के। अरे बाबा तीन रूपए भारत गणराज्य की जनता को बेवकूफ बनाने के हैं, अगर एसा नहीं होता तो देश में पेट्रोल सोलह रूपए पचास पैसे में नहीं बिकता, इतना कर लगाने के बाद भी अगर पेट्रोलियम कंपनियों को घाटा हो रहा है तब तो पीठ थपथपानी ही पडेगी कांग्रेस की. .  .।

कोई टिप्पणी नहीं: