मंगलवार, 13 जुलाई 2010

अपनों से घिरे मनमोहन

सहयोगी दल बढा रहे कांग्रेस की मुश्किलें
सोनिया और मनमोहन की पेशानी पर छलक रहा पसीना

अंदर ही अंदर खदबदाने लगा है असंतोष

अपनों ने ही घेरा कांग्रेस को

राहुल बना सकते हैं यूपी से दूरी

मोंटेक को भी अब चुभने लगा है कमल

जयराम बने कांग्रेस की बडी मुश्किल

(लिमटी खरे)

कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की दूसरी पारी में उसके सहयोगी दलों ने अब रंग दिखाना आरंभ कर दिया है। कल तक शांति के साथ अपने अपने आवरण में चुप्पी साधे बैठे घटक दलों ने टर्राना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के अंदरखाते से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार शरद पवार, मायावती, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव आदि ने अब कांग्रेस पर दवाब बढा दिया है। वहीं कांग्रेस के अपने मंत्री भी कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की परेशानी बढाने का ही उपक्रम कर रहे हैं। भारत गणराज्य के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह अपनी केबनेट के बडबोले मंत्रियों से बुरी तरह परेशान नजर आ रहे हैं, यह तो विपक्ष है जो बोथरी धार लेकर सरकार पर वार कर रहा है, वरना अब तक तो कबकी गिर चुकी होती मनमोहन सरकार।

प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की मुश्किल यह है कि कांग्रेस के कोटे से मंत्री बने सांसद ही आपस में बुरी तरह लड रहे हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है तो कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायस्वाल से भी उनकी अनबन सडकों पर है। गृह मंत्री पी.चिदम्बरम उल जलूल बयानबाजी पर आमदा हैं, तो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी हैं कि मानते ही नहीं। कमर तोड मंहगाई के बाद भी वे कहने से नहीं चूक रहे हैं कि अभी और मंहगाई के लिए तैयार रहें। जैसे तैसे मामला शांत होता है वैसे ही कोई न कोई मंत्री छुर्रा छोड ही देता है।

हाल ही में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मांेटेक सिंह अहलूवालिया और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तकरार को देखकर लगने लगा है कि अहलूवालिया को अब कमल चुभने लगा है। अपने अंदर मचे इस तूफान से कांग्रेस आलाकमान बुरी तरह आहत बताई जा रही हैं। कांग्रेस के कुशल रणनीतिकार भी इस मामले को सुलटाने में अपने आप को अक्षम ही महसूस कर रहे हैं। पार्टी फोरम के बाहर जब सार्वजनिक तौर पर कोई बयान जारी किया जाता है तब मान लेना चाहिए कि पानी नाक के उपर आने लगा है। मनमोहन सरकार के दो मंत्री हैं जो किसी को भी देखकर बाहें चढाने लगते हैं, इनमें पहली पायदान पर वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश तथा दूसरी पायदान पर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ हैं।

जयराम रमेश ने तो आधी केबनेट से बुराई मोल ले रखी है, अपने आप को वे रावण की संज्ञा तक देने से नहीं चूक रहे हैं। रही बात कमल नाथ की तो कमल नाथ ने जयराम रमेश के साथ ही साथ योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से भी दो दो हाथ कर लिए हैं। सडक निर्माण के लिए सरकारी खजाना नहीं खोलने का रोना रोने वाले कमल नाथ ने नियम कायदों को ताक पर रखकर कम यातायात दवाब वाले नरसिंहपुर, छिंदवाडा, नागपुर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करवाने में सफलता हासिल कर ली। यह इसलिए हुआ क्योंकि यह उनके संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाडा का हिस्सा है।

इसके साथ ही साथ उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा से लगे हुए सिवनी जिले के साथ उन्होंने तबियत से अन्याय किया है। बार बार सिवनी सहित अनेक जिलांे को गोद लेकर अपनी गोद को अनाथालय बनाने वाले कमल नाथ पर आरोप है कि उन्होने एनएचएआई के उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे को अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाडा से ले जाने के षणयंत्र के चलते सिवनी जिले में इसका काम जानबूझकर अवरूद्ध करवाया है।

इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि पेंच और कान्हा कारीडोर के मध्य से होकर जा रहा है यह मार्ग। वास्तविकता यह है कि इस मार्ग का पुरातन महत्व भी है। इस मार्ग का निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था। बताते हैं कि इस मार्ग का प्रयोग आदि शंकराचार्य ने चारों पीठ की स्थापना के वक्त भी किया था। कहते हैं कि जयराम रमेश ने पर्यावरण का अडंगा इस मार्ग में इसलिए लगाया है क्योंकि उन्हें बताया गया है कि यह मार्ग कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है।

वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि नरसिंहपुर छिंदवाडा नागपुर मार्ग में छिंदवाडा से सौंसर का हिस्सा पेंच और पचमढी नेशनल पार्क के कारीडोर से होकर गुजर रहा है। इस मामले में गैर सरकारी संगठन सहित जनप्रतिनिधि और झंडाबरदार खामोशी का लबादा ओढे हैं यह आश्चर्यजनक है। लोगों का तो यहां तक कहना है कि कमल नाथ के इस तरह के कदम से कभी कांग्रेस का अभेद्य गढ माना जाने वाला सिवनी जिला पिछले लगभग चार विधानसभा और लोकसभा चुनावों से भाजपा का सुरक्षित दुर्ग में तब्दील हो चुका है।

योजना आयोग के सूत्रों का कहना है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कमल नाथ को इसलिए नापा क्योंकि उन्हें बताया गया कि कमल नाथ छिंदवाडा संसदीय क्षेत्र में कुछ एसा करने जा रहे हैं जो विश्व या एशिया के मानचित्र पर अलग दिखाई दे। वे चाहते हैं कि छिंदवाडा जिले को विश्व या एशिया का सबसे बडा नेशनल हाईवे का जंग्शन बनाया जाए। सूत्रों की मानें तो इसके लिए कमल नाथ योजना आयोग से मनमाना आवंटन चाह रहे हैं, जो योजना आयोग के लिए देना संभव नहीं है। संभवतः यही कारण है कि कमल नाथ और अहलूवालिया के बीच की रार सडकों पर आ गई है।

बहरहाल कांग्रेस के सामने एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई की स्थिति बन गई है। अंदर की खींचतान से जैसे तैसे कांग्रेस निजात पा भी ले पर जब घटक दलें कांग्रेस की कालर पकडकर हडकाने का प्रयास करते हैं तो कांग्रेस का जमीर जाग उठता है, पर सत्ता की मलाई चखते रहने के चक्कर में कांग्रेस घटक दलों के इस तरह के प्रसासों के बाद भी खामोशी और बेशरमी से मुस्कुराती हुई बाहर आकर मीडिया से मुखातिब होती है।

कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ, (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पिछले दो माहों से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की नींद उडी हुई है। सरकार बनाते वक्त राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार, समाजवादी के मुलायम सिंह, बसपा की मायावती, राजद के लालू प्रसाद यादव से कांग्रेस ने जो ‘‘अघोषित वायदे‘‘ किए थे, उन्हें पूरा करने में अब कांग्रेस की जान पर बन आई है।

कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बचाने में महत्वूपर्ण भूमिका निभाने वाली बसपा अब कांग्रेस से अपना पारितोषक चाह रही है। सूत्रों का कहना है कि यूपी की निजाम मायावती ने कांग्रेस अध्यक्ष को दो टूक शब्दों मेें कह दिया है कि उसे उत्तर प्रदेश के लिए विशेष आर्थिक पैकेज चाहिए साथ ही साथ आय से अधिक सम्पत्ति और ताज कारीडोर मामले से उन्हें क्लीन चिट दिलाई जाए। मायावती की सबसे अहम शर्त तो यह है कि राहुल गांधी यूपी की अपनी यात्रा को तत्काल प्रभाव से विराम दें। सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के सलाहकारों ने सोनिया गांधी को कहा है कि अगर मायावती की मांगे मान ली गईं तो भविष्य में मायावती की लगाम खीचना बहुत ही मुश्किल होगा।

उपर से भले ही सब कुछ सामान्य लग रहा हो पर अंदर ही अंदर खिचडी खदबदा ही रही है। राकापा और कांग्रेस पूरी तरह आमने सामने आ गई है। शरद पवार ने सोनिया के खिलाफ तलवारें पजाना आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों भाजपा के महाराष्ट्र के विधायक देवेंद्र फडनवीस ने घुडदोड के शौकीन हसन अली की स्विस बैंक की एक सीडी पेश कर सभी को चौंका दिया था। सीडी में फडनवीस का दावा है कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल, महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम विलासराव देशमुख, तत्कालीन गृह मंत्री आर.आर.पाटिल से ‘‘भेंट‘‘ के बाद ही उनकी नियुक्ति देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बतौर पुलिस आयुक्त की गई थी।

पवार इसलिए भी खौफजदा हैं, क्योंकि प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व वाला वित्त मंत्रालय इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल में हुए ‘‘खेल‘‘ की जांच कर रहा है वह भी परत दर परत। आईपीएल की टीम के स्वामियों के तार देश के राजनेता और जनसेवकों से जुडने से मामला और भी गंभीर हो उठा है। उधर कांग्रेस के प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने तो शरद पवार पर सीधे ही हमला बोलकर सभी को चौंका दिया था।

कांग्रेस के प्रबंधकों के कहने पर कांग्रेस अध्यक्ष ने भले ही आग और पानी का संतुलन इस तरह बनाया हो कि पवार को नियंत्रित करने उन्होंने इसी सूबे से मंत्रीमण्डल में विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, मुकुल वासनिक, प्रतीक पटेल, पृथ्वीराज चौव्हाण आदि को लिया हो, पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल को राज्यपाल बना दिया हो, पर पवार तो पवार ही हैं। राजनीति की बिसात पर उनका हाथ असानी से नहीं पकडा जा सकता है। जब भी कांग्रेस पवार की गिरेबान तक हाथ पहुंचाने की सोचती है, पवार भागकर शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के साथ मिलकर एक फोटो खिचवाकर अखबारों में छपवा देते हैं, बस फिर क्या कांग्रेस अपने बढते हाथ को मुट्ठी में तब्दील कर वापस जेब में रख लेती है।

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