शनिवार, 7 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------03

किस षणयंत्र के तहत किसने रूकवाया था काम

जब अक्टूबर माह में उत्तर सिवनी सामान्य वनमण्डलाधिकारी ने मुख्य वन संरक्षक सिवनी को यह सूचित किया कि उसके द्वारा अवैध पेड कटाई के मामले में ठेकेदार के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर लिया गया है, तब उत्तर दक्षिण गलियारे का काम रूक ही गया था। आखिर क्या वजह थी कि इसके लगभग नौ माह तक जनता को पता क्यों नहीं चल सका सडक काम निर्माण का काम रोक दिया गया है, जबकि निर्माण करा रही कंपनियां सद्भाव और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनियांे के कारिंदे जिले में नेतागिरी का परचम लहराने वाले नुमाईंदो से मेल मुलाकात भी कर रहे थे।

 
(लिमटी खरे)

सिवनी। उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे के नक्शे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने का षणयंत्र लगभग दो साल पूर्व ही आरंभ करवा दिया गया था, और सिवनी जिले को दिशा देने वाले नेताओं को कथित तौर पर इसकी भनक भी नहीं लगी। जून 2009 में जब तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि का एक आदेश हवा में तैरा तब जाकर जिले की जनता के मन में भय और आक्रोश मिश्रित तौर पर सामने आया।
 
वन विभाग के डीएफओ द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को सीसीएफ को लिखे पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि एनएच ने वन विभाग की भूमि को अपना बताकर इस पर खडे पेड काटने की निविदा जारी कर पेड कटाई का काम आरंभ कर दिया था, जिसे वन विभाग ने अवैध माना, और वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।
 
इसी से साफ हो जाता है कि वन विभाग ने इस सडक पर पेड काटने का काम रोक दिया गया था। जब सडक के चौडीकरण के काम में पेड ही नहीं हटाए जाएंगे तो भला सडक कहां से बन पाएगी? जाहिर है कि अक्टूबर 2008 में ही मीनाक्षी और सद्भाव ने अपना अपना काम रोककर हाथ पर हाथ रखकर बैठ गईं थीं।
 
बताया जाता है कि निर्माण में रत मीनाक्षी और सद्भाव कंपनियांे के कारिंदे रोजाना ही जिला मुख्यालय सिवनी आकर आवश्यक वस्तुएं खरीदा करते थे। चर्चाओं के अनुसार इन कारिंदों द्वारा शहर में अनेक नेताओं से चर्चा कर उन्हें इस बारे में आवगत कराया जाता था कि कंपनियों ने सडक निर्माण का काम रोक दिया है, बावजूद इसके सिवनी का हित साधने का प्रहसन करने वाले इन नेताओं ने कभी भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया कि सडक निर्माण का काम रोके जाने का षणयंत्र बुना जा रहा है।
 
चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि इन सडक निर्माण कंपनियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर लंबा आर्थिक लाभ लेने की गरज से जिले की बदहाली पर आंसू बहाने वाले इन नेताओं (सांसद विधायक नहीं) का उपयोग निर्माण कंपनियों ने एक तरह से उपकरणों की तरह ही किया है। इन नेताओं को कंपनियों का इंस्टूमेंट बनने से क्या लाभ हुआ है, यह तो वे ही जाने किन्तु यह सच है कि इससे नुकसान में सिवनी जिले की जनता ही रही है।
 
आज आलम यह है कि इस सडक का निर्माण कार्य अधूरा रह जाने से लोगों को सिवनी से नागपुर और जबलपुर आने जाने में काफी हद तक परेशानी का सामना करना पड रहा है। जबलपुर मार्ग पर बंजारी माता के आगे से गनेशगंज के पास तक और नागपुर रोड पर मोहगांव से खवासा तक के मार्ग पर वाहनों की ‘‘कुत्ता चाल‘‘ से लोगों की परेशानी का सबब बनती जा रही है।
 
वाहन चालकों की मानें तो उन्हें सडक पर हुए भारी भरकम और असंख्य गड्ढों को बचाने के लिए कुत्ते के मानिंद कभी दांय तो कभी बांयी ओर (जिस तरह कुत्ता दांयी बायीं और खम्बों को देखकर टांग उठाता है) जाकर वाहन बचाना पडता है। बस में यात्रा करने वाले एक यात्री ने तो इसे सूपा की संज्ञा भी दे डाली है। उसके अनुसार जिस तरह सूपा में चावल या गेंहूं को फटका जाता है ठीक उसी तरह बसों में बैठे यात्री की स्थिति होती है। यात्री एक बार बांयी तो दूसरी बार दायीं और जाकर उछलता है, फिर बीच में उछाल दिया जाता है।
 
बहरहाल आज भी यक्ष प्रश्न यही बनकर खडा हुआ है कि आखिर वो कौन था जिसके आदेश पर फोरलेन के निर्माण का काम रूकवाया गया था। जिला प्रशासन, वन विभाग, एनएचएआई आदि के उपर आखिर कौन सी एक अज्ञात शक्ति दबाव बनाए हुए है, जो उत्तर दक्षिण गलियारे का काम रोककर पूर्व निर्धारित एलाईंमेंट को बदलने का प्रयास कर रही है?

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