सोमवार, 30 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 19

छिंदवाड़ा होकर जा ही नहीं सकता उत्तर दक्षिण गलियारा

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के निवासी भले ही इस भ्रम में हों कि भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा स्वर्णिम चतुर्भज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण चतुष्गामी सड़क को छिंदवाडा से होकर ले जाने का प्रयास किया जा रहा हो, पर कमल नाथ अपने प्रयासों में इसलिए सफल नहीं हो सकते हैं क्योंकि जिस क्षेत्र से होकर यह सड़क या नरसिंहपुर छिंदवाड़ा नागपुर नेशनल हाईवे का गुजरना प्रस्तावित है, वहां से तो केंद्र सरकार द्वारा सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम एक साल पहले ही आरंभ किया जा चुका है। इतना ही नहीं छिंदवाड़ा से नागपुर अमान परिवर्तन का काम भी इसी कॉरीडोर के मध्य से होकर गुजर रहा है। इस हिसाब से कमल नाथ के प्रयास बेकार ही जाया हो सकते हैं, क्योंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय एक ही मामले में दो तरह की नीति को अपना नहीं सकता है। भारत गणराज्य में प्रजातंत्र है कोई हिटलरशाही नहीं कि एक मामले में हां और उसी तरह के दूसरे मामले में न।
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अगस्त। ईंधन और समय की बचत को लेेकर केंद्र सरकार की अभिनव परियोजना के अंग स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग बने उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी और खवासा मानचित्र पर रहेगा या नहीं इसे लेकर तरह तरह की भ्रांतियां बन चुकी हैं। लोगों को यह बताया गया कि इस मार्ग को भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से होकर गुजारने के लिए प्रयासरत हैं। राज्य सभा में कमल नाथ ने कुछ इस तरह का बयान भी दिया था।
 
पिछले साल जून माह में जब यह बात सिवनी की फिजां में तैरी कि उत्तर दक्षिण गलियारे का काम सिवनी जिले में किसी षणयंत्र के तहत रोक दिया गया है, तो सिवनी के निवासियों के दिलो दिमाग में रोष और असंतोष जबर्दस्त तरीके से उबल पड़ा। इसकी परिणिति जनता के मंच के रूप में अस्तित्व में आए ‘‘जनमंच‘‘ के द्वारा 21 अगस्त 2009 को आहूत सिवनी बंद के रूप मंे सामने आई। उस समय सारे दिन लोगों के हुजूम शहर भर में यत्र तत्र अपना विरोध प्रदर्शित करते नजर आए।
 
21 अगस्त 2009 को रूष्ठ सिवनी के नागरिकों ने अपनी शांति और अमन चैन के स्वभाव से विपरीत अपना रोद्र रूप दिखाया। इस दिन लोगों ने कमल नाथ के अनेक पुतले फूंके और उनकी शव यात्रा तक निकाल दी। मजे की बात तो यह है कि किसी ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि एक जनप्रतिनिधि अपने संसदीय क्षेत्र के लिए चाहे जो कर सकता है। इस मामले में जवाबदेह सिवनी के जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही के प्रति किसी का ध्यान न जाना और न ही आकर्षित कराना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।
 
मूलतः तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी के आदेश के तहत यह काम रोका गया था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति ने मध्य प्रदेश शासन से एसा करने का आग्रह किया था। तत्कालीन जिला कलेक्टर के आदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त काम को राज्य शासन से निर्देश प्राप्त होने की प्रत्याशा में रोका गया था। राज्य शासन द्वारा इस संबंध में जिला कलेक्टर को कोई निर्देश दिए गए हैं या नहीं यह बात भी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।
 
‘कौआ ले गया कान, चले कौए के पीछे‘ की तर्ज पर कथित तौर पर इस आंदोलन का नेतृत्व करने वालों ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि चूंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से इस भाग में से वन क्षेत्र की अनुमति नहीं मिली है, अतः यह काम आरंभ नहीं किया जा पा रहा है। मंत्रालय द्वारा वन भूमि पर सड़क निर्माण की अनुमति दी जाना प्रस्तावित थी, किन्तु गैर वन क्षेत्रों के बारे में तो कोई संशय की स्थिति शायद ही बनी हो।
 
इसके बाद शनैः शनैः यह आंदोलन ठंडे बस्ते के हवाले ही होने लगा। कुछ नेता मीडिया की भूमिका पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने लगे कि उनकी खबरों को जानबूझकर सेंसर किया जा रहा है। अगर देखा जाए तो किस खबर को कितनी प्राथमिकता से और किसी कितना स्थान देकर छापना है यह मूल अधिकार संपादक का ही होता है। संपादकों और पत्रकारों के अधिकारों और कर्तव्यों को सरेआम चुनौति दी जाती रही और मीडिया मूकदर्शक बना सब कुछ देखता सुनता रहा।
 
बहरहाल अब इस मामले पर से कुहासा हटता सा दिख रहा है। पिछले साल मध्य प्रदेश के सतपुड़ा नेशनल पार्क, पेंच नेशनल पार्क और महाराष्ट्र के मेलघाट को मिलाकर सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम आरंभ किया जा चुका है। जब इस मार्ग का काम आरंभ किया ही जा चुका है तब नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा, सौंसर, सावनेर नागपुर मार्ग को नेशनल हाईवे के तौर पर बनाना असंभव ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि संभवतः इसी आधार पर ही सिवनी से खवासा नागपुर मार्ग के बीच का काम रोका गया है, क्योंकि एसा कहा जा रहा है कि यह उत्तर दक्षिण गलियारा वर्तमान में पेंच नेशलन पार्क और कान्हा नेशनल पार्क के बीच के प्रस्तावित किन्तु काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से गुजर रहा है।

अगर वाईल्ड लाईफ के आवागमन और पर्यावरण असंतुलन के आधार पर सिवनी जिले में काम रोका जा सकता है तो फिर क्या वजह होगी कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नरसिहपुर छिंदवाड़ा नागपुर के स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में तब्दील करने में अपनी आनापत्ति प्रदान की जाएगी? जबकि यह मार्ग सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर को दो जगहों पर बाधित कर रहा है। इस कॉरीडोर के अंदर से छिंदवाड़ा नागपुर रेलमार्ग का काम भी युद्ध स्तर पर ही जारी है।

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