रविवार, 13 फ़रवरी 2011

मैकाले से छुटकारा आवश्यक

मैकाले से छुटकारा आवश्यक

* सभी धर्मों के मूल तत्वों को शिक्षा में शामिल करना आवश्यक
सिवनी सैकड़ों वर्ष तक भारत गुलाम रहा और इस गुलामी के दौरान हजारो, लाखों स्वतंत्रता पे्रमिया ेंने अपना गर्म लहू, बहा दिया प्राणों की आहूति दे दी, इनके मनों में स्वतंत्रत भारत की क्या तस्वीर रही होगी इसकी न तो कभी किसी ने चिन्ता की है और न कभी चिन्ता करने की कोशिश की जाती है। जयंती और पुण्यतिथियों पर मात्र कुछ महापुरूषों का स्मरण राजनैतिक या शासकीय तौर पर मात्र करने की परम्परा बन गई है। स्वतंत्र और अखण्ड भारत की कल्पना संजोकर भारत को स्वाधीन कराने वाले अमर शहीद चाहे वे क्रान्तिकारी रहे हो  या अहिंसा मार्गी कम से कम उनके मन में यही कल्पना रही होगी कि भारत सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सुविधा सम्पन्न बनकर विश्व शिखर पर अपनी योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए एक गौरवशाली राष्ट्र के रूप में विकसित हो कम से कम आज जो पाश्चात्य संस्कृति और मैकाले शिक्षा के आवरण से हम जैसा ढके हुए हैं उसी से मुक्ति के लिए उनका सारा संघर्ष रहा है। परंतु हम ६० वर्ष पूर्व भले ही स्वाधीन हो गये हों मैकाले की शिक्षा पद्धति और पाश्चात्य संस्कार हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं जिसके चलते आज भौतिक सुखों की मृग तृष्णा निरंतर भारतीय समाज को खोखला कर रही हैं। जिस भारतीय संस्कृति के वेद पुरणों के आध्यात्म को हजारों पूर्व  वश्वि ने ग्रहण कर अपने देशों में प्रचारित किया और उनके बल पर शान्ति और मोक्ष की कामना की है। उन्हे उस आध्यात्म से अपार शान्ति का अनुभव हुआ उसी संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुषप्रभाव इतना अधिक बढ़ गया है कि भौतिक सुख सुविधाएं जुटाने के लिए भारत के ही लोग मानवीय धर्म भूलने लगें हैं। स्त्री जिन्हें भारतीय समाज में अत्यधिक पूज्यनीय माना जाता है, वे भी मृग तृष्णा की रोगी हो गई हैं। भ्रष्टाचार के जो बड़े-बड़े मामले सामने आ रहे हैं, योग गुरू रामदेव बाबा दावा कर रहे हैं कि भारत वर्ष के कई वर्षो के बजट के बराबर की राशि विदेशी बैंकों में जमा है।  निश्चित तौर पर विदेशी बैंकों में जमा करने वाले लोगों की  संख्या कम होगी परंतु उनकी राशि चाहे बैंकों में जितनी भी जमा हो उसके कारण देश बड़ी -बड़ी उपलब्धियां पीछे छोड़ते जा रहा है। निश्चित तौर पर  जमा राशि अनेक जनकल्याण की योजनाओं पर डाका डालकर जमा की गई होगी। जिन वर्गो के कल्याण के लिए बजटों में स्वीकृति प्राप्त होती है। उनमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा होगा। नेता और अफसर मिलकर इस प्रकार की राशियों को लील रहे हैं। जिससे सरकार की कल्पनाएं पूर्ण नहीं हो पाती, निरंतर इस प्रकार के बढ़़ते क्रम में मामले सामने आ रहे हैं। संसद मैं बैठे हुए व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध कड़े कानून बनाने में संभव है संकोच करते हों। उन्हे भी इस बात का भय रहता होगाकि वे भी ईमानदार नहीं है परंतु यह स्थिति कब तक रहेगी। इस पर कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा पूरे देश में जब तक इस प्रकार कावातावरण नहीं बनेगा, कानून के लचीले पन के कारण आजाद देश के ६० वर्ष में जो भ्रष्टाचार बढ़ा है उसकी रफ्तार बढ़ते ही जायेगी। आम जनता जहां  मूल भूत सुविधाओं को तरसते रहेगी और चंद नेताओ कि तिजोरियां भरते रहेंगी। चिन्ता जनक बात हैं ६० वर्ष में जो देश अपनी रियाया को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं करा सका  जिस देश की जनता पीने का पानी सहंी न मिलने के कारण हजारों की संख्या में मर रही है। ९० प्रतिशत बीमारियां पानी की अशुद्धियों के  कारण होती  है यह देश के लिए शर्म की बात है यह और बात है कि सस्ती लोकप्रियता की राजनीति करने वाले और स्वार्थी राजनैतिक शराब से एक मौत हो जाने पर संसद चलना मुश्किल कर दे और सारे देश में हंगामा खड़ा कर दे परंतु देश में आम आदमी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कभी कोई सार्थक पहल नहीं की गई है। शिक्षा स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा मकान, जो गरीब आदमी की आवश्यकता हैं। उनके  नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाकर डकार रहे हैं। ऐसे भ्रष्ट व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कानून बनाये बिना समस्या का कोई समाधान नहीं होगा साथ ही भौतिक सुखों की मृग तृष्णा से उबारने के लिए अध्यात्मिक शिक्षा को  और हर संभव सभी धर्माे के मूल तत्वों का प्राथमिक स्तर की शिक्षा में ही शामिल करना होगा। तभी संस्कारित भारत का निर्माण संभव है। सांप्रादायिकता का जामा पहनाकर शिक्षा के मूल आधार को नकार कर  जो वर्तमान परिदृश्य है, उससे छुटकारा नहीं मिल सकता.........
* सभी धर्मों के मूल तत्वों को शिक्षा में शामिल करना आवश्यक
सिवनी यशो-: सैकड़ों वर्ष तक भारत गुलाम रहा और इस गुलामी के दौरान हजारो, लाखों स्वतंत्रता पे्रमिया ेंने अपना गर्म लहू, बहा दिया प्राणों की आहूति दे दी, इनके मनों में स्वतंत्रत भारत की क्या तस्वीर रही होगी इसकी न तो कभी किसी ने चिन्ता की है और न कभी चिन्ता करने की कोशिश की जाती है। जयंती और पुण्यतिथियों पर मात्र कुछ महापुरूषों का स्मरण राजनैतिक या शासकीय तौर पर मात्र करने की परम्परा बन गई है। स्वतंत्र और अखण्ड भारत की कल्पना संजोकर भारत को स्वाधीन कराने वाले अमर शहीद चाहे वे क्रान्तिकारी रहे हो  या अहिंसा मार्गी कम से कम उनके मन में यही कल्पना रही होगी कि भारत सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सुविधा सम्पन्न बनकर विश्व शिखर पर अपनी योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए एक गौरवशाली राष्ट्र के रूप में विकसित हो कम से कम आज जो पाश्चात्य संस्कृति और मैकाले शिक्षा के आवरण से हम जैसा ढके हुए हैं उसी से मुक्ति के लिए उनका सारा संघर्ष रहा है। परंतु हम ६० वर्ष पूर्व भले ही स्वाधीन हो गये हों मैकाले की शिक्षा पद्धति और पाश्चात्य संस्कार हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं जिसके चलते आज भौतिक सुखों की मृग तृष्णा निरंतर भारतीय समाज को खोखला कर रही हैं। जिस भारतीय संस्कृति के वेद पुरणों के आध्यात्म को हजारों पूर्व  वश्वि ने ग्रहण कर अपने देशों में प्रचारित किया और उनके बल पर शान्ति और मोक्ष की कामना की है। उन्हे उस आध्यात्म से अपार शान्ति का अनुभव हुआ उसी संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुषप्रभाव इतना अधिक बढ़ गया है कि भौतिक सुख सुविधाएं जुटाने के लिए भारत के ही लोग मानवीय धर्म भूलने लगें हैं। स्त्री जिन्हें भारतीय समाज में अत्यधिक पूज्यनीय माना जाता है, वे भी मृग तृष्णा की रोगी हो गई हैं। भ्रष्टाचार के जो बड़े-बड़े मामले सामने आ रहे हैं, योग गुरू रामदेव बाबा दावा कर रहे हैं कि भारत वर्ष के कई वर्षो के बजट के बराबर की राशि विदेशी बैंकों में जमा है।  निश्चित तौर पर विदेशी बैंकों में जमा करने वाले लोगों की  संख्या कम होगी परंतु उनकी राशि चाहे बैंकों में जितनी भी जमा हो उसके कारण देश बड़ी -बड़ी उपलब्धियां पीछे छोड़ते जा रहा है। निश्चित तौर पर  जमा राशि अनेक जनकल्याण की योजनाओं पर डाका डालकर जमा की गई होगी। जिन वर्गो के कल्याण के लिए बजटों में स्वीकृति प्राप्त होती है। उनमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा होगा। नेता और अफसर मिलकर इस प्रकार की राशियों को लील रहे हैं। जिससे सरकार की कल्पनाएं पूर्ण नहीं हो पाती, निरंतर इस प्रकार के बढ़़ते क्रम में मामले सामने आ रहे हैं। संसद मैं बैठे हुए व्यक्ति भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध कड़े कानून बनाने में संभव है संकोच करते हों। उन्हे भी इस बात का भय रहता होगाकि वे भी ईमानदार नहीं है परंतु यह स्थिति कब तक रहेगी। इस पर कोई न कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा पूरे देश में जब तक इस प्रकार कावातावरण नहीं बनेगा, कानून के लचीले पन के कारण आजाद देश के ६० वर्ष में जो भ्रष्टाचार बढ़ा है उसकी रफ्तार बढ़ते ही जायेगी। आम जनता जहां  मूल भूत सुविधाओं को तरसते रहेगी और चंद नेताओ कि तिजोरियां भरते रहेंगी। चिन्ता जनक बात हैं ६० वर्ष में जो देश अपनी रियाया को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं करा सका  जिस देश की जनता पीने का पानी सहंी न मिलने के कारण हजारों की संख्या में मर रही है। ९० प्रतिशत बीमारियां पानी की अशुद्धियों के  कारण होती  है यह देश के लिए शर्म की बात है यह और बात है कि सस्ती लोकप्रियता की राजनीति करने वाले और स्वार्थी राजनैतिक शराब से एक मौत हो जाने पर संसद चलना मुश्किल कर दे और सारे देश में हंगामा खड़ा कर दे परंतु देश में आम आदमी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कभी कोई सार्थक पहल नहीं की गई है। शिक्षा स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा मकान, जो गरीब आदमी की आवश्यकता हैं। उनके  नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाकर डकार रहे हैं। ऐसे भ्रष्ट व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कानून बनाये बिना समस्या का कोई समाधान नहीं होगा साथ ही भौतिक सुखों की मृग तृष्णा से उबारने के लिए अध्यात्मिक शिक्षा को  और हर संभव सभी धर्माे के मूल तत्वों का प्राथमिक स्तर की शिक्षा में ही शामिल करना होगा। तभी संस्कारित भारत का निर्माण संभव है। सांप्रादायिकता का जामा पहनाकर शिक्षा के मूल आधार को नकार कर  जो वर्तमान परिदृश्य है, उससे छुटकारा नहीं मिल सकता.........

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