शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

. . . मतलब वासनिक से गए गुजरे हैं राहुल

. . . मतलब वासनिक से गए गुजरे हैं राहुल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। जब जब कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का मंत्रीमण्डल विस्तार हुआ तब तब राहुल गांधी के मंत्री बनने के शिगूफे छोड़े गए। अंत में वे मंत्री नहीं बने। इस बार भी यही हुआ। वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें कोई बार राहुल गांधी से कहा (मिन्नतें कीं) कि मंत्रीमण्डल में शामिल हो जाओ, पर उन्होंने इंकार कर दिया। उधर राहुल गांधी का कहना है कि उन पर संगठन की जवाबदारियां हैं।

मंत्रीमण्डल में शामिल होने से वंचित रहे कांग्रेस के एक वरिष्ठ सांसद ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि विडम्बना देखिए कि एक तरफ कांग्रेस के सांसद लाल बत्ती लेने के लिए जोड़तोड़ करते रहते हैं और दूसरी ओर थाली में रखकर प्रधानमंत्री खुद ही लाल बत्ती लेकर राहुल के पास जाते हैं और राहुल उसे ठुकरा देते हैं, क्या यही है नेहरू गांधी का सोचा प्रजातंत्र?
इतना ही नहीं दूसरों के इशारांे पर चाबी के गुड्डे की तरह चलने वाले राहुल गांधी क्या मुकुल वासनिक, गुलाम नबी आजाद, ए.के.अंटोनी, वी.नारायण सामी, राजीव शुक्ला, वीरप्पा मोईली, जयराम रमेश, जितंेद्र सिंह जैसे नेताओं से गए गुजरे हैं? जब ये नेता संगठन में कामकाज देखने के साथ ही साथ मंत्री बने रह सकते हैं तो राहुल क्यों नहीं?

उक्त नेता ने कहा कि कांग्रेस अब प्राईवेट लिमिटेड पार्टी मंे तब्दील हो गई है। यहां एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत, युवाओं को आगे लाने की बात, आदिवासियों के हित संवर्धन की बातें, सत्ता और संगठन में महिलाओं की 33 फीसदी की भागीदारी की बातें अब बेमानी हो गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने किसी भी स्तर पर इन बातों को लागू नहीं किया है। यहां तक कि आदिवासियों के विकास के मामले में भी सदा ही सत्ता की बागडोर सामंती राजघरानों या सूट बूट वाले कलफ चढ़े नेताओं के हाथ ही सौंपी है।

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