रविवार, 30 अक्तूबर 2011

अपने मन के मंत्री भी नहीं बना पाए मन


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 13

अपने मन के मंत्री भी नहीं बना पाए मन

मजबूर और बेबस वजीरे आजम से छुटकारा चाह रही कांग्रेस

भस्मासुर की छवि बन चुकी है मनमोहन सिंह की

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सबसे अधिक समय तक नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) से इतर वजीरे आजम की कुर्सी संभालने वाले कमजोर, लाचार और बेबस प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की छवि कांग्रेस के अंदर भस्मासुर की बन चुकी है। कांग्रेसी अपने आप को जीवित रखने के लिए अब मनमोहन सिंह का मन से छुटकारा चाह रहे हैं। प्रधानमंत्री ने दांव चलते हुए अपने आप को कमजोर और बेबस साबित कर सब कुछ सोनिया गांधी के इशारों पर होने का संकेत देकर सभी को चौंका दिया है।

वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन ंिसह इस बात को भी प्रचारित करवा रहे हैं कि 2004 से अब तक वे अपने पसंद का कुनबा यानी मंत्रीमण्डल नहीं बनवा पाए हैं। वे जिसे भी मंत्री बनाना चाह रहे थे उसके लिए सोनिया ने हरी झंडी नहीं दी। रही बात घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार की तो वे खुद प्रधानमंत्री तो हैं पर उनकी चलती ही नहीं है इसलिए वे क्या कर सकते हैं। इशारों ही इशारों में मनमोहन सिंह ने ठीकरा श्रीमति सोनिया गांधी के सर फोड दिया।

जैसे ही घपले घोटालों की बात उजागर हुई प्रधानमंत्री ने अपना पल्ला झाड़कर संपादकों की टोली के सामने अपने आप को निरीह साबित कर दिया। फिर क्या था सभी की तोप का मंुह सोनिया की ओर घूम गया। जब यह बात सोनिया जुंडाली तक पहुंची वैसे ही सभी नहा धोकर मनमोहन की मुक्ति के मार्ग खोजने में जुट गए। कांग्रेस के अंदर मनमोहन की छवि भस्मासुर की बन चुकी है। कहा जा रहा है कि मनमोहन इस तरह तो कांग्रेस को समूल समाप्त कर ही दम लेंगे।

कांग्रेसी अब इस बात को प्रचारित करवा रहे हैं कि अगर मनमोहन बेबस, लाचार और कमजोर हैं तो फिर क्या वजह है कि वे प्रधानमंत्री की कुर्सी से चिपके हुए हैं। अपनी ईमानदार छवि के चलते उन्हें तो त्यागपत्र देकर राजनीति से किनारा कर लेना चाहिए था। वस्तुतः मनमोहन सिंह ने एसा किया नहीं। इससे साफ हो जाता है कि मनमोहन सिंह ईमानदार नहीं वरन् भ्रष्टचार के ईमानदार संरक्षक के तौर पर उभरकर सामने आए हैं।

(क्रमशः जारी)

कोई टिप्पणी नहीं: