सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

शारदीय नवरात्री का घट/कलश स्थापना मुहूर्त

शारदीय नवरात्री का घट/कलश स्थापना मुहूर्त

(पं.दयानंद शास्त्री)

नई दिल्ली (साई)। आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। आश्विन शुक्लपक्ष प्रथमा को कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का प्रमुख त्यौहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067) के अनुसार नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है। यह महापर्व सम्पूर्ण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों भक्तों को प्रातः काल स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर निष्कामपरक संकल्प कर पूजा स्थान को गोमय से लीपकर पवित्र कर लेना चाहिए और फिर षोडशोपचार विधि से माता के स्वरूपों की पूजा करना चाहिए। पूजा करने के उपरान्त इस मंत्र द्वारा माता की प्रार्थना करना चाहिए-
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्द्य रूपंदेहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषोजहिद्यद्य
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067) के अनुसार नवरात्र माता की उपासना करने का विशेष समय होता है। इन नौ दिनों में सभी तन-मन से माता की आराधना करते हैं। इस त्योहार की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। अगर आप भी माता की आराधना कर आपकी मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो नीचे लिखे गए तरीके से माता की स्थापना करें-
घट स्थापनाः-
नवरात्र का श्रीगणेश शुक्ल पतिपदा को प्रातरूकाल के शुभमहूर्त में घट स्थापना से होता है। घट स्थापना हेतु मिट्टी अथवा साधना के अनुकूल धातु का कलश लेकर उसमे पूर्ण रूप से जल एवं गंगाजल भर कर कलश के ऊपर नारियल को लाल वस्त्र/चुनरी से लपेट कर अशोक वृक्ष या आम के पाँच पत्तो सहित रखना चाहिए। पवित्र मिट्टी में जौ के दाने तथा जल मिलाकर वेदिका का निर्माण के पश्चात उसके उपर कलश स्थापित करें। स्थापित घट पर वरूण देव का आह्वान कर पूजन सम्पन्न करना चाहिए।
घट स्थापना व पूजा प्रारंभः-
इस वर्ष शारदीय नवरात्रों की शुरुआत 16 अक्टूबर से मंगलवार के दिन मंगल के ही नक्षत्र चित्रा से हो रही है। चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना करना अशुभ माना जाता है। अत सुबह स्वाति नक्षत्र में कलश की स्थापना करे जो की छह बजकर 45 मिनट पर शुरू हो जाएगा। वैसे कलश लाभ की चौघड़िया व अभिजीत मुहूर्त में स्थापना करना चाहिए।
मंगलवार को अश्विनी शुक्ल प्रतिपदा है। इसी दिन घट स्थापना होगी। सुबह 918 बजे से सुबह 1107 बजे तक घट स्थापना का श्रेष्ठ समय है। इस समय स्थिर लग्न वृश्चिक और चर और लाभ के श्रेष्ठ चौघड़िया हैं। इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो रहा है, जिसके चलते तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन 18 अक्तूबर को मनाई जाएगी। 23 अक्तूबर तक नवरात्र चलेंगे।
अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11.30 बजे से दुपहर 12.30 बजे तक
स्थिर लग्न में स्थापना करेंः-
ज्योतिष के अनुसार स्थिर लग्न में किए हुए कार्य पूर्ण होते है, शुभ फल देने वाले होते है। साथ ही किए हुए कार्य का प्रभाव भी स्थायी होता है। इसलिए शुभ कार्यों को करने से पहलें स्थिर लग्न का विचार किया जाता।घट स्थापना का शुभ समयरू ---स्थिर लग्न - सुबह 918 बजे से 1107 बजे तक
राहुकाल में स्थापना न करेंः-
ज्योतिष के अनुसार राहुकाल को अशुभ समय माना जाता है एवं ऐसा माना जाता है कि इस काल में किया हुआ कार्य अशुभ फल देता है। इस दिन  राहुकाल- प्रातः 10.30 से 1200 बजे तक रहेगा।(16 अक्तूबर,2012 को मंगलवार)
नवरात्रों में कमी आना शुभ नहीं माना जाता। वहीं नवरात्र पर्व का आरंभ 16 अक्टूबर से हो रहा है और इसका समापन 23 अक्टूबर को होगा।
इसलिए हुई तिथियों में घट-बढ़ः-
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067 ) के अनुसार तिथियां सूर्य-चंद्रमा की गति से संबंध रखती हैं।  जब सूर्य चंद्र की गति का अंतर अधिक रहता है तब चंद्रमा 15 दिनों के बजाय 14 दिन में ही सूर्य के सम्मुख आ जाता है। यदि गति का अंतर धीमा हो तो 16 दिन भी लग जाते हैं। सूर्य-चंद्र की यही गति तिथियों की घट-बढ़ का प्रमुख कारण होती है।
इस दफा दो नवरात्र एक ही दिनः-
इस वर्ष शारदीय नवरात्र की शुरुआत 16 अक्टूबर से मंगलवार के दिन मंगल के ही नक्षत्र चित्रा से हो रही है । 16 अक्टूबर को घटस्थापना के साथ शारदीय नवरात्रि शुरू होगी। ज्यादातर पंचांग तृतीया व चतुर्थी एक ही दिन बता रहे हैं। कुछ में पंचमी व षष्ठमी एक ही दिन बताई गई है। बाद में चतुर्थी होगी। 22 को दूर्गा अष्टमी मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067) के अनुसार  भारतीय संस्कृति में आराधना और साधना करने के लिए नवरात्र पर्व को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जहां अन्य त्योहार होली, दीवाली, ग्रहण आदि में समय बहुत कम होता है, वहीं नवरात्र अपेक्षाकृत दीर्घकालिक होते हैं।
मूर्ति या तस्वीर स्थापनाः-- माँ दुगा की मूर्ती या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र(अपनी सुविधानुसार) के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली अक्षत(बिना टूटा हुआ चावल), धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
आसनः- लाल अथवा सफेद आसन पूरब की ओर बैठकर नवरात्रि करने वाले विशेष को पूजा, मंत्र जप, हवन एवं अनुष्ठान करना चाहिए।
कुलदेवी का पूजनः- हर परिवार में मान्यता अनुसार जो भी कुलदेवी है उनका श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा अर्चना करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067 ) के अनुसार वर्ष 2012 में यह व्रत 16 अक्टूबर से शुरु होकर 23 अक्तूबर तक रहेगे़। व्रत का संकल्प लेने के बाद पंडित से या स्वयं मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। तथा ष्दुर्गा सप्तशतीष् का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हुए इस व्रत को करते है। कहीं कहीं नवरात्रे भर रामलीलाएं भी होती है।
देवी पूजा में इनका रखे ध्यानः-
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।--09024390067 ) के अनुसार इन नवरात्रों में रखें की कोई असावधानी न हो, दुर्गा पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे एक घर में दुर्गा की तीन मूर्तियां न हों अर्थात देवी की तीन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, पूजन न करें। देवी के स्थान पर वंशवाध, शहनाई का घोष नहीं करना चाहिए तथा दुर्गा पूजन में दूर्वा अर्थात दूब का प्रयोग नहीं करना चाहिए। दुर्गा आवाहन के समय बिल्वपत्र, बिल्व शाखा, त्रिशूल, श्रीफल का प्रयोग करना चाहिए। पूजन में सुगंधहीन व विषैले फूल न चढ़ाए बल्कि लाल फूल मां को प्रिय हैं। रात्रि में कलश स्थापना नही करनी चाहिए। मां दुर्गा को लाल वस्त्र पहनाए और उनका मुख उत्तर दिशा की तरफ कदापि न करें। विभिन्न लग्न, मुहूर्ताे में मंत्र जाप और उपासना का विशिष्ट फल मिलता है जैसे मेष, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ में एश्वर्य, धन लाभ, स्वर्ण प्राप्ति और सिद्धि मिलती है। परंतु वृष, मिथुन, सिंह, धनू, मीन लग्न में अपमान, मृत्यु, धन नाश और दुखों की प्राप्ति होती है।

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