शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

84 के दंगों की बैसाखी पर मनमोहन!


84 के दंगों की बैसाखी पर मनमोहन!


(लिमटी खरे)

जब जब मनमोहन सिंह संकट में आए हैं तब तब 1984 के सिख दंगों का जिन्न निकलकर बाहर आया है। वर्तमान में भी जब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने की कवायद चरम पर है तब भी 84 के दंगों में जगदीश टाईटलर को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया में टाईटलर अपनी सफाई पेश करते फिर रहे हैं कि वे निर्दोष हैं। हालात चीख चीख कर कह रहे हैं कि सोनिया गांधी ही सर्वोच्च सत्ता का केंद्र हैं मनमोहन सिंह तो महज एक रिमोट कंट्रोल आपरेटेड इक्यूपमेंट हैं। 1884 में इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत सिखों के विरोध में घृणा का वातावरण निर्मित कर कांग्रेस ने अभूतपूर्व मेजारिटी हासिल अवश्य की थी कांग्रेस ने 416 सीट पाई थी, पर यह सब कुछ सिखों के विरोध में फैलाई गई वितृष्णा के बूते हुआ। 84 के दंगों ने बटवारे की यादें ताजा कर दीं। यह ठीक उसी तरह हुआ जिस तरह मुहम्मद अली जिन्ना ने 1947 में लोगों के मन में जहर के बीच प्रस्फुटित करवा कर पाकिस्तान को नक्शे पर लाया गया था।

देश में सियासी तूफान मचा हुआ है। सियासत में सत्ता का केंद्र मनमोहन ंिसह के बजाए राहुल गांधी को बनवाने का जतन हो रहा है। राहुल गांधी को आगे कर उनका नाम भुनाकर सियासी पायदान चढ़ने वाले कांग्रेस के आलंबरदार उन्हें वजीरे आजम बनवाने की जुगत में हैं। मनमोहन सिंह को अपनी कुर्सी पर खतरा सामने से ही मंडराता दिख रहा है। जब जब मनमोहन सिंह पर संकट के बाद बादल छाए हैं तब तब 84 के सिख दंगों का जिन्न जिंदा ही हुआ है।
84 के दंगे भारत गणराज्य के सियासी इतिहास का सबसे बड़ा स्याह धब्बा है। कांग्रेस द्वारा प्रियदर्शनी की हत्या से उपजी घृणा की लहर को कैश करवाया जा रहा था। सिखों के साथ कत्लेआम मचा था और कांग्र्रेस के आलंबरदार हाथ पर हाथ रखे ही बैठे थे। उस समय की परिस्थितियों पर अगर गौर किया जाए तो उस वक्त उन सियासी लोगों के घरों पर भी हमले हो रहे थे जो इन दंगों की मुखालफत कर रहे थे। इस फेहरिस्त में प्रणव मुखर्जी, राम विलास पासवान, चंद्रशेखर आदि के घर इनमें शामिल थे।
1984 के दंगों के बारे में जिन्होंने भी सुना या देखा है वह पीढ़ी आज भी जीवित ही है। इस पीढ़ी ने अपने अध्ययन अध्यापन के दौरान इतिहास भी पढ़ा होगा। याद पड़ता है कि जिस तरह नादिरशाह और चंगेज खान या हिटलर ने लोगों पर कहर बरपाया था उसी तर्ज पर कांग्रेस के नेताओं की शह पर 1984 में सिर्फ और सिर्फ सिखों को ही निशाना बनाकर उन्हें मारा और लूटा जा रहा था।
1984 के दंगों के बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस को अशातीत सफलता मिली। कांग्रेस के रणनीतिकार फूले नहीं समा रहे थे। राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने सभी आतुर थे, पर असली खालिस कांग्रेसी जानते थे कि यह जीत कांग्रेस की नहीं वरन् कांग्रेस के लोगों द्वारा सिखों के खिलाफ पैदा की हुई नफरत की बुनियाद पर हासिल की गई थी। इस बात को प्रधानमंत्री के इर्द गिर्द रहने वाले भली भांति जानते समझते हैं। यही कारण है कि सिखों के रिसते जख्मों को बार बार हरा किया जाता है ताकि सिख प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अपनी कुर्सी बचा सकें।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का सत्ता और शक्ति का शीर्ष केंद्र आज भी 10 जनपथ यानी सोनिया गांधी का सरकारी आवास ही बना हुआ है। अब यह कांग्रेस के बजाए सरकार की शक्ति और सत्ता का शीर्ष केंद्र बन चुका है। मनमोहन सिंह सिर्फ रिमोट से चलने वाले एक इंस्टूमेंट से ज्यादा कुछ नहीं हैं। मनमोहन जुंडाली इस बात को भली भांति जानती है कि सोनिया के आगे प्रधानमंत्री होते हुए भी मनमोहन मिमियाते ही नजर आते हैं।
कांग्रेस में आजादी के बाद सत्ता की धुरी नेहरू गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही सिमटी रही है। वर्तमान में भी सत्ता की धुरी सोनिया गांधी के हाथों में ही है, उनके पुत्र राहुल गांधी नंबर दो पर विराजमान हैं। मनमोहन सिंह वैगरा का नंबर इनके उपरांत ही लगता है। देखा जाए तो मनमोहन सिंह सरकार में कांग्रेस के प्रतिनिधि हैं, उस लिहाज से उनकी प्राथमिकताएं और प्रतिबद्धताएं कांग्रेस के प्रति होना लाजिमी है पर कांग्रेस के लाभ के लिए अगर वे देश को ही गिरवी रखने का प्रयास करें तो यह अनुचित ही होगा।
जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक नेहरू गांधी परिवार ने अपने पास वजीरे आजम का पद रखा और कांग्रेस अध्यक्ष किसी और को बनाया। सोनिया गांधी चूंकि इटली मूल की थीं, शरद पंवार ने उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाया फिर क्या था सोनिया को कदम वापस खेंचने पड़े और फिर मनमोहन सिंह उनकी पसंद बनकर सामने आए।
मनमोहन सिंह पर एक के बाद एक वार होते रहे, और सोनिया गांधी उनकी ढाल बनीं रहीं। अचानक ही सोनिया के सलाहकारों ने सत्ता के दोनों केन्द्र यानी प्रधानमंत्री निवास और 10, जनपथ के बीच खाई खोद दी। यह खाई कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। मनमोहन सिंह पर हमले हुए और 84 के सिख दंगों का जिन्न बाहर आया। 84 के दंगों में सिखों पर मरहम लगाने के लिए ज्ञानी जेल सिंह को देश का पहला नागरिक बनाया गया। अब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं, अगर उन्हें हटाया गया तो कांग्रेस को सिखों की बुराई मोल लेनी पड़ सकती है। (साई फीचर्स)

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