सोमवार, 29 जुलाई 2013

गंदे बदबूदार पेयजल से कब मिलेगी निजात

गंदे बदबूदार पेयजल से कब मिलेगी निजात

(शरद खरे)

माना जाता है कि सत्तर फीसदी बीमारियों की जड़ दूषित जल ही होता है। जल को शुद्ध कर ही जनता के बीच बांटने की जवाबदेही है स्थानीय निकायों की। स्थानीय निकाय जल के शोधन में लाखों करोड़ों रूपए हर साल खर्च करती है, फिर भी अगर जनता को साफ पानी पीने को ना मिले तो यह किसकी जवाबदेही मानी जाएगी। आज अस्पताल पूरी तरह आंत्रशोध, डायरिया जैसी जलजनित बीमारियों के मरीजों से अटे पड़े हैं।
जिला मुख्यालय सिवनी में पानी की सप्लाई के लिए व्यवस्थाओं में परिवर्तन होता रहा है। जानकार बताते हैं कि 1920 में जब शहर की आबादी महज चार हजार से भी कम थी, तब शहर की जलापूर्ति के लिए बबरिया तालाब बनवाया गया था। इस तालाब से नहरों के माध्यम से पीने का पानी शहर में आता था। जानकार यह भी बताते हैं कि बबरिया तालाब में अगर पानी ज्यादा हो जाता था तो वह भूमिगत नहर के माध्यम से बरास्ता कंपनी गार्डन होते हुए दलसागर में पहुंचता था। दलसागर में ओवर फ्लो की स्थिति में यह भूमिगत नहर के माध्यम से बुधवारी तालाब और फिर बुधवारी तालाब का आउटलेट ललमटिया वाले सिरे से किया जाता था।
काफी लंबे अरसे तक सिवनी में नहरों, कुओं, वावलियों आदि से पीने का पानी मिलता रहा। शहर के अंदर के दलसागर, बुधवारी, मठ और स्टेशन के सामने के तालाबों का पानी पीने योग्य नहीं माना जाता था। कालांतर में नगर पालिका परिषद के ओवरसियर लाला हरगोविंद राय सरीन ने सिवनी में नहरों के बजाए भूमिगत पाईप लाईन डलवाना आरंभ किया। डॉ.विजय कुमार सरीन के दादा लाला जी को उसके बाद शहर के लोग उन्हें नल बाबू के नाम से ही पुकारने लगे। आज भी पुराने लोग शहर में पानी की सप्लाई के लिए नल बाबू का जिकर अवश्य कर लिया करते हैं। जब घरों घर में भूमिगत लोहे के पाईपों के माध्यम से बबरिया से पानी का प्रदाय आरंभ हुआ तब पुरानी नहरों का उपयोग बंद हो गया और ये शहर के बड़े नालों में तब्दील हो गए। आज बुधवारी में सरचा होटल के सामने वाला नाला पुरानी नहर ही है।
1972 में शहर में पानी की सप्लाई के लिए लखनवाड़ा के बैनगंगा के तट का उपयोग किया जाने लगा, पर यह साल में महज तीन चार माह ही साथ दे पाता था। यहां एक विशेषता यह कही जाएगी कि शहर में लंबे समय तक टिग्गा मोहल्ला की इकलोती पानी की टंकी से सुबह और शाम दोनों ही समय पानी की सप्लाई की जाती थी। उस समय शहर में पानी का हाहाकार नहीं मचता था। इसके साथ ही मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला और कटंगी नाके के नलकूप से पानी की व्यवस्था प्रथक से की जाती थी।
जब शहर की आबादी बढ़ी तो पानी का प्रदाय एक ही समय होना आरंभ हुआ। इसके बाद शहर में और पानी की टंकियों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। पानी की टंकियों की तादाद बढ़ाने के साथ ही साथ एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध का दर्जा प्राप्त संजय सरोवर परियोजना यानी भीमगढ़ बांध में सुआखेड़ा से श्रीवनी होकर सिवनी पानी लाना सुनिश्चित किया गया। इस योजना की सबसे बड़ी खामी लगभग 22 किलोमीटर दूर श्रीवनी से पानी साफ कर पाईप के सहारे सिवनी लाया जाना था। एक बार तत्कालीन प्रभारी मंत्री गणपत सिंह उईके ने इसके निरीक्षण के दौरान आश्चर्य व्यक्त किया था कि आखिर 22 किलोमीटर तक साफ पानी कैसे लाया जा रहा है?
पॉलीटिकल माईलेज के चलते मार्ग में पड़ने वाले गांवों में इस लाईन से होने वाली पानी की चोरी पर अनदेखी की गई। इस लाईन के परीक्षण के दौरान मिशन इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास पाईप, पानी के तेज दबाव में जमीन से निकलकर आसमान की ओर खड़ी हो गई थी। बेहतर होता अगर उस समय ही जल शोधन संयंत्र को श्रीवनी के स्थान पर बबरिया में ही बनाया जाता और भीमगढ़ का पानी रोजाना बबरिया लाया जाना सुनिश्चित किया जाता।
अगर ऐसा होता तो निस्संदेह बार बार फटने वाली इस पाईप लाईन के कारण नलों के ना आने की समस्या से नागरिक दो चार नहीं होते क्योंकि कम से कम दो माह का पानी तो बबरिया में स्टाक में रहता ही साथ ही साथ लोगों को साफ पानी मुहैया हो पाता। इस बारे में अनेक बार पत्राचार करने पर इसे अव्यवहारिक बताया गया है। पता नहीं यह अव्यवहारिक कैसे है? जब यह योजना कार्यरूप में परिणित हो रही थी तब प्रदेश में विपक्ष में बैठी भाजपा के विधायक भी मौन धारण किए रहे।
सिवनी शहर में आज कम से कम दस हजार 460 नल कनेक्शनधारी हैं और शहर में चार पानी की टंकियां हैं, प्रत्येक पानी की टंकी की क्षमता 13 लाख पचास हजार लीटर है। बावजूद इसके प्रत्येक घर में महज दस से पंद्रह मिनिट ही पानी की सप्लाई हो पा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पानी सुआखेड़ा से ही कम दबाव में लाया जा रहा है, क्योंकि विभाग को डर है कि अगर पूरी क्षमता का उपयोग किया गया तो कहीं पाईप फट ना जाएं। यही कारण है कि पानी की टंकियां आधी अधूरी ही भर रही हैं।
अभी बारिश का मौसम अपने पूरे शवाब पर है, अभी तक पानी भी पिछले वर्ष की तुलना में अच्छा खासा गिर चुका है इसके बाद भी शहर में पानी का हाहाकर मचता दिख रहा है। जिला प्रशासन के आला अफसरान् के घरों पर तो उम्दा क्वालिटी के फिल्टर होंगे जिससे साफ किया हुआ पानी वे उपभोग करते होंगे पर उन गरीबों की कौन सुने जो दो से तीन फिट गहरे गड्ढ़े में उतरकर पीने का पानी लाने को मजबूर हैं? कई इलाकों में तो गंदा और बदबूदार पानी ही पीने पर मजबूर हैं सिवनी के वाशिंदे।
नगर पालिका की स्थिति काफी दयनीय है। नगर पालिका को विधायक निधि से घटिया टेंकर्स देने की पंरपरा का बाकायदा निर्वहन हो रहा है, पर भाजपा से उपकृत कांग्रेस के नुमाईंदे खामोश हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आखिर शहर के लोगों को साफ पानी ना मुहैया होने का मामला विधानसभा में क्यों नहीं गूंज पाया? कारण आईने के मानिंद साफ है कि अगर बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी की तर्ज पर इस मामले में अंत में कांग्रेस ही कटघरे में खड़ी दिखाई देगी। सिवनी का कोई धनी धोरी नहीं बचा है यह बात सच है। अपने जमाने के मुखर नेता रहे हरीश क्षेत्रपाल सदा ही कहा करते थे, इसकी चिंता मत करो यारों यह मुर्दों का शहर है।

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