मंगलवार, 30 जुलाई 2013

झाबुआ पावर, विकास और रासलीला!

झाबुआ पावर, विकास और रासलीला!

(शरद खरे)

सिवनी जिले में नेतृत्व का अभाव नब्बे के दशक से साफ तौर पर देखने को मिल रहा है। जब तक पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा सक्रिय राजनीति में थीं तब तक सिवनी के विकास के जो सौपान तय किए गए उसे आज प्रौढ़ और उमरदराज हो रही पीढ़ी भली भांति जानती है। विध्न संतोषियों ने सुश्री विमला वर्मा को कथित तौर पर षणयंत्र के तहत सक्रिय राजनीति से किनारे होने पर मजबूर कर दिया। इसके उपरांत सिवनी में पूरी तरह गैर मूल्य आधारित निहित स्वार्थ वाली राजनीति का आगाज हो गया।
सिवनी के विकास पर इसी के उपरांत ग्रहण लगना आरंभ हुआ। सिवनी में सियासी हल्कों में हल्कापन तेजी से पसर गया और फिर विकास का रथ अवरूद्ध होता चला गया। इसके बाद विकास के मायने ही बदल गए। सिवनी में एक एक करके पुराने उद्योग धंधे बंद होते चले गए पर ना किसी सांसद ना विधायक ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। सिवनी की शराब डिस्टलरी भी बंद हो गई।
सिवनी में एनटीपीसी का पावर ग्रिड स्थापित हुआ। शहरी सीमा से महज चार किलोमीटर दूर जबलपुर रोड़ पर एनटीपीसी ने अपने वितरण केंद्र की संस्थापना करवाई हैै। करोड़ों रूपयों की लागत वाले इस वितरण केंद्र के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन एनटीपीसी को दी गई है। यहां वितरण केंद्र के अंदर कर्मचारियों को रहने की व्यवस्था भी है। यह वितरण केंद्र सिवनी के लिए शोभा की सुपारी से कम नहीं है। इस वितरण केंद्र से सिवनी को क्या फायदा है, यह बात सिवनी के विकास का ठेका लेने वाले अगर बता दें तो मेहरबानी से कम नहीं होगा।
जब घोषित और अघोषित बिजली कटौती होती रही है तब भी इस वितरण केंद्र के अंदर सोडियम लेंप जगमगाते रहे हैं। क्या सिवनी को इससे विद्युत आपूर्ति हो रही है? क्या यहां रहने वालों से नगर पालिका या किसी ग्राम पंचायत को कर के रूप में कुछ आवक हो रही है? क्या इसका कोई लाभ सिवनी को मिल रहा है? जाहिर है तमाम प्रश्नों के उत्तर नकारात्मक ही होंगे। फिर क्या वजह है कि सिवनी जिले की भूमि इसके लिए दे दी गई। निश्चित तौर पर यह राष्ट्रीय विकास का मसला है पर इसमें सिवनी की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए थी, वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं।
अब घंसौर में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह जो शराब निर्माण से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी गहरी पैठ रखता है के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा एक पावर प्लांट लगाया जा रहा है। यह पावर लगभग सात हजार करोड़ रूपयों की लागत से लगने वाले इस पावर प्लांट के लिए घंसौर के नेता नुमा ठेकेदारों ने अपना कब्जा जमा लिया है। संयंत्र प्रबंधन इनके इशारों पर कत्थक कर रहा है। सिवनी के कथित मीडिया मुगलों को ये नेता नुमा ठेकेदार पैसों के बल पर अपनी देहरी पर कत्थक करवा रहे हैं। मीडिया के गुणधर्म, एथिक्स को भूलकर मीडिया को दुकान समझने वाले ये कथित मीडिया मुगल इनकी देहरी पर कत्थक करने को अपनी शान समझ रहे हैं।
वर्ष 2009 से सिवनी में गौतम थापर के इस पावर प्लांट की संस्थापना की नींव रखी गई है। आरंभ से ही यह पावर प्लांट विवादों में घिरा रहा है। सिवनी का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सिवनी जिले में लगने वाले इस पावर प्लांट का एक भी कार्यालय जिला मुख्यालय सिवनी में नहीं है। अगर किसी को कोई सूचना का आदन प्रदान करना हो तो उसे सिवनी से लगभग सौ किलोमीटर का सफर तय कर घंसौर के बरेला जाना होता है। जिला प्रशासन ने भी इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की है कि सिवनी में लगने वाले पावर प्लांट का कार्यालय सिवनी के बजाए जबलपुर में क्यों?
पावर प्लांट के एक कर्ताधार्ता अधिकारी मेंहदीरत्ता जी से अगर उनके मोबाईल (जो आसानी से उपलब्ध नहीं है, सिवनी में चुनिंदा बिचौलियों के पास ही है, हमें भी बमुश्किल ही मिल पाया है) 9977802499 पर संपर्क कर पूछा जाए तो वे यही कहते पाए जाएंगे कि जबलपुर संयंत्र स्थल से पास है अतः वहां कार्यालय है। अगर ऐसा ही था तो पावर प्लांट जबलपुर जिले में ही लगवा लिया जाता उसके लिए सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील का सीना क्यों छलनी किया जा रहा है?
इस संयंत्र में कितने लोग कहां कहां से आकर काम कर रहे हैं यह बात संयंत्र प्रबंधन ही जानता है। पिछले दिनों घंसौर में चार साल की मासूम गुड़िया के साथ इसी पावर प्लांट के एक वेल्डर ने दुराचार किया। अंत में गुड़िया की इहलीला समाप्त हो गई। यह सब होने के बाद ना प्रशासन चेता ना पुलिस। संयंत्र प्रबंधन तो बस किसी तरह काम निकल जाए की तर्ज पर काम कर ही रहा है। हाल ही में संयंत्र में कार्यरत एक सुरक्षा कर्मी ने महज तेरह साल की कोमलांगी बाला के सामने अपने कपड़े उतार दिए। अब तक ना जाने कितने लोग इस संयंत्र में निर्माण के दौरान दम तोड़ चुके हैं। इसकी जानकारी घंसौर पुलिस को नहीं है ऐसा नहीं है पर माता लक्ष्मी में बहुत दम होती है इस बात का साक्षात उदहारण देखने को मिल रहा है घंसौर में।

आखिर हो क्या रहा है इस संयंत्र में! आखिर देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर अपने गुर्गों से क्या करवाना चाह रहे हैं सिवनी में? आखिर पुलिस ने अब तक दर्ज मामलों में गौतम थापर के खिलाफ मामला पंजीबद्ध क्यों नहीं किया? आखिर गौतम थापर इस कंपनी के सीधे सीधे मालिक हैं, यह जवाबदेही गौतम थापर की बनती है कि वे अपने संस्थान में अच्छे और चरित्रवान कर्मचारी रखें। इधर पुलिस की जवाबदेही है कि अगर गौतम थापर ऐसा नहीं कर रहे हैं तो उन्हें कटघरे में खड़ा करें। गौतम थापर खरबपति हैं तो क्या हुआ? क्या भारत गणराज्य का कानून अमीर गरीब में भेद करता है? घंसौर पुलिस को चाहिए कि वह गौतम थापर के खिलाफ भी कार्यवाही करते हुए उनकी हाजिरी घंसौर थाने में लगवाए तभी गौतम थापर अपने संयंत्र की जमीनी हकीकत से रूबरू हो पाएंगे और सिवनी की बालाएं गौतम थापर के छोड़े गए इन नरपिशाचों से बच पाएंगी!

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