रविवार, 8 सितंबर 2013

गौतम थापर की जेब में है प्रदूषण नियंत्रण मण्डल

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 12

गौतम थापर की जेब में है प्रदूषण नियंत्रण मण्डल

थापर के इशारों पर कत्थक कर रहा है पीसीबी


(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मध्य प्रदेश का प्रदूषण नियंत्रण मण्डल (पीसीबी) पिछले कुछ दिनों से देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान् झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए प्राईवेट लिमिटेड कंपनी बनकर काम करता दिख रहा है। पर्यावरण के प्रहरी के बतौर भूमिका निभाने के बजाय यह सरकारी संस्थान झाबुआ पावर लिमिटेड की मदद में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में स्थापित होने वाले 1260 मेगावाट (कागजों पर 1200 मेगावाट) के पावर प्लांट के मामले में कमोबेश यही कुछ होता दिख रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2009 मेें 22 अगस्त को इस पावर प्लांट के पहले चरण की लोकसुनवाई में पीसीबी ने अपनी वेब साईट पर इस लोकसुनवाई के बारे में मौन साधे रखा था। बाद में जब इस मामले में शोर शराबा मचाया गया तब जाकर पीसीबी की वेब साईट पर इसे 17 अगस्त को बमुश्किल अपलोड किया गया था। ठीक इसी तर्ज पर इस साल 22 नवंबर को हुई लोकसुनवाई में तो पीसीबी ने कमाल ही कर दिया। पीसीबी ने अपनी वेब साईट पर लोकसुनवाई की तिथि और अन्य विवरण के बारे में 22 नवंबर तक मौन साधे रखा।
पीसीबी के द्वारा ही इस लोकसुनवाई को आहूत किया गया था। इस लोक सुनवाई में लोगों को पर्यावरण के प्रभावों के बारे में ही न पता चले इसका पूरा पूरा बंदोबस्त कर रखा था प्रदूषण नियंत्रण मण्डल ने। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के सीमावर्ती सिवनी जिले में संभागीय मुख्यालय जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर लगने वाले झाबुआ पावर प्लांट के इस संयंत्र के बारे में प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट का मौन रहना आश्चर्य जनक ही माना जा रहा है।
22 नवंबर को जब संचार क्रांति का अभिनव उदाहरण देते हुए आदिवासी बाहुल्य ग्राम गोरखपुर में लेपटाप पर वहां उपस्थित संयंत्र प्रशासन और जनसुनवाई कराने आए मेजबान प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अधिकारियों को वेब साईट दिखाई गई तो उनके हाथों से तोते उड़ना स्वाभाविक ही था, क्योंकि उन्हें आशा ही नहीं थी कि मौके पर भी कोई उन्हें ऐसा करारा तमाचा मार सकता है।
आनन-फानन 23 नवंबर को पीसीबी ने अपनी वेब साईट को अपडेट किया पर तब तक तो जनसुनवाई ही हो चुकी थी। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की गफलत अगर पीसीबी के अधिकारियों ने की है तो यह तो घोर अनियमितता की श्रेणी में आता है और चूंकि इंटरनेट का मामला है अतः इसका रिकार्ड आसानी से उपलब्ध हो सकता है, इन परिस्थितियों में 22 नवंबर की जनसुनवाई ही शून्य मानी जानी चाहिए।

विडम्बना तो देखिए प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा गौतम थापर की देहरी पर मुजरा करते हुए न केवल इसे वैधानिक माना गया वरन, पीसीबी की अनुशंसा पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग की एनओसी भी गौतम थापर के कदमों में लाकर रख दी गई।

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