गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

आडवाणी की ओर से आंखें फेरी संघ ने

आडवाणी की ओर से आंखें फेरी संघ ने
 
गडकरी भी नहीं दे रहे आडवाणी को ज्यादा भाव
 
सिंघल भी दिखा चुके हैं तीखे तेवर
 
संघ चाहता है कमल एक बार फिर देश में छा जाए
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 29 अप्रेल। मुरझाए कमल के फूल की पंखुडियों को एक बार फिर नई उर्जा देकर खडा करने की कोशिश में लगे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब अपना रोड मेप तय कर लिया है। पिछले कुछ सालों में हुई गिल्तयों पर मनन करने के बाद संघ ने अब आत्मकेन्द्रित घाघ नेताओं के पर कतरने की कार्ययोजना बना ली है। लगता है कि इस मुहिम में सबसे पहले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की लाटरी लगी है, वे आजकल संघ के निशाने पर बताए जा रहे हैं।
 
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अटल बिहारी बाजपेयी के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेते ही पार्टी के स्वयंभू नए खिवैया बनकर उभरे एल.के.आडवाणी ने खुद को प्रधानमन्त्री बनवाने के लिए पार्टी का बंटाधार करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। आडवाणी की कीर्तन मण्डली ने उन्हीं को उपकृत किया था, जो आडवाणी की चरण वन्दना में विश्वास रखते थे, एसी परिस्थितियों में पार्टी के अनेक कुशल नेताओं ने अपने आप को एक दायरे में समेटकर रख लिया था।
 
संघ ने आडवाणी के पर करतने के उपक्रम में उन नेताओं को एक छतरी के नीचे लाना आरम्भ कर दिया है, जो कभी आडवाणी के कट्टर विरोधी रहे हैं। सूत्रों की माने तो संघ का शीर्ष नेतृत्व इन दिनों उमा भारती, गोविन्दाचार्य, सुब्रहामण्यम स्वामी, अशोक सिंघल, मदन लाल खुराना, कल्याण सिंह, यशवन्त सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं से सतत संपर्क बनाए हुए है। इन्ही के साथ रायशुमारी कर संघ अपने अगले कदम तय कर रहा है। संघ के नेतृत्व की इच्छा है कि कालराज मिश्र जैसे सीजन्ड नेताओं को देश में कमल को खिलाने के लिए एक बार फिर जवाबदारी दी जा सकती है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि मोहन भागवत सहित भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आडवाणी को हाशिए में ढकेलने के अभियान की कमान सम्भाल रखी है।
 
भाजपा से बिछुडे कल्याण सिंह और उमा भारती अब गोविन्दाचार्य के अगले कदम की बाट जोह रहे हैं। कल्याण सिंह की घर वापसी के लिए भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी ने कल्याण पुत्र राजवीर को दाना डाला हुआ है। हरिद्वार में सन्तों के बीच विहिप के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल भी आडवाणी के खिलाफ जहर बुझे तीर चला चुके हैं। बकौल सिंघल आडवाणी की रथ यात्रा के कारण मन्दिर नहीं बन पाया था। सिंघल ने तो आडवाणी को आडे हाथों लेते हुए यह तक कह दिया कि उनकी रथयात्रा वोट बैंक के लिए थी। कहा जा रहा है कि गडकरी और संघ का शीर्ष नेतृत्व मिलकर कुछ नए एक्सपेरीमेंट करने की तैयारी में हैं। इस तरह के प्रयोग एल.के.आडवाणी, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरूण जेतली आदि को शायद ही रास आएं।

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