मंगलवार, 17 अगस्त 2010

0 फोरलेन विवाद का सच --------- 10

तत्कालीन कलेक्टर के आदेश के बाद उमड़ा था सिवनी वासियों में आक्रोश

सड़क बंद होने और छिंदवाड़ा से जाने की चर्चाओं का गर्मा गया था बाजार

पिछले साल जून में अचानक अवतरित हुआ था तत्कालीन कलेक्टर का आदेश

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 17 अगस्त। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले का यह सौभाग्य ही माना जाएगा कि बड़े बड़े राजनेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद भी उत्तर दक्षिण फोरलेन सड़क परियोजना के नक्शे से इस जिले का नामोनिशान नहीं मिट सका था। नेताओं ने एडी चोटी लगा दी कि इस परियोजना का एलाईंमेंट बदल दिया जाए किन्तु केंद्र सरकार ने एक न सुनी और इसका निर्माण आरंभ करवा दिया। सिवनी जिले में भी लखनादौन तहसील से नरसिंहपुर जिले की सीमा से लेकर जिला मुख्यालय सिवनी होकर महाराष्ट्र की सीमा तक इस सडत्रक का निर्माण करवाया जा रहा था।

अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार की महात्वाकाक्षी योजना बन गई थी स्वर्णिम चतुर्भज फोरलेन परियोजना, जिसके तहत देश के चारों महानगरों को आपस में जोड़ा जाना प्रस्तावित था। इसी के साथ मुंबई को कोलकता और चेन्नई को नई दिल्ली से जोड़ने की गरज से उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारा बनाया जाना प्रस्तावित हुआ था। इस परियोजना में काम बहुत ही मंथर गति से चल रहा है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायस्वाल ने संसद में लिखित उत्तर में कहा है कि 30 हजार करोड़ रूपए की लागत से बनने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का काम छः साल पीछे चल रहा है।

बहरहाल पूर्व में इस मार्ग के निर्माण का काम युद्ध स्तर पर जारी भी किया गया है। वर्ष 2008 में दिसंबर माह में सिवनी जिले में एक नाटकीय मोड के तहत तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी पिरकीपण्डला नरहरि ने आदेश क्रमांक 3266/फोले/2008 दिनांक 18 दिसंबर 2008 को जारी कर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) के सदस्य सचिव के पत्र क्रमांक 1-26/सीईसी/एससी/2008 - पी 1 दिनांक 15 दिसंबर 2008 जिसे सीईसी ने मुख्य सचिव मध्य प्रदेश शासन को लिखा था के हवाले से काम रूकवा दिया था।

जिला कलेक्टर के उक्त पत्र में सीईसी ने नेशनल हाईवे नंबर सात के चोडीकरण कार्य (न कि उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा) में ग्राम मोहगांव से खवासा तक पेंच टाईगर रिजर्व से लगे वन क्षेत्र और गैर वन क्षेत्रों में की जारी वृक्षों की कटाई पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अगामी आदेश तक रोक लगाने का अनुरोध करना भी उल्लेखित किया गया है। जिला कलेक्टर सिवनी ने अपने उक्त आदेश में इस प्रत्याशा के साथ कि राज्य शासन द्वारा इस मामले में अभी निर्देश प्राप्त होना है, उन समस्त आदेशों को जो कलेक्टर कार्यालय सिवनी द्वारा इस संबंध में पूर्व में जारी किए गए थे, को स्थगित कर दिया था। इसके उपरांत क्या राज्य शासन द्वारा इस मामले में कोई निर्देश दिए हैं या फिर नहीं इस मामले में जिला प्रशासन सिवनी ने अपना मुंह सिल रखा है।

मजे की बात तो यह है कि कलेक्टर सिवनी का दिसंबर 2008 का यह आदेश जुलाई 2009 में प्रायोजित तरीके से सिवनी की फिजां में तैराया गया। दिसंबर 2008 से जुलाई 2009 तक यह आदेश कैसे दबा रह गया यह बात आज भी यक्ष प्रश्न की भांति ही खडी हुई है। जुलाई 2009 में यह आदेश क्यों सामने लाया गया, यह भी एक पहेली ही बना हुआ है। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि जिला कलेक्टर के 18 दिसंबर 2008 के इस आदेश की प्रतिलिपि मुख्य सचिव म.प्र.शासन, मुख्य वन संरक्षक सिवनी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर एनएचएआई, सिवनी, संबंधित विभागों के साथ ही साथ जिला जनसंपर्क अधिकारी कार्यालय सिवनी को सभी स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए प्रेषित किया गया था।

जब यह बात सिवनी की फिजां में तैरी वैसे ही लोगों के अंदर रोष और असंतोष पनपना आरंभ हो गया। अफवाहें तबियत से गरमा चुकी थीं उस वक्त। कोई कहता सड़क बंद हो जाएगी तो कोई इसे कमल नाथ का षणयंत्र बताकर अपनी राग अलाप देता। लोगों का गुस्सा किस दिशा में जा रहा था, इस बात को कोई भी नहीं समझ पा रहा था। इसी बीच शहर के कुछ उत्साही युवाओं ने लोगों को एक सूत्र में पिरोने की ठानी।

(क्रमशः जारी)

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