सोमवार, 16 अगस्त 2010

फोरलेन का सच ----- 09

सद्भाव और मीनाक्षी ने बिगाड़ा है सबसे अधिक पर्यावरण

कितने झाड़ कटे कितने लगे किसी को नहीं पता

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय क्यों है सड़क के ठेकेदारों पर मेहरबान?

पहलें लगें फिर काटे जाने चाहिए थे पेड़

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 16 अगस्त। वन्य जीवों एवं पर्यावरण बचाने की दुहाई देकर केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी उत्तर दक्षिण फोरलेन सड़क गलियारा परियोजना में पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान यहां सड़क निर्माण का काम करने वाली मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी और सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी ने पहुंचाया है। सड़क निर्माण के आरंभ होते ही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई थी, जिनके एवज में कहां किस प्रजाति के पौधों को लगाया गया है, इस बारे मंे वन विभाग मौन साधे हुए है।

अमूमन जब भी अत्यावश्यक कार्यों के लिए पेड़ों की कटाई की सरकारी अनुमति दी जाती है, तो बाकायदा एक पेड़ काटने के एवज में दस पौधांे को लगाया जाता है। आदि अनादि काल से अब तक सड़कों के किनारे छायादार पेड़ इसलिए लगाए जाते थे ताकि राहगीरों को इनके नीचे बैठकर कुछ देर आराम मिल जाए। मध्य प्रदेश सरकार के लोक कर्म विभाग द्वारा पूर्व में सड़क किनारे खड़े पेड़ों पर चूने से सफेद घेरा भी बनाया जाता था, ताकि ये सरकारी संपत्ति प्रदर्शित होने के साथ ही साथ रात में वाहन चालकों को नजर भी आ सकें। कालांतर में यह चूने से घेरा बनाने की प्रक्रिया अपने आप ही विलुप्त हो गई।

आरोपित है कि कुछ जनसेवकों ने सिवनी जिले को स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से मिटाने के षणयंत्र का तना बाना वर्ष 2008 के बीतते बीतते बुना गया। जाने अनजाने सिवनी के स्वयंभू नेता भी इस षणयंत्र का हिस्सा बनते चले गए। इस सड़क का काम किसके मौखिक या लिखित आदेश से रूका है, इस बारे में तरह तरह की किंवदंतियां सिवनी की फिजां में तैर रही हैं। कोई पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा के सांसद और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को दोषी मानता है, कोई केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को तो कोई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को। आरोप मढ़ने वालों ने आज तक कोई भी तथ्यपरख बात जनता जनार्दन के सामने नहीं रखी है कि फलां व्यक्ति के मौखिक या लिखित आदेश से सड़क के निर्माण का काम रोका गया है, और न ही किसी स्वयंभू नेता ने ही सड़क निर्माण करा रही सद्भाव या मीनाक्षी कंपनियों के नुमाईंदों से जाकर पूछने की जहमत ही उठाई है।

बहरहाल सिवनी जिले में लखनादौन तहसील में नरसिंहपुर की सीमा से जिला मुख्यालय सिवनी तक के सड़क को फोरलेन करने का काम मीनाक्षी तो दक्षिणी ओर जिला मुख्यालय से खवासा तक का सड़क निर्माण का काम सद्भाव नामक कंपनी करवा रही है। इन दोनों ही कंपनियों द्वारा सड़क निर्माण के लिए पेड़ों की तबियत से कटाई की गई। यह काम इतनी दु्रत गति से किया गया कि सिवनी वासी समझ ही नहीं पाए कि आखिर किस प्रजाति के कितने वर्ष आयु के कितने कितने वृक्ष कब कब काट दिए गए।

इतना ही नहीं इन वृक्षों के एवज में किस किस प्रजाति के कितने कितने पौधांे को और कहां कहां रोपा गया है, इस बारे में भी सिवनी के नागरिकों को कुछ जानकारी नहीं है। देखा जाए तो तीन चार सालों में इन पेड़ों को काटे जाने से जो पर्यावरण प्रभावित हुआ है, उस बारे में न तो वन विभाग को ही चिंता है और न ही सड़क बचाने आगे आए ठेकेदारों को।

जानकारों का कहना है कि पेड़ काटने के पूर्व ही अगर फोरलेन के दोनों ओर सड़क के किनारे पौधों को लगा दिया गया होता तो सड़क के निर्माण होते तक इनकी बेहतर देखरेख सड़क निर्माण कराने वाली कंपनी ही कर देती। वस्तुतः सड़क के बीच में अवश्य ही इन कंपनियों ने कुछ सजावटी फूल वाले पौधे लगाए गए हैं, जो पुराने दोहे ‘‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर! पंछी को छाया नहीं फल लागत अतिदूर!!‘‘ की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं।

अपेक्षा व्यक्त की जा रही है कि पर्यावरण बिगाड़ने में महती भागीदारी निभाने वाली सिवनी जिले में एनएचएआई के अधीन फोरलेन का निर्माण करा रही सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी पर भारी भरकम जुर्माना किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में पेड़ कटाई से पूर्व ही पौधों को लगा दिया जाए और पर्यावरण को बचाया जा सके।

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