सोमवार, 16 अगस्त 2010

गांधी से उकताती कांग्रेस

गांधी दर्शन से उबने लगी है कांग्रेस

नेहरू गांधी के नाम पर सत्ता हासिल करने वाली केंद्र सरकार भूल गई गांधी को

इस बार केंद्र सरकार नहीं देगी खादी पर विशेष छूट

गांधी जयंती पर मिलने वाली 20 फीसदी छूट इस साल से बंद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 16 अगस्त। समूचा देश मोहन दास करमचंद गांधी को राष्ट्रपिता कहकर ही संबांधित करता है। बापू के सादा जीवन उच्च विचारों के सामने उन ब्रितानी आताताईयों ने भी घुटने टेक दिए थे, जिन्होंने देश पर डेढ़ सौ साल राज किया। उसी बापू के नाम को भुनाकर आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने अब निर्णय लिया है कि गांधी जयंती पर खादी पर मिलने वाली 20 फीसदी छूट को इस साल से समाप्त कर दिया जाए।

महात्मा गांधी ने सदा ही खादी को प्रोत्साहित किया था। अंग्रेजों के कपड़ों का बहिष्कार भी बापू के खादी के आवहान पर ही किया गया था। आजादी के मतवालों ने खादी की महिमा का जमकर बखान भी किया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ही कहा था खादी साधारण वस्त्र नहीं है, खादी एक विचार है, और जिसका चरखा स्वदेशीकरण का प्रतीक है। गांधी जयंती पर खादी पर मिलने वाली छूट आरंभ से अब तक निर्बाध रूप से मिलती आई है।

खादी पर केंद्र सरकार की छूट के अलावा राज्यों की सरकारों द्वारा भी अपने अपने हिसाब से गांधी जयंती पर खादी की खरीद पर छूट दी जाती रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि 02 अक्टूबर से 108 दिनों तक खादी की खरीद पर केंद्र सरकार द्वारा हर साल 20 फीसदी छूट दी जाती रही है, किन्तु इस छूट को बंद करने का प्रस्ताव भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के कार्यकाल में लाया गया था।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में इसलिए डाल दिया था क्योंकि भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप पहले से ही है। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार जिस प्रस्ताव को अमली जामा न पहना सकी उसे महात्मा गांधी के नाम पर सियासत हासिल करने वाली कांग्रेसनीत सरकार ने साकार करने का दुस्साहस किया है।

बताया जाता है कि देश भर में खादी कमीशन से मान्यता प्राप्त 1950 खादी संस्थान वर्तमान में अस्तित्व में हैं। इन संस्थानों मे वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या 55 हजार से अधिक है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार खादी पर छूट को वापस लेकर देश के लगभग एक लाख बुनकर परिवारों के पेट पर सीधे सीधे लात मारने का काम ही करती नजर आ रही है।

खादी के समर्थक माने जाने वाले राजनेताओं का पहनावा भी आजकल बदला बदला ही दिख रहा है। आजकल के नेता खादी के कुर्ता पायजामा के स्थान पर टेरीकाट, जीन्स, कार्टराईज के पतलून कमीज में ही दिखाई पड़ते हैं। वैसे यह भी सच है कि आजादी, स्वदेशी, खादी आदि के मायने आज की पीढी की नजरों में बेमानी ही हो गए हैं। जनसेवक और नौकरशाह भी अब खादी से उबते ही दिख रहे हैं। संभवतः यही कारण है कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस 02 अक्टूबर से मिलने वाली खादी पर छूट को समाप्त ही कर दिया है।

कोई टिप्पणी नहीं: