बुधवार, 18 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच -------------- 11

जनाक्रोश से पैदा हुआ था ‘‘जनमंच‘‘
 
अगस्त में पहली बैठक में पूरी स्फूर्ति भरी से सिवनी के लोगों में
 
हर कदम पर साथ देने का माद्दा दिखाया था सिवनी की जनता ने
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 18 अगस्त। 2009 के जून माह में जैसे ही तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि का 18 दिसंबर 2008 को जारी और 19 दिसंबर को पृष्ठांकित पत्र सिवनी की फिजा में तैरा वैसे ही सिवनी के नागरिकांे में जबर्दस्त रोष और असंतोष की भावना घर कर गई थी। पहले ही लोकसभा सीट के अवसान का दुख झेल रही सिवनी जिले की जनता इस मामले में अब दुबारा घाव सहने की स्थिति में नहीं थी। लोकसभा के जाने का घाव जनता के सामने बुरी तरह रिस ही रहा था कि अचानक ही उत्तर दक्षिण गलियारे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटा देने के षणयंत्र का ताना बाना उनके सामने आ गया था।
 
सिवनी के चौक चौराहों में बस एक ही बात की चर्चा हो रही थी कि अब सिवनी से अगर किसी को नागपुर जाना है तो उसे बरास्ता कुरई खवासा के छिंदवाड़ा होकर जाना पड़ेगा। अफवाहों आशंकाओं के इस बाजार में कुछ स्वार्थी नेताओं ने इस मामले को केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ का षणयंत्र प्रचारित करना आरंभ कर दिया। तभी कमल नाथ ने राज्य सभा में एक बयान देकर सभी को चौंका दिया कि वे तो पहले से ही चाहते थे कि इस सड़क का एलाईंमेंट बदलकर छिंदवाड़ा के रास्ते ले जाया जाए।
 
इन्ही सारी गफलतों के बीच सिवनी के नागरिक अपने आप को हताश, परेशान और ठगा सा महसूस करने लगे थे। सांसद और विधायकों के भरोसे रहकर जनता ने लोकसभा सीट का अवसान साफ साफ देखा था, जिसके चलते जनता का विधायकों और सांसदों के प्रति अविश्वास साफ साफ झलकता दिखाई दे रहा था। जनता चाह रही थी कि कोई संगठन जो गैर राजनैतिक तौर पर हो वह आकर इस आंदोलन की अगुआई करे और जनता उसका पूरा पूरा साथ देने को आमदा दिख रही थी।
 
इसी बीच अगस्त के पहले सप्ताह में होटल बाहुबली के हाल में एक बैठक आहूत की गई जिस बैठक में जिले के प्रबुद्ध नागरिकों ने फोरलेन के जाने के गम को और षणयंत्र को रेखांकित करने का प्रयास किया। इस पहली बैठक में लोगों के दिलो दिमाग में स्फूर्ति साफ तौर पर परिलक्षित हो रही थी। इस बैठक में गैर राजनैतिक तौर पर सभी सदस्यों ने एक स्वर से आंदोलन को आगे बढ़ाने की बात कही थी।
 
बताया जाता है कि इसी बैठक में सर्व सम्मति से करतल ध्वनि के साथ आंदोलन को एक गैर राजनैतिक संस्था ‘‘जनमंच‘‘ के माध्यम से जनमंच की अगुआई में लड़ने का निर्णय लिया गया था। जनमंच का नेतृत्व कौन करेगा इस पर यह तय किया गया था कि जनमंच का नेतृत्व सिवनी जिले का निवासी हर एक नागरिक करेगा। लगभग डेढ़ सौ लोगों की उपस्थिति में जनमंच के बेनर तले जनता जनार्दन का रूख देखकर लगने लगा था मानो 2010 आते आते ही इस सड़क का रूका काम पुनः आरंभ हो जाएगा।

चूंकि सड़क निर्माण करा रही सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा अक्टूबर 2008 में ही इस मार्ग का लगभग नब्बे प्रतिशत काम पूरा कर लिया गया था, अतः लगने लगा था कि महज दस फीसदी काम जो कि लगभग चालीस किलोमीटर का बचा था वह तीन चार माह में ही पूरा कर लिया जाएगा। लोगों के मन में नए सवेरे के मानिंद ही उम्मीदें जाग गईं थीं जनमंच के गठन के साथ ही।

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