मंगलवार, 14 जून 2011

एमपी में उड़ रही आरटीई की धज्जियां

एमपी में उड़ रही आरटीई की धज्जियां

सवा तीन लाख बच्चे हैं शिक्षा से महरूम

देश के एक करोड़ बच्चों को नहीं मिल पा रही है शिक्षा

शिक्षा का अधिकार कानून का उड़ रहा माखौल

शालाओं में नहीं मिल पा रहा बीपीएल को दाखिला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा देश के नौनिहालों को शिक्षा मुहैया करवाने के लिए शिक्षा के अधिकार काननू (आरटीई) को लागू किए जाने के बाद भी देश भर में लगभग एक करोड़ बच्चों को शिक्षा दीक्षा मुहैया करवाने में राज्यों की सरकारें पूरी तरह सुस्त ही दिखाई दे रही हैं। मध्य प्रदेश के लगभग सवा तीन लाख बच्चों ने पिछले साल स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है, जबकि राज्यों में निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं के प्रबंधनों ने सरकारों से अनेक रियायतें प्राप्त कर रखी हैं।

मानव संसाधन मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार वैसे तो निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकारी अधिनियम 2009 के कार्यान्वयन द्वारा सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए गए हैं जिसमें निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली 2010, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद को अध्यापकों की अहर्ताएं निर्धारित करने के लिए शैक्षिक प्राधिकरण के रूप मेें, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद को पाठ्यचर्चा और मूल्यांकन प्रक्रिया निर्धारित करने हेतु शैक्षिक प्राधिकरण के रूप में और अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को अधिसूचित करना शामिल है। उधर एचआरडी मिनिस्ट्री के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय द्वारा माॅडल नियम तैयार कर राज्यों को परिचालित कर दिए गए हैं, ताकि राज्य अपनी सुविधाओं के मुताबिक नियम बना सकें।

भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि भारतीय बाजार अनुसंधान ब्यूरो (आईएमआरबी) द्वारा वर्ष 2009 में करवाए गए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार 6 से 13 साल आयु वर्ग के स्कूल न जाने वाले बच्चों की तादाद भारत भर में 81 लाख पचास हजार 618 थी। यह संख्या कुल बाल जनसंख्या का 4.28 फीसदी था।

आरटीई का पालन न करने वालों में मध्य प्रदेश छटवीं पायदान पर है। 27 लाख 69 हजार 111 बच्चों को शाला का मुंह न दिखा पाने वाला उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। दूसरे नंबर पर बिहार है जहां इनकी संख्या 13 लाख 45 हजार 697 है। राजस्थान में इनकी तादाद दस लाख 18 हजार 326 तो पश्चिम बंगाल में सात लाख छः हजार 713 बच्चों के साथ चैथी पायदान पर है। इसके बाद नंबर आता है उड़ीसा का जहां इनकी तादाद चार लाख 35 हजार 560 है। इसके बाद मध्य प्रदेश में 3 लाख 28 हजार 692 बच्चे स्कूल जाने से वंचित रहे हैं।

इसके साथ ही साथ आरटीई के अनुसार शाला को अपनी कुल छात्र क्षमता का पच्चीस फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए सुरक्षित रखकर उन्हें प्रवेश देना अनिवार्य किया गया है। देखा जा रहा है कि मंहगे स्कूल इस नियम से पूरी तरह मुंह मोड़े हुए हैं। जिन शालाओं द्वारा इस नियम का पालन भी किया जा रहा है, उसमें भी फर्जीवाड़ा ज्यादा किया जा रहा है।

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