शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

करूणा की धमक से टल रहा मंत्रीमण्डल विस्तार


करूणा की धमक से टल रहा मंत्रीमण्डल विस्तार

कनिमोझी के कारण डीएमके नहीं करना चाह रहा कांग्रेस से चर्चा

अब तलवार मारन के सर पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पूर्व संचार मंत्री अदिमत्थू राजा फिर द्रमुक सांसद कनिमोझी को सलाखों के पीछे डालने से द्रमुक और कांग्रेस के बीच तलवारें पज ही रहीं हैं। दोनों ही के बीच सीज फायर की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी कि अब कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन पर बर्खास्तगी के खतरे की बखरों ने द्रमुक के तेवर और तीखे कर दिए दिए हैं। दोनों ही राजनैतिक दलों के बीच संवादहीनता के कारण कांग्रेस अब मंत्रीमण्डल विस्तार को लेकर असमंजस में ही दिखाई पड़ रही है।

डीएमके के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि करूणानिधि ने कांग्रेस को साफ तौर पर संदेश भिजवा दिया है कि जब तक उनकी पुत्री कनिमोझी जेल मंे है डीएमके किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस से चर्चा को तैयार नहीं है, रही बात मंत्रीमण्डल विस्तार की तो कांग्रेस चाहे तो द्रमुक के बिना विस्तार करना चाहे तो वह स्वतंत्र है। उधर पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि मंत्री मण्डल विस्तार के लिए दो जुलाई कांग्रेस के लिए मुफीद थी किन्तु डीएमके के अड़ियल रवैए से यह खटाई में पड़ता दिख रहा है। यूपीए सरकार में 18 सांसदों के साथ डीएमके सहयोग कर रही है जिसके दो कबीना और चार राज्य मंत्री हैं।

उधर कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन ने गत दिवस प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से मुलाकात कर टू जी स्पेक्ट्रम मामले में अपनी सफाई पेश की थी। बताया जाता है कि पीएम उनकी सफाई से संतुष्ट नजर नहीं आए। सियासी गलियारों में चर्चा है कि जल्द ही मारन की रूखसती तय है और वे अपने पुराने मित्र ए.राजा के तिहाड़ जेल में पड़ोसी बन सकते हैं। अगर एसा हुआ तो यह द्रमुक को तीसरा बड़ा झटका होगा, इसके पहले राजा और कनिमोझी तिहाड़ की हवा खा रहे हैं।

चौथे मोर्चे के सदस्य अजीत सिंह लाल बत्ती को लालायित दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि वे जयललिता के साथ मिलकर 18 सांसदों का जुगाड़करने की बात कह रहे हैं। मलयाली लाबी एक बार फिर शशि थरूर को वापस मंत्री बनाने पर जोर दे रही है। कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार जल्द ही होने वाले मंत्री मण्डल विस्तार में द्रमुक का स्थान चौथे मोर्चे के लोकदल और अन्ना द्रमुक द्वारा लिया जा सकता है, किन्तु जयललिता के साथ पुराने कड़वे अनुभवों के आधार पर कांग्रेस रिस्क लेने से हिचक ही रही है।

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