शनिवार, 2 जुलाई 2011

किसलिए मौन वृत रखती हैं शनिवार को मीनाक्षी!


किसलिए मौन वृत रखती हैं शनिवार को मीनाक्षी!

राहुल से संबद्ध सचिव के मौन वृत को लेकर चर्चाओं का दौर

राजनैतिक या व्यक्तिगत महात्वाकांक्षापूर्ति हेतु हो रही शनिदेव की उपासना!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की टीम बेहद सादगी के साथ रहने का प्रहसन करती है। राहुल गांधी खुद शतब्दी से चंडीगढ़ जाते है, किन्तु बाद में पता चलता है कि रेल के बीच की पूरी बोगी ही उनके लिए आरक्षित थी सो कोई भी यात्री उसे पार नहीं कर पा रहा था। इस तरह की फाईव स्टार सादगी के बीच राहुल की टीम मंहगे और आलीशान ब्लेक बेरी और पॉम टाप से पूरी तरह लैस रहती है। इसमें एक साधारण सा चेहरा भी है, जो चुपचाप खामोशी के साथ मंजिल की ओर बढ़े जा रहा है।

यह चेहरा है मध्य प्रदेश से राजनैतिक फलक पर अपनी आमद दर्ज कराने वाली मीनाक्षी नटराजन का। मीनाक्षी नटराजन ने बहुत ही शानीलता और खामोशी के साथ अपना राजनैतिक सफर आरंभ किया। नपे तुले और सधे कदमों से चलकर वे राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गईं। राहुल गांधी की नजदीकी के चलते उन्हेें नेहरू युवा कंेद्र मंे उपाध्यक्ष बनाया गया और फिर वे बरास्ता लोकसभा संसदीय सौंध पहुंचीं।

मीनाक्षी के इस सफर की एक विशेषता यह रही कि उन्होंने अपना एक भी समर्थक पैदा नहीं किया, साथ ही उनकी कार्यप्रणाली से कांग्रेस को ही कोई फायदा हुआ हो, एसा भी प्रतीत नहीं होता है। लगता है मीनाक्षी नटराजन ने राहुल गांधी को साधना ही मूल मंत्र माना और अब तक का इतिहास इस ओर इशारा कर रहा है कि मीनाक्षी ने खुद और राहुल को ही मजबूत करने का उपकृम किया है। उनकी कांग्रेस को मजबूत करने की मंशा कभी जाहिर नहीं हुई। उनके संसदीय क्षेत्र में ही कांग्रेस छोड़कर जाने वाले कार्यकर्ताओं की ही खासी तादाद है।

मीनाक्षी नटराजन के बारे में एक बात प्रकाश में आई है कि वे शनिवार का दिन आरक्षित रखती हैं। शनिवार को न तो वे किसी से मिलती हैं और न ही किसी का फोन ही रिसीव करती हैं। बताया जाता है कि शनिवार के दिन मीनाक्षी नटराजन मौन वृतरखतीं हैं। जैसे ही यह बात सियासी गलियारों में फैली वैसे ही अविवाहित मीनाक्षी के इस वृत को लेकर तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए। मीनाक्षी के मित्र, शुभचिंतक और विरोधी तरह तहर की चर्चाएं चटखारे लेकर करने से बाज नहीं हा अरहे हैं। कोई कहता है शीघ्र विवाह, तो कोई एकाग्रता, तो कोई राजनैतिक पद की महात्वाकांक्षा तो कोई लाल बत्ती का तर्क तक दे डालता है। सच्चाई क्या है यह तो मीनाक्षी ही जानें किन्तु इक्कीसवीं सदी में भी वैदिक गाथाओं में वर्णित ऋषि मुनियों के शक्ति संचय हेतु मौन वृत की तर्ज पर मीनाक्षी का मौन जबर्दस्त चर्चा में है।

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