बुधवार, 21 सितंबर 2011

हृदय प्रदेश कब होगा औद्योगिक रूप से समृद्ध!

हृदय प्रदेश कब होगा औद्योगिक रूप से समृद्ध!



(लिमटी खरे)




देश के हृदय प्रदेश में उद्योगों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। एक के बाद एक उद्योग धंधों की सांसे फूल रहीं हैं। शिवराज सिंह चौहान द्वारा जनता के गाढ़े पसीने से कमाए गए राजस्व को दोनों हाथों से निवेशकों को आमंत्रित करने में लुटाया जा रहा है। निवेशक आते हैं पर जब वे आवागमन के साधनों की स्थिति देखते हैं तो उनकी रूह कांप जाती है। कोई भी निवेशक यह नहीं चाहेगा कि उसे कच्चे माल लाने और उद्योग के उत्पाद को बाजार तक ले जाने में तीन से चार गुना रकम खर्च करना पड़े। कांग्रेस भाजपा की अहम की लड़ाई में मध्य प्रदेश की सड़कों के परखच्चे उड़ चुके हैं। रेल और विमान सेवाएं पर्याप्त नहीं कही जा सकती हैं। इन परिस्थितियों में यक्ष प्रश्न यह है कि मध्य प्रदेश को आखिर औद्योगिक रूप से समृद्ध कैसे बनाया जाए!


अपने आंचल में आकूल वन एवं खनिज सम्पदा, पर्याप्त जल स्त्रोत और उत्कृष्ट भौगोलिक स्थिती के बावजूद मध्यप्रदेश राज्य जन प्रतिनिधियों की दुर्बल इच्छााशक्ति चलते औद्योेगिक रुप से पिछडता जा रहा है। जबकि मध्यप्रदेश से हाल ही में अलग हुये सभीपवर्ती नौनिहाल राज्य छत्तीसगढ खनिज आधारित उद्योगों के बल पर सबसे ज्यादा निवेशक आकर्षित करने में सफल रहा है। आज छत्तीसगढ राज्य गुजरात के बाद निवेषकों की पहली पसंद बना हुआ है जो निश्चित ही प्रतिनिधियों की सकारात्मक सोच और दृढ इच्छाशक्ति से संभव हो सका है।


राज्य सरकार भले ही प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर तथा राजनैतिक राजधानी भोपाल के इर्द गिर्द पिछले सालों में निवेशकों को आकर्षित करने में सफल हो रही हो पर आजादी के उपरांत मध्य प्रदेश औद्योगिक दृष्टि से पूरी तरह पिछड़ा माना जा सकता है। पीथमपुर, देवास, मंडीदीप आदि कस्बों में औद्योगिक विकास केंद्र (इंडस्ट्रीयल ग्रोथ सेंटर) बने हैं पर बावजूद इसके यह नहीं माना जा सकता है कि मध्य प्रदेश औद्योगिक रूप से समृद्ध हो गया है।


किसी भी उदयोग का आधार मूलतः आवश्यक कच्चा माल ही होता है। मध्यप्रदेश में मुख्यतः कोयला, बाक्साइट, मैग्नीज, हीरा, जिंक, लाइमस्टोन, डोलोमाहट, ग्रेनाइट और लौह अयस्क भरपूर मात्रा में उपलब्ध है किंतु इन खनिजों के खासतौर पर लौह अयस्क के पर्याप्त दोहन की कोई स्थायी नीति या कार्ययोजना आज तक उपलब्ध नहीं है, और इनका दोहन आज भी बंदरबॉट पर आधारित है।


कुछ थोडे बहुत उद्योग लगे भी तो वे निवेशकों की कार्ययोजना का परिणाम है। प्रदेश में अधिकांश उद्योग आज बीमारू हालत में हैं। सरकारी छूट का लाभ उठाकर प्रदेश में उद्योगपतियों ने दस्तक तो दी किन्तु जैसे ही छूट की अवधि समाप्त हुई वैसे ही निवेशकों ने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया। जबकि आवश्यक्ता इस बात की थी कि छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद राज्य सरकार प्रदेश के खनिज दोहन की कोई स्थायी नीति बनाती और उस पर आधारित उद्योगों को बढावा देती। वर्तमान सरकार का खनिज साधन मंत्रालय इस बात से भी अनभिज्ञ है कि राज्य में वास्तव में किस-किस तरह का कितना खनिज उपलब्ध है।


प्रदेश में बेलगाम दौड़ती अफसरशाही की एक बानगी यह भी है कि ‘‘डेस्टिनेशन मध्यप्रदेश‘‘ में खनिज साधन विभाग द्वारा जारी आंकडों में भी लौह अयस्क की उपलब्धता प्रदर्षित नहीं की गई है,। जो इस बात का घोतक है कि शासन इस दिशा में गंभीर नहीं है, जबकि इस पर आधारित बडे उद्योगों को लगाने के लिये निवेशक अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं।


भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा जारी ‘‘मध्यप्रदेश का भू-विज्ञान एवं खनिज संसाधन‘‘ संख्या 30, भाग 11, द्वितीय परिशोधित संस्करण जो भारत सरकार के आदेश से प्रकाशित है के अनुसार राज्य के ग्वालियर और जबलपुर जिले में क्रमशः 132.25 मिलियन टन और 38.9 मिलियन टन लौह अयस्क भंडार उपलब्ध है।


इसी तरह सागर जिले में उपलब्ध लौह अयस्क में लौह प्रतिशत 67 तक है इसके अलावा बैतूल, देवास, खरगौन, मंदसौर, नरसिहपुर, रायसेन, राजगढ, शिवपुरी एवं सीधी जिलों में भी पुष्ट लौह भंडार उपलब्ध है जिनका दोहन इस पर आधारित उद्योग ना होने से नहीं किया जा सका है।


मध्य प्रदेश राज्य के कटनी एवं जबलपुर जिले मेें बांटे गये खनिपट्टो से बडी मात्रा में लौह अयस्क निर्यात हो रहा है जो निश्चित एवं निर्विवाद रूप से स्थापित करता है कि उपलब्ध खनिज आद्योगिक उपयोग का है। इन्ही जिलों में ‘‘बलू डस्ट‘‘ भी उपलब्ध है जिसका उपयोग विदेशों में ‘‘सिंटर प्लांट‘‘ के माध्यम से इस्पात बनाने में ही रहा है।


यदि राज्य सरकार अन्य समीपवर्ती राज्यों की नीतियों के अनुरुप प्रयास करे और इसका निर्यात प्रलिबंधित करे तो उपलब्ध लौह अयस्क पर आधारित वृहद कारखाने 30 सालों तक निरंतर चल सकते है । इन पर आधारित उद्योेग लग जाने पर इस खनिज के छोटे-छोटे ‘‘पॉकेट्स‘‘ भी व्यवहारिक हो जाऐंगे और खनन और दोहन से राजस्व और रोजगार बढेगा।


हो सकता है सरकार का मानना हो कि उपलब्ध लौह अयस्क भंडारों में अधिकांश में लौह प्रतिशत कम है किंतु आज उद्योगों के पास विकसित तकनीक उपलब्ध है जैसे बेनीफिशिएशन प्लांट लगाकर इसका प्रतिशत प्रयोगानुरुप किया जा सकता है एवं बेकार जाने वाली ‘‘फाइन्स‘‘ को सिंटर प्लांट लगाकर पुर्नउपयोग किया जा सकता है।


इन सभी संसाधनों को अंगीकार करने वाले उद्योगों को इसके उत्खनन की जिम्मेदारी सौपी जा सकती है। राज्य में महाकौशल का कटनी  और बुंदेलखण्ड का छतरपुर जिला इन उद्योगों के लिये एक उपयुक्त स्थल हों सकता है जहां पानी, बिजली, सडक एवं कोयला 100 किमी. के दायरे में उपलब्ध है। इन पर आधारित संयंत्रो में कैप्टिव पावर प्लांट अनिवार्य करके सरकार अपनी विद्युत उपलब्ध कराने की बाध्यता से भी बच सकती है।


राज्य के लगभग 200 मिलियन टन लौह अयस्क भंडार को विधिवत ढंग से कार्ययोजना बनाकर इस पर आधारित उदयोगों को प्रश्रय देने से राज्य सरकार को अप्रत्याशित लाभ हो सकता है मजे की बात तो यह है कि इस संपदा के बारे में सरकार को जानकारी ही नहीं है। राज्य में लौह अयस्क पर आधारित कोई भी वृहद संयंत्र कार्यरत नही है जबकि पडोसी राज्यो छत्तीसगढ, महाराष्ट्र और उडीसा में अनेक संयंत्र कार्यरत है। राज्य के शहडोल जिले में उत्कृष्ट दर्जे का कोकिंग कोल उपलब्ध है, संलग्न क्षेत्र मे लौह अयस्क भी उपलब्ध है, यदि जन प्रतिनिधि एक जुट हो जाए और दृढ इच्छााशक्ति प्रदर्शित कर सकें, तो इस क्षेत्र में इन खनिजों पर आधारित एक वृहद ‘‘पिग आयरन‘‘ संयत्र स्थापित हो सकता है।


केंद्र सरकार की मंशा भी कमोबेश यही है। यदि सरकार इस क्षेत्र में सकारात्मक रवैया अपनाती है तो मध्यप्रदेश  राज्य क्षेत्रीय असंतुलन से भी बचा रहेगा और विकास का सारा श्रेय वर्तमान नेतृत्व को ही प्राप्त होगा। आशा की जानी चाहिये राज्य शासन 200 मि.टन लौह अयस्क भंडार के दोहन से प्राप्त होने वाले राजस्व की दिशा में सुनियोजित और कारगर पहल करते हुऐ उस पर आधारित उद्योगों को बढावा देगी।


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब तब निवेशकों को आकर्षित करने का जतन करते आए हैं। हाल ही में वे चीन भी गए थे। जब भी कोई उद्योगपति मध्य प्रदेश आकर उद्योग लगाने का मन भी बनाता है तब यहां के जमीनी हालात देखकर वह पीछे ही हटने पर मजबूर हो जाता है। मध्य प्रदेश में आवागमन की समस्या प्रमख कारक है। जर्जर सड़कों के लिए कांग्रेसनीत केंद्र और भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार एक दूसरे पर तोहमत लगाकर अपनी जवाबदेही से बचती ही आई है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि किसी ने भी सड़कों के सुधार की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए हैं। केंद्र में मध्य प्रदेश के कोटे से उद्योगपति जनसेवक कमल नाथ भी भूतल परिवहन मंत्रालय के निजाम रहे हैं। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की सड़कों को तो सुधरवा दिया किन्तु शेष मध्य प्रदेश की सड़कें आज भी कराह ही रही हैं।


राजधानी भोपाल से महज सत्तर किलोमीटर दूर होशंगाबाद की यात्रा अब कई घंटों में पूरी हो पाती है। इतना ही नहीं उत्तर दक्षिण की जीवन रेखा कहे जाने वाले नेशनल हाईवे नंबर सात के धुर्रे उड़ चुके हैं। मोटर मालिकों के वाहन बुरी तरह क्षति ग्रस्त हो रहे हैं। भाजपा ने निजाम प्रभात झा ने पिछले साल कमल नाथ को घेरने के लिए इन्हीं दिनों मानव श्रंखला और हस्ताक्षर अभियान चलाने की घोषणा दो मर्तबा की थी। पता नहीं किस दबाव के चलते इसे साल भर से स्थगित रखा गया है। अब कांग्रेस ने सड़कों के गड्ढों में बेशरम के पेड़ रोपने का स्वांग रचा है। कांग्रेस के आव्हान पर इस फ्लाप शो में जर्जर एनएच को छोड़ ही दिया गया। मध्य प्रदेश को अगर औद्योगिक रूप से समृद्ध करना है तो आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सबसे पहले आवागमन के मार्ग दुरूस्त करवाए जाएं फिर निवेशकों को बुलाया जाए, अन्यथा निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए सरकारी धन व्यर्थ ही बहता रहेगा और निवेशक मध्य प्रदेश से किनारा ही करते रहेंगे।

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