शनिवार, 7 जनवरी 2012

पेंच नेशनल पार्क देश का सर्वश्रेष्ठ हन्टिंग ग्राउण्ड बन गया है: तिवारी


पेंच नेशनल पार्क देश का सर्वश्रेष्ठ हन्टिंग ग्राउण्ड बन गया है: तिवारी



(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। बेस्ट मेन्टेन्ड इको फ्रेण्डली टूरिज्म और प्रभावकारी प्रबंधीय मूल्यांकन जैसे पुरस्कार प्राप्त कर चुके पेंच प्रोजेक्ट टाईगर रिजर्व की उपलब्धियां सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। पेंच पार्क में पदस्थ कुछ अधिकारियों के भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण पेंच राष्ट्रीय उद्यान और इसके आसपास का क्षेत्र देश का सर्वश्रेष्ठ हंटिंग ग्राउन्ड बन गया है। इस आशय की बात जनमंच के सदस्य संजय तिवारी ने अपनी विज्ञप्ति के माध्यम से कही है।
पेंच लैण्ड स्केप के अंतर्गत आने वाले पेंच पार्क से सटे दक्षिण वनमंडल के क्षेत्र में 1995 से 2009 तक वन्यप्राणियों के शिकार के 129 प्रकरण सिवनी के न्यायालय में लंबित हैं जिसमें 7 बाघ, 05 तेन्दुए समेत दुर्लभ बायसन के शिकार भी शामिल हैं। पिछले दो महीनों में पेंच पार्क के आसपास के क्षेत्रों से चार से ज्यादा बाघ और तेन्दुओं की खाल पुलिस के द्वारा जप्त होने के बाद भी पेंच पार्क प्रशासन सुस्त पड़ा है। सूत्र बताते हैं कि बाघों की खालों का अंतर्राष्ट्रीय तस्कर संसारचंद और उसके भाई कल्याण का तैयार किया गया नेटवर्क अभी भी पेंच राष्ट्रीय उद्यान और  उसके आसपास के क्षेत्र में सक्रिय है।
पेंच राष्ट्रीय उद्यान के द्वारा बाघों की मौत के अधिकृत आंकड़े अपनी पोल स्वयं खोलते नजर आते हैं। पेंच पार्क प्रशासन वर्ष 2002-2010 के बीच पार्क और इससे सटे क्षेत्रों में 9 बाघों की मौत की पुष्टि स्वाभाविक मृत्यु के तौर पर करता है जबकि सच्चाई यह है कि पार्क के अंदर और इससे सटे क्षेत्रों में बाघों और तेन्दुओं को फंदे में फंसाकर, जहर देकर एवं बिजली करंट से पार्क प्रशासन के 400 से ज्यादा कर्मचारियों और
अधिकारियों की नाक के नीचे मारा जा रहा है। वेटरनरी से पदस्थापना पर नियुक्त डॉक्टर द्वारा तैयार की गयी मृत बाघ व तेन्दुए की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी अमूमन संदिग्ध रहती है। जवान बाघ के पानी में डूबकर मरने के बिरले उदाहरण पेंच राष्ट्रीय उद्यान में ही देखने को मिलते हैं।
पेंच राष्ट्रीय उद्यान के आसपास बाघों और तेन्दुओं के शिकार के मामले पकड़े जाने पर पेंच पार्क के अधिकारियों का सीधा उत्तर होता है मारे गये बाघ और तेन्दुये पेंच राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से बाहर के हैं जबकि यही पेंच पार्क प्रशासन पेंच लैण्ड स्केप के अंतर्गत इन बाघों को अपनी गिनती में शामिल करता है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण आयोग के अधिकारी डॉ। राजेश गोपाल पेंच राष्ट्रीय उद्यान और इसके आसपास के क्षेत्रों में 64 बाघों की उपस्थिति का जिक्र करते हैं परंतु सच्चाई यह है कि जो बाघ और तेन्दुए पार्क के संरक्षित और सुरक्षा वाले क्षेत्र से बाहर आ जाते हैं उनकी शिकारियों के हाथ बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। यही डॉ। राजेश गोपाल राष्ट्रीय उद्यानों के आस पास के क्षेत्रों में मानवीय दखल कम करने के लिये धारा 144 लगाने की सलाह भी देते हैं। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले दस में से नौ पर्यटकों को उद्यान में बाघ के दर्शन के बिना ही लौटना पड़ता है।
बाघों के संरक्षण और संवर्धन के नाम पर पेंच राष्ट्रीय उद्यान को भारी भरकम राशि प्राप्त होती है। सिर्फ प्रोजेक्ट टाईगर योजना के अन्तर्गत पिछले 18 वर्षों में 27 करोड़ रूपये एवं वर्ष 1996 से 2005 तक इंडिया ईको डेव्हलपमेंट प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लगभग 28 करोड़ रूपये की राशि पेंच राष्ट्रीय उद्यान को प्राप्त हो चुकी है। स्पष्ट है सरकार बाघों को बचाने के लिये धन की कमी नहीं कर रही है लेकिन भ्रष्टाचार और अफसरशाही के कारण पेंच पार्क को मिलने वाले धन का एक बड़ा हिस्सा कुछ भ्रष्ट वन अधिकारियों की जेबों में जा रहा है।
दिसंबर 2011 में पेंच पार्क में वन्यप्राणियों के शिकार और इसके कानूनी प्रावधानों को लेकर आयोजित कार्यशाला में पेंच राष्ट्रीय उद्यान के उपसंचालक ओ।पी। तिवारी यह नहीं बता पाये कि गिरफ्त में आये कितने वन्य प्राणियों के शिकारियों को वे न्यायालय से सजा दिलवा पाये। पार्क के डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर को शिकार के मामले वाले न्यायालयीन प्रकरणों में कोई रूचि नहीं है जिस कारण अपनी जान को जोखिम में डालकर खतरनाक हथियारों से लैस शिकारियों को पकड़ने वाले पेंच पार्क में पदस्थ छोटे स्तर के साहसी वन कर्मचारियों का मनोबल लगातार गिरते जा रहा है।

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